मंगलवार, 31 अगस्त 2010

खोली नम्बर 36

वह विस्फ़ारित नेत्रों से जेलर को एकटक देखे जा रहा था। उसकी आँखों भय का सम्पुट था। डर के मारे टांगे कांप रही थी। कंठ सूखा जा रहा था। थूक लीलने की कोशिश करता था,लेकिन गटक नहीं पा रहा था। पसीना-पसीना हो रहा था। सामने घड़ी का पैन्डूलम हिल रहा था बांए से दांए। उसे लग रहा था कि बस अब गिर पड़ेगा। तभी वह जोर से चीखा-“नहीं……नहीँ……..नहींईईईईईईईईईई........। आवाज आई......."धड़ाम"...। वह गिर पड़ा था।
जेलर ने तुरंत बेल बजाई…… सिपाही अंदर आया, जेलर और सिपाही ने मिलकर उसके चेहरे पर पानी छींटा। पानी की बूंदे पड़ते ही उसने हरकत की…………आँखे मिचमिचाई। फ़िर आँखे खोल कर देखा………लगता था माहौल जा जायजा ले रहा हो कि वह कहाँ है…………फ़िर उसने आँखे बंद किए ही पूछा-
“ मैं कहाँ हूँ?
“तुम अभी जेलर के आफ़िस में हो।“ उसने फ़िर आँखे खोली, धीरे से उठ कर खड़ा हुआ-
“मैं वहां नहीं जाउंगा......... आप चाहे तो मुझे फ़ांसी पर लटका दें........मैं वहां पागल हो जाउगां......... मुझे बख्स दिजिए.....आप कहेंगे तो मैं यहां झाड़ू लगाने का काम कर लूंगा, संडास साफ़ कर दुंगा,लेकिन वहां नहीं जाउंगा।“
“तुम्हें हम कहीं नहीं जाने कह रहे, फ़िर इतना क्युं घबरा रहे हो?”-जेलर ने कहा
“नहीं सर मुझे नहीं जाना है”
“कहाँ नहीं जाना है, कुछ तो बताओगे?”
“खोली नम्बर 36 में”
“क्यों? वहाँ तो बहुत मजे हैं.........., बिजली है,.....पंखा है...... कूलर है......, और बढिया खाना भी है। फ़िर क्यों डर रहे हो? सब वीआईपी ट्रीटमेंट मिलेगा”
“मुझे वहां मत भेजिए सर,-प्लीज।“-वह घिघियाने लगा।
“देखो...., तुम कोई सरकार के दामाद नहीं हो, जो तुम्हे हर तरह की रियायत दी जाए,...... यह जेल है बाबू जेल। यहाँ हमारी मर्जी चलती है और तुम कौन सा सत्कर्म करके आए हो? जो तुम्हे जन्नत बख्श दी जाए?”
सर......, सर प्लीज सर...... बात ये हैं कि वहां का जो नम्बरदार है, वह हिटलर की सेना में रह चुका है। जो भी वहां जाता है......उसके साथ ...... उसके साथ, बस मत पूछो सर, मत पूछो।–कह कर वह फ़िर रोने लग जाता है।
“उसके साथ, फ़िर आगे बोलो”-जेलर ने कहा।
“सर, बिजली,पंखा,कूलर के लालच में जो चला जाता है उसे ऐसा लगता है कि वह नाजी कैम्प में आ गया हो। इतनी प्रताड़ना दी जाती है सर, नाखून तो नहीं उखाड़े जाते, पर कसर छोड़ी नहीं जाती।“
“हमने तो ऐसा कोई टार्चर रुम नहीं बना रखा।“
“क्या बताऊं सर मैं कुछ दिनों के लिए वहां चला गया था, वहां का हाल देख कर तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं सर, बस एक चीज की कमी है वहां”
“बताओ, अगर तुम जाओगे तो वह भी पूरी कर देंगे”- जेलर ने कहा
“सर, आप मेरे ही पीछे क्यों पड़े है, और किसी को भेज दिजिए, मैं यहीं छोटी गोल में काम कर लुंगा।“
“तुम वहां किसी चीज की कमी बता रहे थे, और ये बातों को बार-बार दोहरा कर क्या साबित करना चाहते हो?”
“सर, वह नाजी कैंप तो है,लेकिन वहां गिलोटीन(गला काटने का यंत्र) नहीं है, बस वह भेज दीजिए तो मैं चला जाउंगा, कम से कम जरुरत पड़ने पर कुर्बानी तो दे सकुंगा।“
“अरे!इतना भयानक है क्या वहां का वातारवरण, मुझे पता ही नहीं था।“
“मत पूछिए सर, वहां जो नम्बरदार है, उसकी हंसी ही इतनी खतरनाक है कि रमेश सिप्पी को पहले मालूम होता तो शोले के गब्बर के लिए उसे ही कास्ट किया जाता। गब्बर की हंसी से भी भयानक हंसी हैं। जब वह अट्टाहस करता है तो दीवारों से चूना झड़ने लग जाता है।कैदियों की सांस रुकने लग जाती है।उसकी लाल-लाल आँखे गजब का कहर बरपाती हैं, जब वह फ़िल्मों के डायलाग बोलने लगता है तो अमरीश पूरी और प्राण की आत्मा उसमें समा जाती है, और जो भी सामने उसे हीरो समझ कर पीटने लगता है सर। मुझे वहां मत भेजिए, प्लीज्।“
“इतना अच्छा सांस्कृतिक वातावरण हमारी जेल में बना हुआ है और हमें मालूम नहीं। तुमको वहां जरुर जाना चाहिए, कुछ सीखने मिलेगा।“
“राम सिंगSSS”—जेलर ने आवाज लगाई।
“जी सर”-राम सिंग हाजिर था।
“इसे खोली नम्बर 36 में पहुंचा दो-जेल में हमें सुसंस्कारित और प्राणवान लोगों की जरुरत है, यह वहाँ से अवश्य ही जीवन विद्या में पारंगत होकर आएगा……”-जेलर ने आदेश दिया।
खोली नम्बर 36 का नाम सुनते ही वह फ़िर अपने होश खोकर, धड़ाम से फ़र्श पर गिर चु्का था।

