सोमवार, 20 जून 2011

पापा ! कुछ यादें कुछ बातें -- स्वर अर्चना चावजी -- ललित शर्मा

फ़ादर्स डे (पितृ दिवस) मनाया गया, पाश्चात्य लोगों ने तो एक दिन निर्धारित कर रखा है। हमारी संस्कृति में पितृ पक्ष मनाया जाता है, पितरों को श्रद्धांजलि दी जाती है, उनके कार्यों को याद किया जाता है। किसी के सिर पर माँ-बाप का साया रहता है किसी के सिर पर नहीं। मेरी दृष्टि में वे भाग्यशाली हैं जिन्हे  माता-पिता का मार्ग दर्शन अभी तक साक्षात मिल रहा है। मुझे नहीं मिल पाया, कभी-कभी किसी मौके पर दिल में हूक उठती है और बेचैनी छा जाती है।  तब मन को बहलाता हूँ, यही नियति है, सभी को यह दिन देखना है। ईश्वर को यही मंजुर था। उन्हे शत-शत नमन। मेरी एक पुरानी पोस्ट को अर्चना चावजी ने पॉडकास्ट किया है सुनिए।

गजरौला टाईम में प्रकाशित 2009 - साभार ब्लॉग्स इन मीडिया


कुछ यादें कुछ बातें -- अर्चना चावजी के स्वर में

20 टिप्‍पणियां:

  1. भावुक कर दिया महाराज...आंखें नम हैं.

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  2. संभवतः उस समय हमें नहीं समझ आता है, आँखें नम हो गयी।

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  3. मन को छू गयी प्रस्तुति......आँखें नम करती पोस्ट.....

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  4. फिर भी हम प्रत्येक दीवाली को आपका इंतजार करते रहेंगे जिन्दगी भर, नए कपडों और आपके प्‍यार भरे, नेह पूरित पटाखों के लिए.......................पापा
    .. और क्‍या किया जा सकता है .. ईश्वर को यही मंजूर था .. उन्हे शत-शत नमन !!

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  5. पिता का बिछड़ना एक पल में ही हमें बड़ा कर देता है ...
    पिता को नमन..
    मार्मिक संस्मरण !

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  6. पितृ-दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ

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  7. शब्दों में बयान करना मुश्किल. बहुत बढ़िया.

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  8. सुना तो नही जा सका लेकिन पढ कर मन भावुक हो गया। शुभकामनायें। मगर ऐसी यादें कई बार सकून देती हैं।

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  9. बिना पिता के रहना बिना छांव के रहने से भी दूभर है कोई ऐसा नही होता जो आपकी सभी गल्तियो को माफ़ कर आपको सीने से लगा ले और न ही ऐसा जो आपको गलत काम करने से कान पकड़ कर रोक ले जब उन गलतियों का खामियाजा हम जीवन मे भुगतते हैं तो निश्चित स्वार्थ से ही सहीं पिता की बहुत याद आती है

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  10. बहुत ही सजीव वर्णन है कुछ कुछ मुझे मेरा बचपन याद आ गया ऐसे दिन मैंने भी देखे है मेरी शरारतों को पिता जी पत्र में भी लिखते थे जब मै पहली बार गुरुकुल छात्रावास में रहने गया तो पिता जी बहुत याद आते थे वो पिता जी के कंधे पर बैठकर खेत जाना ट्रेक्टर की ड्राइविंग सीट पर पिता जी की गोद में बैठकर स्टेरिंग पकडना |बहुत याद आता था | बचपन की यादे ताजा हो गयी | धन्यवाद ललित जी

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  11. पितृ-दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ

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  12. जो बिना कुछ जताए, बताए, अहसास कराए अपनी अंकुरित होती पौध का हर तरह से ख्याल रखता है वही पिता है।

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  13. ओह... बहुत ही मार्मिक संस्मरण..आँखे नम कर गयी

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  14. ऐसी पोस्ट न पढ़ पाती हूँ न सुन पाती हूँ...

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  15. पापा की यादों का सजीव और सवाणी चित्रण को सुनकर मन भर आया. वाकई वो भाग्यशाली है लेकिन वे अपने भाग्य को कभी कभी ठुकराए बैठे रहते हें किसी और की तलाश में.

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  16. पूज्य पिताजी को सादर नमन। मार्मिक स्वर, भाव व शब्दों ने मन भिगो दिया।

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  17. ओह... ये एक ऐसा इंतजार है, जिसे हम अच्छी तरह जानते हैं कभी खत्म नहीं होगा, फिर भी यादें नहीं भुलाई जाती. आप भी एक पिता हैं वही प्यार अपने बच्चों में खोजिये पाइए और बाँटिये.... शुभकामनायें

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