बुधवार, 30 दिसंबर 2009

ताला की विलक्षण प्रतिमा

आज हम भारतीय शिल्पकला की चर्चा करते हैं. भारतीय शिल्प में मूर्ति निर्माण की परंपरा बहुत ही प्राचीन काल से चली आ रही है. 

कला इतिहासकारों इन प्रतिमाओं को उनके लक्षण एवं शैलियों के आधार पर विवेचनाएँ प्रस्तुत की हैं किन्तु कभी कभी ऐसी विलक्षण प्रतिमाएं मिल जाती हैं, 

जो पुरातत्व वेत्ताओं  एवं कला इतिहासज्ञों के लिए समस्या बन जाती है. ऐसी ही एक प्रतिमा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के तला गांव में प्राप्त हुई है. इस प्रतिमा को मैं लग-भग 10 बार देख चूका हूँ. बड़ी ही अद्भुत प्रतिमा है.


बिलासपुर से ३० किलो मीटर दूर मनियारी नदी के किनारे अमेरी-कांपा नामक गांव के "ताला" नामक स्थान पर दो भग्न मंदिर हैं. जो देवरानी-जेठानी मंदिर के नाम से प्रसिद्द हैं. 

जेठानी मंदिर अत्यंत ही ख़राब हालत में है, एक पत्थरों के टीले में बदल चूका है. जबकि देवरानी मंदिर अपेक्षाकृत बेहतर हालत में है. 

ये दोनों मंदिर अपनी विशिष्ट कला के कारण देश-विदेश में प्रसिद्द हैं. समय समय पर यहाँ मलबे की सफाई होती रहती है. 

मैंने वहां एक गांव के व्यक्ति से पूछा कि यह पहले किस अवस्था में था? तो उसने बताया कि यहाँ पर पहले मिटटी के बड़े-बड़े ढेर थे. फिर किसी ने इनकी खुदाई की तो इसमें से बड़े-बड़े पत्थरों पर खुदाई किये हुए खम्भे निकले. 

उसके बाद पुरातत्व विभाग ने यहाँ पर खुदाई की और ये मंदिर निकले. भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी डॉ. के.के. चक्रवर्ती  के मार्ग दर्शन में इस स्थान का मलबा सफाई का काम हुआ. जिससे 17  जनवरी 1988 को एक विलक्षण प्रतिमा प्रकाश में आई.

यह  विशाल प्रतिमा 9 फुट ऊँची एवं 5 टन वजनी तथा शिल्प कि दृष्टि से अद्भुत है. 

इसमें शिल्पी ने प्रतिमा के शारीरिक विन्यास में पशु पक्षियों का अद्भुत संयोजन किया है. मूर्ति के सर पर पगड़ी के रूप में लपेटे हुए दो सांप है. नाक और आँखों की भौहों के स्थान पर छिपकिली जैसे प्राणी का अंकन किया गया है, 

मूछें दो मछलियों से बनायीं हैं. जबकि ठोढ़ी का निर्माण केकड़े से किया गया है. कानों को मोर (मयूर) की आकृति से बानाया है. सर के पीछे दोनों तरफ सांप के फेन बनाये हैं. कन्धों को मगर के मुख जैसा बनाया है जिसमे से दोनों भुजाएं निकलती हुयी दिखाई देती हैं.  

शरीर के विभिन्न अंगों में 7 मानव मुखाकृतियों का चित्रण मिलता है. वक्ष स्थल के दोनों ओर से दो छोटी मुखों का चित्रण किया गया है. पेट (उदर) का निर्माण एक बड़े मानव मुख से किया गया है. 

तीनो मुख मूछ युक्त हैं. जांघों के सामने की ओर अंजलिबद्ध दो मुख तथा दोनों पार्श्वों में दो अन्य मुख अंकित है. दो सिंह मुख घुटनों में प्रदर्शित किये गए हैं.  

उर्ध्वाकार लिंग के निर्माण के लिए मुंह निकाले कच्छप (कछुए) का प्रयोग हुआ है. घंटा की आकृति के अंडकोष पिछले पैरों से बने हैं. 

सर्पों का प्रयोग पेट तथा कटिसूत्र (तागड़ी) के लिए किया गया हैं. हाथों के नाख़ून सर्प मुख  जैसे हैं. बांयें पैर के पास एक सर्प का अंकन मिलता हैं. 

इस प्रकार की प्रतिमा देश के किसी भी भाग में नहीं मिली हैं. अभी तक यह नहीं जाना जा सका हैं कि यह प्रतिमा किसकी हैं और इसका निर्माण किसने और क्यों किया? 

यह प्रतिमा पुराविदों के लिए भी एक पहेली बन गई है। फ़िर भी इसे "रुद्र शिव" माना जा रहा है।

11 टिप्‍पणियां:

  1. ललित जी! बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने!

    छत्तीसगढ़ में रहने के बाद भी हम इसका दर्शन नहीं कर पाये हैं अब तक।

    लेख के अगले भाग की प्रतीक्षा है।

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  2. Shilpkala ka behtareen namuna..lalit bhai aaj kal aap prchin smarakon se sambandhit badhiya jaankari de rahe hai..aapki yah aalekh kafi jyan vardhak hai bhai..aise hi ham jaise logo ka jyan badhate rahiye jo chattisgarh se itana door hai..dhanywaad!!!

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  3. यह चित्र पहले भी देखने को मिला है। वाकई अद्भुत रचना है। बहुत कल्पनाशील रहा होगा इस का शिल्पकार।

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  4. बहुत रोचक जानकारी दी है आपने। अगली कडी की प्रतीक्षा रहेगी धन्यवाद्

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  5. ललित जी, यह तो सचमुच बड़ी अद्भुत और विलक्षण प्रतिमा है ।
    आभार इस जानकारी के लिए।
    नव वर्ष की शुभकामनायें।

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  6. शिल्पकला-केन्द्रित एक सुन्दर पोस्ट । निश्चय ही अभिनव कलाकृति । आभार ।

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  7. कुछ समय पहले इसके बारे में श्री पी.एन.सुब्रमणियम जी के ब्लाग "मल्हार" पर जानने को मिला था...सचमुच अति विचित्र प्रतिमा है। हमें तो लगता है कि अवश्य ही इसमें कोई गूढ रहस्य समाहित है....

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  8. आभार इस जानकारी का. कभी नहीं देखा!!


    यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

    हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

    मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

    नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

    निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

    वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

    आपका साधुवाद!!

    नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!

    समीर लाल
    उड़न तश्तरी

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  9. वाह बहुत सुंदर जानकारी दी है आपने .. अगली कडी का भी इंतजार रहेगा !!

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  10. आज दैनिक जनसत्‍ता के समांतर स्‍तंभ में इस पोस्‍ट को पढ़कर आनंद सौगुना हो गया। चित्र यहां पर देखा और लगा कि ट्राउजर में जो कारगो का फैशन है उसके मूल में अवश्‍य ही यह प्रतिमा रही होगी।
    ललित जी को इस ललित पोस्‍ट और जानकारी बांटने के लिए मन से बधाई।

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