अरुण कुमार शर्मा जी-हठयोगी की मुद्रा में |
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रायपुर से हावड़ा मुंबई रेलमार्ग पर 64 किलो मीटर के फ़ासले पर भाटापारा नगर प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र है।
यहाँ से कड़ार-कोतमी गांव होते हुए मदकू द्वीप लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है। रायपुर-बिलासपुर राजमार्ग के 76 वें माईल स्टोन पर स्थित बैतलपुर से यह दुरी 4 किलोमीटर है।
रेल और सड़क मार्ग दोनो से इस स्थान पर पहुंचा जा सकता है। भाटापारा नगरी हमारे लिए जनकपुरी ही है, साल में एक-दो बार जाना हो जाता है पारिवारिक कार्यक्रमों के कारण। हमारे राजा जनक यहीं विराजते हैं।
अरुण शर्मा जी से चर्चा जारी है, तभी वे एक मिट्टी का ढेला सिरहाने लगा कर वहीं भूमि पर आराम की मुद्रा में लेट जाते हैं और उनसे मेरी चर्चा चलते रहती है। उनके इस कार्य से मुझे लगा कि वे प्रत्येक कठिन परिस्थिति का मुकाबला करने में सक्षम हैं।
पुरातत्व संरक्षण की उत्कट आकांक्षा उनके अंदर कूट-कूट कर भरी है। जो व्यक्ति सभी परिस्थियों में गुजारा कर सकता है, वही ऐसे कार्य कर सकता है जिसे आने वाली पीढियाँ याद कर सकें।
रायपुर से हावड़ा मुंबई रेलमार्ग पर 64 किलो मीटर के फ़ासले पर भाटापारा नगर प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र है।
यहाँ से कड़ार-कोतमी गांव होते हुए मदकू द्वीप लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है। रायपुर-बिलासपुर राजमार्ग के 76 वें माईल स्टोन पर स्थित बैतलपुर से यह दुरी 4 किलोमीटर है।
रेल और सड़क मार्ग दोनो से इस स्थान पर पहुंचा जा सकता है। भाटापारा नगरी हमारे लिए जनकपुरी ही है, साल में एक-दो बार जाना हो जाता है पारिवारिक कार्यक्रमों के कारण। हमारे राजा जनक यहीं विराजते हैं।
अरुण शर्मा जी से चर्चा जारी है, तभी वे एक मिट्टी का ढेला सिरहाने लगा कर वहीं भूमि पर आराम की मुद्रा में लेट जाते हैं और उनसे मेरी चर्चा चलते रहती है। उनके इस कार्य से मुझे लगा कि वे प्रत्येक कठिन परिस्थिति का मुकाबला करने में सक्षम हैं।
पुरातत्व संरक्षण की उत्कट आकांक्षा उनके अंदर कूट-कूट कर भरी है। जो व्यक्ति सभी परिस्थियों में गुजारा कर सकता है, वही ऐसे कार्य कर सकता है जिसे आने वाली पीढियाँ याद कर सकें।
संरक्षण एवं पुनर्संरचना |
शर्मा जी कहते हैं कि इन पुरावशेषों के संरक्षण के लिए हवाई जहाज के हैंगर जैसा डोम बनाने का ईरादा है, इसका प्रस्ताव शासन को भेजा जा चुका है।
आस पास सीमेंट एवं लोहे के कारखाने होने के कारण हवा में सल्फ़रडाईआक्साईट की मात्रा अधिक है। वर्षा काल में इससे एसिड का निर्माण हो जाता है, इसकी वर्षा बहुमुल्य प्रस्तर मुर्तियों एवं मंदिरों को हानि पहुंचा सकती है।
