आरम्भ से पढ़ें आई.एस.बी.टी. पहुंच कर अविनाश जी को फ़ोन मिलाया, नहीं मिला। फ़िर खुशदीप भाई को फ़ोन मिलाया तो उन्होने बताया कि वे मेरठ जा रहे हैं और मुझसे कहा कि कल फ़ोन करते तो मैं रुक जाता। मैने कहा-कोई बात नहीं, आप पहले जो जरुरी हो वो काम कीजिए। मैने सोचा था अविनाश जी ने खबर करी होगी। निजामुद्दीन पहुंच कर पवन चंदन जी को फ़ोन लगाया तो उन्होने कहा-आप ऑफ़िस में पहुंचिए, चाय पानी पीजिए, तब तक मैं पहुंचता हूँ। मैं ऑफ़िस पहुंच गया, वहाँ एक अर्दली तैनात मिला। उसने चाय-पानी लाकर पिलाया। उसके बाद मैने अरुण राय जी को फ़ोन किया तो उन्होने कहा कि मैं अभी आता हूँ आपको लेने। आप सराय काले खाँ मिले। मैंने सोचा कि कुछ समय इनके साथ बिताया जाए।
अरुण जी ने सराय काले खाँ आकर बताया कि वे आ गए हैं, हम तुरंत उधर चल पड़े, जब मैं और पवन चंदन जी सराय काले खाँ पहुंचे तो रिंग रोड़ तक अरुण जी दिखाई नहीं दिए। उन्हे फ़ोन लगाया तो फ़ोन स्विच ऑफ़ मिला। 50 बार दोनो ने मिल कर फ़ोन लगाया। पवन चन्दन जी मुझे पूछ रहे थे कि आप पहचानते हैं कि नहीं। मैने कहा अभी शनिवार को तो मिले थे। क्यों नहीं पहचानुंगा। बहुत ढूंढा, आखिर न मिले। अचानक फ़ोन बंद होने के कारण कुछ आशंकाएं भी जन्म ले रही थी। आखिर ये दिल्ली है भाई, कुछ भी हो सकता है। इन्होने भी मुझे दुबारा फ़ोन लगाना गवारा नहीं समझा। न ही सूचना देना। हम वापिस प्लेट फ़ार्म पर आ गए। पवन जी ने अविनाश जी को फ़ोन लगाया, उनसे बात करते हुए मुझे फ़ोन पकड़ा दिया। तो अविनाश जी उधर शाहनवाज जी को फ़ोन पकड़ा दिया। शाहनवाज जी बताया कि वे अजीत राय जी के यहाँ जा रहे हैं। उनकी ब्लॉगिंग से संबंधित कोई समस्या है।
पवन चंदन जी के ऑफ़िस की खासियत यह है कि यहाँ ओपन ब्युटी पार्लर भी है। किसी को सजना संवरना होता है तो इनके ऑफ़िस के सामने ही पेड़ के नीचे सजता संवरता है और फ़िर अपने धंधे पर लगता है। हम पहुंचे तो कुछ बाबा नुमा लोग सुबह-सुबह धंधे पर जाने की तैयारी कर रहे थे। चटाई बिछा कर आईने के सामने टीके-टामे लगा रहे थे। इनका सजना भी जरुरी है। अगर निर्धारित भेष न होतो कौन उन्हे बाबा समझेगा और उनकी बाबागिरी कैसे चलेगी। हमारे गाँव के बाबा लोग जब मांगने नहीं जाते तो तालाब में बंशी लेकर बैठ जाते हैं और मछली फ़ांसते हैं और जब सज संवर कर निकलते हैं धंधे में तो लगता है कि हिमालय से आकर तपस्वी ने साक्षात दर्शन दे दिए। फ़िर शाम को भेष उतर जाता है और वही दारु और मच्छी का दौर शुरु।
