भारत की माटी में आस्था एवं श्रद्धा की खुशबु है, यहाँ की नदियों में पवित्र रुन-झुन, रुन-झुन, कल-कल करने वाले संगीत की धारा अविरल प्रवाहित होती रहती है. यहाँ कि हवा में अध्यात्म, भक्ति एवं संस्कृति का अद्भुत संगम है. इसका उदाहरण मिलता है चित्रोत्पला गंगा (महानदी) के किनारे बसे हुए तीर्थ स्थल में.
जहाँ सदियों से माघ मास की पूर्णिमा को मेला भरता है और शिव रात्रि तक चलता है. अब इसका सरकारी करण हो गया है. इस "पुन्नी मेले" को "राजिम कुम्भ" का नाम दे दिया गया है. इस कुम्भ में प्रतिवर्ष करोड़ों का बजट बनता है अस्थायी निर्माण के नाम पर और स्वाहा हो जाता है. श्रद्धालुओं को लाभ हो या ना हो पर आयोजकों का माया घट लबा-लब भर जाता है.
राजिम मेले में बच्चों का झूला |
राजिम कुम्भ मेले मैं हम तीन लोग (मैं, अवधिया जी और हमारा पुत्र उदय) गए थे. मेले में भीड़ होने के कारण मोटर सायकिल से घूमना ही अतिउत्तम होता है.
उदयन दो दिन से जिद कर रहा था कि मेले में जाना है. इसलिए उसके लिए समय निकाला गया. (अवधिया जी और उदय) वृद्ध एवं बच्चे की मति एक समान मानी जाती है.
इन दो बच्चों के साथ पुन्नी मेले में घुमने का आनंद लिया. उदय ने झुला -झूलने की इच्छा प्रकट की तो उसे झुला-झुलाया गया. बिना झूले के मेले का आनंद कैसा? हम भी बचपने में मेले में पहले झुला ही झूलते थे. हमने मोबाइल से कुछ तश्वीरें ली. अवधिया जी ने वाल्मीकि रामायण खरीदी. फिर एक जगह बैठ कर गोल-गप्पे का मजा लिया.
महानदी राजिम |
नदी के एक छोर संत पवन दीवान जी का ब्रम्हचर्य आश्रम स्थित है. राजीव लोचन भगवान का मंदिर हैं. जहाँ श्रद्धालु सदियों से उपासना करते आये हैं.
छत्तीसगढ़ को प्राचीन ग्रंथों में दक्षिण कोसल कहा गया है. इसमें कोसल के तीन तीर्थ बताये गए हैं. १. ऋषभ तीर्थ २. काल तीर्थ ३. बद्री तीर्थ. इसमें तीसरा बद्री तीर्थ राजिम को कहा गया है.
महाभारत के अरण्य पर्व के अनुसार राजिम ही एक मात्र ऐसा तीर्थ स्थान है जहाँ बद्री नारायण का मंदिर है. इसका वही महत्त्व है जो जगन्नाथ पूरी का है. इसलिए यहाँ के महाप्रसाद का भी खास महत्त्व है. यहाँ चावल से निर्मित "पीडिया" प्रसाद के रूप में दिया जाता है. यह यहाँ के पुजारियों द्वारा तैयार किया जाता है.
कुलेश्वर मंदिर राजिम |
राजीवलोचन मंदिर की पिछली दीवार पर कलचुरी संवत ८९६ का एक शिलालेख है जिसे रतनपुर के कलचुरी शासकों के अधीनस्थ सामंत जगत पल ने उत्कीर्ण कराया था. इस हिसाब से यह मंदिर ८ वीं शताब्दी का है.
लेकिन कुछ इतिहासकार इसे ५-६ वीं शताब्दी का मानते हैं. यह पहला मंदिर है जिसका गर्भ गृह पहले बना फिर महामंड़प व मंदिर का विमान एवं परकोटे बने. इस मंदिर का शिल्प-सौन्दर्य अद्भुत है.
इसका मुख्य द्वार अत्यंत सुन्दर है इसमे नागबन्ध उत्कीर्ण हैं. राजीव लोचन भगवान के बांये हाथ में चक्र है जो नीचे की ओर झुका हुआ है. कमल नाल को गज पकडे हुए है. बाकी दो हाथों में गाडा एवं शंख शोभित हैं. माथे पर कीरीट, कानो में कुंडल, गले में कौस्तुभ मणि शोभित है.
राजीव लोचन मंदिर राजिम |
राजिम के विषय में एक जनश्रुति प्रचलित है कि त्रेता से भी एक युग पहले सतयुग में प्रजापालक रत्नाकर नामक सोमवंशी राजा हुआ, उस समय यह क्षेत्र पद्मावती क्षेत्र कहलाता था. इसके आस-पास का इलाका वनाच्छादित दंडकारण्य था।
राजा रत्नाकर जनकल्याण के लिए यज्ञ कर रहे थे. यज्ञ में विघ्न डालने वाले राक्षसों से संतप्त राजा ईश्वर की आराधना में लीन हो गये. संयोगवश उस समय गजेन्द्र और ग्राह में भी भरी द्वन्द चल रहा था. गजेन्द्र को ग्राह पूरी शक्ति से पानी में खींचे लिए जा रहा था और असहाय गजेन्द्र ईश्वर को सहायता के लिए पुकार रहा था. उसकी पुकार सुनकर भक्त वत्सल नारायण आये और गज को ग्राह से मुक्ति दिलाते समय राजा रत्नाकर की पुकार सुनी और प्रकट हुए. उन्होंने राजा को वरदान दिया और विष्णु उनके राज में सदा के लिए बस गए. तभी से राजीव लोचन भगवान की मूर्ति इस मंदिर में विराजमान है.
