आज कल नई-नई बीमारियाँ आ रही हैं और वैज्ञानिक उनका तोड़ भी निकालने में लगे हुए हैं. बीमारी की पहचान होती है फिर उसका नामकरण किया जाता है. उसके बाद बीमारी को ठीक करने के लिए दवाईयों की खोज भी की जाती है.
लेकिन एक बीमारी ऐसी है जिसका नामकरण तो हो गया लेकिन उसकी दवाई अभी तक नहीं ढूंढ़ सके हैं. उसका नाम है "छपास रोग". बस एक बार किसी तरह अखबार या पत्रिका में नाम और फोटो छप जाये फिर तो लोग तरह-तरह के तरीके निकाल कर किसी तरह बस छपना चाहते हैं.
नेता लोगों का छपना अलग तरह का होता है और साहित्यकार, कहानीकार, कवियों का अलग तरह का. यह छपास का रोग तन को भी लग जाता है और मन को भी.
अभी पिछले दिनों की बात है, एक बड़े नेता चुनाव में खड़े होने के लिए परचा भरने अपने लाव-लश्कर के साथ निर्वाचन अधिकारी के सामने प्रस्तुत हुए और परचा भरा.खूब फोटुयें ली गई और अख़बारों में भी छापी गई.
नेताजी का एक चमचा हमारे मोहल्ले में भी रहता था. वह सुबह-सुबह अख़बार लेकर मेरे पास आया और बोला भैया- आज मेरी फोटो अखबार में छपी है आपने देखा क्या?
मैंने कहा- पूरा अखबार तो चाट लिया तुम्हारी फोटो कहीं नहीं दिखी नेताजी के साथ. तो उसने कहा-देखो मैं दिखाता हूँ आपने ठीक से नही देखा. उसने मुझे वो फोटो दिखाई तो समझ में आया कि एक अदद फोटो के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती है. फोटो में नेताजी अपने समर्थकों से घिरे हुए थे. धक्का मुक्की जैसा माहोल दिख रहा था,.
उस भीड़ में नेता जी के चमचे ने लोगों के बीच से अपना एक हाथ निकाल कर "वी" का चिन्ह बना रखा था और हाथ के सिवा फोटो में उसके शरीर का कोई अंग नहीं दिख रहा था. उसने कहा भैया फोटो में जो "वी" बनाया हुआ हाथ दिख रहा है. वो मेरा ही है. मैंने कहा बहुत ही शानदार फोटो छपी है भाई तुम्हारी. बधाई हो. तुमने तो मोहल्ले की नाक ही बचा ली, कम से कम हाथ तो छप गया.
अभी भी तुम्हे कितने मायूस लोग मिलेंगे जिनका कुछ भी नहीं छपा होगा. अगर नेता जी जीत गए तो भाई तुम्हारी तो पौ बारह हो जाएगी क्योंकि सबसे पहले विजय का इशारा तुमने ही किया था और सबूत के लिए अख़बार भी है तुम्हारे पास.
इसी चुनाव में एक बड़े फ़िल्मी अभिनेता भी चुनाव प्रचार में आये थे, हमारे मोहल्ले के नेता जी भी जोर शोर से प्रचार में लगे थे. दिन भर कलफ वाला कुरता पैजामा लगाये, मंच बनवाने के कार्य में लगे रहे.
जब शाम को अभिनेता आये तो वो भी धक्का मुक्की करके मंच पर चढ़ गए. जैसे है कैमरे के फ्लेश चमकने लगे, वो धीरे से वरिष्ठों के बीच जगह बनाते हुए अभिनेता के पास पहुँच गए जैसे ही उनकी फोटो खींचने वाली थी वैसे ही अभिनेता ने अपना हाथ घुमा दिया. नेता जी धक्का खा कर गिर गए मंच के नीचे. लोगों दौड़ कर उठाया, अस्पताल पहुँचाया.
अस्पताल ले जाने पर पता चला कि उनकी एक टांग टूट गई है. अब अस्पताल में पड़े थे खूंटी पर टांग लटकाए. बात मोहल्ले की थी हम भी उनका दर्द बाँटने, हमदर्दी दिखाने अस्पताल पहुचे. जाते ही उन्होंने अखबार निकाला और खुश होते हुए बोले- भैया देखो हमारी फोटू छपी है. हमने अख़बार देखा तो बेड पर टांग लटकाए हुए उनकी फोटो छपी थी, उनके चेहरे पर बड़ा ही संतुष्टि का भाव था. चलो आज पूरी फोटो तो छपी, टांग तुडवाई तो क्या हुआ फिर जुड़ जाएगी.
