पूस का महिना प्रारंभ हो चुका। पहाड़ी क्षेत्र की बर्फ़बारी होने लगी और बर्फ़ीली हवाएँ मैदानों की तरफ़ रुख करने लगी हैं। मने की ठंड जोरों पर शुरु हो गई है। गाँव में घर पक्के दिखाई देने लगे हैं, पर सभी नहीं। पक्के घर शीतल हवा को रोकने में सक्षम हैं। द्वार और रोशनदान बंद कर दो तो एक कंबल ठंड रोकने के लिए काफ़ी है। पर फ़ूस के घर में कथरी गोदरी और रजाई की जरुरत पड़ जाती है।
घर बनाने के लिए जहाँ जो संसाधन उपलबध होता है उससे बना लिया जाता है। कहीं दीवारें मिट्टी की होती हैं और छत फ़ूस की तो कहीं दीवारें बांस की खपच्चियों की होती हैं और छत फ़ूस की। दीवारों के दोनो तरफ़ लिपाई चिकनी मिट्टी से करनी पड़ती है, जिससे कीड़ा कांटा और ठंडी गर्म हवा प्रवेश न करे। छानी के लिए डाला गया फ़ूस तीनों मौसम में साथ निभा देता है, पर दो चार बरस में उसकी देखभाल करनी पड़ती है।
अरुणाचल असम के तराई के इलाकों में बांस बहुत ही अच्छी गुणवत्ता के पाए जाते हैं, जो मोटे होते हैं और गांठे सीधी होती हैं, इनका प्रयोग लकड़ी के स्थान पर धड़ल्ले से होता है। मकान बनाने का तरीका भी सरल ही है। पहले बांस के पायों पर जमीन से चार पांच फ़ुट ऊपर प्लेटफ़ार्म बना लिया जाता है, फ़िर उस पर बांस के खंभे खड़े करके छत बांध ली जाती है। परछी जरा लम्बी होती है तथा छत की अधिक ढलान वर्षा रोकने के बनाई जाती है।
मकान के कई भाग होते हैं, जिनमें जलाऊ लड़की से लेकर मवेशियों के लिए स्थान होता है। परछी के बाद एक लम्बा हॉल और उसके पीछे एक छोटा कमरा एक परिवार के गुजर बसर के लिए मुफ़ीद होता है। मकान के नीचे खाली जगह में जलाऊ लकड़ियाँ और मवेशी स्थान पाते हैं और ऊपर मनुष्य रहते हैं।
कपड़े रखने के लिए बांस की अरगनी होती हैं। जिसमें कपड़े टाँग दिए जाते हैं। हॉल में ही एक स्थान पर चूल्हे बना होता है जिस पर भोजन बनाकर सभी एक स्थान पर ही बैठकर भोजन करते हैं और चूल्हे के ऊपर धुंआ देकर संरक्षित करने के लिए मांस लटका दिया जाता है। चूल्हा मध्य में बना होने के कारण घर में ताप बना रहता है जिसे रोकने का काम फ़ूस की छत करती है। बांस का उपयोग अधिक होने के कारण कम खर्च में घर बनकर तैयार हो जाता है एवं बांस का भी उपयोग हो जाता है।
हरियाली के बीच ये घर बहुत सुंदर दिखाई देते हैं। जंगली केले के गाछ हर जगह दिखाई देते हैं। हमने देखा कि इस समय केले में फ़ूल फ़ूट रहे थे जो केले फ़रने की प्रारंभिक अवस्था है। पथिक को अगर परदेश में ऐसी शरण स्थली मिल जाए तो किसी स्वर्ग से कम नहीं है। पूस के महीने में ठंड में सिर छिपाने के लिए फ़ूस की छत, खाने के लिए भात और तेंगामाछ, पीने के लिए ओपोंग और सुतने के लिए कोदो पैरा का गद्दा, ओढने के लिए कथरी तो सारे जहान की दौलत वारी जा सकती है। पर अरुणाचली #दाव से बचके। 😃
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें