प्राचीन काल में परम्परागत शिल्पकारों ने यंत्रों का निर्माण किया तथा उनके वैज्ञानिकता एवं अनुसंधानों ने सारे जगत को अभी भी चकित कर रखा है. उन्होंने जो यन्त्र बनाये उनकी तकनीकि उत्कृष्टता पर हम आज भी चकित हो जाते है.
धम्मपाद की कथा वसुल्दात्ता वत्थु पृष्ठ ६८ पर लिखा है कि कौशाम्बी के राजा उदयन से उज्जियनी के राजा चंडप्रद्योत की शत्रुता थी.
प्रद्योत ने राजा उदयन को धोखा देकर पकडवाने के लिए एक हस्ति यन्त्र तैयार करवाया, यह हाथी लकड़ी का था. इसका रंग सफ़ेद था. यह स्वचालित यन्त्र से चलता था. इसके अन्दर ६० योद्धा बैठ सकते थे. प्रद्योत ने इस हाथी को उदयन के जंगल में छुडवा दिया.
हाथी जंगल में इधर उधर विचरण करने लगा. सफ़ेद हाथी की खबर पाकर उदयन इसे पकड़ने आया, परन्तु
स्वयं ही पकड़ा गया.
इसी ग्रन्थ में कथा विशाखा वत्थु पृष्ठ १९५ में लिखा है कि विशाखा के लिए एक महालता नामक आभूषण बनवाया गया था. यह सर से परों तक था. इसे चार महीनो में ५०० सुतारों ने बनाया था.
इसकी कीमत उस समय में किसी सिक्के के भाव से ९ करोड़ थी. इस आभूषण में एक मोर लगा था. जो विशाखा के मस्तक पर नाचा करता था. इस तरह महाभारत के आदि पर्व में उतंग घोड़े का वर्णन आया है. वह भी यन्त्र के सहारे ही चलता था.
शाहवाज गढ़ी पेशावर में एक पत्थर पर रेल का प्रतीक भी बना हुआ है. इस तरह हमें अपनी प्राचीन विद्या और विज्ञान पर गर्व है. इन्होने जो अविष्कार किये हैं वह उस ज़माने और आज के समय में भी चमत्कार से कम नहीं है.
धम्मपाद की कथा वसुल्दात्ता वत्थु पृष्ठ ६८ पर लिखा है कि कौशाम्बी के राजा उदयन से उज्जियनी के राजा चंडप्रद्योत की शत्रुता थी.
प्रद्योत ने राजा उदयन को धोखा देकर पकडवाने के लिए एक हस्ति यन्त्र तैयार करवाया, यह हाथी लकड़ी का था. इसका रंग सफ़ेद था. यह स्वचालित यन्त्र से चलता था. इसके अन्दर ६० योद्धा बैठ सकते थे. प्रद्योत ने इस हाथी को उदयन के जंगल में छुडवा दिया.
हाथी जंगल में इधर उधर विचरण करने लगा. सफ़ेद हाथी की खबर पाकर उदयन इसे पकड़ने आया, परन्तु
स्वयं ही पकड़ा गया.
इसी ग्रन्थ में कथा विशाखा वत्थु पृष्ठ १९५ में लिखा है कि विशाखा के लिए एक महालता नामक आभूषण बनवाया गया था. यह सर से परों तक था. इसे चार महीनो में ५०० सुतारों ने बनाया था.
इसकी कीमत उस समय में किसी सिक्के के भाव से ९ करोड़ थी. इस आभूषण में एक मोर लगा था. जो विशाखा के मस्तक पर नाचा करता था. इस तरह महाभारत के आदि पर्व में उतंग घोड़े का वर्णन आया है. वह भी यन्त्र के सहारे ही चलता था.
शाहवाज गढ़ी पेशावर में एक पत्थर पर रेल का प्रतीक भी बना हुआ है. इस तरह हमें अपनी प्राचीन विद्या और विज्ञान पर गर्व है. इन्होने जो अविष्कार किये हैं वह उस ज़माने और आज के समय में भी चमत्कार से कम नहीं है.
:)
जवाब देंहटाएंआपकी बात से पूर्ण सहमत गुरूजी !
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी और सही बात धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंभारत के प्राचीन ग्रंथों में वर्णित यंत्रों के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान कर आप बहुत सराहनीय कार्य कर रहे हैं ललित जी!
जवाब देंहटाएंप्रसंगवश मैं कौशाम्बी के राजा उदयन के विषय में कुछ और जानकारी जोड़ रहा हूँ यहाँ पर। जिस राजा प्रद्योत ने उदयन को कैद किया था उसे उसकी विशाल सेना के कारण महासेन के नाम से भी जाना जाता था। उदयन के पास घोषवती नामक अलौकिक वीणा थी और वे अद्वितीय वीणावादक थे। उदयन के वीणा-वादन की ख्याति सुनकर प्रद्योत ने उन्हे अपनी पुत्री वासवदत्ता के लिये वीणा-शिक्षक नियुक्त कर दिया। इस दौरान उदयन और वासवदत्ता एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो गये।
इधर उदयन के मन्त्री यौगन्धरायण उन्हें कैद से छुड़ाने के प्रयास में थे। यौगन्धरायण के चातुर्य से उदयन, वासवदत्ता को साथ ले कर, उज्जयिनी से निकल भागने में सफल हो गये और कौशाम्बी आकर उन्होंने वासवदत्ता से विवाह कर लिया।
उदयन और वासवदत्ता पर संस्कृत के महाकवि भास ने "प्रतिज्ञा यौगन्धरायण" और "स्वप्न वासवदत्ता" नामक दो नाट्यों की रचना की है जो अत्यन्त रोचक और पठनीय हैं।
बहुत अच्छी और रोचक जानकारी .... ..
जवाब देंहटाएंनोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ....
interesting and informative!
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी दी है धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और ज्ञान वर्धक जानकारी दी
जवाब देंहटाएंसादर
प्रवीण पथिक
9971969084
ज्ञान दर्पण दिखाने के लिए शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंविक्रमादित्य का सिहासन भी प्रसिद्ध है.
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी
.... प्रभावशाली प्रस्तुति !!!
जवाब देंहटाएंगर्व तो होना ही चाहिए ..
जवाब देंहटाएंअच्छे प्रसंग गिनाये आपने ..
अवधिया जी ने भी बढियां जानकारी दी ..
अतीत बड़ा समृद्ध है अपना .. आभार ,,,
proud to be an Indian..बहुत बढ़िया जानकारी आभार...और उड़न खटोले को कैसे भूल सकते हैं हम :)
जवाब देंहटाएंachchhi post
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