तो भैया छपास का रोग बहुत ही भयानक है एक बार किसी को लगा दो तो जिन्दगी भर यह बीमारी नहीं जाती और तो और राम-नाम सत्य होने के बाद भी अख़बार में फोटो छप ही जाती है जिससे मृतात्मा को शांति मिलती है. अगर नहीं छपी तो आत्मा वहीं प्रेस के पास चक्कर काटते रहती है. छपास का रोग छूत की बीमारी है. जो स्वयं लगती नहीं है. लगायी जाती है.
एक बार अखबार में किसी तरह पहली बार फोटो या नाम छप जाये उसके बाद एक नया रोगी तैयार हो जाता है. जब तक किसी तरह सप्ताह में एक बार या दो बार नाम नहीं छपे तो व्याकुलता बढ़ जाती है. इसलिए छपना जरुरी हो जाता है. चाहे इसके लिए लात-घूंसे खाने पड़े या टांग तुडवानी पड़े. आज तक इस छूतहा रोग की कोई दवाई नहीं मिली है.
ललित भईया,
जवाब देंहटाएंसब छपास रोगियों को सलाह दें कि अपना अपना ब्लॉग बना लें...चाहे तो हर दस मिनट बाद खुद को छापें...कोई नहीं रोकेगा...एक बार ब्लागिया गए तो फिर तो किसी डॉक्टर का बाप भी सही नहीं कर सकता...
ब्लॉगिंग के लिए ही किसी ने क्या खूब कहा लगता है...
मुफ्त का चंदन, जितना चाहे घिस मेरे नंदन...
जय हिंद...
'छपास' रोग तो बड़ी अच्छी बीमारी है .. इसके लिए
जवाब देंहटाएंलोग पढ़ते भी हैं .. अपना और औरों का भी ..
सवाल यही है कि इस रोग को कैसे इंज्वाय किया जाता है !
अब तो छपास रोग की दवा आ गई है ललित जी, ब्लोगिंग है ना!
जवाब देंहटाएंयह बहुत प्राचीन रोग है। इस की उत्पत्ति प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार के साथ ही हो गई थी।
जवाब देंहटाएंअब जा कर इस का इलाज निकला है, ब्लागिरी।
मैँ हूँ छपास रोगी...मेरी दवा तो कराओ...ओ...मैँ हूँ छपास रोगी...
जवाब देंहटाएंये रोग नही है जी!
जवाब देंहटाएंये तो आदत है जो कभी बदलती नही है।।
सही कहा सभी ने, इस रोग का इलाज़ दुनिया में कोई है तो वो है -ब्लोगिंग।
जवाब देंहटाएंजितनी मर्जी फोटो छापो अपनी, और खुद ही देखकर खुश होते रहो।
बीमारी लाइलाज है !
जवाब देंहटाएंvery nice toipic,,wakai is chappas rog ka koi ilaz nahi hai,
जवाब देंहटाएंये रोग बड़ा है मस्त मस्त
जवाब देंहटाएंइसका इलाज तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं :)
जवाब देंहटाएंबडा ही मीठा मीठा रोग है सर ...और मजे की बात है कि एकदम शुगर फ़्री है ...टनाटन लिए जाईये ....और ब्लोगास से छपास की खुजली में कितनी राहत हुई है ये क्या बताएं ...
जवाब देंहटाएंये लालसा तो पूरे देश को दीमक की तरह खाए जा रही है। वो अपने स्वार्थ के लिए पूरे मोहल्ले की खाटिया खड़ी करवा देता है। वो सब को बोलता है कि मुझे पार्षद बनाओ, वो आगे विधायक सांसद बनाने के लिए लोगों को बहकाता है।
जवाब देंहटाएंअहिंसा का सही अर्थ
aapne aona elaaj kahan karwaya hai.
जवाब देंहटाएंछपास की दवा.मिलना ..बहुत मूश्किल है जी.....क्योकि यह बिमारी ब्लोग की खुराक खाने से सिर्फ कुछ हद तक ही काबू मे आती है...बिल्कुल ठीक होना बहुत मुश्किल है...;)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंक्या बात है ललित भाई
जवाब देंहटाएंअरे आपको "छपास रोग"
एक बीमारी नज़र आई
अरे छपास रोग से ग्रसित
यक्ति भी कभी कभी अपनी
छाप भी छोड़ जाता है भाई
छपास रोग का इलाज >> ब्लॉगिंग :-)
जवाब देंहटाएंपाल ले इक रोग नांदा .......
जवाब देंहटाएंहमें तो इसका इलाज कराना ही नहीं है, इसी मर्ज के कारण ही हो हम हर हप्ते किसी ना किसी पत्र-पत्रिकाओं में चमकते ही रहते हैं और शुभकमनाओं की खुमारी चढी रहती है इससे भी मन नहीं भरता तो ब्लाग में कलम तोडते हैं.
ye bimari to ab sath hi jayegi. :)
जवाब देंहटाएं(Roman me likhne ke liye mafi, computer ne virus hamle me dum thod diya hai, do boond aansu usi ke naam)