यात्रा वृतान्त आरम्भ से पढ़ें
खुशदीप भाई के यहां से विदा लेते समय अविनाश जी ने फ़ोन पर बताया कि आज वे दांतों की दुकान में जाएंगे इसलिए विलंब हो जाएगा। अगर दिल्ली में कहीं घूमना हो तो बताएं। मैने कहा कि आप दांतों की दुकान से हो आएं फ़िर आपसे सम्पर्क करता हूँ।
अविनाश जी ने दांत में नैनो तकनीकि से युक्त एक मोबाईल फ़ोन आज से लगभग सात वर्ष पूर्व लगवाया था, अब उसकी बैटरी खत्म हो गई, इसलिए लगातार वह चेतावनी दे रहा था कि बैटरी बदलिए। इससे उनके दांत में दर्द हो जाता था।
दर्द की टेबलेट तो वे साथ रख रहे थे। जब भी दर्द होता तभी एक टेबलेट उदरस्थ कर लेते। मोबाईल के नैनो जरासिम शांत हो जाते कि बैटरी बदलने वाली है, आश्वासन मिल गया है।
लेकिन जब बैटरी नहीं बदली तो उनका उत्पात बढ गया इसलिए तत्काल प्रभाव से बैटरी बदलवाने जाना पड़ा। डॉक्टर ने भी बता दिया कि दो-तीन बैठक में ही बैटरी बदलने का काम होगा।
खुशदीप भाई के यहां से विदा लेते समय अविनाश जी ने फ़ोन पर बताया कि आज वे दांतों की दुकान में जाएंगे इसलिए विलंब हो जाएगा। अगर दिल्ली में कहीं घूमना हो तो बताएं। मैने कहा कि आप दांतों की दुकान से हो आएं फ़िर आपसे सम्पर्क करता हूँ।
अविनाश वाचस्पति |
दर्द की टेबलेट तो वे साथ रख रहे थे। जब भी दर्द होता तभी एक टेबलेट उदरस्थ कर लेते। मोबाईल के नैनो जरासिम शांत हो जाते कि बैटरी बदलने वाली है, आश्वासन मिल गया है।
ललित शर्मा मेट्रो दिल्ली में |
लेकिन जब बैटरी नहीं बदली तो उनका उत्पात बढ गया इसलिए तत्काल प्रभाव से बैटरी बदलवाने जाना पड़ा। डॉक्टर ने भी बता दिया कि दो-तीन बैठक में ही बैटरी बदलने का काम होगा।
इधर हम मैट्रो की सवारी करके आजादपुर मंडी की ओर चल पड़े। राजीव जी का आदेश था कि आजादपुर मंडी तक आना है, फ़िर मै आपको लेने आ जाउंगा।
भाई मैट्रो की सवारी का तो आनंद ही आनंद है, अगर हमारे यहां होती तो घर से एक चारपाई लेकर आते और 100 रुपये की टिकिट कटाकर आराम से सुबह से शाम तक सोते, गर्मी में सर्दी का अहसास होता और बात बन जाती। लेकिन यहां कौन चारपाई डालने दे?
