शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

स्पैम मेल की रिपोर्ट करने से दोषी को होगी सजा

स्पैम मेल एक परेशानी का सबब है, लगभग सभी ई मेल धारक इससे परेशान हैं, भारत सरकार के संचार और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री सचिन पायलट ने बताया है कि सरकार को इन्टरने्ट पर मिलने वाले स्पैम-अवांछित मेल की समस्या की जानकारी है,

यदि इसकी शिकायत की जाती है तो दोषी के खिलाफ़ कारवाई और सजा का प्रावधान है। 

राज्य सभा में इस आशय के प्रश्न का लिखित उत्तर देते हुए कहा है कि सूचना एवं प्रौद्यौगिकी अधिनियम 2000 में संशोधन कर धारा 66 क में संचार सेवाओं से स्पैम अथवा अवांछित ई मेल भेजने के लिए दंड का प्रावधान किया गया है।

यह अधिनियम पुरे भारत में लागु है और इस धारा से संबंधित मामले देश भर के पुलिस थानों में दर्ज कराए जा सकते हैं।

उत्तर में बताया गया है कि ईंटरनेट सुरक्षा के बारे में विश्वभर में लगभग 88% ईमेल ट्रैफ़िक स्पैम है।

भारत से जाने वाली वाली स्पैम ट्रैफ़िक पूरे विश्व से तैयार होने वाले कुल स्पैम ई मेल का 4% है।

व्यर्थ की ई मेल तो हमारे पास भी आती हैं, लेकिन बिना खोले ही स्पैम रिपोर्ट कर दी जाती हैं। सोशियल नेटवर्किंग साईट में सम्मिलित होने की ई मेल से अधिक परेशानी है जिसे मित्र लोग अनायास ही भेज दे्ते हैं।

एक महानु्भाव ने तो कम से कम 100 ई मेल नेटवर्किंग वेब साईट ज्वाईन करने के लिए भेजी। अंत में मुझे उनसे करबद्ध निवेदन करना पड़ा कि आप मुझे मेल ना करें।

एक महोदय चैट पर आ गए और प्रतिदिन सुबह शाम मुझसे अपनी वेब साईट ज्वाईन करने के लिए परेशान करते रहे तंग आकर मुझे उनकी चैट ही प्रतिबंधित करनी पड़ी।
 

गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

नापसंदी लालों के कारनामे

नापसंदी लालों के कारनामे ब्लागवाणी पर चल रहे हैं, कायरों की तरह नापसंद के चटके लगा रहे हैं। पीठ पीछे छुप कर वार करते हैं जयचंद की औलाद।  

पिछले कई महीनों से तमाशा जारी है, हमारा नापसंदी लालों को खुला आमंत्रण है कि आज इस पोस्ट पर खुल के जी भर नापसंद करो।

क्योंकि ऐसा ही कु्छ लिख रहा हुँ, जिसे तुम नापसंद करो। मै देखना चाहता हुँ कि तुम कहाँ तक गिर सकते हो?

अभी मेरी एक भाई से बात हो रही थी तो उन्होने कहा कि " आपका जब विरोध होना शुरु हो जाए तो समझ लो कि आप प्रसिद्ध हो रहे हैं और जलन, इर्ष्या,डाह इत्यादि भाव विरोधियों के मन में पनप रहे हैं।

क्योंकि वे आपकी लोकप्रियता से कुंठित हो रहे हैं और विरोध में आकर अपनी कुंठा निकाल रहे हैं।"

तो हे कुंठित-लुंठित मित्रों मेरा तुम्हे खुला निमंत्रण है आओ और अपनी कुंठा आज इस पोस्ट पर पुर्णरुपेण प्रकट करों।

कल के ब्लागवाणी के टॉप पोस्ट का स्क्रीन शॉट भी संलग्न है जो तुम्हारे पुरुषार्थ का गुणगान कर रहा है। स्वागत है तुम्हारा.......रहीम कवि कहते हैं

आप न काहु काम के डार पात फ़ल फ़ूल।
औरन को रोकत फ़िरे रहिमन पेड़ बबूल॥


नापसंद से नवाजी गयी पोस्टें

बुधवार, 28 अप्रैल 2010

वह राज जो मुझसे छिपाया न गया

मित्रों किसी बात को ज्यादा दिनों तक छुपाया जाए तो वह राज कहलाती है। मै भी उस वाकये को छुपाना चाहता था,जिसे महीनों से कई तहों में दफ़्न करके रखा था।

चाह कर भी ब्लाग जगत के सामने नहीं रख पा रहा था। लेकिन अब राज खोल देना चाहता हुँ,मुझसे बोझ संभलता नहीं है। इसे उतार ही देना चाहिए। चलिए वह राज आपके सामने खोल ही देता हुँ।

बात यह है कि पाबला जी एक अच्छे शुटर हैं, हमने भी बहुत शुटिंग की है लेकिन उनके सामने टिकना बहुत मुस्किल है,उनके निशाने के आगे अच्छे-अच्छे शुटर पानी भरते हैं।

उनकी एके 47 गजब का सटीक निशाना साधती है। एक बार में 10 से लेकर 20 काटरेज तक का बर्स्ट मारती है और जब मैग्जिन फ़ुल लोड हो तो क्या कहने, बस तड़ तड़ तड़..........

आगे पीछे कुछ दिखता ही नहीं है सिर्फ़ रोशनी ही रोशनी  और घायल ही घायल। एक दिन हमने उन्हे पकड़ ही लिया शुटिंग करते-करते। अब आप खुद ही देखिए उनकी शुटिंग का अंदाज, कितना बेमिसाल है।

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

कवि पति से छुटकारा पाने नीलामी

ति भी अब सम्पत्ति की तरह उपयोग में आने लगे हैं जैसे गहना, घर, फ़र्निचर, जमीन जायदाद या अन्य उपस्कर इत्यादि।

जिन्हे आर्थिक संकट के समय बेच कर या गिरवी रख कर नगद पैसे ले सकते हैं। ज्यादा परेशानी है तो नीलाम भी कर सकते हैं।

जब डॉक्टर, इंजिनियर, वकील या नौकरी पेशा पति हो तो कौन बेचना चाहेगा?