नोट:- इस कहानी का किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।

27 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ अंदाज तो लग रहा है.....जरा रकम ढीली करता तो छोटी गोल का इन्तजाम हो सकता था.

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  2. जेल, शायद समाज का सघन और सांद्र रूप ही है.

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  3. खतरनाक दिखती है यह खोली नंबर 36 । राहुल सिंग जी से सहमत ।

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  4. ये खोली तो भाईसाहब स्कल किंगडम सी भयानक लगाती है .....

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  5. दफ़्तर का अच्छा हाल बयां किया है,
    आज के जमाने में नौकरी को बचाकर अपने वुजुद को कायम रखना कितना मुस्किल है।

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  6. लगता है जेलर साहब भी नम्बरदार के भाई-बंधू ही हैं..... ;-)

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  7. sundar rachanaa. jail ka jeevant chitran hai. badhai...barhate chalo...

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  8. सुन्दर पोस्ट...खोली नंबर ३६ से ३६ का आंकड़ा ही सही है...बहुत डर लग रहा है....
    ब्रह्मांड

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  9. बड़ा अनुभव के साथ जेल की गोल की सही दशा बखान दी अपने ललित जी . जेलों में सुविधा वाले गोलों में रहने के कैदियों को अच्छी खासी मसक्कत करना पड़ना पड़ती है . ... बहुत सही आलेख सब फिक्सिंग का मामला है ...

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  10. बहुत सही आलेख सब फिक्सिंग का मामला है ...

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  11. राधे राधे
    क्या गज़ब लिक्खे हो गुरु
    हम समझे सुभीता खोली लिखियेगा

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  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  13. जेल का भी जीवंत वर्णन ..कमाल है ...बहुत बढ़िया ..जेल में भी खोली होती हैं ? नंबर सही दिया है ३६ .

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  14. वहां जो नम्बरदार है, उसकी हंसी ही इतनी खतरनाक है कि रमेश सिप्पी को पहले मालूम होता तो शोले के गब्बर के लिए उसे ही कास्ट किया जाता।

    में तो इमेजिन ही कर रहा हूँ - ऐसे चरित्र की..... कहानी बदिया है

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  15. नम्बरदार का वर्णन पढ़ते हुए बहुत से फ़िल्मी और गैर फ़िल्मी किरदार एक के बाद एक स्मृतियों में आकर हंसने लगे ---- जेल, जेलर और नाजी शब्द पढ़कर पता नहीं क्यूँ अनायास ही "थेंक यूं मिस्टर ग्लेड" याद आ गया. बढ़िया कहानी भैया. बधाई.

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  16. निर्ममता और वीभत्सता का चित्रण बेहद दर्दनाक है।

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  17. हम तो कुछ और ही समझे थे ।
    खैर खोली नंबर ३६ का दबदबा तो खूब रहा ।

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  18. जेलर ही भेष बदल कर 36 न. की रौनक बढा कर अपनी दमित क्रूर्रता तो पूरी नहीं करता था ?

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  19. बहुत जोरदार रही खोली नंबर ३६ तो.

    रामराम

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  20. Jail ka bahut achha sachha kachha chhitha prasut kiya hai aapne... vartmaan haalaton ka sateek khaka..

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  21. अरे ऎसे काम ही मत करो जो वहां जाना पडे!

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  22. ललित भाई
    आपकी यह पोस्ट पढ़कर बहुत अच्छा लगा और कुछ पुराने मित्र याद आ गए।
    शानदार है
    यह क्यों लिखा कि इस पोस्ट का किसी से कोई संबंध नहीं है।
    अरे भाई समझने वाले समझ चुके हैं कि इसका संबंध किससे हैं.
    लगे रहिए

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