प्राचीन काल में हमारा विज्ञान उत्कर्ष पर था, वर्तमान से तुलना करें तो हम इतनी वैज्ञानिक प्रगति करने के पश्चात प्राचीन काल की वैज्ञानिक तरक्की के सामने बौने साबित हो रहे है। हम मंत्रों के विषय मे बचपन से सुनते आए हैं। जब हम लिखना पढना भी नही जानते थे। तब मंत्रों के उच्चारण दादा जी के मुंह से सुनते थे। वे नित नेम से संध्या इत्यादि मंत्र पाठ करते थे। इसके पश्चात पिताजी ने भी यह परम्परा बनाए रखी। वे मंत्र के साथ यंत्र का भी प्रयोग करते थे। अब हम हैं,हम मंत्र,यंत्र और तंत्र तीनो का प्रयोग करते है। अब हम चलते हैं भारद्वाज मुनि कृत यंत्रणार्व ग्रन्थ के वैमानिक प्रकरण में दी गई मन्त्र, तंत्र और यंत्र की परिभाषा की ओर........
मंत्रज्ञा ब्राह्मणा: पूर्वे जलवाय्वादिस्तम्भने।
शक्तेरुत्पादनं चक्रुस्तन्त्रमिति गद्यते॥
दण्डैश्चचक्रैश्च दन्तैश्च सरणिभ्रमकादि भि:।
शक्तेस्तु वर्धकं यत्तच्चालकं यन्त्रमुच्यते॥
मानवी पाशवीशक्तिकार्य तन्त्रमिति स्मृतं---(यन्त्राणर्व)
- मन्त्र-जल और वायु के स्तम्भन से जो शक्ति प्राप्त होती है उसे मन्त्र कहते है.
- यन्त्र-दांतों की योजना, सरणी और भ्रामक आदि के द्वारा जिस शक्ति का वर्धन और संचालन किया जाता है, उसे यन्त्र कहते है.
- तंत्र-मनुष्यों और पशुओं की शक्ति से कार्य किया जाता है, उसे तंत्र कहते हैं.
हमारे प्राचीन ग्रंथो मे इन मंत्र-यंत्र-तंत्र के अनेक प्रमाण मिलते है।
विविध यन्त्र
हम प्राचीन कला कौशल युक्त यंत्रों के वर्णन करते हैं. भोज प्रबंध में लिखा है .......
घट्यैकया क्रोशवदशैकमश्च: सुकृत्रिमो गच्छति चारुगत्या।
वायुं ददाति व्यजनं सुपुष्कलं विना मनुष्येण चलत्यजस्रम्॥ (भोज प्रबंध)
मन्त्रों की चर्चा कभी फिर करेंगे आज यंत्रों की चर्चा करते हैं. जो सवारी और मनोरंजन और युद्ध के काम आते थे. भोज प्रबंध में लिखा है. राजा भोज के पास एक काठ का घोडा था, एक घडी में ग्यारह कोस चलता था और एक पंखा था, जो बिना किसी मनुष्य की सहायता के अपने आप ही खूब तेज चलता था और हवा देता था.
विस्तार दें इस विषय को. अच्छा लगा पढ़कर.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारि रही, थोड़ा विस्तार और होना चाहिए था ।
जवाब देंहटाएं@समी्र भाई
जवाब देंहटाएंमिथलेश दुबे- संजीव तिवारी जी कई दिनों से कह रहे थे कि इस विष्य पर लिखा जाए। मै ही आलस कर रहा था। अब इस पर विस्तार से कुछ पोस्ट अवश्य लिखुंगा।
बहुत अच्छा विषय उठाया है आपने ललित जी! जिस प्रकार से आज विद्युत ऊर्जा को उष्मा, प्रकाश, चुम्बकत्व और ध्वनि ऊर्जाओं में परिवर्तित कर दिया जाता है, हमारे प्राचीन विज्ञान में मंत्रों, यंत्रों आदि के द्वारा ध्वनि ऊर्जा को उष्मा, प्रकाश, चुम्बकत्व और प्रकाश में परिवर्तित कर दिया जाता था।
जवाब देंहटाएंप्राचीन भारत की जिन वस्तुओं के साक्ष्य उपलब्ध हैं .. उसे स्वीकार करना तो लोगों की मजबूरी है .. हमारे ग्रंथों में बाकी जो भी लिखा है .. बिना जांच पडताल किए मान लेना चाहिए कि वो सारा गलत है .. बडी विचित्र मानसिकता है .. पर यही हमारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण है !!