कमाऊ पति की चाहत तो सबको होती है। नाकाम पति किसे पसंद है? 

अब कवि पति को ही लें तो उसकी रचनाओं से इतनी कमाई नहीं हो पाती की घर चल सके या वह घर का खर्चा चला सके। इससे परेशान होकर आस्ट्रेलिया में रहने वाली एक महिला सोनिया सिमेंस ने अपने निठल्ले नाकाम पति को बेचने के लिए इबे नामक वेबसाईट पर विज्ञापन दे दिया है।

सोनिया अपने 35 वर्षीय कवि पति से छुटकारा पाना चाहती है, क्योंकि अपनी नाकामी के कारण उसके पति ने अपने बेटे स्पेंसर के जन्म के बाद परिवार को कोई वित्तिय सहायता नहीं दी है।

सोनिया ने अपने पति की कीमत 25,000 डालर लगाई है। सो्निया ने वेबसाईट पर दिये विज्ञापन में लिखा है कि उसका पति कविता के माध्यम से एक पैसा भी नहीं कमा सका और यही कारण है कि वह उससे छुटकारा पाना चाहती है।

अब निठल्ले कवि पतियों को सावधान हो जाना चाहिए कि उन पर यह खतरा कभी भी मंडरा सकता है, और कभी भी नीलामी का संदेश मिल सकता हैं। ये तो अच्छी खबर है कि अगर कविता ना बिक सके तो खुद तो बिक सकते हैं-अब सोचना यह है कि कवियों के लिए यह खुशखबरी है कि संकट की घड़ी। इसलिए....... सावधान.........कवियों...............

रविवार, 25 अप्रैल 2010

निर्देशक बालकृष्ण अय्यर का उम्दा नाटक: फ़ांसी के बाद

क अवास्तविक घटना "फ़ांसी के बाद" दरअसल अवास्तविक घटना इसलिए है कि एक तो ऐसा घटित होना वाकई संभव नही है, दूसरे इसलिए भी एक घटना का अवास्त रुप निर्दोष आदमी की जिन्दगी को मौत का जामा पहना देता है।

ईश्वर प्रसाद को फ़ांसी की सजा हो जाती है। उस पर आरोप है कि उसने अपनी पत्नी का गला दबा कर हत्या की है। लेकिन निर्धारित समय तक फ़ांसी के फ़ंदे में लटकाने के बाद भी ईश्वर प्रसाद जिंदा बच जाता है।

अब यहां एक अनोखी समस्या आ जाती है कि वह जिंदा तो हो जाता है पर उसकी याददास्त चली जाती है। तब दोबारा फ़ांसी पर चढाना भी एक समस्या है क्योंकि कानून के तहत जिस व्यक्ति को फ़ांसी दी जाती है,

उसे उसके अपराध के बारे में उसके होशहवास में बताना आवश्यक है कि उसे किस कारण से सजा दी जा रही है, अब इसके बाद जेल में प्रारंभ होती है ईश्वर प्रसाद की याददास्त को वापस लाने की कवायद।

तरह तरह की जुगत लगाई जाती है, उसे उसकी कहानी सुनाई जाती है, जेलर साहब समेत पूरा स्टाफ़ पुलिस द्वारा गढी गई कहानी का नाटक करके भी दिखाता है, जिसके आधार पर उसकी सजा मुकर्रर की गई थी। अंत में ईश्वर की याददास्त वापस आ जाती है,

वह पुलिस से उलट अपनी सच्ची घटना बयान करता है। जिसे सुन कर सब स्तब्ध रह जाते हैं और उसे निर्दोष मानने लगते हैं, लेकिन अदालत के आदेश का पालन करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता।

ईश्वर को पुन: फ़ांसी दी जाती है पर यह फ़ांसी अपने पीछे कई सवाल छोड़ जाती है।

यह सारांश है कल मुक्ताकाश के नीचे बैठकर मेरे द्वारा देखे गए प्ले का। एक अरसे के बाद मैने कोई प्ले देखा। इस आभासी दुनिया से बाहर निकल कर। नहीं तो यहां के प्ले भी कम नही हैं जो हम देखते हैं।

हमारे मित्र बालकृष्ण अय्यर जी एक उच्चकोटि के नाट्य निर्देशक हैं। उनके कई निमंत्रण के बाद भी किसी प्ले में दर्शक के रुप में शामिल हो पाया।

इसका आयोजन 36 गढ़ शासन के संस्कृति विभाग द्वारा किया गया था। जिसमें भिलाई के "भारतीय जन ना्ट्य संघ"इप्टा" द्वारा इसे मंचित किया गया था।

निर्देशन की कसावट और शानदार संवाद प्रस्तुतिकरण ने डे्ढ घंटे तक दर्शकों को हिलने नही दि्या।उन्हे बांधे रखा अपने कला कौशल से।

जेलर के पात्र में मणिमय मुखर्जी, पंडित के पात्र में राजेश श्रीवास्तव तथा ईश्वर के पात्र  में शरीफ़ अहमद ने अपने अभिनय से कायल कर दिया।

इस प्ले के लेखक वि्मल बंदोपाध्याय और निर्देशक पंकज मिश्रा जी हैं। उद्घोषक के रुप में बालकृष्ण अय्यर जी ने उत्कृष्ट भूमिका निभाई।

अन्य मंच सहयोगियों ने अपनी भुमिका से चार चाँद लगा दिए। प्रकाश एवं ध्वनि संयोजन भी अच्छा था।मैने इस प्ले के कुछ चित्र अपने मोबाईल से लिए हैं रात का समय था इतने तो अच्छे नहीं हैं पर काम चलाऊ हैं प्रस्तुत हैं।

 बालकृष्ण अय्यर मंच पर निर्देशन करते हुए

  प्रथम दृश्य"फ़ांसी की सजा देते हुए"

  द्वितीय दृश्य" मृत्यु से बच जाना"

  तृतीय दृश्य "पंडित का मरने का नाटक करना"

  चतुर्थ दृश्य" ईश्वर की याददास्त लौटना और सत्य घटना का बयान करना"

 अंतिम दृश्य" कानून के रक्षार्थ ईश्वर को पुन: फ़ांसी पर चढाना"

जीवन की आपा धापी से निकल कर हमें कभी-कभी स्वस्थ्य मनोरंजन भी करना चाहिए, जिससे दिल-दिमाग दुरुस्त रहे और जीवन का वास्तविक आनंद आए, नहीं तो कदम-कदम पर पचड़े हैं और हम उसी में फ़ंसे रहते हैं। "यहां तो रोज फ़ांसी होती है और हम जिंदा बच जाते हैं अगली बार फ़िर से फ़ांसी के फ़ंदे का झट्का खाने के लिए। यही नियति है"....आमीन.....

