गुरुवार, 9 जून 2011

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत--ललित शर्मा

विदेशी बैंको में जमा काला धन भारत लाने हेतू जनमत बनाने का काम लगभग 20 वर्षों से राजीव दीक्षित कर रहे थे। वे भारत के गाँव-गाँव में जनता के बीच अलख जगा रहे थे। लेकिन उनके पास संसाधन नहीं थे। वे प्रवचन देकर जाते और जनता सुन कर भूल जाती। बाबा रामदेव योग के जरिए देश-विदेश में प्रसिद्ध हो गए। उनसे राजीव दीक्षित का परिचय हुआ, दोनो ने काला धन वापस लाने के मुद्दे पर कार्य प्रारंभ किया। राजीव दीक्षित की मुहिम में बाबा जी शामिल हो गए। काला धन वापस लाने के लिए प्रचार-प्रसार एवं जन जागरण का कार्य बाबा रामदेव ने अपने शिविरों में प्रारंभ किया। लोगों को यह बात अच्छी लगी। तभी 2 जी घोटाला सामने आया, उसके बाद कामनवेल्थ एवं अन्य बड़े घोटाले प्रकाश में आए। जिसकी प्रतिक्रिया आम जनता में हुई और वह भी सोचने लगी कि वर्तमान केन्द्र सरकार घोटालो की जननी बन कर रह गयी है। आम जनता की पसीने की कमाई से घोटालेबाज लोग अपना घर भरने में लगे हैं।

अन्ना हजारे के भ्रष्ट्राचार विरोधी आन्दोलन की सफ़लता ने बाबा रामदेव के कान खड़े कर दिए। उन्होने विदेशी बैंकों से काला धन वापस लाने के लिए अपने सत्याग्रह की घोषणा पहले ही कर दी थी और यही सोचा होगा कि उनके अन्य शिविरों की तरह सरकार इस सत्याग्रह आन्दोलन को चलने देगी। इसी अति उत्साह में वे गलती कर बैठे। जब उनका सत्याग्रह प्रारंभ हुआ तो आम जन से लेकर फ़ेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग इत्यादि नए मीडिया पर उनके समर्थन करने वालों का ज्वार उमड़ पड़ा। इलेक्ट्रानिक मीडिया और प्रिंट मीडिया ने भी इन्हे भरपूर कवरेज दिया। लोग गाँव और शहरों में सत्याग्रह के समर्थन में धरने पर बैठ गये। सत्याग्रह प्रारंभ होते ही वातावरण ऐसा बन गया कि दिल्ली की कांग्रेस सरकार अब गयी और तब गयी। इससे सरकार की भी चूलें हिल गयी। वह बैकफ़ुट पर आ गयी और अपने मंत्रियों को बाबा से चर्चा करने के लिए भेजा। ये चर्चा करने होटल में चले गए। बस बाबा रामदेव से यहीं पर चूक हो गयी।

होटल में क्या चर्चा हुई? इसकी जानकारी मीडिया तक नहीं पहुंची और न ही आम देशवासियों तक। यही पर संदेह बीज पड़ गए। बाबा का अनशन प्रारंभ हो गया। लगभग एक लाख लोग रामलीला मैदान में देश के विभिन्न प्रांतो से पहुंचे। देश की जनता भ्रष्ट्राचार के खिलाफ़ खड़ी हो चुकी थी। उसे लग रहा था कि बाबा रामदेव के रुप में ईश्वर ने कोई देवदूत भेज दिया जो उनके रिसते हुए घावों पर मरहम लगाएगा। कुछ राजनैतिक पार्टियाँ तवा गर्म होने का इंतजार कर रही थी कि वो भी अपनी रोटियां सेंक ले, बहती गंगा में हस्तप्रक्षालन कर वे भी पावन हो जाएं। मुद्दों की कमी से जूझ रही पार्टियों को बैठे बिठाए मुद्दा  मिल जाए। जिस तरह शेर के शिकार पर सियारों की नजर रहती है ठीक उसी तरह ये भी ताक रहे थे। सरकार की कपट भावना सीधे-साधे बाबा जी समझ नहीं पाए एवं चक्रव्युह में फ़ंस गए। शाम को चिट्ठी सामने आते ही हवा बदल चुकी थी। सरकार के प्रवक्ता उन्हे ठग घोषित कर रहे थे। 