पानी निकालने का रास्ता तो हम बना सकते हैं लेकिन प्रदुषण से इन्हे बचाने के लिए डोम बनाना पड़ेगा। डोम के अभाव में ये संरचनाएं लगभग 100 साल तक ही सलामत रह सकती हैं।
माननीय मुख्यमंत्री जी ने डोम बनाने के लिए आदेश जारी कर दिए हैं। इंजिनियर आकर नाप-जोख कर चुके हैं। बरसात के पहले डोम तैयार हो जाए तो अच्छा रहेगा। भारत में डोम बनाकर पुरातात्विक संरचना को सुरक्षित रखने का पहला हमने सिरपुर में किया है। अब मदकू द्वीप में भी कर रहे हैं।
आस पास सीमेंट एवं लोहे के कारखाने होने के कारण हवा में सल्फ़रडाईआक्साईट की मात्रा अधिक है। वर्षा काल में इससे एसिड का निर्माण हो जाता है, इसकी वर्षा बहुमुल्य प्रस्तर मुर्तियों एवं मंदिरों को हानि पहुंचा सकती है।
पानी निकालने का रास्ता तो हम बना सकते हैं लेकिन प्रदुषण से इन्हे बचाने के लिए डोम बनाना पड़ेगा। डोम के अभाव में ये संरचनाएं लगभग 100 साल तक ही सलामत रह सकती हैं।
माननीय मुख्यमंत्री जी ने डोम बनाने के लिए आदेश जारी कर दिए हैं। इंजिनियर आकर नाप-जोख कर चुके हैं। बरसात के पहले डोम तैयार हो जाए तो अच्छा रहेगा। भारत में डोम बनाकर पुरातात्विक संरचना को सुरक्षित रखने का पहला हमने सिरपुर में किया है। अब मदकू द्वीप में भी कर रहे हैं।
प्रभात सिंह काली मिट्टी के नीचे जमा शिल्ट दिखाते हुए |
मंदिरों के गिरने के विषय में कहते हैं कि-"आज से करीब डेढ दो सौ साल पहले शिवनाथ नदी में भयंकर बाढ आई थी। जिसका बहाव दक्षिण से उत्तर की ओर था। जिससे सारे मंदिरों के पत्थर हमको दक्षिण से उत्तर की ओर ढहे हुए मिले। यह बाढ से ढहने का प्रमाण है।
बाढ इतनी भयंकर थी कि टापू के उपर भी एक दो मीटर पानी बहने लगा था। बाढ से विनाश होने का प्रमाण यह भी है कि चारों तरफ़ महीन रेत (शिल्ट) जमा है। यह महीन शिल्ट सिर्फ़ पानी से ही आ सकता है।
लगभग एक मीटर का शिल्ट डिपाजिट है। जो स्पष्ट दिख रहा है काली लाईन के नीचे। बाढ का पानी तेजी से आया और काफ़ी समय तक यह द्वीप पानी में डूबा रहा। अधिकांश पत्थर तो टूट-फ़ूट गए हैं। जितने भी पत्थर यहाँ उपलब्ध है उनसे पुनर्रचना हम कर दें यही हमारा प्रयास है। इन मंदिरों की नींव सलामत थी इसलिए हम उसी पर पुनर्रचना कर रहे हैं।
बाढ इतनी भयंकर थी कि टापू के उपर भी एक दो मीटर पानी बहने लगा था। बाढ से विनाश होने का प्रमाण यह भी है कि चारों तरफ़ महीन रेत (शिल्ट) जमा है। यह महीन शिल्ट सिर्फ़ पानी से ही आ सकता है।
लगभग एक मीटर का शिल्ट डिपाजिट है। जो स्पष्ट दिख रहा है काली लाईन के नीचे। बाढ का पानी तेजी से आया और काफ़ी समय तक यह द्वीप पानी में डूबा रहा। अधिकांश पत्थर तो टूट-फ़ूट गए हैं। जितने भी पत्थर यहाँ उपलब्ध है उनसे पुनर्रचना हम कर दें यही हमारा प्रयास है। इन मंदिरों की नींव सलामत थी इसलिए हम उसी पर पुनर्रचना कर रहे हैं।