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे!!!

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

.हैप्पी ब्लोगिंग

मित्रों, ब्लोगिंग में आए हुए एक वर्ष होने को जा रहा है................ और समय भी सरकता जा रहा है............. अब समय के साथ हमारा भी सरकने का समय आ गया है........... आए थे अपनी मर्जी से और जा भी रहे हैं अपनी मर्जी से........... इसे आप यह ना समझना कि टंकी पर चढ़ गए हैं....कि.......... कोई उतारे तो उतरूं.......... यह दुनिया का शास्वत सत्य है  जो आएगा उसे जाना ही पड़ेगा............ हमारा जितने दिनों का साथ था आप लोगों के साथ........ वह पूरा हुआ.......... हमारे एक मित्र ब्लोगर ने कहा था कि........... यहाँ तो लोग आते रहते हैं और जाते रहते हैं............ उन्होंने बिलकुल सही कहा था......... उस समय हमने भी नहीं सोचा था कि जाना पड़ सकता है.......... लेकिन अब जाना पड़ ही गया.

जितने दिनों का भी साथ रहा मित्रों मैंने उसे अपने अनुभव के खजाने में जोड़ लिया.........यहाँ पर मुझे सुखद अनुभव ही मिले.......... यहाँ बहुत कुछ सीखने को मिला........ जो मेरे जीवन में आगे काम आएगा..........  मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे ब्लॉग जगत के सभी साथियों का भरपूर स्नेह मिला.......... बहुत प्यार मिला. 

हां! एक बात और .............. अगर जाने.......... अनजाने में......... भूल से भी मेरी किसी बात से किसी भी साथी को चोट पहुंची हो तो मुझे माफ़ कर देना........... क्योंकि कभी भी मेरा आशय किसी का दिल दुखाना नहीं रहा...... जो व्यवहार मुझे स्वयं को पसंद नहीं वह मैं कभी दूसरों के साथ नहीं करता.........और सबका सम्मान करना ही मेरी फितरत में हैं...........यही मुझे संस्कार में मिला है................. जिन्होंने मुझे जांचा, परखा, पहचाना और  अपना अपार स्नेह मुझे दिया उन्हें  साधुवाद......... मेरी अंतिम पोस्ट..............अलविदा ब्लोगिंग .............. हैप्पी ब्लोगिंग..........नमस्कार, सभी को प्रणाम..........


(साथ ही जिन मित्रों के चिट्ठों पर हम लेखन सहयोग करते थे, उन्हें सादर वापिस कर दिया गया है, क्षमा करे)

चिटठा जगत पर टॉप 10 की अलेक्सा रेंकिंग

आज हमने सोचा कि चिटठा जगत पर टॉप 10 की अलेक्सा रेंकिंग देखी जाये. किस चिट्ठे को ज्यादा पढ़ा जा रहा है. किस चिट्ठे पर कितनी हिट आ रही है? निम्नलिखित आंकड़े दिनाक 8 अप्रेल 2010 को 21 बजे से 21 .25 बजे के बीच लिए गए है........आप भी देखिये.......................

चिटठा जगत टॉप 10
  1. उड़न तस्तरी
  2. ताऊ डोट इन 
  3. मानसिक हलचल
  4. hindi blog tips
  5. हिंदी युग्म
  6. मोहल्ला
  7. दीपक भारतीय की शब्द पत्रिका
  8. छींटे और बौछारें
  9. लोक संघर्ष
  10. फुरसतिया
 टॉप 10 अलेक्सा रेंकिंग.............................
  1.  हिंदी युग्म...................................224,304
  2.  मानसिक हलचल..........................231,284 
  3. ताऊ डोट इन ...............................285,234 
  4. छींटे और बौछारें..........................  531,155 
  5. उड़न तस्तरी................................ 591,146 
  6.  hindi blog tips..............................711,421 
  7.  फुरसतिया................................... 1,054,012 
  8. मोहल्ला.....................................1,087,260
  9.  लोक संघर्ष................................ 2,696,775
  10.  दीपक भारतीय की शब्द पत्रिका...... 4,720,926

 अब छत्तीसगढ़ के टॉप 40 शामिल चिट्ठों की अलेक्सा रेंकिंग 
  1. धान के देश में ............................. 430,903
  2. अमीर धरती गरीब लोग................. 768,030
  3. ललित डोट कॉम........................... 777,991
  4. राजतन्त्र.................................... 1,026,568

गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

खूनी रेड हंट : ताड़मेटला

दन वाड़ा की घटना के बाद नक्सलियों दुसरी बड़ी घटना को अंजाम दे दिया। ७५ सुरक्षा बलों के जवानों का नृशंस नरसंहार किया। यह एक बहुत चिंता जनक घटना क्रम है।

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि नक्सली कितने मजबूत होते जा  रहे हैं। अब वे सरकार की कमजोरी का फ़ायदा उठा कर सुरक्षा बलों को सीधा निशाना बना रहे हैं।

दंतेवाड़ा के ताड़मेटला के जंगलों में हुई वारदात अफ़सोस जनक है। नक्सलियों का सूचना तंत्र कितना मजबुत है इस घटना से पता चल जाता है। सुरक्षा बलों के द्वारा रात्रि विश्राम गाँव में करने की सू्चना उन्हे मिल चुकी थी।

यहां पुलिस का गुप्तचर तन्त्र असफ़ल नजर आता है। विश्वसनीय मुखबिरों की कमी के कारण पुलिस तक नक्सली गतिविधियों की जानकारी नहीं पहुँच पाती. इसलिए वे नक्सलियों के जाल में फँस जाते हैं. 

