आज वैदिक काल में विमानों के निर्माण और संचालन की बात करते हैं. विमान नामक यंत्र वैदिक काल से ही प्रचलित था.वेद में विमान के बनांने की विधि बताते हुए कहा गया है कि जो आकाश में पक्षियों के उड़ने की स्थिति को जानता है, वह समुद्र- आकाश की नाव-विमान-को भी जानता है. संस्कृत में वी पक्षी को कहा गया है. मान का अर्थ अनुरूप अथवा सदृश है. इस लिए विमान का अर्थ पक्षी के सदृश होता है. विमान की रचना पक्षियों के सिद्धांत पर ही हुयी है. आज हम प्रत्यक्ष एरो प्लेन को पक्षी की शकल में उड़ते हुए देखते है.
हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों ने जो नवोन्मेष किये थे. आज के वैज्ञानिक अभी उसके करीब भी नहीं पहुंचे है. विमानों से संबंध रखे वाली भारद्वाज ऋषि कृत एक पुस्तक अंशु बोधिनी है. इस पुस्तक में कई विद्याओं का वर्णन है जिन्हें अधिकरण का रूप दिया गया है. इसमे एक विमान अधिकरण है. इस अधिकरण में आये हुए भारद्वाज ऋषि के शक्त्युद्ग्मोद्योष्टौ सुक्त पर बोद्धायन ॠषि की वृत्ति इस इस प्रकार है,
शक्त्युद्गमौ भूतवाहो धुमयानश्शिखोद्गम:।
अंशुवाहस्तरामुखौ मणिवाहो मरुतसख:॥
इत्यष्टकाधिकरणे वर्गाण्युक्तानि शास्त्रत:॥
इन श्लोकों में विमान की रचना एवं उनकी आकाश संचारी गति के आठ विभाग बताये गए है.
- शक्त्युद्गम=बिजली से चलने वाला
- भूतवाह=अग्नि-जल-वायु से चलने वाला
- धूमयान=वाष्प से चलने वाला
- शिखौद्गम=पंचशिखी के तेल से चलने वाला
- अंशुवाह=सूर्य किरणो से चलने वाला
- तारामुख=उल्कारस(चुम्बक)से चलने वाला
- मणिवाह=सूर्यकांत चंद्रकांत आदि मणियों से चलने वाला
- मरुत्सखा=केवल वायुदाब से चलने वाला
शास्त्रों में विमानों के ये प्रमाण मिलते है. हमारे पूर्वजो ने विज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय उन्नति की थी. आज संसार के वैज्ञानिक सिर्फ दो तरह के वायुयान इंजन बना सके हैं. पहला तरल ईंधन से चलने वाला तथा दूसरा ठोस इंधन से. लेकिन हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों ने आठ प्रकार के इंधन से चलने वाले विमान बनाने में महारत हासिल कर ली थी. लेकिन वर्तमान युग में भारतीय वैज्ञानिक इसे सिद्ध नहीं कर पाए है कि ये विमान किस तरह बनते थे? इसलिए प्रथम विमान बनाने का श्रेय रायटर्स बंधू को दे दिया गया. मैंने वर्षों पूर्व कहीं पढ़ा था कि रायटर्स बंधुओं से पूर्व में एक भारतीय वैज्ञानिक ने मुंबई की जुहू चौपाटी में महाराज सयाजी राव गायकवाड तथा गो.वी.रानाडे कि उपस्थिति में विमान उड़ा कर दिखाया था. लेकिन अभी मेरे पास वह पुस्तक नहीं है जिसमे विमान बनाने वाले वैज्ञानिक का नाम और पता दिया गया था. कहीं खो गयी है. लेकिन मिलते ही इस रहस्य जो उजागर करूँगा. आधी अधूरी जानकारी देना सही नहीं है...
(चित्र गुगल से साभार)
(चित्र गुगल से साभार)
बहुत ज्ञानार्जन हुआ...आभार ललित भाई...जय हो!
जवाब देंहटाएंआप हमारे प्राचीन विज्ञान को लोगों के समक्ष रख कर बहुत ही सराहनीय कार्य कर रहे हैं ललित जी! हमारे इस प्राचीन विज्ञान को लोग प्रायः कपोल कल्पना समझते हैं किन्तु यदि वेदों सहित प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में निहित विज्ञान पर यदि गम्भीरता पूर्वक शोधकार्य हो तो बहुत सारी अभूतपूर्व जानकारियाँ मिल सकती हैं।
जवाब देंहटाएंlललित जी आपने आज बहुत ही उपयोगी और ग्यानवर्द्धक जानकारी दी है हमारी अपने ग्रंथों पर आस्था को ले कर जो टीका टिप्पणी होती है उसका जवाब आपने केवल आस्था के आधार पर नही दिया एक सत्य को सब के सामने रखा है। आपके इसआलेख की जितनी सराहना की जाये कम है मैने ये आलेख सहेज कर रख लिया है धन्यवाद आगे की जानकारी का भी इन्तजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंवाह ललित जी, सच में एक उम्दा आलेख (ग्रेट आर्टिकल) आपने लिखा है, बेहद सुन्दर जानकारी परख और एक संजोने लायक लेख के लिए बधाई ! रावण के पास भी विमान थे यह तो सभी रामायण के माध्यम से जानते ही है !
