शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

टाईगर पाईंट और मर्करी रिसोर्ट ... Mainpat


मलेश्वरपु्र से सीतापुर जाने वाले मार्ग पर थोड़ी दूर जाने पर टाइगर पाईंट आता है। यहां छोटी पहाड़ी नदी पर एक झरना है जिसकी खाई में कभी शेर इत्यादि जंगली जानवर पानी पीने आते होगें। अब तो सिर्फ़ टाईगर नाम ही रह गया है। पर्यटक सोचते होगें कि टाईगर दिखेगा। लेकिन अब कहाँ टाईगर दिखाई देगें। नदी के पानी गिरने के स्थान पर रेलिंग लगा कर सुरक्षित कर दिया गया है। यह घाटी मनोरम दिखाई देती है। जब हम पहुचे तब धुंधलका होने लगा था और पहाड़ी की छाया घाटी पर पड़ने के कारण स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था। राहुल और पंकज घाटी  में उतरना चाहते थे। उपर से गिरते हुए झरने के समीप खड़े होकर आनंद जो लेना था।
मैनपाट का गुगल व्यु
वे तीनों नीचे घाटी में उतर गए, मौसम में शीतलता आ रही थी। झरने के पानी गिरने से नीचे जंगल में  थोड़ी धुंध भी बन रही थी। मै और विष्णु उपर ही रह गए। नीचे उतरने से ठंड लगने की समस्या थी और मैं अपने साथ कोई गर्म कपड़े नहीं लाया था। लेकिन मैनपाट की ठंड का अहसास होने लगा था। कुछ लोग वहां पिकनिक मना रहे थे। पास ही एक मंदिर बना हुआ था। लोगों ने बड़े हंडे चढा रखे थे। किसी का खाना बन रहा था तो कोई भोजन करके पत्तलें समेंट रहा था पत्तलें और डिस्पोजल गिलास यत्र-तत्र बिखरे पड़े थे। इंसान की अजब फ़ितरत है, जहां भी जाएगा वहीं गंदगी फ़ैलाएगा। इससे तो जानवर ही भले हैं जो गंदगी साफ़ करते  हैं। इस सुंदर प्राकृतिक स्थल को प्लास्टिक से पाट रखा है।
टायगर प्वांईट पर टायगर 
लैला मजनु की सयुंक्त औलादों के कारनामों के तो क्या कहने। पत्थर तो पत्थर ग्वारपाठे के पत्तों पर भी दिल चिपका रखा  है। साथ ही विरदावली लिख रखी  है। जैसे जब कभी भी यह सभ्यता नष्ट होगी तो आने वाली नयी सभ्यता को इनकी प्रेम कहानी पत्तों पत्तों पर लिखी मिलेगी फ़ासिल्स के रुप में। मैं कुछ यही सोच रहा था इस स्थान पर, तभी साथी भी आ गए घाटी में से घूम कर, बोले बहुत ठंड है  नीचे। अच्छा हो गया आप उपर ही रह गए। अब मैं इन्हे मना करता तो मानते नहीं। आज कल के छोकरों का यही रोना है। मनमानी ही करते हैं। अब संध्या नास्ते के लिए समोसे निकाले गए। समोसों  की चटनी उम्दा थी। सभी के हिस्से दो-दो समोसे आए। सांझ होने को थी अब हमे लौटना था कमलेश्वरपुर की ओर।
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल तुम्हारा जाने हे
राहुल के सिर पर सुबह से ही मैनपाट में रात्रि विश्राम करने का भूत सवार था। मैनपाट के हालात देखते हुए मेरा रुकने का मन नहीं था और  न ही विष्णु सिंह और उसका साथी रुकना चाहता था। राहुल ने जिद पकड़ ली कि उसे मैनपाट में ही रुकना है वरना अपने दोस्तों को क्या मुंह देखाएगा कि मैनपाट गया और वहां रात नहीं रुका। बात मुंह दिखाने तक पहुंच गयी थी। हमारे रुकने की व्यवस्था मेहता पाईंट स्थित विश्राम गृह में की गयी थी। हम सब एक बार यह स्थान देखना चाहते थे। टाईगर पाईंट से मेहता पाईंट दक्षिण दिशा की ओर है। कमलेश्वरपुर से लगभग 7-8 किलोमीटर की दूरी होगी। ढूंढते हुए हम मेहता पाईंट पहुचे तो सूर्यास्त होने को था। 
रेस्ट हाऊस में पहुंचने पर कोई दिखाई नहीं दिया। 
टाईगर प्वाईंट की ढलती हुई सांझ
थोड़ी देर तक आवाज देने पर एक चौकीदार निकल कर आया और आते ही बोला कि यहाँ के नल की मोटर खराब हो गयी है और सुबह आपको नहाने के लिए पानी नहीं मिलेगा। राहुल को तो रात मैनपाट में काटनी थी। वह इस स्थिति में भी तैयार था। हमने थोड़ी देर रुक कर प्राकृतिक नजारे का आनंद लिया। दाई तरफ़ सूर्यास्त हो रहा था। बड़ा ही मनमोहक दृश्य था। अंदाजा लग गया था कि जब सुबह होगी तो घाटी में बाईं तरफ़ सूर्योदय होगा। ऐसा दुर्लभ नजारा कम ही स्थानों पर मिलता है जब एक तरफ़ सूर्यास्त हो और सुबह दूसरी तरफ़ सूर्योदय हो। सामने घाटी में छोटा सा बांध दिखाई दे रहा था। सूरज की लालिमा पहाड़ों से होते हुए घाटी तक जाना चाहती थी।