सरकार की इच्छा शक्ति में कमी के कारण नित लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है. इस घटना की जितनी भी निंदा की जाए उतनी कम है. इस घटना को गंभीरता से लेना चाहिए सरकार को.

अघोषित युद्ध जैसे हालत बने हुए हैं. कभी कारगिल के युद्ध में भी हमने कहीं पढ़ा या सुना नहीं कि पूरी एक कम्पनी को ही घेर कर लाशों के ढेर लगा दिये हों. लेकिन नक्सलियों ने युद्ध से ज्यादा खतरनाक हालत पैदा कर दिये और पूरी एक कम्पनी को ही घेर कर तबाह कर दिया. 

सरकारी नाकामी के कारण इनके हौसले बढ़ते ही जा रहे है. एक तरफ सरकार इनसे बात करना चाहती है. दूसरी तरफ तथा कथित मानवाधिकार वादी अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं.

अब कहाँ है वो मानवाधिकार वादी, जब नक्सलियों ने ९१ जवानों का खून बहा दिया. अब क्यों नहीं बोल रहे हैं? 

क्यों विरोध प्रदर्शन नहीं कर रहे है? कहाँ गई उनकी मानवतावादी विचारों की टोकरी जिसे सर पर धरे हमेशा घूमते रहते हैं?

सरकार को दृढ इच्छा शक्ति के साथ काम करना पड़ेगा. जब धीरे धीरे रोज नुकसान उठाना पड़ रहा है तो एक बार पूरी ताकत से ही सही. फिर आर या पार की लड़ाई हो जाये. इस तरह जवानों को खोने की बजाये, पूरी ताकत से लड़ा जाये.

जब पंजाब से खूंखार आतंकवादियों का सफाया किया जा सकता है, श्रीलंका में संगठित लिट्टे को नेस्तनाबूत किया जा सकता है तो नक्सलवादियों का सफाया क्यों नहीं हो सकता?

क्यों इन्हें पला जा रहा है. सबसे बड़ी बात तो यह है की इस हत्याकांड के बाद सुरक्षा बलों के सारे हथियार भी ले गए हैं और उनका इस्तेमाल नक्सली सुरक्षा बालों के खिलाफ ही करेंगें. इस तरह वे अपनी ताकत बढा रहे हैं. 

प्रधान मंत्री जी कह रहे हैं कि फ़िलहाल सेना की आवश्यकता नहीं है. फ़िर कब आवश्यक्ता पड़ेगी? अभी सेना का आवश्यकता नहीं है का मतलब यह लगाया जाये कि इससे भी बड़ी घटना का इंतजार किया जा रहा है.

अभी सुबह से ही देख रहा हूँ मेरे सर के उपर से हेलीकाफ्टर मंडराते हुए आ - जा रहे हैं बस्तर की ओर. जो घायलों और शहीदों के शवों को लेकर आ रहे हैं.

इन सिपाहियों की असमय हुई विधवाओं के आंसूं किस तरह रुकेंगे. जो प्रश्न इनके आँसुओं कर रहे हैं इनका जवाब कभी मिल पायेगा इन्हे? 

मै यही सोचकर व्याकुल हूँ. बस अब समय आ गया है सरकार को चेत जाना चाहिए. अन्यथा बहुत देर हो चुकी होगी. ताड़मेटला के शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा इसी उम्मीद के साथ शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ.

केरा तबहिं न चेतिया, जब ढिंग लागी बेर।
अब चेते क्या हुआ, जब कांटन्ह लीना घेर।

(चित्र--नव भारत से साभार) 

बुधवार, 7 अप्रैल 2010

सानिया! अग्गे रब जाणे....................!

सानिया मिर्जा की शादी को लेकर बवाल मचा हुआ है. मचना भी जरुरी था, क्योंकि शादी ही ऐसी हो रही है, जिस पर पहले से ही दो देशों में शाह और मात का खेल शुरू हो गया है.

कुछ दिन पहले सुना था कि सानिया की किसी से सगाई हुई है उस समय भी बड़ा हल्ला मचा था. सगाई किसी से हुई थी और शादी किसी से तय हो गई है. यह उनका अपना व्यक्तिगत मामला है. उसका मन आये किसी से भी करे. लेकिन अबकी बार पाकिस्तानी से हो रही है इसलिए बवाल खड़ा हो गया है.

इधर दुल्हे मियां शोएब के भी सितार गर्दिश में हैं. उसने पहले ही एक निकाह कर रखा है. उनकी पहली पत्नी भी ताल ठोंक कर खड़ी हो गयी है अदालत में, जिसका सामना उसे करना पड़ रहा है. पुलिस ने उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया है.

यह एक पूर्णत: निजी मामला है लेकिन अब दो देशों की नाक का सवाल हो गया है. इससे एक बार फिर संबध ख़राब हो सकते हैं. 

मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि सानिया के साथ ऐसी क्या मज़बूरी है जो उसे शोएब से ही शादी करनी पड़ रही है. जबकि उसकी पहली पत्नी के द्वारा दिये गए सबूतों से यह साबित हो रहा है कि वह पूर्व में एक शादी कर चूका है. उसकी पूर्व पत्नी आयशा ने सारे सबूत पुलिस को सौंप दिये हैं.

अब एक बात और खुल कर सामने आई है कि शोएब अपनी पहली पत्नी आयशा से वजन कम करने के लिए कहता था. उसके परिवार वालों ने वजन कम करने के लिए आएशा का एक आपरेशन भी बेंगलूर में करवाया था. इतने सारे सबूत हैं उसके पहले निकाह के.

लो जी अब पता चल ही गया कि शोएब ने पहले निकाह से क्यों मुंह मोड़ लिया?

पहली बीबी को क्यों छोड़ दिया?

सारा मामला ओवर वेट का है। अब इस शादी के बाद भी इधर वेट बढा और शोएब फ़िर नई दुल्हन की तलाश में निकल पड़ेंगे। इसकी क्या गारन्टी है कि सानिया का वेट नही बढेगा?