ये अपुन है-अपना हाथ-जगन्नाथ-तश्वीर लेते हुए |
शर्मा जी ने रसोइए को मेरा भोजन भी बनाने के लिए कहा। वैसे तो मैं नास्ता साथ लाया था। सभी ने वह नास्ता किया। गर्मी अधिक थी, दोपहर 12 बजे काम बंद कर दिया गया और हम रेस्ट हाऊस में आ गए।
मदकू द्वीप में वन विभाग का एक रेस्ट हाउस भी है। रेस्ट हाउस में प्रभात सिंह के लैपटॉप में नेट डाटा कार्ड का इंतजाम भी है। लेकिन यहाँ मोबाईल का टावर से सम्पर्क कम ही होता है, इसलिए नेट कभी-कभी और बहुत ही कम स्पीड में चलता है।
प्रभात सिंह मेल इत्यादि चेक करने का काम कर लेते हैं। हमने भोजन करके कुछ देर आराम किया फ़िर लगभग 3 बजे कार्य चालु हो गया। पुन: उत्खनन स्थल पर आ गए। अभी तक मैने विशेषज्ञों से ही चर्चा की थी। सोचा कि स्थानीय लोगों से भी इस विषय पर चर्चा की जाए।
मदकू द्वीप में वन विभाग का एक रेस्ट हाउस भी है। रेस्ट हाउस में प्रभात सिंह के लैपटॉप में नेट डाटा कार्ड का इंतजाम भी है। लेकिन यहाँ मोबाईल का टावर से सम्पर्क कम ही होता है, इसलिए नेट कभी-कभी और बहुत ही कम स्पीड में चलता है।
प्रभात सिंह मेल इत्यादि चेक करने का काम कर लेते हैं। हमने भोजन करके कुछ देर आराम किया फ़िर लगभग 3 बजे कार्य चालु हो गया। पुन: उत्खनन स्थल पर आ गए। अभी तक मैने विशेषज्ञों से ही चर्चा की थी। सोचा कि स्थानीय लोगों से भी इस विषय पर चर्चा की जाए।
पं विरेन्द्र शुक्ला-मदकू द्वीप नि्वासी |
यहाँ 25 वर्षों से निवास कर रहे पं विरेन्द कुमार शुक्ला से मैने चर्चा की। उनसे पूछा कि यह स्थल कैसे प्रकाश में आया?
शुक्ला जी कहते हैं कि " पेड़ के नीचे लोगों को योनी पीठ युक्त शिवलिंग मिला। वहां खुदाई करने पर एक हनुमान जी की मूर्ति मिली।
जिसे मदकू निवासी ठाकुर रघुबर सिंह, निरंजन सिंह, रामशरण सिंह एवं कोतमी ग्राम के ठाकुर गजानन सिंह ने मंदिर बनाकर संरक्षित करने का कार्य किया।
इस स्थान पर पहले एक टीला था। जिसे समतल कराने के लिए ट्रेक्टर चलाया जा रहा था, तभी इसके नीचे से ये संरचना दिखाई दी। तब स्थानीय प्रयास से सरकार ने इस स्थान का उत्खनन करने का कार्य किया। वृंदासिंह ने यहाँ राधा-कृष्ण मंदिर बनवाया। हनुमान जयंती को विशाल मेला भरता है, भक्तो एवं दर्शनार्थियों का रेला लगा रहता है।
शुक्ला जी कहते हैं कि " पेड़ के नीचे लोगों को योनी पीठ युक्त शिवलिंग मिला। वहां खुदाई करने पर एक हनुमान जी की मूर्ति मिली।
जिसे मदकू निवासी ठाकुर रघुबर सिंह, निरंजन सिंह, रामशरण सिंह एवं कोतमी ग्राम के ठाकुर गजानन सिंह ने मंदिर बनाकर संरक्षित करने का कार्य किया।
