शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

छत्तीसगढ में खुले आम लूट, मुद्राराक्षसों की पौ बारह

जब से छत्तीसगढ राज्य का निर्माण हुआ है तब मुद्राराक्षसों की पौ बारह हो गयी है। दुनिया भर के धन पशुओं ने प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर इस प्रांत की ओर रुख कर लिया। 

जो भी आता है वह यहाँ जमीन खरीदना चाहता है। देखते ही देखते जमीन के दलालों की एक बड़ी फ़ौज तैयार हो गयी।

किसानों की जमीनें खरीदी जाने लगी। साम-दाम एवं प्रलोभन देकर किसानों की जमीन हथियाई जाने लगी। आज हालात यह हैं कि राजधानी के आस-पास खेती पर विराम लग गया है। जहाँ चारों ओर धान की फ़सल लहलहाती थी वहाँ बड़ी बिल्डिंग दिखाई देती है या बंजर धरती। 

कहते हैं जहाँ विकास आता है अपने साथ विनाश भी लेकर आता है, चाहे सामाजिक हो या सांस्कृतिक विनाश हो। ऐसा ही कुछ राजधानी में हो रहा है।

लोग जमीन बेच कर वह सारी सुविधाएं और बुराइयाँ खरीद लेना चाहते हैं जो कि एक मुद्रा राक्षस के पास होती हैं। भले ही उसका मजा क्षणिक हो और हानि दीर्घकालिक हो।

किसान का परिवार अपने खेत किसी बिल्डर या भू माफ़िया को बेचकर वह सब कर लेना चाहता है जो उसने फ़िल्मों में देखा था या किसी बड़े आदमी के यहाँ पाया। इसका परिणाम अब परिलक्षित होने लगा है।

रुपया दिखने पर युवा अपने माँ-बाप की भी नहीं सुनते। उन्हे अय्याशी की मरीचिका दिखाई देने लगती है। खाओ पीयो और मौज करो वाली प्रवृत्ति बढते जा रही है।

खेत बेचकर मिले रुपयों से सबसे पहले मोबाईल, मोटर सायकिल खरीदा जाता है। उसके बाद खर्च करने लिए पैसों की जरुरत पड़े तो प्राप्त करने के लिए एटीएम।

एक घर में यदि 4 लड़के हैं तो चारों के पास मोटर सायकिल होनी चाहिए। सायकिल के दर्शन तो कुछ दिनों में दुर्लभ हो जाएंगे। इसके बाद एटीएम से पैसा निकालो और नव धनाढ्यों की तरह ऐश करो।

इसका दुष्परिणाम यह हुआ की एक पीढी ही पूरी नकारा होते दिख रही है। एक समय तो मैने ऐसा देखा कि गाँवों के प्रत्येक घर में जमीन दलाल पैदा हो गए थे। जिसको देखो वही जमीन का सौदागर बना फ़िर रहा था,छत्तीसगढ को अपने ही लूट रहे हैं दोनो हाथों से। 

जिसने कभी हजार रुपए नहीं देखे हों और उसे करोड़ों मिल जाए तो उसमें उन्माद पैदा हो जाता है, जिसे वह संभाल नहीं सकता। इसे हमारी स्थानीय भाषा में “धन बइहा” (अकस्मात मिले धन से बौराया हुआ) कहते हैं।

कई तो धन बइहा हुए घूम रहे हैं। हमारे गाँव में एक घर में यहाँ शाम को 4 बजे करीब एक व्यक्ति पहुंचा। घर में सिर्फ़ बच्चे थे। उसने लड़के को बुलाकर दस हजार रुपए दिए और कहा कि ये तेरे पिताजी की तनखा है।

लड़के ने रुपए रख लिए और वह आदमी चला गया। उसके जाते ही घर मालिक पहुंचे। तो लड़के ने रुपए दिए और उस आदमी का जिक्र किया।  वे भौंचक रह गए। मैने तो किसी को रुपए दिए नहीं, वो आदमी कौन था और ऐसा क्यों किया?