अरे भाई जब कद बढता है तो वेट भी बढ ही जाता है. लेकिन इतना जानने के बाद सानिया का शोएब पर विश्वास करना और उससे शादी करना  हमें तो जमा नहीं...

अब किसी के व्यक्तिगत मामले में हम क्यों बोले इसलिए चुप रहना ही ठीक समझा है................. सानिया! अग्गे रब जाने, की होऊगा तुहाडा? ......

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

प्रख्यात चि्त्रकार डॉ डी. डी.सोनी से साक्षात्कार

मित्रों गत सप्ताह मैने प्रख्यात चित्रकार डॉ डी डी सोनी के साक्षात्कार का प्रथम भाग प्रस्तुत किया था। आज उसी कड़ी को आगे बढाते हुए चलते हैं और उनसे कुछ प्रश्नों के जवाब लेते है।

ललित.कॉम:-अभी भारत में चित्र कला को लेकर विवाद काफ़ी गहराता जा रहा है। प्रख्यात चि्त्रकार एम एफ़ हुसैन ने हिंदु देवी देवताओं का नग्न चित्रण किया है तथा उनके एक चित्र में भारत के मानचित्र को एक नग्न महिला का रुप दिया गया है। क्या इस तरह की चित्रकारी सही है? मैं आपका मंतव्य जानना चाहता हूँ। 

डॉ.डी.डी.सोनी:- मकबुल फ़िदा हुसैन साहब के साथ मैने काम किया है, जब ग्वालियर मेला भरता था, तब मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला है, निश्चित तौर पर वे महान चित्रकार हैं, आज वे बहुत ही उंचे मुकाम पर हैं, मै उन्हे नमन करता हुँ। जब चित्रकार चित्रांकन करता है तो वह किसी जाति धर्म या पंथ से जुड़ा हुआ नही होता, वह सिर्फ़ एक कलाकार है, अपना सृजन करता है। चुंकि वे मुसलमान हैं इसलिए बात ज्यादा उठी, लेकिन इसे कम किया जा सकता या इसे इतना उभारना नही चाहिए था। इसमें संशय है कि क्या यह काम जानबुझ कर किया गया? अगर जानबुझ कर किया गया तो गलत है, कलाकार को स्वतंत्रता होती है पर ये स्वतंत्रता नही होती कि किसी के आराध्य देव की पेंटिंग्स में न्युड बनाया जाए।

ललित.कॉम:-मनुष्य के जीवन में कई पड़ाव आते हैं,रंग जीवन में अद्भुत छटा बिखेरते हैं, जो दृश्य हम देखते हैं उसे अपने काम का विषय बनाते हैं किसी ने कहा है कि--चित्रकार कवि चोर की गति है एक समान, दिल की चोरी चित्रकार कवि करे लुटे चोर मकान", तो कभी आपने किसी का दिल चुराया या किसी ने आप पर अपना दिल न्योछावर किया? ये बताएं?

डॉ.डी.डी.सोनी:- ऐसी घटनाएं कलाकारों के साथ घटित आम बात है, कोई हमारा काम देखकर आनंदित हो जाता है, स्टेज पर आकर गले लग जाता है, कोई चूम ले्ता है, कोई उत्साहित होकर कंधों पर उठा लेता है, तो सोचना पड़ता है कि ईश्वर की हम पर विशेष कृपा रही है, कई बार तो मेरी पत्नी के सामने ही ऐसी घटनाएं हो गयी हैं लेकिन समझदार पत्नी मिलने के कारण गृहस्थी बनी रही। चाहे किसी भी क्षेत्र का कलाकार हो, उसके लिए यह सब साधारण सी बातें हैं।

ललित.कॉम:- मैं एक बात पुछना भुल रहा था कि हुसैन साहब की पेंटिंग्स में घोड़े बहुत दौड़ते हैं, मैने फ़्रायड का मनोविज्ञान भी पढा है, वे इस पर अपना दृष्टिकोण रखते हैं। लेकिन हुसैन साहब घोड़ों के रुप में क्या प्रदर्शित करना चाहते हैं? इस विषय पर कुछ प्रकाश डालें।

डॉ.डी.डी.सोनी:- चित्रकारी के प्रारंभिक दिनों में मुझे इसकी समझ नही थी, लेकिन जैसे जैसे चित्रकारी में डूबता गया तो सब समझ आने लगा। इस विषय पर मै हसैन साहब की तारीफ़ करुंगा कि उन्होंने चित्रकारी में घोड़ों का प्रयोग किया। पावर शेर, चीते, लैपर्ड,गेंडे तथा अन्य जानवरों में भी होता है। लेकिन वह हिंसा के लिए होता है। घोड़ा एक समझदार और खुबसूरत जानवर है, जो अपने पावर का उपयोग बड़ी खु्बसुरती से करता है, इसके नाम से बल का नामकरण हार्स पावर कि्या गया। यह संतुलित रचनात्मक शक्ति का प्रतीक है। यह सेक्स का सबसे बड़ा खुबसूरत प्रतीक है, धनवान हो, निर्धन हो या विद्वान हो, अगर उसमें सेक्स पावर नही है तो अपनी ही निगाहों से गिर जाता है। इसीलिए हम सेक्स पावर को दिखाने लिए खु्बसूरती से घो्ड़ों का उपयोग करते हैं। हुसैन साहब ने घोड़ों के रुप में एक बहुत ही अच्छा माध्यम चु्ना पेंटिंग के लिए सेक्स पावर को प्रदर्शित करने के लिए।

ललित.कॉम:-आपके जीवन में कोई ऐसी घटना घटी हो जो आपको आज तक गुदगुदाती हो या चेहरे पर हंसी लाती हो। यदि ऐसा कुछ संस्मरण है तो बताएं