बस एक सीट मिल गई तो वहीं चिपक लिए राजीव चौक से आजादपुर तक मैट्रो के 11 विश्राम स्थल हैं और इधर रात के जागरण एवं डट कर नास्ता करने के कारण नींद की खुमारी भी चढी हुई थी। बस चारपाई ही याद आ रही थी।
जैसे तैसे करके आजादपुर पहुंचे वहां राजीव जी हमारे स्वागत में एक होर्डिंग लगा रखा है ताजा ताजा। हम तो देखते रह गए। जब होर्डिंग देख रहे थे तभी राजीव जी आ गए, बस फ़िर क्या था हम तो गदगद हो गए जी। धूप चढ चुकी थी दिल्ली की गर्मी रंग दिखाने लगी थी।
ललित शर्मा |
बस एक सीट मिल गई तो वहीं चिपक लिए राजीव चौक से आजादपुर तक मैट्रो के 11 विश्राम स्थल हैं और इधर रात के जागरण एवं डट कर नास्ता करने के कारण नींद की खुमारी भी चढी हुई थी। बस चारपाई ही याद आ रही थी।
जैसे तैसे करके आजादपुर पहुंचे वहां राजीव जी हमारे स्वागत में एक होर्डिंग लगा रखा है ताजा ताजा। हम तो देखते रह गए। जब होर्डिंग देख रहे थे तभी राजीव जी आ गए, बस फ़िर क्या था हम तो गदगद हो गए जी। धूप चढ चुकी थी दिल्ली की गर्मी रंग दिखाने लगी थी।
राजीव जी के घर शालीमार बाग पहुंचे, जाते ही भाभी जी ठंडा शरबत पि्लाया जिससे आत्मा तृप्त हो गयी और खाना भी बन चुका था। बस राजीव जी के बैडरुम में डेरा लगाया वहीं पर बैठ कर खाना खाया क्योंकि ब्लागर के बैडरुम में सारी सुविधाएं होती है, कम्प्युटर से लेकर एसी कूलर तक, खाना भी वहीं खाया जाता है,
रुम से अगर एक महीना बाहर ना निकलो तो भी कोई बात नहीं। सब कुछ वहीं हाजिर। ऐसी व्यवस्था हमने भी कर रखी है, हमने ही क्यों लगभग सभी ब्लागरों की यही स्थिति है। खाना खाकर कुछ आराम करने का मन बनाया लेकिन कहां आराम?
बात करते हुए समय बीता जा रहा था। यशवंत मेहता जी से फ़ोन पर बात हुयी तो राजीव जी ने उन्हे नांगलोई बुला लिया दुकान पर। उनसे मुलाकात राजीव जी की दुकान पर हो्नी थी।
रुम से अगर एक महीना बाहर ना निकलो तो भी कोई बात नहीं। सब कुछ वहीं हाजिर। ऐसी व्यवस्था हमने भी कर रखी है, हमने ही क्यों लगभग सभी ब्लागरों की यही स्थिति है। खाना खाकर कुछ आराम करने का मन बनाया लेकिन कहां आराम?
बात करते हुए समय बीता जा रहा था। यशवंत मेहता जी से फ़ोन पर बात हुयी तो राजीव जी ने उन्हे नांगलोई बुला लिया दुकान पर। उनसे मुलाकात राजीव जी की दुकान पर हो्नी थी।
डॉ टी एस दराल |
डॉक्टर साहब ने समय पूछा तो हमने कहा कि 8 बजे तक पहुंच जाएंगे। मिसेस तनेजा के आने की सूचना पर उन्होने कहा कि हम भी श्रीमती जी को ले आते हैं। बहुत ही अच्छा निर्णय था।
इधर शाम का कार्यक्रम निश्चित होने के बाद राजीव जी ने भाभी जी को कार में सीएनजी डलवाने का कार्य भार सौंपा और हम बाईक से नांगलोई चल पड़े। नांगलोई पहुंच कर यशवंत जी को फ़ोन लगाया कि वे कहां तक पहुंचे हैं?
उन्होने बताया कि वे इंद्रप्रस्थ हो कर आ रहे हैं सागरपुर से। इधर राजीव जी के घर से फ़ोन आया कि कार की चाबी तो राजीव जी कि जेब में ही रह गई। बस यहीं मारे गए गुलफ़ाम। इधर यशवंत जी पहुंचे, बस कुछ देर इनसे चर्चा हुई, लेकिन अब बाईक पर तीन सवारी जाना मुश्किल था।
हमारे यहां होता तो हम जीप की सवारी बाईक पर ही जाते, क्योंकि बस की सवारी जीप में आ जाती है। लेकिन ये तो दिल्ली है, यहां करते तो सुबह चालान घर पर पहुंच जाता और मौके पर पकड़े गए तो हरियाणा की दिल्ली पुलिस बंदर जैसी अलग बना देती। तो हमने बाईक वहीं पर छोड़कर फ़िर से मैट्रो पकड़ने का फ़ैसला किया।
मैट्रो में सवार होकर आजादपुर पहुंचे। वहां से रिक्शा करके राजीव जी के घर। तैयार होते-होते 8 बज चुके थे। डॉक्टर दराल साहब का फ़ोन आ गया कि वे क्लब में पहुंच चुके हैं। हमने भी कहा कि तुरंत आ रहे हैं। सब तैयार होकर सिविल सर्विसेस आफ़िसर्स क्लब की ओर चल पड़े।
शाम को वैसे भी दिल्ली में ट्रैफ़िक बढ जाता है। पायलट राजीव जी के साथ कोपायलट एवं नेविगेटर संजू भाभी थी, वे रास्ता बता रही थी और राजीव जी कार चला रहे थे। हम इनकी ड्रायविंग का मजा ले रहे थे।
इधर मैं सोच रहा था कि डॉक्टर साहब और भाभी जी इंतजार करते हुए थक चु्के होंगे, धीरे-धीरे हमारी लापरवाही पर उनका पारा बढ रहा होगा। लेकिन दिल्ली के ट्रैफ़िक से तो वे भी वाकिफ़ हैं सोच कर मन को तसल्ली दे रहा था।
हम 9 बजे कनाट प्लेस से कस्तुरबा गांधी मार्ग की ओर बढे, तथा 9:10 को क्लब में प्रवेश कर चुके थे। जारी है आगे पढें.