दोपहर हो रही थी, गर्मी भी अच्छी ही थी। पवन जी के साथ उनके घर गए। स्नानादि से निवृत्त होकर भोजन किया। कुछ देर परिवार के साथ गप-शप होते रही। एक नजर इंटरनेट पर दौड़ाई तब तक 5 बज चुके थे। पवन जी ने कार स्पीड से चलाई। गाड़ी का टाईम 17.25 था। 15 मिनट में हम सराय काले खाँ पहुंच गए थे। प्लेट फ़ार्म पर पहुंचे तो बोर्ड गाडी आने का समय 19.40 दिखा रहा था। मैने ध्यान से नहीं देखा। मुझे 17.40 दिखाई दिया। मैने पवन जी कहा कि गाड़ी 15 मिनट लेट हो गयी है। पवन जी बोले कि पुरे सवा दो घंटे लेट है। मैने फ़िर से बोर्ड देखा तो अब सही दिखाई दिया। गाड़ी सवा दो घंटे ही लेट थी। पवन जी बोले की पहले पता चल जाता तो घर से ही आराम से आते। इतनी स्पीड से मुझे गाड़ी चलानी नहीं पड़ती। वो भी उस फ़्लाई ओव्हर पर से जिसे कलमाड़ी ने बनाया है। बहुत बड़ा रिस्क ले लिया था पवन जी ने, उनकी मारुती की स्पीड से यह फ़्लाई ओव्हर धराशाई भी हो सकता था।
हम वापस पवन जी के ऑफ़िस पहुंच गए। दो चाय पी और गपशप चलते रही। पवन जी ने गाड़ी का समय होने पर इन्क्वारी की तो गाड़ी प्लेटफ़ार्म पर लग रही थी। उनके एक अर्दली ने मेरा बैग उठाया और हम प्लेटफ़ार्म पर आ गए। बड़ी भीड़ थी, मध्यप्रदेश की ओर जाने वाली दो-दो गाड़ियाँ लगी थी और सम्पर्क क्रांति भी। लोग भ्रम में थे कि ये जबलपुर वाली सम्पर्क क्रांति है। पुछताछ कर रहे थे। हमने चार्ट देखा, और अपनी 1 नम्बर की बर्थ संभाली। गाड़ी चलते तक पवन जी वहीं थे। उनका आज पुरा दिन हमने ले लिया था। गाड़ी चल पड़ी। मेरी बर्थ के आमने-सामने वही ट्रिपल आई की परिक्षा दे कर लौट रहे विद्यार्थी थे। लेकिन पहले मिले बन्दरों से गंभीर थे। वापसी के समय रात्रि के 9 बज रहे थे। ट्रेन में खाना आ गया था, मैने नही लिया, सोचा कि आगरा में कुछ पैकेट बंद खाना लेकर खा लुंगा। ध्यान नही रहा कि सम्पर्क क्रांति आगरा में रुकती नहीं है। इसका पहला स्टापेज झांसी है। फ़िर पैंट्री से चिप्स और कोल्ड्रिंक लेकर आया।
दुसरे दिन सुबह कटनी के पास आँख खुली। ट्रेन 4 घन्टे लेट हो चुकी थी। बिलासपुर लगभग 4 बजे पहुंचती। वहां अरविंद झा को फ़ोन लगाया तो पता चला कि वे साऊथ बिहार में पटना से आ रहे हैं। उनकी ट्रेन लगभग 5 बजे बिलासपुर पहुंचेगी। गर्मी बहुत अधिक थी, लोग गर्मी के मारे तड़फ़ रहे थे। बच्चे रो रहे थे, ठन्डे पानी की बोतल भी 15 रुपए की हो गयी। 5 रुपए का पानी 15 रुपए में बिक रहा था और लोग मजबूरी में ले रहे थे। ट्रेन के विलंब होने के कारण हमारी ट्रेन लगभग 7-8 बजे के बीच रायपुर पहुंचती। मैने बिलासपुर में विचार बदल दिया और भाटापारा में रुकने का मन बनाया। सुबह मन्डुक ॠषि के मदकूद्वीप जाने की ठान ली। बहुत दिनो से मन में इच्छा थी लेकिन जा नहीं सका था। यहाँ पुरातत्व विभाग की खुदाई चल रही है और 11 वीं शताब्दी के मंदिरों की श्रृंखला मिली है। लगभग 6 बजे ट्रेन भाठापारा पहुंच चुकी थी। इस तरह हमारी लम्बी यात्रा को को यहाँ अल्प विराम मिला। अब कल चलते हैं और मदकु द्वीप की सैर करते हैं। आगे पढें…।
आप भी ललित भाई, तेज स्पीड में वो भी, कलमाडी के बनवाये फ़्लाईओवर से क्यों इतना खतरा उठाते हो,
जवाब देंहटाएंमजेदार यात्रा वृतांत |
जवाब देंहटाएंशीर्षक देख कर लगा था कि आप मदकूदीप पहुंच गए, चलिए स्वागत तक तो पहूंच ही गए, आगे दर्शन-लाभ का इंतजार है.