बाबा जी को अंदेशा नहीं था कि आधी रात को सरकार की दमनात्मक कार्यवाही हो जाएगी। सोए लोगों पर पुलिस ने अपने डंडे चला दिए और जलियांवाला बाग की याद दिला दी। सुबह तक समाचार देश भर में फ़ैल चुका था और सरकार की दमनात्मक कार्यवाही की घोर भर्तसना हो रही थी। आम नागरिक भी सरकार के दमनात्मक रवैये के खिलाफ़ अपना मुंह खोल चुका था। पुलिस के बर्बर दमन ने बच्चो, महिलाओं एवं वृद्धों को भी नहीं बख्शा। कांग्रेसी प्रवक्ता के बुद्धि पर तरस आता है। वे कह रहे थे कि "बच्चो, महिलाओं एव वृद्धों को रामलीला मैदान में लाने की क्या जरुरत थी?" अरे पहले ही बता दिया होता कि डंडे बरसेगें तो वैसा ही इंतजाम किया जाता। बाबा जी की कोई खोज खबर नहीं लगी थी। टीवी वाले मंच से कूदते हुए का फ़ुटेज दिखा रहे थे। दोपहर को बाबा प्रगट हुए सलवार कुरते में।

बाबा को टीवी पर सलवार कुरते में देख कर एक बारगी चौक गया और मीडिया को वक्तव्य देते हुए उनका रोना कुछ जंचा नहीं। पुरुषोचित कार्य करने वाले व्यक्ति पर कितना भी कष्ट आ जाए, रोते नहीं है। बाबा जी को अपनी हत्या का डर सता रहा था, महिलाओं को कवच बना कर रामलीला मैदान में हजारों की संख्या में उपस्थित घायल कार्यकर्ताओं को छोड़ कर चला आना कुछ जंचा नहीं। कांग्रेस सरकार इतनी बेवकूफ़ नहीं है कि इनकी हत्या करवा कर एक मुसिबत और अपने गले में डालती। दुरांचल से आए हुए लोग लाठी डंडे खा कर दिल्ली में भूखे प्यासे भटकते रहे। इनको गिरफ़्तारी दे देनी थी और जेल चले जाना था लेकिन दिल्ली नहीं छोड़नी थी। जो कपालभाति और अनुलोम विलोम बाबा जी शिविर में कर रहे थे, वो जेल में भी कर सकते। जिससे लोगों का विश्वास तो बचा रहता। ये  आर्य समाज की उस परम्परा से आते हैं जहाँ स्वामी दयानंद, लाला लाजपत राय, भगत सिंह, स्वामी श्रद्धानंद, हुतात्मा लेखराम, महाशय राजपाल जैसे बलिदानी लोग हुए हैं, और देश धर्म हित अपने प्राणों की बलि दी है।

आज बाबा जी ने 11000 सैनिकों की सेना बनाने का एलान कर दिया और कहा कि दमन होने पर सेना जवाब देगी। इस वक्तव्य से लगता है कि बाबा के दिमाग में गर्मी चढ गयी है । लोकतंत्र में व्यक्तिगत सेना बनाने का अधिकार किसी को नहीं है और हमारा संविधान भी इस बात की स्वीकृति नहीं देता। भारत के संविधान को मानने वाले संविधान को चुनौती देने का कार्य कैसे कर सकते है। देश की जनता ने बाबा को अहिंसात्मक आन्दोलन में सक्रिय योगदान दिया। जब हिंसा ही करनी है तो नक्सली क्या बुरे हैं, उन्हे तो महारत हासिल है हिंसात्मक लड़ाई लड़ने में। क्यों लोग जान गंवाएगें बाबा के साथ। जिसमें नेतृत्व की क्षमता होती है वह निहत्थे ही आत्मबल के सहारे लड़ाई जीत सकता है। भ्रष्ट्राचार के विरुद्ध लड़ाई संवैधानिक दायरे में ही रह कर लड़नी चाहिए।