इस स्थान पर पहले एक टीला था। जिसे समतल कराने के लिए ट्रेक्टर चलाया जा रहा था, तभी इसके नीचे से ये संरचना दिखाई दी। तब स्थानीय प्रयास से सरकार ने इस स्थान का उत्खनन करने का कार्य किया। वृंदासिंह ने यहाँ राधा-कृष्ण मंदिर बनवाया। हनुमान जयंती को विशाल मेला भरता है, भक्तो एवं दर्शनार्थियों का रेला लगा रहता है।
डॉ विष्णु सिंह ठाकुर |
पुरातत्वविद डॉ विष्णुसिंह ठाकुर कहते हैं कि - "ग्रामीण जनता अज्ञात अतीत काल से इसे शिव क्षेत्र मानते आ रही है यहाँ श्रावण मास, कार्तिक पूर्णिमा, शिवरात्रि के अतिरिक्त चैत्र मास में विशिष्ट पर्वों पर क्षेत्रिय जनों का यहाँ धार्मिक, आध्यात्मिक समागम होता है।
सांस्कृतिक दृष्टि से जब हम विचार करते हैं, तो वर्तमान प्रचलित नाम मदकू संस्कृत के मण्डुक्य से मिश्रित अपभ्रंश नाम है। शिवनाथ की धाराओं से आवृत्त इस स्थान की सुरम्यता और रमणीयता मांडुक्य ॠषि को बांधे रखने में समर्थ सिद्ध हुई और इसी तपश्चर्या स्थली में निवास करते हुए मांडुक्योपनिषद जैसे धार्मिक ग्रंथ की रचना हुई।
शिव का धूमेश्वर नाम से ऐतिहासिकता इस अंचल में विभिन्न अंचल के प्राचीन मंदिरों के गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंगों से होती है अर्थात पुरातात्विक दृष्टि से दसवीं शताब्दी ईंसवी सन में यह लोकमान्य शैव क्षेत्र था। दसवीं शताब्दी से स्थापित तीर्थ क्षेत्र के रुप में इसकी सत्ता यथावत बनी हुई है।"
सांस्कृतिक दृष्टि से जब हम विचार करते हैं, तो वर्तमान प्रचलित नाम मदकू संस्कृत के मण्डुक्य से मिश्रित अपभ्रंश नाम है। शिवनाथ की धाराओं से आवृत्त इस स्थान की सुरम्यता और रमणीयता मांडुक्य ॠषि को बांधे रखने में समर्थ सिद्ध हुई और इसी तपश्चर्या स्थली में निवास करते हुए मांडुक्योपनिषद जैसे धार्मिक ग्रंथ की रचना हुई।
शिव का धूमेश्वर नाम से ऐतिहासिकता इस अंचल में विभिन्न अंचल के प्राचीन मंदिरों के गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंगों से होती है अर्थात पुरातात्विक दृष्टि से दसवीं शताब्दी ईंसवी सन में यह लोकमान्य शैव क्षेत्र था। दसवीं शताब्दी से स्थापित तीर्थ क्षेत्र के रुप में इसकी सत्ता यथावत बनी हुई है।"
दो ब्लॉगर-राहुल कुमार सिंह, ललित शर्मा |
संस्कृति विभाग के जी एल रायकवार को स्थल निरीक्षण के दौरान इतिहास-पूर्व काल के लघु पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं।
इसी प्रकार संस्कृति विभाग के ही राहुल कुमार सिंह ने मदकू के इतिहास संबंधी पुष्ट और अधिकृत जानकारी प्रदान की। जिनके अनुसार -" इंडियन एपिग्राफ़ी के वार्षिक प्रतिवेदन 1959-60 में क्रमांक बी-173 तथा बी 245 पर मदकू घाट बिलासपुर से प्राप्त ब्राह्मी एवं शंख लिपि के शिलालेखों की प्रविष्टि है, जो लगभग तीसरी सदी ईंसवी के हो सकते हैं,
