एक बार मुल्ला नसीरुद्दीन बगदाद यात्रा पर जा रहे थे. एक गांव से गुजर रहे थे तो एक बूढे किसान से १०० रूपये में एक गधा खरीद लिया, किसान ने कहा की अगले दिन आकर ले जाना, मैं गधा दे दूंगा.
अगले दिन नसीरुद्दीन पहुंचे तो
किसान बोला-"बुरी खबर है, गधा पिछली रात मर गया."
तो नसीरुद्दीन बोले-"पैसा वापस कर दो"
किसान बोला "लेकिन पैसे तो मै कल रात में ही खर्च कर बैठा हूँ."
मुल्ला नसीरुद्दीन बोले " ठीक है, मुझे मरा हुआ गधा ही दे दो."
"तुम उसका क्या करोगे?" किसान ने पूछा.
"मैं उसे पर्ची डाल कर बेचने वाला हूँ"
"तुम एक मरे हुए गधे को कैसे बेच सकते हो?"
"बिलकुल बेच सकता हूँ, बस तुम देखते जाओ"
एक महीने बाद यात्रा से लौट कर मुल्ला नसीरुद्दीन फिर उसी रास्ते से गुजारे और उसी गांव में ठहरे. किसान मिला और
उसने पूछा "उस गधे का क्या हुआ?"
"मैंने तो उसे बेच दिया. तम्बू लगाया,गधा छुपाया, दो रूपये में गधा ले लो कहकर दो-दो रूपये के ५०० टिकिट बेच दिये. ड्रा निकाला और ९९८ रूपये कमा लिए."
किसान ने पूछा- कैसे? किसी ने शिकायत नहीं की?
"हां की थी केवल उसने जिसका टिकिट खुला था. मैंने उसके दो रूपये वापस कर दिये.
क्यों कैसी रही?
अगले दिन नसीरुद्दीन पहुंचे तो
किसान बोला-"बुरी खबर है, गधा पिछली रात मर गया."
तो नसीरुद्दीन बोले-"पैसा वापस कर दो"
किसान बोला "लेकिन पैसे तो मै कल रात में ही खर्च कर बैठा हूँ."
मुल्ला नसीरुद्दीन बोले " ठीक है, मुझे मरा हुआ गधा ही दे दो."
"तुम उसका क्या करोगे?" किसान ने पूछा.
"मैं उसे पर्ची डाल कर बेचने वाला हूँ"
"तुम एक मरे हुए गधे को कैसे बेच सकते हो?"
"बिलकुल बेच सकता हूँ, बस तुम देखते जाओ"
एक महीने बाद यात्रा से लौट कर मुल्ला नसीरुद्दीन फिर उसी रास्ते से गुजारे और उसी गांव में ठहरे. किसान मिला और
उसने पूछा "उस गधे का क्या हुआ?"
"मैंने तो उसे बेच दिया. तम्बू लगाया,गधा छुपाया, दो रूपये में गधा ले लो कहकर दो-दो रूपये के ५०० टिकिट बेच दिये. ड्रा निकाला और ९९८ रूपये कमा लिए."
किसान ने पूछा- कैसे? किसी ने शिकायत नहीं की?
"हां की थी केवल उसने जिसका टिकिट खुला था. मैंने उसके दो रूपये वापस कर दिये.
क्यों कैसी रही?
सब तो यही कर रहे हैं।संक्रांति की बहुत बहुत बधाई ललित्।
जवाब देंहटाएंहा-हा, काफी समझदार किसान था !
जवाब देंहटाएंललित भाई,
जवाब देंहटाएंव्हाट एन आइडिया सर जी, ब्लॉगर सम्मान समारोह कराते हैं...अब इतने धन्ना सेठ तो हैं नहीं कि अपनी अंटी से माल निकाल सके...ये समारोह आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर होगा...यानि जो आइडिया आपने दिया है उसी आधार पर ब्लॉग शिरोमणि का ऐलान कर समारोह रद्द कर दिया जाएगा...क्यों कैसी रही...
जय हिंद...
हा-हा-हा
जवाब देंहटाएंमजा आ गया
मुल्ला नसीरुद्दीन के और किस्से भी सुनाइयेगा
प्रणाम स्वीकार करें
मुल्ला के बारे मे कहा जाता था कि वह वहीं रहता था पर दिखाई नही देता था दिखाई देते थे उसके कारनामे .. लेकिन वह गरीबों का हिमायती था और सूदखोरों शोषकों का विरोधी ..कहाँ गया वह उसे ढूंढकर लाओ ।
जवाब देंहटाएंशरद भाई-जो आज्ञा महाराज,
जवाब देंहटाएंमुल्ला नसीरुद्दीन हाहिर होSSSSSSSSSSSSओ
ये लो, मैने अपना काम कर दिया।
वाह जी वाह उस दौर में नई बात होगी आज के दौर में तो यही मामूली है हा हा हा...मजेदार पोस्ट...
जवाब देंहटाएंऔर हाँ ब्लॉग पर आपके ५ starsने बहुत होसला बढाया है..तहे दिल से शुक्रिया
याने कि "आम के आम और गुठलियों के दाम"!
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति की बधाई!
हा..हा..हा.. लाजवाब कहानी मजा आ गाया !!!
जवाब देंहटाएंजो हो रहा है उसे बहुत अच्छी तरह अभिव्यक्त किया है आप ने इस कहानी से।
जवाब देंहटाएंलाजवाब कहानी...हैं ..संक्रांति की बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंक्यों कैसी रही?
जवाब देंहटाएंअजी बढ़िया रही। मजेदार।
हा हा बहुत ही मज़ेदार किस्सा ललिल जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही मज़ेदार
जवाब देंहटाएंवाह बाज़ार का भेद खोलने लगे .. अच्छा है लोग समझें ..
जवाब देंहटाएंदुरुस्त फरमाया आपने ...
यही है जो आपको किसी खांचे में सीमित नहीं करता ! ... आभार ,,,
वाह महराज वाह
जवाब देंहटाएं"लालच सुख की खान है लालच से आनंद
लालच से है लखपति लाला लख्मीचंद" ये सोच के
मनखे मन दू रुपिया इनामी चीज बर लगाये बर मना नई
करय कभू त आही कहिके. त नई लगे नंबर, कोई बात नहीं, ओतेक
नई अखरै. अउ नम्बर लग गै, अउ "गधा" के हाल होगे त
कईसे जनाथे......... आज तो अईसन धंधा बढ़ते चलत जाथ
हे.........बस मुल्ला नसीरुद्दीन बनो
ये गधा तो पारीक मदनलाल का सलाहकार
जवाब देंहटाएंबन गया है जी!
हा हा!! नसरुद्दीन से बड़ा जबरदस्त आईडिया मिला...निकालता हूँ लकी ड्रा जल्दी!! :)
जवाब देंहटाएंमुल्ला की कहानियों तो हमेशा लाजवाब हैं
जवाब देंहटाएं