बातन हाथी पाईए और बातन हाथी पाँव। बाबा की की प्रसिद्धि का ग्राफ़ दो दिन में ही गिर गया। उनके अनशन को समाप्त करने के लिए गन्ना रस पिलाने वाले भी नही दिख रहे। देश की जनता ने इन पर विश्वास जताया था, लेकिन मुझे लगता है कि इनके पास नेतृत्व की क्षमता नहीं है, मंच पर बैठ कर योगासन करा लेना एवं प्रवचन दे देना सरल है, पर मैदान में आने के बाद भीड़ का नेतृत्व करना कोई आसान काम नहीं है। कांग्रेस सरकार ने निहत्थे लोगों पर लाठियाँ चलाई उसकी हम पुरजोर निंदा करते हैं, लेकिन इनके राम लीला मैदान छोड़ कर भागने वाले कार्य की सराहना नहीं कर सकते। एक बात तो है कि इस आन्दोलन से जनता जागरुक हुई है और इसका परिणाम आने वाले चुनाव में अवश्य दिखाई देगा। भारत की जनता इंतजार कर रही है कि सवा अरब की जनसंख्या वाले देश में कोई तो ऐसा आएगा जो उसे भ्रष्ट्राचारियो एवं अत्याचारियों से निजात दिलाएगा।

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। 
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहं।
परित्राणायत साधुर्नाम विनाशाय च दुष्कृताम्। 
धर्म संस्थापनात्ध्याये सं भवामी युगे युगे।


नोट-उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं।
फ़ोटो -- गुगल से साभार, किसी को आपत्ति होगी तो हटा दी जाएगीं।

36 टिप्‍पणियां:

  1. आपके विचारों से १०० % सहमत |
    बाबा ने रो धो कर साबित कर दिया कि वो एक स्टार प्रचारक तो हो सकते है पर नेतृत्त्व करने के काबिल नहीं | बाबा को बड़बोलेपन से भी बचना चाहिए |

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  2. सही विश्लेषण!
    बाबा जी का मूल उद्देश्य स्वप्रचार रहा है। इस से तो समर्थकों का ग्राफ नीचे ही आएगा। अब तो वे बाकायदा एक खास विचारधारा की राजनीति के औजार बनते नजर आ रहे हैं। कुल मिला कर सत्ता का ही हित साध रहे हैं।

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  3. दिनेश राय द्विवेदी जी से सहमत हूँ !शुभकामनायें देश को !

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  4. बाबा की मुहिम को लेकर मैं शुरू से ही संशंकित था. जब वे अन्ना हजारे से अलग हुए तभी समझ में आने लगा था कि उनकी नीयत कुछ ठीक नहीं है.

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  5. आपकी लेखनी से सहमत, बाबा को बड़बोलेपन से बचना चाहिए यह तो सत्य है|

    बाबा का उद्देश्य सही है, पर उनको अभी इन राजनीतिज्ञों से लड़ने के लिए काफी कुछ सीखना पड़ेगा और उसके लिए पुरुषार्थ की आवश्यकता पड़ेगी|

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  6. एकदम सटीक विश्लेषण...इस वक्तव्य से लगता है कि बाबा के दिमाग में गर्मी चढ गयी है


    -बाबा के ये प्रलाप ही उनको ले डूबे...एक सधा प्रवक्ता साथ रखें और खुद मौन व्रत ले लें तो शायद कुछ हो पाये मगर एक बार विश्वास खोकर फिर पाना बड़ी टेढी़ खीर है...अब इस मुद्दे को कोई और ही भुनायेगा.

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  7. बड़े जल्दी बाबा से बेजार हो गए ललित भाई ठीक वैसे ही जैसे क्रिकेटप्रेमी अपने चहेते क्रिकेटर के छक्का न लगा पर हो जाते हैं ...आशा है तो जीवन है !

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  8. आपके विचारों से कहीं से भी सहमत नही, आप जादू की झप्‍पी का इंतजार कर रहे है या शायद आपको लगता है कि, अलकबीबी की बांसूरी बजेगी और पूरा रेगिस्‍तान बदल कर गुलशन हो जाएगा ..आप के विचारों पर अरविंद मिश्र जी की टिप्‍पणी सटीक है, यह सब एक क्षण में नही होता, कोई व्‍यक्‍ति पूर्णरूपेण ईश्‍वर नही है। रामदेव के रोने पर आपकी टिप्‍पणी के उलट इसे सहजता मानता हूं, और रामदेव किन परिस्‍थितियों में वहां से निकले, वह सबके सामने है, रामदेव ने उसे छुपाया भी नही है। उसने सब कुछ बताया तो यदि आपके ऐसे विचार बनते है, तो मैं क्‍या कोई भी कुछ नही कर सकता। रामदेव का भ्रष्‍टाचार और काले धन के प्रति आंदोलन का आग्रह बहुत पहले से शुरू हो चुका था,इसका अन्‍ना हजारे के असफल आंदोलन से कोई लेना देना नही है।