भारतीय प्रुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के दक्षिण-पुर्वी वृत्त के कार्यालय विशाखापटनम में रखे हैं।" इससे सिद्ध होता है कि मदकू द्वीप का इतिहास गौरवशाली रहा है।
यहाँ की प्राचीन धरोहर को सुरक्षित रखने का एवं प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त इस द्वीप का पर्यटन हेतु विकास करने का कार्य छत्तीसगढ शासन कर रहा है।
इसी प्रकार संस्कृति विभाग के ही राहुल कुमार सिंह ने मदकू के इतिहास संबंधी पुष्ट और अधिकृत जानकारी प्रदान की। जिनके अनुसार -" इंडियन एपिग्राफ़ी के वार्षिक प्रतिवेदन 1959-60 में क्रमांक बी-173 तथा बी 245 पर मदकू घाट बिलासपुर से प्राप्त ब्राह्मी एवं शंख लिपि के शिलालेखों की प्रविष्टि है, जो लगभग तीसरी सदी ईंसवी के हो सकते हैं,
भारतीय प्रुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के दक्षिण-पुर्वी वृत्त के कार्यालय विशाखापटनम में रखे हैं।" इससे सिद्ध होता है कि मदकू द्वीप का इतिहास गौरवशाली रहा है।
यहाँ की प्राचीन धरोहर को सुरक्षित रखने का एवं प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त इस द्वीप का पर्यटन हेतु विकास करने का कार्य छत्तीसगढ शासन कर रहा है।
वृंदाबाई ठकुराईन द्वारा निर्मित-राधा-कृष्ण मंदिर |
भाटापारा निवासी पं कृपाराम गौराहा ने पौष शुक्ल संवत 2019 याने सन् 1954 में धूमनाम माहात्म्य् की रचना की।
वे कहते हैं कि -" भगवान धूमनाम के चरणों में यह पुष्पांजलि समर्पित करते हुए, मैं अपने परम स्नेही मित्रों ठाकुर रघुवीर सिंह, स्व: सुधाराम जी शुक्ल तथा कतकहिन वृन्दाबाई ठकुराईन को भी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ कि जिनके सतत् प्रयासों से इस पुनीत हरीहर क्षेत्र का पुनरुद्धार हुआ है,
जहाँ कि जन साधारण को भगवच्चरित्र मानस में अवगाहन का लाभ होता है। इस माहात्मय की, रायपुर निवासी प्रकांड-विद्वान वयोवृद्ध श्री श्यामराव रावले जी ने प्रशसा की, तथा आवश्यक मुद्रण दोष सुधार कर रचना में कुछ शब्दों में परिवर्तन किया है।
वे कहते हैं कि -" भगवान धूमनाम के चरणों में यह पुष्पांजलि समर्पित करते हुए, मैं अपने परम स्नेही मित्रों ठाकुर रघुवीर सिंह, स्व: सुधाराम जी शुक्ल तथा कतकहिन वृन्दाबाई ठकुराईन को भी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ कि जिनके सतत् प्रयासों से इस पुनीत हरीहर क्षेत्र का पुनरुद्धार हुआ है,
जहाँ कि जन साधारण को भगवच्चरित्र मानस में अवगाहन का लाभ होता है। इस माहात्मय की, रायपुर निवासी प्रकांड-विद्वान वयोवृद्ध श्री श्यामराव रावले जी ने प्रशसा की, तथा आवश्यक मुद्रण दोष सुधार कर रचना में कुछ शब्दों में परिवर्तन किया है।
भाटापारा-नगर निकटे योजनार्धे हयुदीच्याम्।
मदकूग्राम: शिवनदतटे विज्ञ वृन्दै रुपेत:॥