अज्ञात आशंका से कुछ लोगों के साथ उसकी तलाश शुरु की गयी। ढूंढते-ढूंढते 10 किलो मीटर दूर एक गाँव में वह मिला। लड़के ने उसे पहचान लिया। जब उससे रुपयों के विषय में पूछा गया तो उसने साफ़ इंकार कर दिया कि उसने किसी को रुपए दिए हैं।

उस गांव के सरपंच को  बुलाया गया और इन लोगों ने रुपए उसके सुपुर्द कर दिए कि गाँव के विकास में कहीं खर्च कर देना। उस आदमी के विषय में जानकारी मिली कि उसने करोड़ों रुपए की जमीन बेची है। इसलिए धन बइहा हो गया है। अगर कोई लड़का चना-चबेना के लिए भी पैसे मांगता है तो 500 का नोट थमा देता है।

मेरा रायपुर जाना लगभग प्रतिदिन ही हो जाता है। कई बार मैने एक इंडिका कार में एक लड़के को सामने सीट पर बैठकर डेशबोर्ड पर पैर रखे आते देखा। ड्रायवर गाड़ी चलाता और वह सामने सीट पर बैठता। उसकी गाड़ी मुझे अक्सर दारु के ठेके के आस-पास ही मिलती थी।

एक दिन मैने गाँव वालों से पूछा तो उन्होने बताया कि इस लड़के ने बाप के मरने के बाद लाखों की जमीन बेची है। उससे एक इंडिका कार, एक ट्रेक्टर और दो होन्डा मोटर सायकिल खरीदी। एक ड्रायवर रखा है और बाकी गाड़ी घर में खड़ी जंग खा रही है।

दो साल से इसका यही काम है, इंडिका में सिर्फ़ दारु पीने देशी ठेके तक आता है, दिन में चार-पांच बार। कुछ दिन पहले पता चला कि बीमार है। इस तरह के उदाहरण गाँव-गाँव में मिल जाएगें।

इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम अपराध एवं वाहन दुर्घटना के रुप में सामने आया है। इसका शिकार सबसे ज्यादा नवयुवक ही हो रहे हैं। जो कि बाईक दुर्घटना से असमय काल के गाल में समा रहे हैं।

रायपुर से अभनपुर हाईवे पर औसतन प्रतिदिन 3 दुर्घटनाएं होती हैं जिसमें से अनुमानित एक मौत तो मान ही लेते हैं। यह आंकड़ा तो महज बीस किलो मीटर का है।

राजधानी बनने के बाद तो गाड़ियों की बाढ आ गयी है। परिवहन विभाग के सुत्रों के अनुसार रायपुर जिले में 6लाख 68 हजार गाड़ियाँ पंजीकृत हैं। लेकिन लायसेंस कितनों के पास है इसकी जानकारी जानकारी नहीं है। बिना किसी प्रशिक्षण के वाहन लेकर हाईवे पर निकल जाते हैं और दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।

घर में बुढी आखें पथराई बाट जोहते रहती है। जिन्दा जाता है और मुर्दा घर लौटता है। युवाओं की अकाल मृत्यु के कारण गावों में विधवाओं की संख्या में वृद्धि हुई है।

धन अपने साथ बुराई भी लेकर आता है, फ़लस्वरुप रायपुर में (खास कर राजधानी के चारों तरफ़ )अपराधों में वृद्धि हुई है। सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो रहा है। यही स्थिति रही तो मैदानी इलाके में खेती की जमीन नहीं रहेगी। धान का कटोरा रीता रह जाएगा।

आज सबसे बड़ी आवश्यकता अनाज उपजाने की है। बिना अनाज के पेट की भूख रुपए खाने से नहीं मिट सकती। भूख मिटाने के लिए अन्न की आवश्यकता ही पड़ेगी। कल कारखानों में अनाज नहीं उपजाया जा सकता। साथ ही नव युवकों को सही दिशा देने की। नवयुवकों की जान और खेती के प्राण बचाने के लिए कदम उठाने ही पड़ेगें। अन्यथा देर हो जाएगी।

18 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक चिंतन, लेकिन समस्‍या का हल दुष्‍कर.