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  9. sachmuch baba ne ati utsaah me aakar aur fir ghabraakar sab gud gobar kar diya

    ib k hoga bhai ji ?

    dekhte hain aage age

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  10. याज्ञवल्‍क्‍य

    बाबा रामदेव ने अपने हाथों से आन्दोलन की हवा निकाल दी, शायद आप इससे सहमत होगें। सरकार पर इतना प्रेशर बना था कि उसके चार-चार मंत्री एयरपोर्ट तक पहुंचे बात करने के लिए। उसके बाद नेतृत्व की खामियों के चलते ही अरबों लोगों को निराश होना पड़ा। उनमें एक मै भी था।

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  11. आपने खरा खरा लिखा है.
    विश्व के सबसे महानतम युद्ध में कौरवों की पराजय का कारण रथियों महारथियों की कमी नहीं बल्कि श्रीकृष्ण जैसे रण नीतिकार का अभाव था.... भ्रष्टाचार के विरुद्ध रण में भी कुशल रणनीतिकारों की कमी दृष्टिगोचर होती है.... "सशत्र स्वयं सेना" बनाने का निर्णय एक बचकाना उत्तेजना में उठाया जाने वाला कदम है जो इस आन्दोलन के विचारवान समर्थकों को इससे दूर कर सकता है.... डर यह है कि उचित योजना के अभाव में यह जनप्रिय आन्दोलन लक्ष्य से भटक ना जाए....

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  12. गोली चलने के बाद क्या होता है, जांच की घोषणा,बस... इसलिये ठीक किया.. बस अति-उत्साह से बचना चाहिये..... कोई ऊपर से नहीं आयेगा बचाने.. सौ हजार लाख बाबाओं और अन्नाओं की जरूरत है अब..

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  13. आपने बिलकुल ठीक कहा... अपना मोहभंग तो उसी दिन हो गया था, जब बाबा की चिट्ठी देखी थी, जब सरकार से बात हो गयी थी, तो यह क्यों कहा कि बातचीत पूरी तरह सफल नहीं हुई है.... और जब अनशन ना करने का आश्वासन दे दिया था तो अनशन किया क्यों? और जब जीत की घोषणा कर दी थी और खिसिया कर वहीँ जमे रहने का निर्णय क्यों लिया?

    भाजपा और आर.एस.एस. के अनशन को समर्थन और उपस्तिथि में मुझे कोई बुराई दिखाई नहीं देती, भारत के हर देशवासी और संगठन को समर्थन और संघर्ष करने का हक है... लेकिन अपनी सोच के ऊपर किसी को तरजीह देना थी नहीं है...

    मैंने अभी कुछ ही दिन पहले इनका साक्षात्कार देखा था टी.वी. पर, जहाँ बाबा कह रहे थे कि अन्ना को मैंने बनाया, वर्ना इन्हें कौन जानता था? जब कि सच यही है कि अन्ना के आन्दोलन को जनता के साथ ने सफल किया था... क्या ऐसे दंभ वाला व्यक्तित्त्व करोडो लोगो के नेतृत्व के लायक है?



    प्रेमरस

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  14. बाबा रामदेव ने उन हजारो लोगो की भावनाओं के साथ कुठाराघात किया है जो उनके जरिये अपने स्वच्छ भारत के निर्माण का सपना सजोये हुये थे संघ और बीजेपी को साथ ले उन्होने हमे धोखा दिया है । इस देश के लोग संघ से ये अपेक्षा नही रखते थे आज संघ को अपना जोर भाजपा से भ्रष्टाचार हटाने मे लगाना चाहिये ताकी तीन साल बाद भाजपा की सरकार आ सके ना की दूसरे के आंदोलन को हाईजैक करने मे

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  15. आपके विचार जानकार सुख की अनुभूति हुई है ..यह सच है यदि बाबा हरिद्वार न जाकर दिल्ली ही रहते और अपनी गिरफ्तारी देते तो बात कुछ और ही होती --यदि हत्या जेसा अपराध सरकार कर भी देती तो आज उनका नाम शहीदों मे लिखा जाता ...स्त्री के वस्त्र पहनकर कायरता से निकल भागना ..बाबा को शोभा नही दिया ..
    कम से कम मुझे पसंद नही आया ..?