जातस्तस्मिन् रघुवरइति ह्यर्कवंश प्रसूत:।
विद्ववन्मान्यळ सरलहृदय: क्षत्रिय: पुण्यकर्मा॥3॥
अर्थात- भाटापारा नगर से दो कोस उत्तर दिशा में शिवनाथ नदी के किनारे मदकू नाम का गाँव है। उस गाँव में रघुवर नाम का एक धार्मिक क्षत्रिय रहता था।
रघुवर सिंह को ब्राह्मण ने स्वप्न में बताया कि--
कृत्वा यत्नं खनतु पृथिवीं पार्थमूले शिवोSस्ति।
पार्श्वे प्राच्याँ सुखकर शिवान्नातिदूरे गणेश:॥
तच्चोतपाट्यं गणपतिविभुर्विघ्नहर्ता यथा स्यात।
स्थाप्यौ पूज्यौ विविधविभवैर्वेदमंत्रैर्विधिज्ञै:॥6॥
अर्थात- हे रघुवर! पास में स्थित कौहे (अर्जुन-पार्थ) के पेड़ के नीचे भगवान शिवजी की मूर्ति स्थित है और शिवजी के पूर्व में श्री गणेश की मूर्ति स्थित है। उन दोनो मूर्तियों को बाहर में निकाल कर वेदज्ञ ब्राह्मणों के द्वारा प्रतिष्ठ कराओ।
आए हुए श्रद्धालुओं को राम राम |
चर्चा करते एवं जानकारी इकट्ठी करते हुए 5 बज चुके थे। मैने कुछ चित्र और लिए। उत्खनन में प्राप्त सामग्री के विषय में जानकारी संग्रहित की।
अरुण शर्मा जी भी जाने की तैयारी में थे, उन्हे सिरपुर जाना था। कोई पत्रकार उनसे सिरपुर के विषय में जानकारी लेने के लिए दिल्ली से सम्पर्क कर रहा था, कि वे समय दें तो वह रायपुर आए। मुझे भी वापस जाना था।
वापसी में एक बार ही एनीकट पार करना पड़ा। प्रभात सिंह द्वारा बताए रास्ते पर शिवनाथ नदी पार करके कोतमी-कड़ार होते हुए मैं रात्रि को भाटापारा वापस पहुंच गया। यहाँ रात्रि विश्राम पश्चात सुबह छुकछुक एक्सप्रेस से रायपुर एवं दोपहर तक घर पहुंच गया था।
माता जी बेसब्री से इंतजार कर रही थी। मुझे आया देखकर प्रसन्न हो गयी। बोली - अच्छा हुआ समय पर घर पहुंच गया। कब से इंतजार कर रही थी।" यात्रा यहीं पर सम्पन्न होती है।
अरुण शर्मा जी भी जाने की तैयारी में थे, उन्हे सिरपुर जाना था। कोई पत्रकार उनसे सिरपुर के विषय में जानकारी लेने के लिए दिल्ली से सम्पर्क कर रहा था, कि वे समय दें तो वह रायपुर आए। मुझे भी वापस जाना था।
वापसी में एक बार ही एनीकट पार करना पड़ा। प्रभात सिंह द्वारा बताए रास्ते पर शिवनाथ नदी पार करके कोतमी-कड़ार होते हुए मैं रात्रि को भाटापारा वापस पहुंच गया। यहाँ रात्रि विश्राम पश्चात सुबह छुकछुक एक्सप्रेस से रायपुर एवं दोपहर तक घर पहुंच गया था।
माता जी बेसब्री से इंतजार कर रही थी। मुझे आया देखकर प्रसन्न हो गयी। बोली - अच्छा हुआ समय पर घर पहुंच गया। कब से इंतजार कर रही थी।" यात्रा यहीं पर सम्पन्न होती है।
आपकी यात्रा का सार्थक अंतिम पड़ाव. पुरातात्विक प्रमाणों से भरपूर यह स्थल व्यापक जन-आस्था का पवित्र केंद्र है और श्री अरुण शर्मा जी, डॉ विष्णु सिंह ठाकुर जी की परम्परा का उज्ज्वल भविष्य, श्री प्रभात हैं.