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  2. वही दिल्ली के आस पास के विकास के वक्त की कहानी दुहरा उठी है -
    ऐसे ही एक धन बइहा की जरूरत यहाँ ब्लॉग जगत को है :)

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  3. फ़िर भी सहोदर प्रदेश से अच्छी स्थिति में है

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  4. चिंतनीय परिस्थितियों पर विचारणीय आलेख .
    आधुनिकता की बेतरतीब लहर में शहरीकरण के ज़हर का कहर.
    कहाँ गए नदी-नाले ,कहाँ गए जलाशय ,कहाँ गयी निर्मल नहर ?

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  5. सरकार के पास तो इस समस्या का कोई इलाज नहीं है। कहें कि समस्या उन्हीं की खड़ी की हुई है।

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  6. गांव में बाल बच्‍चों के समुचित पढाई लिखाई और अपने कैरियर की व्‍यवस्‍था न होने से ही तो श्‍हरों में भीड बढ रही है .. अच्‍छी चिकित्‍सा व्‍यवस्‍था न होने से रिटायरमेंट के बाद भी गांवों में रह पाना मुश्किल होता है .. शहर में एक छोटे से फ्लैट के लिए जितने पैसे खर्च किए जाते हैं .. उतने में तो गांव में एकडो जमीन खरीदे जा सकते हैं .. सरकार चाहे तो हर प्रकार की सुविधा देकर लोगों में गांव में रहने के लिए प्रोत्‍साहित कर सकती है .. श्हर में भीड बडते जाने से ही बिल्‍डर और दलाल की बाढ आ रही है .. और अचानक किसी के हाथ में इतना पैसा आ जाए तो धन बइहा तो होना ही है !!

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  7. is bat ka sarkar ke pas koi samadhan nhi h
    ...
    mere blog par "jharna"
    kabhi yha bhi aaye

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  8. बहुत ही गंभीर और चिन्‍तनीय विषय पर पोस्‍ट ...........
    पिछले 5 साल में रायपुर से लगे 15 किलोमीटर की दूरी में होने मौत और कारण का सर्वे कराया जाए तो बुजुर्गो से ज्‍यादा युवा निकले
    एक साथी इन्‍ही समस्‍याओं पर छत्‍तीसगढी फिल्‍म बनाने की तैयारी में है

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  9. बिल्कुल सही तस्वीर खींची है ...यही हाल दिल्ली के आस पास के इलाकों के हैं ..

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  10. यह समस्या हर समय और हर जगह की है.पहले यह जमींदारों की संतानों में देखी जाती थी..फिर अमीरों और मिनिस्टरों के बेटों में पाई गई..अब क्योंकि अमीरों की संख्या भी बड़ी है और मिनिस्टरों की संख्या दिल्ली में ज्यादा है: तो जाहिर इस समस्या ने विकराल रूप ले लिया है.

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  11. ठीक इसी तरह का दृश्य राष्ट्रिय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के आस पास नजर आता है फर्क यही है कि यहाँ जमीनों के भाव ज्यादा मिलने पर यहाँ के किसान पुत्रों ने जमीन बेचने से या सरकारी अधिग्रहण के बाद मिले रुपयों से महंगी गाड़ियाँ खरीदी है | फरीदाबाद शहर में बिकी गाड़ियों के आंकड़ों को जुटाया जाय तो शहर के आस-पास के गांवों में सबसे महंगी गाड़िया बिकी है |

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  12. भाई क्या बात है !

    शानदार अन्दाज़ में अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय पर पूरे पराक्रम के साथ यह आलेख प्रस्तुत करने के लिए आपको हार्दिक बधाई !

    जय हो !

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  13. अगले कुछ सालों में किसान अजायबघर में दिखने वाले जीव होंगें.

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  14. सही कहा ललित जी
    यही हालत हमारे इलाके मे भी है
    जब हरसूद टूटा और लोगो को अनाप शनाप पैसा मिला
    तो सब ऐसे ही पगला गए थे कई लोगो ने तो मोटरसाइकल ले कर
    उसके भी ड्राईवर रख लिए है और दिन भर पीछे बैठ कर घूमते रहते हैं ऐसी गड़िया मुआवजा एक्सप्रेस कहलाती है
    कुछ तो समझदार निकले और बिज़नस जमा लिए बाकी सब चौपट हो गए

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