यशवंत मेहता |
शाम को वैसे भी दिल्ली में ट्रैफ़िक बढ जाता है। पायलट राजीव जी के साथ कोपायलट एवं नेविगेटर संजू भाभी थी, वे रास्ता बता रही थी और राजीव जी कार चला रहे थे। हम इनकी ड्रायविंग का मजा ले रहे थे।
इधर मैं सोच रहा था कि डॉक्टर साहब और भाभी जी इंतजार करते हुए थक चु्के होंगे, धीरे-धीरे हमारी लापरवाही पर उनका पारा बढ रहा होगा। लेकिन दिल्ली के ट्रैफ़िक से तो वे भी वाकिफ़ हैं सोच कर मन को तसल्ली दे रहा था।
हम 9 बजे कनाट प्लेस से कस्तुरबा गांधी मार्ग की ओर बढे, तथा 9:10 को क्लब में प्रवेश कर चुके थे। जारी है आगे पढें.
रोचक प्रस्तुतिकरण. आपका कुछ क्षण का सानिध्य वाकई उत्साहवर्धक था.
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंआप का यात्रा विवरण शानदार है। कल तो बाहर थे इस लिए सिर्फ पढ़ा
जवाब देंहटाएंटिपियाया नहीं।
पढ़कर आनंद आ गया, मजे लीजिये !
जवाब देंहटाएंक्योंकि ब्लागर के बैडरुम में सारी सुविधाएं होती है, कम्प्युटर से लेकर एसी कूलर तक, खाना भी वहीं खाया जाता है, रुम से अगर एक महीना बाहर ना निकलो तो भी कोई बात नहीं।
जवाब देंहटाएंनहीं -नहीं ललित भाई एक महिना अगर बाहर नहीं निकलेंगे तो बाहर जमीनी स्तर पर जो कार्य को अंजाम देना है ,किसी की समस्या के समाधान में कुछ सार्थक सहयोग देना है ,किसी के जीवन के दुःख को थोडा का कम करने की कोशिस करना है ,वो कैसे होगा ? ललित भाई आपको भी करने है ऐसे दुष्कर कार्य तब जाकर इस देश और समाज का कुछ भला होगा | आपके इस एक अतिथि को सम्मान देने को हार्दिक सम्मान देती पोस्ट से पता चलता है की आप इंसानी जज्बातों के प्रति सम्बेदंशील और बेहद गंभीर भी हैं | इस उम्दा पोस्ट के लिए आपका धन्यवाद |
रोचक प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएं...डम डम ... डम डम ....!!!
जवाब देंहटाएंkafi acchi yatra rahi aapki
जवाब देंहटाएंयात्रा संस्मरण का विवरण बहुत धाराप्रवाह और मज़ेदार चल रहा है ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रहा आपसे मिलना , बतियाना और खाना पीना ।
बहुत रोचक...जारी रहिये...क्लाइमेक्स ऑफ टीचर तो अब आयेगा. :)
जवाब देंहटाएंप्रवाहमय रोचक प्रस्तुतीकरण ...
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुतीकरण..... वैसे आप भी सोच रहे होंगे..... कि मैं भी कितना बड़ा टपकेबाज़ हूँ ..... ही ही ही ही ही ही......
जवाब देंहटाएंयात्रा संस्मरण बहुत रोचक तरीके से लिखा है...