डॉ.डी.डी.सोनी:-यह घटना भी हमारे हार्स पावर से जुड़ी हुई है हमारे मामाजी दुकान करते थे और बाजारों में जाकर सामान बेचते थे। एक दिन उन्होनें मुझे कहा कि आज तुमको घोड़े पर बैठ जाओ मैं मोटर सायकिल से आ जाउंगा। पहाड़ी पगडंडी थी जिस पर हमें जाना था, मुझे घोड़े पर बैठा दिया गया और हम चल पड़े, रास्ते में बहुत से लोग बाजार जाते हुए मिले कुछ लड़कियाँ भी बाजार जा रही थी। मेरे को चिल्ला रही थी मुन्ना ओ मुन्ना तुम अकेले ही घोड़े पर जा रहे हो, तभी अचानक ही सामने गड्ढा आया और उसमें घोड़े का पैर धंस गया। जैसे ही घो्ड़े का पैर धंसा, मेरी तो समझ में नही आया क्या हुआ लेकिन मैं घो्ड़े के उपर से उछल कर उसके सामने जा खड़ा हुआ। लोगों की भीड़ लग चुकी घोडा चोटिल हो गया था. उसके पैर को खींच कर निकाला गया. उससे खून निकल रहा था. मैंने एक मिटटी लगा कर उसे बाँधा और दुकान में पहुंचा. मेरे पहुँचने से पहले ही खबर लग गई थी. मेरी बहादुरी के किस्से पहुँच चुके थे कि क्या तुम्हारे भानजे ने घोड़े पर से छलांग लगाई है कि मत पूछो? जब कि मुझे मालूम है कि सब कुछ स्वत: घट गया था. उस दिन मामाजी ने भी शाबाशी दी कि दुर्घटना होने के बाद कीमती समान को घोड़े के साथ लेकर आ गया. उस दिन मुझे लगा कि मैं हीरो बन गया हूँ. इस घटना की याद आते ही आज भी मन प्रसन्न हो जाता है.

ललित.कॉम:- शायद इसे ही कहते हैं "हपट परे तो हर-हर गंगे", हा हा हा.......वर्तमान समय में हम देख रहे हैं कि चित्रकारी पर संकट मंडरा रहा है. हाई रेजुलेशन कैमरे आ चुके हैं उन कैमरों के चित्रों की प्रदर्शनी लगती है. पहले फिल्मों के पोस्टर, बैनर, दुकानों के साइन बोर्ड, विज्ञापन के बोर्ड इत्यादि बना करते थे इनसे चित्रकारों को रोजगार मिल जाता था जीविकोपार्जन के लिए. अब यह काम कंप्यूटर से होने लगे, फ्लेक्स बनाने लगे. यह काम चित्रकारों के हाथ से निकल गया. मैंने पुरे भारत का दुआर किया और जाना कि जो हमारे चित्रकार हैं उनके सामने अब रोजगार कि समस्या खड़ी हुयी है. इन विषम परिस्थियों में आप चित्रकारी का क्या भविष्य देखते हैं? आगे चित्रकारी से रोजगार मिल सकता है या इसके सामने और भी भीषण संकट आ सकता है?

डॉ.डी.डी.सोनी:- इस विषय पर मेरे विचार बहुत खुले हैं, मैं आपको बताता हूँ कि कोई भी व्यक्ति, बच्चा या चित्रकार मिले जिसमे ईश्वर प्रदत्त कुछ हुनर दिख रहा है, चाहे चित्रकार, शिल्पकार, मूर्तिकार, नाट्यकार, कवि, रंग मंच कलाकार हो इन्हें सबसे पहले अपनी माली हालत देखनी चाहिए कि उसके परिवार कि माली हालत क्या है? उसका परिवार उसे कितना संरक्षण दे सकता है. कितना उसका खर्च उठा सकता है?

अगर माली हालत ठीक नहीं है तो पहले अपने शिक्षा को बढाएं फिर रोजगार की व्यवस्था करें. अगर आप ये दोनों काम नहीं करते हैं तो आगे जाकर फेल हो जायेंगे, मैं ऐसा मानता हूँ. ये सच्चाई है.कम से कम ६ सात घंटे काम करके कुछ कमाए जिससे घर की परिस्थिति ठीक हो, आर्ट की शिक्षा लें, फिर स्टेज पर बोलने की क्षमता विकसित करें, जनता के बीच में काम करने की क्षमता विकसित करें. मूड में तो काम करने वाले बहुत मिलते हैं. अगर आपको आगे बढ़ाना है तो डिमांड पर काम करना भी आना चाहिए. अगर डिमांड पर काम करते हैं तो मान के चलो आपी के सफलता के ९९% चांस हैं. दुनिया में चैलेन्ज तो हर वक्त बना रहता है. कल जब आपने ब्रश उठाई थी तब भी चैंलेंज था आज आपके पास सौ पेंटिग है तब भी चैलेन्ज है. स्क्रीन प्रिंटिंग आया तब भी चैलेन्ज था.फ्लेक्स आया तब भी चैलेन्ज है और आगे माइक्रो में जो फोटोग्राफी आ रही है वह भी एक चैलेन्ज है. आपको चैलेन्ज स्वीकार कर अपनी पेंटिंग बनानी पड़ेगी. दुनिया में हाथ की बनायीं पेंटिंग का काम ख़त्म हो जाए ऐसा नहीं है. हमेशा एक वर्ग ऐसा आएगा जो हाथ की बनी पेंटिंग को आगे बढ़ाएगा. कम्प्यूटर से बनाने वाले हमें पीछे नहीं कर रहे हैं. वे लोग अपनी लाइन को आगे बढा रहे हैं. आप चित्रकार हो तो अपनी लाइन को आगे बढाओ. हाथ से हुआ सृजन माँ के हाथ रोटी की तरह है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता, चाहे पिज्जा बर्गर और अन्य खाद्य पदार्थ कितने भी आ जाएँ पर माँ के हाथ के खाने की बराबरी नहीं कर सकते.

ललित.कॉम:- कभी मेरे साथ होता है कि मेरे मन में कोई विचार आते हैं और वे एक चित्र का रूप लेना चाहते हैं. लेकिन उपयुक्त स्थान की कमी या समय की कमी के कारण मैं उसे मूर्त रूप नहीं दे पाता. मन तो करता है कि रंग और ब्रश उठों और कैन्वाश पर उतर दूँ. अगर नहीं उतार पाता तो मैं बहुत व्याकुल रहता हूँ. यही व्याकुलता मैंने बहुत से चित्रकारों, कलाकारों में देखी है. जो मेरे साथ घटता है, क्या यही व्याकुलता ही आगे बढ़ाने में मदद करती है?

