हाथियों ने अब राजधानी का रास्ता देख लिया गजदल दो बार राजधानी रायपुर के समीप पहुंच चुका है, यह हाथियों एवं मानवों दोनों के लिए शुभ संकेत नहीं है। हालिया तौर पर हाथियों को वन विभाग ने जंगल की ओर खदेड़ दिया, परन्तु जो रास्ता हाथियों ने देख लिया है, उस पर वे फ़िर लौटेंगे। अभी तक तो सरगुजा अंचल, जशपुर, कोरबा एवं सिरपुर क्षेत्र के ग्रामीण हाथियों के उत्पात से परेशान हैं तथा हाथी एवं मानव संघर्ष में एक दूसरे को जान गंवानी पड़ रही है। अब यही स्थिति राजधानी रायपुर में भी बनने के आसार दिख रहे हैं।
फ़ोटो सांकेतिक है, यह मेरे द्वारा राजा जी पार्क हरिद्वार के चिल्ला रेंज में ली गई थी |
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पश्चात हाथियों की समस्या के निदान के लिए तत्कालीन अजीत जोगी सरकार ने असम से हाथी प्रशिक्षक पार्वती बरुआ को छत्तीसगढ बुलाया था, जिसके द्वारा हाथियों को साधकर हाथियों एवं मानव के बीच संघर्ष को कम किया जाता। परन्तु इस कार्य में एक हाथी मौत के कारण विधानसभा में प्रश्न उठने के बाद इस कार्य को बंद कर दिया गया। हाथियों के हमले से आम ग्रामीणों की जान लगातार जा रही तथा इस संघर्ष में कोई कमी नहीं आई है। फ़सलों का नुकसान को आम बात है, पर हाथियों के दल के सामने अचानक कोई मनुष्य पड़ जाता है तो उसे हाथी पटक कर मार डालते हैं।
ऐसा नहीं है कि हाथियों के दल कहीं दूसरे स्थान से अचानक छत्तीसगढ़ में प्रवेश कर गए और उत्पात मचा रहे हैं। यहाँ इनकी बसाहट प्राचीनकाल से ही रही है। सरगुजा अंचल के हाथियों को ऐरावत के सदृश उत्तम माना गया है। पहले के राजा महाराजा इन्हें प्रशिक्षित करके अपने काम में लेते थे तथा अन्य राजाओं को भी भेंट करने के उल्लेख मिलते हैं। हाथियों एवं मानव के बीच संघर्ष तो तब भी आमना सामना होने पर रहा होगा, पर इस हद तक नहीं क्योंकि उनके पर्यावास क्षेत्र में मानव का कोई सीधा दखल नहीं था, वे स्वच्छंद विचरण करते थे। कालांतर में मानव द्वारा हाथियों के पर्यावास क्षेत्र को नुकसान पहुंचाने के परिणाम को ही अब भुगतना पड़ रहा है।
अभी तक हाथी और मानव संघर्ष के कारण राजधानी से दूर सरगुजा, प्रतापपुर, सूरजपुर, जशपुर, कोरबा, बार नवापारा क्षेत्र से से ही धन-जन हानि के समाचार आते थे। तब राजधानी के लोगों को पता नहीं चलता था कि हाथियों की समस्या क्या है और हाथी प्रभावित अंचल के लोग किस तरह भय के वातावरण में अपनी राज गुजारते हैं, किस तरह उनकी फ़सल को हाथी नुकसान पहुंचाते हैं, किस तरह उनके घर फ़ोड़ कर बेघर कर डालते हैं। अब हाथियों ने राजधानी के समीप अपनी आमद दे दी तो उनके पहुंचने की धमक ही होश उड़ाने के लिए काफ़ी है।
हाथियों का शहरी क्षेत्र में पहुंचना अनायास नहीं है। इसके लिए मानव ही जिम्मेदार है। सरकारों की अदूरदर्शी नीतियों के कारण अंधाधुंध कटते जंगल एवं खनिज निकालने के लिए खदानें खुलने के कारण हाथियों के प्राकृतिक रहवास क्षेत्र के साथ छेड़छाड़ जिम्मेदार है। जंगल कटने एवं जल के प्राकृतिक स्रोत सूखने के कारण हाथियों के सामने भोजन पानी की समस्या खड़ी हो गई है तथा हाथियों के रहवास क्षेत्र में मानवीय दखल बढ़ने एवं उसके नष्ट होने के कारण अब हाथियों को भोजन-पानी के लिए शहरी क्षेत्र की ओर रुख करना पड़ रहा था। जिससे हाथी एवं मानव के बीच संघर्ष का खतरा बढ़ रहा है।
राजधानी के आस पास हाथियों के पहुंचने की आशंका साल भर पहले से ही जताई जा रही थी। वन्य प्रेमी श्री प्राण चड्ढा ने गत वर्ष अपनी अप्रेल 2016 की ब्लॉग पोस्ट में संकेत दिया था कि "सरहदी इलाके से बढ़ते हुए एक हाथी रुद्री-[धमतरी] के इलाके की रेकी कर आया है।" इस एक वर्ष में ही हाथियों ने अपनी उपस्थिति राजधानी में दे दी। हाथियों के राजधानी में पहुंचने से सरकार की नींद खुलनी चाहिए, क्योंकि मामला अब सुदूर अंचल का नहीं रहा, जो राजधानी चैन की नींद ले सके। शीघ्र ही कोई योजना बनाकर हाथी संकट निदान करना आवश्यक है। खतरा अब सिर पर मंडरा रहा है, वो दिन दूर नहीं जब राजधानी के लोगों को अपनी जानमाल की सुरक्षा के लिए रतजगा करना पड़ेगा। इसलिए चैन से सोना है तो जाग जाइए वरना बहुत देर हो जाएगी।
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