बुंदेलखंड के दो प्राचीन नगर हैं, ओरछा एवं गढकुंढार। गढ कुंढार तो नहीं देख सके पर गत वर्ष पहाड़ों से लौटते हुए ओरछा जाना हुआ और इस वर्ष भी पहाड़ों से लौटते हुए ओरछा पहुंच गए। वैसे तो ओरछा का इतिहास 8 वीं सदी से प्रारंभ होता है, परन्तु यहां रौनक बुंदेलाओं के कार्यकाल में आई एवं बुंदेलाओं ने भव्य निर्माण कार्य करवाए।
निर्माण कार्यों में जहाँगीर महल, राज महल, राम राजा मंदिर, रायप्रवीण महल, लक्ष्मीनारायण मंदिर, फ़ुल बाग, पालकी महल, सावन भादो, चतुर्भुज मन्दिर प्रमुख हैं। इसके साथ ही राजाओं की भव्य छतरियाँ (मृतक स्मारक) आकर्षक हैं। बेतवा नदी के तट पर बनी यह छतरियाँ भव्य दिखाई देती हैं। कहा जा सकता है कि ओरछा नगर की पहचान हैं।
वर्तमान में ओरछा एक बड़ा पर्यटन केन्द्र बनता जा रहा है। यहाँ पांच सितार स्तर के कई होटल एवं रिसोर्ट बन चुके हैं। इससे साबित होता है कि पर्यटकों की आवा जाही अच्छी है।
झांसी रेल्वे स्टेशन के समीप होने का लाभ भी इस स्थान को मिला। जिसके कारण झांसी पहुंचने वाले पर्यटक पहले ओरछा आते और फ़िर खजुराहो की ओर निकल जाते हैं, इस बीच झांसी छूट जाता है। मेरे साथ भी यही हुआ और झांसी छूट गया।
वर्तमान में ओरछा छोटा सा नगर है, जिसमें लोगों का पता मंदिर के आगे और पीछे लिखने से चिट्ठी पहुंच जाती है, बुंदेलाओं के समय में इसकी चमक चरम सीमा पर थी। बुंदेलाओं का राज1783 में खत्म होने के साथ ही ओरछा की कीर्ति एवं चमक घने जंगलों में खो गई। यह पुन: स्वतंत्रता संग्राम के समय सुर्खियों में आया जब स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद यहां के एक गांव में आकर छिपे थे।
गत वर्ष ओरछा को मैने अपने कैमरे की आँख से देखा था। कुछ चित्र लिए थे, इस नगरी के श्वेत श्याम चित्र आपको पसंद आएंगे क्योंकि श्वेत श्याम चित्रों का अपना अलग ही आनंद है। इस यात्रा में मेरे सूत्रधार मुकेश पाण्डेय जी Chandan बने। उनके साथ ही ओरछा भ्रमण संभव हुआ। अगर आज कहा जाए तो वे ओरछा के पुरातत्व एवं इतिहास के अच्छे जानकार हैं।
ललित जी नमस्कार, ललित जी आपकी पुस्तक पग पग शनिचर चाहिए, कैसे मिल सकती हैं?
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन मिर्जा ग़ालिब और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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