डॉ.डी.डी.सोनी:- बिलकुल यह बात वैसी ही है जब माँ अपने बच्चे को जन्म देने के लिए प्रसव पीड़ा से गुजरती है. चित्रकार भी ऐसे ही होता है, जब उसके दिमाग में कोई विचार आते हैं, जो इन विचारों को पेश कर जाते हैं वही चित्रकार के रूप में ख्यति प्राप्त करते हैं. यही सृजन की प्रक्रिया है.

ललित.कॉम:- हमारी यह भेंट अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी है. मेरा आपसे आग्रह है कि नवोदित चित्रकारों के लिए एक सन्देश आप दें तो उन्हें मार्गदर्शन प्राप्त होगा.

डॉ.डी.डी.सोनी:- मनुष्य जो भी अपनी आँखों से देखता है उसकी एक इमेज अपने दिमाग में बना लेता है. अब अभिव्यक्ति के लिए आपको जो भी माध्यम अच्छा लगता है उसमे पूरी शक्ति, लगन और श्रद्धा के साथ जुट जाएँ और यह सोच लें कि सुनहरा भविष्य आपके ही हाथ में होगा.आप दूसरों से अच्छा काम कर पाएंगे, अब रहा सवाल सफल और असफल होने का तो सबसे पहले आपको अपनी दिशा और मंजिल तय करनी पड़ेगी. इसलिए अपनी सम्पूर्ण शक्ति का संचय करके इस कला के क्षेत्र में कदम रखे. अवश्य ही सफलता आपके कदम चूमेगी.

ललित.कॉम :- प्रज्ञावानं लभते ज्ञानं, श्रद्धावानं लभते ज्ञानं, जिसके पास प्रज्ञा और श्रद्धा हो्गी, वह अवश्य ही अपने कला कौशल से सुर्य की तरह प्रकाशवान होगा तथा उन्नति और सफलता उसके कदम चूमेगी. आज हमने डॉ. डी.डी.सोनी से एक अनौपचारिक बात चीत करके उनके सफल चित्रकारिक जीवन के विषय में जाना, मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ. उन्होंने बहुत ही सारगर्भित शब्दों के साथ हमें जानकारी दी. उनका आभार प्रकट करता हूँ.

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

एक SMS, जिसे मैने आपके साथ बांटना जरुरी समझा

मित्रों एक SMS मुझे मिला, तो मैने सोचा की इस जानकारी को आपके साथ बांटा जाए।
इसी उद्देश्य से मैं इसे जस का तस आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।

एक लोकसभा सांसद की तनख्वाह 42,000
आफ़िस खर्च 14,000
सांसद हास्टल मुफ़्त
बिजली 5000 युनिट मुफ़्त
टेलीफ़ोन की 1,70,000 काल मुफ़्त
ट्रेन टिकिट मुफ़्त में
दिल्ली हवाई यात्रा मुफ़्त में
सालाना कुल खर्च लगभग 32लाख
5साल में 1करोड़ 60 लाख
543सांसद 855करोड़
इस तरह हमारे टैक्स की 
गाढ़ी कमाई को निगल रहे है।
एक सजग भारतीय नागरिक होने के नाते 
हमको इसकी जानकारी होनी चाहिए
जिससे इनकी करतूतों पर रोक लग सके।

रविवार, 4 अप्रैल 2010

डॉ डी.डी.सोनी ने एक मिनट में बनाया मेरा रेखा चित्र

मित्रों मैने आपसे प्रख्यात चित्रकार डॉ डी.डी.सोनी जी का अधुरा साक्षात्कार करवाया था एक भेंट के दौरान, हमारी उनसे चित्रकला पर काफ़ी चर्चाएं होती हैं।

अभी उनका साक्षात्कार प्रकाशित होना बाकी है। एक दिन उन्हो्ने मेरा चित्र बनाया,वह भी एक मिनट में और मुझे चकित कर दिया,

रविवारीय संस्करण में प्रस्तुत है, डॉ डी.डी.सोनी जी द्वारा बनाया गया चित्र, हम इनकी कला को प्रणाम करते हैं।

डॉ.डी.डी.सोनी मेरा चित्र बनाते हुए



डॉ.डी.डी.सोनी द्वारा एक मिनट में बनाया गया मेरा चित्र
 

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

हिन्दी भाषा कब बनेगी भारत भाल की बिन्दी

ह विदित है कि हमारी मातृभाषा हिन्दी है, सभी जानते हैं लेकिन कुछ नही मानते। भारत की आम सम्पर्क भाषा हिन्दी ही है। सरकारी कार्यालयों में काम काज अभी भी अंग्रेजी में होता है। क्योंकि अंग्रेजी पढे लिखे समझदार लोगों एवं अभिजात्य वर्ग की भाषा है। जो अंग्रेजी में बात करता है वह बहुत ही पढा लि्खा समझा जाता है।

अंग्रेजी में की गई गिटपिट उसे आम आदमी से अलग बनाती है। गोरे अंग्रेज चले गए लेकिन काले अंग्रेज बना गए। जो अभी तक अंग्रेजी को सर पर ढोए चले जा रहे हैं। मेरा अंग्रेजी से कोई बैर नहीं है, आज यह विश्व की सम्पर्क भाषा के रुप में काम कर रही है।

पिछले दिनों चीन में हुए ऑलम्पिक के दौरान चीनियों को भी अंग्रेजी सीखनी पड़ी थी। लेकिन मेरा यह कहना है कि भारत में तो हिन्दी का प्रयोग होना चाहिए।

जब मै दक्षिण भारत जाता हुँ तो वहाँ हिन्दी भाषी को बहुत ही कठिनाई का सामना करना पड़ता है। कोई हिन्दी बोलने को तैयार ही नही है। कई अधिकारी मैने ऐसे देखे जो सेवानिवृत्त हो गए लेकिन उन्हे हिन्दी सीखने की कभी कोशिश ही नही की।