जवाब देंहटाएंबहुत सारे लोगों की बोलती बंद हो जाएगी :)
जवाब देंहटाएंसराहनीय आलेख
दुनिया है रंग बिरंगी
जवाब देंहटाएंक्या करें बेचारे फिरंगी
भारत को कहा इंडिया
लेते भारत से ही आईडिया
किसी चीज के आविष्कार के लिए
कर लेते पूरा, हमसे पहले अपना काम
दुत्कार देते हैं हमे, जुड़ जाता है इनका नाम
ललित भाई ने कर दिया, इतिहास आपके समक्ष
अब आप ही सोंचें विज्ञान और तकनालोजी में
कौन जादा था/है दक्ष
बधाई ललित भाई को इस प्रकार की
जानकारी पोस्ट करते रहें.
मुझे बहुत शर्म आती है कि हमारे पूर्वजों के पास यह ज्ञान था फिर भी भारत सदियों तक बैलगाड़ियाँ घसीटता रहा।
जवाब देंहटाएंभाई ललित जी...इसी विषय पर कुछ दिनों पहले एक लेख हमने भी लिखा था..क्या राईट बन्धुओं से पहले ही भारत में विमान का आविष्कार हो चुका था ?...आविष्कारकर्ता श्री शिवकर बापू तलपदे जी नें अपनी मराठी भाषा में लिखी एक पुस्तक में इसके बारे में विस्तार से लिखा है...उस समय "धर्मयुग" नामक पत्रिका में मय चित्र ये घटना प्रकाशित की गई थी।
जवाब देंहटाएंबहुत काम की जानकारी ललित भाई. इन जानकारियो से ब्लॉगजगत गुलजार होगा और भविष्य मे इन जानकारियो से हमारी पीढी भी लाभांवित होगी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, आगे की जानकारी का इंतजार है.
ललित जी, आप अच्छी चीज लेकर आए हैं। पर अफसोस कि आपने एक श्लोक में ही सब कुछ निपटा दिया। जानकारी जब तक पूरी न हो, न तो विश्वसनीय ही होती है और न ही पढने वाले को मजा आता है।
जवाब देंहटाएंआशा है आप मेरी मंशा समझ गये होंगे।
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ये इन्द्रधनुष होगा नाम तुम्हारे...
धरती पर ऐलियन का आक्रमण हो गया है।
धन्यवाद ललित जी,
जवाब देंहटाएंसमय समय पर हमारे परंपरागत ज्ञान कैसे विलुप्त होते गए .. किसी की भी छोटी मोटी बीमारी को मेरी दादी तक स्वयं ठीक कर लिया करती थी .. बस पेड पौधों के पत्ते, फूल, जड आदि का सहारा लेकर .. और आज हम छोटी छोटी बातों में बच्चों को एंटीबॉयटिक खिलाने को मजबूर हैं .. गांवों में भी अब किसी को इन बातों की कोई जानकारी नहीं है !!
wah ! sachmuch aanand aa gaya , lekh aur comments do hi majedar rahe
जवाब देंहटाएं@ जाकिर अली जी, विज्ञान कभी मे्रा विषय नही रहा इसलिए मैं वैमानिक अभियांत्रिकी का विश्लेषण नही कर सकता। इस ले्ख के माध्यम से माध्यम से मेरा उद्देश्य पाठकों तक उस प्राचीन जानकारी पहुँचाना था जो ॠषि परम्परा से मुझ तक पहुँची।
जवाब देंहटाएंसलाह के लिए धन्यवाद
दिनेश जी कि शर्म में शामिल होकर हम भी शर्मा रहे हैं..
जवाब देंहटाएंहम भी कभी सोचते हैं कि अगर यह ज्ञान हमारे पास था तो क्यों यह ज्ञान आम जनता तक नहीं पहुँच पाया? कहीं न कहीं कुछ स्वार्थ वाली बात ही रही होगी और जनता को इसे जादू टोना कहकर शोषण किया गया होगा..
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मुझे बहुत शर्म आती है कि हमारे पूर्वजों के पास यह ज्ञान था फिर भी भारत सदियों तक बैलगाड़ियाँ घसीटता रहा।
@ आदरणीय दिनेश राय द्विवेदी जी,
हाँ ऐसी शर्म तो मुझे भी आती है कि विमान उड़ाने के लिये उर्जा के आठ स्रोतों की जानकारी के बावजूद जमीन पर चलने के लिये हमारे पुरखे केवल पशु शक्ति या अपने पैरों पर चलने के अलावा कुछ और नहीं खोज पाये।
अभी समस्त श्लोकों पर चिंतन तो हुआ नहीं है... अभी से आगाह कर देता हूँ कि इन्टरनेट, गूगल अर्थ जैसी सुविधा, रिमोट सेन्सिंग, मौसम और भूकंपों की सही-सही जानकारी देने वाला सोफ्टवेयर आदि आदि भी वे बना चुके थे...और यह सब उपलब्धियां उन्होंने किसी लैब में नहीं, जंगल में बने आश्रमों में हवनकुंड में मंत्राहुति देकर पाई थीं...आगे आगे देखिये ऐसा बताते कितने श्लोक और ग्रंथ खोजे जाते हैं।
शर्माते शर्माते शायद जमीन में धंस जायेंगे हम जैसे लोग तो.... :)
धन्यवाद, आगे की जानकारी का इंतजार है.
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