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  16. आपके लेख में स्पष्ट झलकता है कि आपने सभी पक्षों को सामान रूप से महत्व दिया है ..मैं भी आपके इस बात से सहमत हूँ कि आगामी चुनाव में इसका असर होगा!
    चिंगारी सुलग चुकी है कभी न कभी तो ज्वाला के रूप में परिवर्तित होगी और भ्रष्टाचार को जलाएगी .........बस इस दिन के इंतिज़ार में रहेंगे !

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  17. सही व्याख्या चलो इसी बहाने बाबा का सच भी सामने आ रहा है। आगे आगे देखें क्या क्या उनके भगवां चोले से निकल कर सामने आता है।

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  18. बिल्कुल सही विश्लेषण ..बाबा रामदेव छुप कर भागे क्यों ? यही प्रश्न आम जनता को कचोट रहा है ..

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  19. RAMDEV G KA BHAGNA FIR BHI SAMJHA JA SAKTA HAI...
    KINTU MAHILAON KI VESH BHUSHA MAI AANA

    BILKUL NAHI PACHTA (UNDIGESTABLE)

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  20. मैं आपके विचारों से 100 प्रतिशत सहमत हूं लोगों को यह विश्वास था कि बाबा सरकार हिला देगें लेकन बाबा ने खुद छिपकर भागकर लोगों की उम्मीदे ही तोड्र दी और मेरे अनुसार कायरता का परिचय दिया

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  21. अगर नहीं भागते और गिरफ्तारी पर जनता भडक जाती 100-50 हताहत हो जाते तो भी जिम्मेदारी बाबा पर ही डालनी थी कि बाबा ने मरवाया। और वही हो जाता जैसा सरकार दिखाना चाहती थी कि बाबा जनता को भडका रहा था।

    प्रणाम

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  22. इन बाबाओं का क्या भरोसा.

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  23. मैं रामदेव की भक्‍त नहीं हूँ लेकिन इतना जरूर कहना चाहती हूँ कि उस निर्मम अत्‍याचार को सहन करने के बाद किसी भी मनुष्‍य का हृदय द्रवित हो उठेगा। कभी स्‍वयं को उस स्‍थान पर रखकर देखिए। हम जरा सी खराब टिप्‍पणी पर बिलबिला जाते हैं, उनका तो कत्‍ल करने का प्रयास था। यदि वे उस समय वहाँ से नहीं निकलते तो शायद उनकी लाश भी कभी नहीं मिलती। जैसे सुभाष चन्‍द्र बोस की नहीं मिली थी। आपने स्‍व. राजीव दीक्षित जी का स्‍मरण किया वह स्‍तुत्‍य है। यदि आज राजीव दीक्षित होते तो वे ऐसे अकेले नहीं पड़ते।

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  24. सर्वप्रिय ललित जी
    सादर वंदे मातरम्!
    आपने ग़ौर नहीं किया , पुलिस-छीनाझपटी में अनेक महिलाओं सहित बाबा के भी कपड़े फट गए । आचार्य बालकृष्ण को चैनलों पर बोलते सुना हो तो ध्यान आया होगा कि उनके भी शरीर पर छीनाझपटी में केवल लंगोटी बची ।
    उस समय वैसी स्थिति संभव थी क्या कि आप अपना बस्ता-थैला ढूंढ़ते और अपना वस्त्र पहन लेते ।
    हालत यह थी कि आम नागरिकों का सामान मैदान में पड़ा रह गया … और उन्हें जान बचा कर भागना पड़ा ।
    मित्रों , इस प्रकरण के संकेत से देश की यथास्थिति पहचानें …
    आपकी-हम सब की औक़ात-हैसियत इस सरकार के आगे परखें ।
    और कृपया , गंभीरतापूर्वक दायित्व-निर्वहन के प्रयत्न करें , तो अधिक जनहित की बात होगी …
    # मसखरी में बात उड़ा देने का समय नहीं है …

    अपने दलगत आग्रह-पूर्वाग्रह किसी साधारण दौर में ही अंज़ाम देने को रख लिए जाएं ।
    और …

    सोते लोगों पर करे जो गोली बौछार !
    छू’कर तुम औलाद को कहो- “भली सरकार”!!