जवाब देंहटाएंललित जी, धर्मशाला से निकलकर सीधे मदकू द्वीप। इसके बारे में पहली बार सुना है।
जवाब देंहटाएंये दीप भी बडा मजेदार है जो नई-नई बाते आ रही है,
जवाब देंहटाएंललित भाई जम्बू द्दीप के बारे में जानते हो, चलो घूम कर आये।
vaah lalit bhai apne nzdik bhi khubsurti dchhupa rakhi hai bhtrin sansmaran...akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंपुरातत्व की बहुमूल्य सम्पदा संजोये मदकू द्वीप पर रोचक और उपयोगी जानकारी ...
जवाब देंहटाएंआपकी यात्रा सफल रही , पाठकों का भी लाभ हुआ !
नवीन जानकारी है हमारे लिए।
जवाब देंहटाएंसुन्दर स्थल का सुन्दर वर्णन भईया और अच्छे छायाचित्र... वाह.... पढकर प्रत्यक्ष देखने की इच्छा उत्कट हो गयी है...सादर...
जवाब देंहटाएंजाट देवता (संदीप पवाँर)
जवाब देंहटाएंभाई,अभी तक जम्बु्द्वीप के ही चक्कर काट रहे हैं :)
इतिहास के अध्याय बिखरे पड़े है उस परिवेश में।
जवाब देंहटाएंदेखिये कब जाने का मौका मिलता है, लेकिन है बड़ी सुन्दर जगह और पुरातात्विक महत्व तो अमूल्य है ही...
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत खूब! यात्रा वृत्तांत के माध्यम से आपने मदकू द्वीप के अनछुए ऐतिहासिक तथ्यों पर बड़ी सुंदर जानकारी दी . मुख्यमंत्री जी ने वहाँ प्राचीन मूर्तियों के संरक्षण के लिए डोम निर्माण की मंजूरी दी है, उन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद . श्री अरुण कुमार शर्मा एक निष्काम कर्मयोगी की तरह छत्तीसगढ़ के इतिहास और पुरातत्व को दुनिया के सामने लाने का ऐतिहासिक कार्य कर रहे हैं ,उन्हें हार्दिक शुभकामनाएं .
जवाब देंहटाएंis baar post padkar anand jada aa raha hai .......chattisghar ke baarey me hai.........aapney isey bahut sunder tarike se prastut kiya hai...................
जवाब देंहटाएंhttp://drsatyajitsahu.blogspot.com/
छत्तीसगढ़ के प्राचीन गौरव को अपने पोस्ट के द्वारा पाठकों के समक्ष लाना एक सराहनीय प्रयास है तथा आप इसके लिए साधुवाद के पात्र हैं!
जवाब देंहटाएंआपका यात्रा वृत्तांत अत्यन्त रोचक रहा।
छत्तीसगढ़ के प्राचीन गौरव को अपने पोस्ट के द्वारा पाठकों के समक्ष लाना एक सराहनीय प्रयास है तथा आप इसके लिए साधुवाद के पात्र हैं!
जवाब देंहटाएंkisi bhi vishay ko rochak dhang se prastutikaran lalit bhai ki khaasiyaat hai. .....bahut bahut badhaai.....
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (04.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
स्पेशल काव्यमयी चर्चाः-“चाहत” (आरती झा)
बहुत ही सुंदर ओर अनोखी जान्कारी , पता नही धरती मां के गर्भ मे कितने राज छुपे हे, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइंट्रेस्टिंग ..इस पर दुबारा आना पढ़ेगा.
जवाब देंहटाएंpahali bar is sudur sthal ke bare me jankari mili....aapki yatra nirvighn sampann hui badhai...
जवाब देंहटाएंजानकारी युक्त लेख के लिए धन्यवाद
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