जवाब देंहटाएंखूब मजे किये हैं आपने ललित जी दिल्ली में! हमें तो अखर रहा है कि आपके साथ दिल्ली चलने के आपके अनुरोध को टाल गये।
जवाब देंहटाएंअगली कड़ी का इन्तजार है..
जवाब देंहटाएंहम तो गदगद हो गए जी।
जवाब देंहटाएंयात्रा अच्छी चल रही है। लगे रहिए। बार-बार लालपरी और टीचर का उल्लेख कर मेरी जान मत जलाइए। जब मैं छोड़ चुका हूं तब भाई लोग इतना शानदार वर्णन कर रहे हैं कि दिल परेशान हो रहा है। अब आगे से सब कुछ लिखो लेकिन लाल-पीली परी का जिक्र मत करना.. तकलीफ को समझो भाई।
जवाब देंहटाएंयात्रा संस्मरण बहुत ही रोचक तरीके से लिखा है...साथ में पाठक भी सब जगह घूम लिए
जवाब देंहटाएंइस बार नीरज जाट जी के दफ्तर चलियेगा
जवाब देंहटाएंआपकी खाट मैट्रों में वही डलवा सकते हैं जी, आप चाहो तो मैट्रो के पायलट केबिन में भी खाट डलवाई जा सकती है।
प्रणाम
बहुत सुंदर ओर पुरे दम खम से लिखी आप ने पोस्ट,हेरान हुं आप को सारी बाते याद है, यहां तक की भाभी जी को कार में सीएनजी गेस कार मै डलवाई, मुझे सब भुल जाता है, मजे दार ओर रोचक, कहो तो एक जर्मन खाट जो फ़ोल्ड हो जाती है आप को भेजूं, ओर ऊठाने मै भी हल्की, जहां चाहो वही डालो भेज दुं, उसे जगह देख कर मेट्रो मै बिछा लो हवाई जहाज मै बिछा लो यह आप की मर्जी:)
जवाब देंहटाएंब्लोगर के रूम में सिर्फ ब्लोगर ही होता है...............(ऐसा मुझे लगता है ...........)
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंइंट्रेस्टिंग, पढ़ रहा हूं जारी रखें
जवाब देंहटाएंऐश हो रही है भाई।
जवाब देंहटाएं@राज भाटिय़ा
जवाब देंहटाएंतत्काल भेज दि्जिए खाट=मंजी
अभी बहुत ही जरुरत हैं।
एक ताऊ के लिए भी,उन्हे भी जरुरत है।
रोचक प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंअभी तो टीचर और लाल-परी के किस्से बाकी हैं ना? :-)
मेट्रो में खाट?
मेट्रो वालों की खाट खड़ी करने का इरादा है क्या !!
आपने अपने प्रदेश का झंडा बुलंद कर दिया| इतने सारे महानुभावों ने आपको हाथो हाथ लिया इससे यह आभास होता है कि कितनी बड़ी शक्शियत हैं आप| रोचक वर्णन के लिए आभार| मेट्रो में खटिया लगाने का विचार उम्दा है|
जवाब देंहटाएंपहले तो एक बात ललित जी से कि आपको राजीव चौक से आजादपुर की तरफ सीट कैसे मिल गयी?
जवाब देंहटाएंअसम्भव।
रही बात खाट डालने की। खाट डालनी हो या खडी करनी हो, इस बात को जाट से बेहतर कोई नहीं जान सकता। ललित साहब, इस बार तो आपने बताया नहीं, नहीं तो इन्तजाम करवा ही देते।
अगली बार जाडों में आना। मेट्रो की छत पर ही डलवा देंगे।
यात्रा की तीसरी किश्त की बहुत बहुत बधाई। आज तथाकथित "पापाजी" को यहां टिपियाने की याद नही आई?
जवाब देंहटाएंसच ! अभी पुरुष में इतनी ताकत नहीं, जो मेरा सामना करे, किसमें है औकात ? http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/05/blog-post_31.html मुझे याद किया सर।
जवाब देंहटाएंबहुत दिलचस्प वर्णन।
जवाब देंहटाएंDear aapka yathravitant kaphi aasha laga. mera bhi man karne lag gaya kash mai bhi aapke sath hota.
जवाब देंहटाएंदिलचस्प वर्णन।
जवाब देंहटाएं