कोसा खोल |
त्रिवेणी संगम पर नदी के बीच में कुलेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है. इसके विषय में जनश्रुति है कि वनवास के समय सीता ने बालू से शिव का लिंग रूप बनया था. अर्घ्य देने पर लिंग रूप में से पॉँच स्थान पर जल धाराएँ फुट निकली. आज भी इस पॉँच मुखी महादेव की ख्याति जगत में है.
कुलेश्वर मंदिर से १०० गज की दुरी पर लोमष ऋषि का आश्रम है. वृक्षों से आच्छादित यह आश्रम बहुत ही शांति प्रदान करता है. लोमष, श्रृंगी ऋषि के पुत्र थे.
किवदंती है कि लोमष ऋषि कल्पकालांतर तक देख सकते थे. उनके शरीर पर रीछ जैसे बाल थे. उन्होंने शिव को प्रतिदिन एक कमल अर्पित कर १०० वर्षों तक तपस्या की थी. शिव को कमल अर्पित करने का अनूठा उदहारण यहीं मिलता है. इसलिए प्राचीन समय में राजिम को पद्मावत क्षेत्र कहा जाता था.
इस तरह कुछ जानकारी राजीव लोचन तीर्थ के विषय में आप तक पहुँचाने का प्रयास था. अवधिया जी आ गये तो उनके साथ हमारा भी इस तीर्थ क्षेत्र में घूमना संभव हो गया नहीं तो.१६ किलोमीटर भी १६०० किलो मीटर के बराबर हो जाता है.
अपना अर्जित पुण्य सबमें बांटा उसके लिये आभार।
जवाब देंहटाएंपर गोल-गोल गप्पे अकेले गप्प किये उसका क्या किया जाए?
@गगन शर्मा जी
जवाब देंहटाएंआप जो भी दंड दें हम भुगतने को तैयार हैं।:)
आपका स्वागत है।
मेले का सुंदर विवरण ..फोटो भी सिर्फ मेले की ही है ..उदयन की नहीं !!
जवाब देंहटाएं.... मेला का भरपूर आनंद लेने के लिये बधाई!!!
जवाब देंहटाएंसुंदर विवरण।
जवाब देंहटाएंअच्छा ललित भईया अब समझा कि आप ने आनें में इतना समय क्यों लगा दिया , क्या करें दिल तो बच्चा है जी ।
जवाब देंहटाएं@संगीता जी,
जवाब देंहटाएंगौर कि्जीए,उदयन झुले पर झुल रहा है।
उदयन के पापा
जवाब देंहटाएंअच्छा वृत्तान्त छापे हो भाई ?
ऐसा इंदौर गईं भाभी जी बोल रहीं हैं
हम तो ये बोल रहे हैं की आप हमारी तरफ से पूज्य भाभी जी को परनाम कीजिये सिर्फ कहिये मत
इस बहाने हम भी मेला घूम लिये ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रहा मेले का विवरण...चित्र पसंद आये.
जवाब देंहटाएंमेले के रोचक वर्णन के साथ राजिम के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी!
जवाब देंहटाएंमेले का वर्णन बढ़िया रहा!
जवाब देंहटाएंआपके इस भ्रमण का कुछ अंश हमें पहले ही अवधिया साहब ने भी सूना दिया था !
जवाब देंहटाएंशेर सिंह जी मज़ा आ गया मेला घूम कर...
जवाब देंहटाएंकाश हमें भी मौका मिलता कि आपकी फटफटिया के पीछे बैठ कर हवा हवाई होते मेला जाते...
जय हिंद...
कभी सर्दियों में रायपुर आयेंगें तो आप को ही घुमा कर लाना पडेगा जी इस मेले में
जवाब देंहटाएंप्रणाम
@अंतर सोहिल जी
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका "पधारो म्हारे देश"
bahut sundar mela vritat..hamko to ek zamana ho gaya mela dekhe..haan nahi to..!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा है
जवाब देंहटाएंवाह जी , तीन कहाँ रहे । आपके साथ हमें भी मेला घूमकर मज़ा आ गया।
जवाब देंहटाएंआपकी यात्रा का यह बखान
जवाब देंहटाएंदिया हमे राजिम की महत्ता का ग्यान
टोकनी की चीज कटहल बीज है या मून्गफ़ल्ली
बताइये तो सही, मिल जाये मन को तसल्ली
सुर्यकांत भैया- चरिहा मा कोसा हे,
जवाब देंहटाएंएला मलबरी ककुन कहिथे। पींयर रंग के होथे।
सियान मन हां एखरे कुर्ता बंगाली पहिरत रिहिस्।
मेले का सुंदर विवरण
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