जवाब देंहटाएंबड़ा ज़ज्बा है भई..इतनी लम्बी यात्रा और इतने दिनों की...और घर से एक घंटा पहले फिर रुक लिए एक दिन के लिए.
जवाब देंहटाएंबढ़िया वृतांत.
मांगने नहीं जाते तो तालाब में बंशी लेकर बैठ जाते हैं और मछली फ़ांसते हैं और जब सज संवर कर निकलते हैं धंधे में तो लगता है कि हिमालय से आकर तपस्वी ने साक्षात दर्शन दे दिए।
जवाब देंहटाएं....सही है काम तो वही है घर हो या बाहर... फँसाना तो मछली ही है
वाह, ऐसी गर्मी और पूर्ण व्यस्तता।
जवाब देंहटाएंहाँ उस दिन अजित राय जी के यहाँ ज्यादा समय लग गया, शाम को हमारी कंपनी की 125 वें जन्मदिन की पार्टी थी, वहां भी नहीं जा पाए.... पढ़ते-पढ़ते लग रहा है जैसे हम भी साथ-साथ चल रहे हैं...
जवाब देंहटाएंप्रेम रस
बढिया यात्रा और साथ में ब्लागर मित्रों का साथ। वाह भाई वाह।
जवाब देंहटाएंकलंमाड़ी को खामखा लपेट दिया वे न होते तो आप समय पर पहुचते कैसे वैसे भी फ़ालतू बनाया सब भारत मे गाड़ी टाईम से चल्ती कहां है जि किसी को हड़बड़ी हो
जवाब देंहटाएंबस एक बात बता दो, ये सब करने के लिए भाभी जी को कैसे मैनेज करते हो...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
lalit bhai hm to apkes saath ghr bethe hindustan ki ser kar rahe hain or logon ke baare me smjh rahe hain ..akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंरोचक वृत्तांत है भईया... मदकू द्वीप की सैर करवा हे दीजिए... अभी तक नहीं जा पाया...
जवाब देंहटाएंrochak vritanant .............welcome home.................
जवाब देंहटाएंitani garmi me itana lamba safar..vrutant rochak hai par aapki himmat kabile tareef hai....
जवाब देंहटाएंबाप रे इतनी गर्मी और ये जज्बा ..मान गए आपको.
जवाब देंहटाएंआप ने तो नीरज जाट का रिकार्ड भी तोड दिया, आप की हिम्मत को सलाम हे, हम तो दिल्ली मे रह कर भी ओर अपनी गाडी होने पर भी इतनी भाग दोड नही कर सकते, यह सब कमाल आप की इन मुछों का लगता हे :)
जवाब देंहटाएं@ Kasu kahun.
जवाब देंहटाएं@ श्री ललित शर्मा सा.,
@ Shri Arunesh C. Dzwe
@ सूश्री रश्मि प्रभाजी
आपका यह आरोप शब्दशः सही है कि जिन्दगी के रंग ब्लाग पर प्रसारित प्रसंग रिश्वत का दौर नईदुनिया में प्रकाशित हो चुकी कथा रही है । किन्तु मेरा निवेदन मात्र इतना ही है कि इस ब्लाग पर मेरी अधिकांश सामग्री कहीं न कहीं से पढी हुई ही आप पाएँगे । मुझे दुःख है कि सूश्री कविताजी का सन्दर्भ मेरी जानकारी में नहीं आ पाया और इसी कारण लेखक के रुप में उनके नाम का इजहार यहाँ होना छूट गया जबकि पूर्व की कई पोस्ट में आप इस प्रकार की अधिकांश पोस्ट के अन्त में सन्दर्भ नाम देख सकते हैं । क्षमायाचना के साथ मैं इस पोस्ट को इस ब्लाग पर से तत्काल हटा रहा हूँ । इस सन्दर्भ में किसी भी ब्लागर के मानसिक संताप के लिये मैं विनम्रतापूर्वक पुनः क्षमा चाहता हूँ ।
चरैवेति चरैवेति... इसका अर्थ शायद "चलते रहो चलते रहो" होता है. तो फिर यूं ही चलते रहें और संस्मरण सुनाते रहें...
जवाब देंहटाएंरोचक वर्णन ... आपका वृतांत ऐसा होता है की लगता है पाठक साथ साथ ही चल रहा हो .....
जवाब देंहटाएंरोचक यात्रा वृतांत...
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