पिकनिक के अवशेष टाईगर प्वाईंट पर
यह दृश्य देख कर मैने भी यहीं रात्रि विश्राम करने का मन बना लिया। यहाँ दो भवन हैं एक में 2 कमरे हैं और दूसरे में तीन चार कमरे बने हुए हैं। लेकिन रुकने के लायक कोई व्यवस्था दिखाई  नही दी। फ़िर भी हम चौकीदार को वापस आने की कहकर विष्णु सिंह एवं उसके साथी को तिब्बती कैंप नम्बर 1 के समीप स्थित बस स्टैंड छोड़ने के लिए आए। वापस अम्बिकापुर जाने का  कोई साधन तो दिखाई नहीं दिया। तभी एक बोलेरो वाले से चर्चा करने पर वो विष्णु सिंह एवं उसके साथी को  अम्बिकापुर ले जाने को तैयार हो गया। वे जब बोलेरो में बैठ गए और  वह चल पड़ी तब हमने राहत की सांस ली। क्योंकि उन्हे रात अम्बिकापुर में किसी मित्र के यहाँ शादी में जाना था।
मर्करी रिसोर्ट की छोलदारी का इंटिरियर
रेस्ट हाऊस में खाना बनाने की व्यवस्था नहीं होने के कारण अब हमें खाना ढूंढना था। पूछने पर पता चला कि थोड़ी दूर पर मर्करी रिसोर्ट है अब खाना वहीं मिल सकता है। हम मर्करी रिसोर्ट पहुचें। बरसाती नाले के किनारे पर 6 टैंट (छोलदारी) लगा कर रुकने का इंतजाम किया गया है। किचन एवं रेस्टोरेंट बांस से बनाया हुआ है। रेस्टोरेंट की टेबल एंव कुर्सियां भी बांस की ही हैं। पूरा इंटीरियर ही बांस का बनाया हुआ है। सामने लॉन में कुछ टेबल और कुर्सियाँ लगा रखी हैं। रात रुकने के लिए एक स्विस कॉटेज का किराया 1800 रुपए बताया। बार्गेनिंग करने पर 1500 तक बात पहुच गयी। एक बैड अलग डालने के 300 रुपए अतिरिक्त लगेगें। हमने छोलदारियाँ देखी, उनमें लैट्रिन-बाथरुम अटैच था। साथ ही एसी की व्यवस्था भी थी।
मर्करी रिसोर्ट का रेस्टोरेंट
हमने खाना पार्सल करने का आदेश दिया और तब तक चाय की व्यवस्था करने कहा। मैनपाट में यही एक मात्र रेस्टोरेंट हैं जहाँ खाना मिल सकता है। चाय में शुगर फ़्री डालने कहा तो वेटर के मैनेजर ने भी असमर्थता जता दी। इससे मुझे पता चल गया कि इस रिसोर्ट का क्या स्तर है। सिर्फ़ नाम का ही रिसोर्ट लगा। पूछने पर पता चला कि बाकी सब व्यवस्था हो जाएगी लेकिन शुगर फ़्री नहीं मिलेगी। चाय लेकर आया तो वह ठंडी पड़ी थी और बाहर का टेम्परेचर लगभग 3-4 डिग्री के आस पास था। ठंडी चाय की घुंट लेते ही खोपड़ी घूम गयी। मन ही मन सोचा कि कहाँ फ़ंस गए आकर। एक तरफ़ सरकार मैनपाट नहीं देखा तो क्या देखा के बोर्ड लगा रही है और इधर मैनपाट पहुंचने पर ये हालात हो रही है।
मेहता प्वाईंट का सूर्यास्त
हमने खाने का पार्सल लिया। बिल पूछने पर थोड़ा मंहगा ही लगा। अब मैनपाट में जब और दूसरी जगह खाना नहीं मिलना है तो एकाधिकार रहेगा ही। जो भी जिस भाव में मिल जाए लो और मौज करो। हम अपने रेस्ट हाऊस  की तरफ़ चल पड़े। रात के लगभग साढे आठ बज रहे थे। मैनपाट सुनसान पड़ा था। जहाँ पर हमें रुकना था वहाँ दो-तीन किलोमीटर तक बस्ती का कोई नाम निशान नहीं था। आस पास भी कोई आबादी नहीं थी। एक तरफ़ खाली मैदान और दूसरी तरफ़ खाई के साथ जंगल और जंगली जानवर। चौकीदार भी रामसे बदर्स की पुरानी हवेली के चौकीदार जैसा ही था। अब जो होगा सो देखा जाएगा। रात तो यहीं गुजारनी है। 

9 टिप्‍पणियां:

  1. दिल वाला पौधा केतकी (Agave) का है गवार पाठा (Aloe) का नही है।

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  2. रोचक, रोमांचक, जानदार , शानदार जंगली यात्रा।

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  3. रोमांचक...

    वैसे इतना घूमने के पश्चात विवरण को एक किताब कि शक्ल में समेटा जा सकता है.

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  4. @Pankaj Oudhia

    मुझे तो सारे पुलिस वाले एक जैसे ही दिखाई देते हैं।

    अब सुधार देते हैं।

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  5. मानना पड़ेगा ललित भाई साहब पाटों पर लिखी इबारत भी आप पढ़ लेते हैं

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  6. बढिया. भारत में पर्यटन इसीलिये नहीं पनपता कि खूब पैसे खींचे जाते हैं.

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