    और यह भी …
    अब तक तो लादेन-इलियास
    करते थे छुप-छुप कर वार !
    सोए हुओं पर अश्रुगैस
    डंडे और गोली बौछार !
    बूढ़ों-मांओं-बच्चों पर
    पागल कुत्ते पांच हज़ार !

    सौ धिक्कार ! सौ धिक्कार !
    ऐ दिल्ली वाली सरकार !

    पूरी रचना के लिए उपरोक्त लिंक पर पधारिए…
    आपका हार्दिक स्वागत है


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  25. # अन्तर सोहिल जी का कहना - "…अगर नहीं भागते और गिरफ्तारी पर जनता भडक जाती 100-50 हताहत हो जाते तो भी जिम्मेदारी बाबा पर ही डालनी थी कि बाबा ने मरवाया। और वही हो जाता जैसा सरकार दिखाना चाहती थी कि बाबा जनता को भडका रहा था।" भी तर्कसंगत है ।

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  26. pahal kafi achhi the anna ji ki par ab sabhi bhed chall chalne ki kosis kar rahe hai ....

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  27. आप की बातो से मई १००% सहमत हु लेकिन रामदेव की पहल अच्छी है लोगो को पता चला आन्दोलन बोलना और करना दोनों अलग अलग बाते है . राजनीति इतना आसन छेत्र नहीं है की जब आप सोचना चालू करदे और राजनीति चालू हो जाये .

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  28. केवल सदभावना या अच्छे विचार या उद्देश्य होने से या स्वयं ईमानदार होने से भ्रष्टाचार के भूत से लड़ना कठिन है, इसलिए भी कि दूसरी ओर अधिकतर राजनीतिक नेता, हर दल के, इसी भ्रष्टाचार के बूते पर अपनी गद्दी बनाये हैं. मीडिया सामने सामने तो भ्रष्टाचार आंदोलन का समर्थक बनता है, पर उन कम्पनियों के मालिक उसी भ्रष्टाचार पर अपने मीडिया साम्राज्यों को बनाये हैं. कैसे किसकी छवि बिगाड़ी जाये, कैसे किस पर शक की उँगली उठे, कैसे किस पर कीचड़ फ़ैंका जाये, यह सब काम राजनीति बहुत अच्छी तरह से जानती है.

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  29. आपने स्वर्गीय श्री राजीव दीक्षित को एकदम सही वक्त पर याद किया है. काले धन की स्याह अर्थ व्यवस्था के खिलाफ उनके जन जागरण अभियान और धारा प्रवाह भाषण मुझे आज भी याद आते हैं आज अगर वे हमारे बीच होते ,तो शायद अन्ना हजारे साहब और स्वामी रामदेव जी के आंदोलन को एक नयी ऊर्जा मिलती. अभी भी कुछ नही बिगडा है. अगर अन्ना और बाबा रामदेव एक साथ मिलकर अभियान चलाएं तो देशवासी एकजुट होकर उनके साथ चल सकते हैं.

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  30. ये सही है कि बाबा के बडबोलेपन ने काफी हद तक आंदोलन की हवा निकाल दी..
    निहत्थों पर ज़ुल्म करके कांग्रेस ने अपनी कब्र स्वयं खोद दी है...
    बाबा को अपनी निजी सेना बनने जैसा वक्तव्य नहीं देना चाहिए था...
    अगर भागने के बजाय वे वहीँ टिके रहते तो उनकी प्रसिद्धि पहले से कई गुना बढ़ चुकी होती...
    पुलसिया कार्यवाही के दौरा अगर मार दिए जाते तो मिस्र जैसा तख्तापलट...यहाँ भी मुमकिन था...

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  31. आपका इशारा अवतारवाद की ओर तो नहीं.

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  32. बढिया विश्‍लेषण किया है .. पर मुसीबत को देखते ही अपने जीवन की रक्षा पर हमारा ध्‍यान जाना स्‍वाभाविक है .. अपने जीवन को बचाना मनुष्‍य की पहली जरूरत भी है .. जीवन ही नहीं रहेगा तो हम अपने लक्ष्‍य पर आगे कैसे बढेंगे ??

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  33. दुवापर म मोहन अउ त्रेता युग म राम दूनो झन राक्षस मन के नास करे रीहीस वाह रे कलयुग इहां राम अउ मोहन दूनो झन भरस्टाचार राक्षस मारे ल छोड के राम मोहन दूनो खुदे पटकिक पटका खेलत हे बिया मन ..........

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