बिना हिन्दी बोले ही उन्होने अपनी सेवा पूरी कर ली। आजादी के 62 वर्षों के बाद भी हम हिन्दी को सर्वग्राह्य और सर्वमान्य भाषा के रुप में स्थापित नही कर पाए। ये कैसी विडम्बना है कि भारत में ही हिन्दी दोयम दर्जे की भाषा बनी हुयी  है। 

भारत विविधताओं से भरा देश हैं। यहां के लोगों की मातृ भाषा (माँ बोली) अलग हो सकती है लेकिन सम्पर्क भाषा के रुप में हिन्दी को भी अपना स्थान मिलना चाहिए। क्योंकि मातृ भाषा का सीधा सम्बंध जीवन से है।

मातृभाषा से ही व्यक्ति अपने विचारों का संप्रेषण कर सकता है। अपनी बात कह और समझ सकता है। लेकिन दैनिक जीवन में हम विदेशी भाषा का उपयोग कर अपने आप को समाज में प्रतिष्ठित करने में लगे हुए हैं।

हिन्दी भाषा में अंग्रेजी के शब्दों का जबरन प्रयोग कर अपने को शिक्षित बताने का प्रयास करते हैं, इसी प्रक्रिया में कभी-कभी उपहास का भी पात्र बनना पड़ता है।
हमारे एक मित्र हैं जो अंग्रेजी उनके सामने बोलते हैं जिनको बेचारों को अंग्रेजी नही आती। मसलन किसान, मजदुर, देहाती गंवई गांव के लोग । जब उनके सामने अंग्रेजी बोलते हैं तो वे बेचारे उनके मुंह को ताकते रहते रहते है कि गुरुजी बहुत पढा लि्खा है। इन पर मित्र का रुवाब चल ही जाता है।

लेकिन एक बार लंदन से कोई एन जी ओ गांव में आया तो मुझे भी बुलाया गया। तब पता चला कि गुरुजी की अंग्रेजी कितनी शुद्ध है?

भई थोड़ी बहुत तो हमारे को भी समझ में आती है। उस दिन उनकी पोल खुली कि सारी अंग्रेजी ही गलत बोलते हैं।

ऐसे कई उदाहरण सामने आते हैं। एक दिन मैने उनसे कहा कि भैया क्या हिन्दी बोलने में शर्म आती है? जहां जरुरत हो वहां तो कम से कम हिंदी बोल लिए करो।

ऐसा नही है कि सरकार हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए कुछ नही कर रही है। प्रतिवर्ष सरकारी खर्चों पर विदेशों में हिन्दी भाषा प्रचार सम्मेलन रखे जाते हैं। जिसमें कुछ चाटुकार किस्म के तथाकथित हिन्दी विद्वान अपनी उपस्थिति सरकारी खर्च पर देते रहते हैं। बस वही शक्ल हर जगह देखने मिल जाती है।

हिन्दी के मानस पुत्र जो माने जाते हैं और जो बेचारे कलम घिस घिस के हिन्दी की सेवा कर रहे हैं उन्हे कोई सेवक मानने को तैयार ही नही है।

कुछ हमारे साहित्यकार तो एकदम सरकारी साहित्यकार हैं जब भी कोई सरकारी सरकारी कार्यक्रम होता है वही गिनी चुनी मूर्तियां नजर आती हैं। अगर कोई नए लोग चले जाते हैं तो पुछने को ही राजी नही कि भैया तुम कौन हो? पुछ देंगे तो कु्र्सी खाली करनी पड़ेगी।

जब तक हम कटिबद्ध होकर निस्वार्थ भाव से हिन्दी की सेवा के लिए पुरे समर्पण के साथ आगे नहीं आएंगे तब तक हिन्दी का यही हाल रहेगा।

अब तथाकथित हिन्दी दां लोगों से मुक्ति पाने का समय आ गया है। नए लोगों को आगे आना चाहिए। लेकि्न चाटुकारिता और गोड़ लागी, पाय लागी इस हद तक हो गयी है कि इससे मुक्त होना असम्भव तो नहीं पर कठिन जरुरी है।

हिन्दी को आगे बढाने प्रयास होते रहने चाहिए, मार्ग अवश्य ही कंटकाकीर्ण है लेकिन ईमानदारी से किया गया प्रयास अवश्य ही सफ़ल होगा, ऐसा मेरा मानना है।

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

अल्पना जी के हुनर को सबने सैल्युट किया-

पको हमने कुछ दिन पहले अल्पना देशपांडे जी के शौक एवं हुनर से परिचय करवाया था, उनकी प्रदर्शनी को बहुत ही अच्छा प्रतिसाद मिला, हजारों लोगों ने देखा और सराहा। मीडिया ने भी इसे हाथों हाथ लिया। समाचार पत्रों ने भी प्रमुखता से स्थान दिया। ऐसे जुनुनी व्यक्तित्व का हम उत्साह वर्धन करते हैं। प्रस्तुत है कुछ समाचार पत्रों की झलकियाँ----- पढने के लिए फ़ोटो पर चटका लगाएं।  

 

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

इस पोस्ट का 1 अप्रेल से कोई संबंध नही है

मित्रों आज फ़ूल दिवस है तथा फ़ूल बनाने का काम कल अर्धरात्रि से जारी है। हम भी एक दो जगह जाकर झांसे में आ गए, लेकिन आपसे निवेदन है कि आप झांसे में मत आना। ब्लाग जगत इस अप्रेल फ़ूल दिवस को धुमधाम से मना रहा है, एक जगह पर कुछ विशेष योजना चल रही है फ़ूल बनाने की। अब देखिए कि गोभी का फ़ूल बनाए बनाया जा रहा है कि कोरा फ़ूल बनाया जा रहा है। एक जगह पर आपके लिए बहुत सारी सौगातें लेकर आए हैं। आप उन्हे ग्रहण करें और फ़ूल दिवस का आनंद ले। इसी अवसर पर आपके लिए प्रस्तुत है एक सुंदर सी हास्य व्यंग्य की कविता-------एवं व्यंग्य आलेख