जवाब देंहटाएंबढिया जानकारी भरी पोस्ट. बधाई
जवाब देंहटाएंसही बात है जो यही दर्शाता है कि आज के ये आविष्कार तो बहुत पहले हिन्दुस्तान में हो चुके थे !
जवाब देंहटाएंमुझे तो इसकी 'यंत्र' की परिभाषा आधुनिक परिभाषा से भी 'प्रगत' दिख रही है-
जवाब देंहटाएंदण्डैश्चचक्रैश्च दन्तैश्च सरणिभ्रमकादि भि:।
शक्तेस्तु वर्धकं यत्तच्चालकं यन्त्रमुच्यते॥
इसका अर्थ है - दण्ड से (दण्डै:), चक्र से, सरणिभ्रमक(?) आदि के द्वारा जो शक्ति का वर्धक है और चालक है वह 'यन्त्र' कहलाता है।
आधुनिक अर्थ में -
दण्ड = लीवर , जो एक सरल मशीन है।
चक्र = पहिया, यह गीयर हो सकता है, पुली हो सकता है या केवल साधारण पहिया हो सकता है; सभी सरल मशीने हैं।
कहीं 'सरणिभ्रमक' का अर्थ 'नत समतल' (इनक्लाइंड प्लेन) तो नहीं है? यह भी एक सरल मशीन है।
ज्ञातव्य है कि सरल मशीनों से ही जटिल मशीने (कम्पाउण्ड मशीने) बनती हैं। मशीनों की सबसे बड़ी विशेषता उनका 'मेकैनिकल ऐडवान्टेज' है जो इस श्लोक में 'शक्ते: तु वर्धकं यत् च' (जो शक्ति बढ़ाने वाला है) के रूप में कहा गया है। यांत्रिकी (मेकैनिक्स) निम्नलिखित अनुपात को 'मेकैनिकल ऐडवांटेज' (यांत्रिक लाभ) कहते हैं -
किसी मशीन द्वारा वस्तु (लोड) पर लगाया गया बल / आदमी द्वारा मशीन पर लगाया गया बल
दृष्टान्त कई उपलब्ध है प्रक्रिया कहीं खो गयी है लगता है .
जवाब देंहटाएंइंतजार आगे की कड़ियों का
@अनुनाद सिंह-मै आगे इसके विस्तार पर ही आने वाला था।
जवाब देंहटाएंआपका कहना सही है-नरवानरै आकृति की घड़ी मे चक्र=गेयर, रेणु, पारा आदि का प्रयोग हुआ था।
तंत्र-मे मशीन पर मानव बल या पशु बल लगाने से संचालन होता है।
शर्मा जी नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपको बहुत ही धन्यवाद् और सचमुच ये जोरदार बहस का मुद्दा भी अपनी संस्कृति और अपने विज्ञानं के बारे मैं जानने के लिए। जिन्हें लोग अन्धविश्वाश कहते है।
महाभारत मैं युद्ध के दौरान संजय नमक पात्र का वर्णन आता है जो की हस्तिनापुर मैं ही बैठ कर के कुरुछेत्र का आँखों देखा हाल बता रहे थे।
तुलसी दास जी ने अपनी रामचरित मानस मैं लिखा है की भगवन राम अपने पत्नी और भाई के साथ लंका से वापसी के दौरान विमान का प्रयोग किया था।
सचमुच अगर हम वेदों की तरफ जाये तो आज का विज्ञानं पीछे रह जायेगा।
अद्भुत जानकारी।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया विषय चुना है ललित जी ! इसे विस्तार दे जिज्ञासा बढ़ रही है |
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी!
जवाब देंहटाएंआभार!
काश खुदाई मे यह यंत्र मिल जाते ।
जवाब देंहटाएंप्राचीन कल में हमारे देश ने बहुत वैज्ञानिक तरक्की की थी,
जवाब देंहटाएंवर्त्तमान में सब भुला बैठे हैं...... विश्वकर्मा जयंती की शुभकामनाएं.
shandar jankari.aage ki kadiyon ka intazaar rahega.mere psandida vishay pr klm???key board chlaya hai.
जवाब देंहटाएंnice information.....thanks
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