चिकित्सा विज्ञान के सामने नित एडस एवं कैंसर की नाम की बीमारियाँ चुनौती बनकर खड़ी हो रही है, पहले कैंसर, फिर एड्स, अब स्वाइनफ्लू।
मैंने कल ही सुना कि एक नयी तरह का बुखार और पदार्पण कर चूका है, जो बहुत ही खतरनाक है. कैंसर और एड्स ऐसी बीमारियाँ जिनका नाम सुन ही मरीज आधा मर जाता है, जान निकल जाती है,
मैंने बहुत कम मरीज इन बीमारियों के ठीक होते देखे हैं. चिकित्सा विज्ञानी इन बीमारियों के इलाज के लिए अनवरत दवाईयों की खोज में लगे हैं. लेकिन राम बाण दवाइयां अभी तक नहीं मिल पाई हैं.
मैं ऐसे कर मरीजों को जानता हूँ जिन्हें एड्स हुआ और वे काल के गाल में समा गये. एड्स का रोग यौन संबंधों से जुड़ा होने के कारण एच आई पाजिटिव होने के बाद लोग उसे सार्वजनिक नही कर पाते कि लोग उन्हें व्यभिचार या इतर यौन सम्बन्धों से जोड़ कर देखेंगे.
रोगी मरते दम तक इस बात को नहीं खोलता. परिणाम स्वरूप ये रोग अपनी पत्नी और बच्चों को भी देकर चला जाता है.
आज अस्पतालों में इंजेक्शन लगवाने के नाम से डर लगने लगा है, डिस्पोजल इंजेक्शन होने के बाद भी, इनका उपयोग करने से एड्स होने की जानकारी सामने आई है.
अब आदमी बचे तो कैसे बचे? अस्पताल तो जाना ही होगा. इंजेक्शन लगवाना ही होगा. लगाओ तो मरो ना लगाओ तो मरो.
मैंने कल ही सुना कि एक नयी तरह का बुखार और पदार्पण कर चूका है, जो बहुत ही खतरनाक है. कैंसर और एड्स ऐसी बीमारियाँ जिनका नाम सुन ही मरीज आधा मर जाता है, जान निकल जाती है,
मैंने बहुत कम मरीज इन बीमारियों के ठीक होते देखे हैं. चिकित्सा विज्ञानी इन बीमारियों के इलाज के लिए अनवरत दवाईयों की खोज में लगे हैं. लेकिन राम बाण दवाइयां अभी तक नहीं मिल पाई हैं.
मैं ऐसे कर मरीजों को जानता हूँ जिन्हें एड्स हुआ और वे काल के गाल में समा गये. एड्स का रोग यौन संबंधों से जुड़ा होने के कारण एच आई पाजिटिव होने के बाद लोग उसे सार्वजनिक नही कर पाते कि लोग उन्हें व्यभिचार या इतर यौन सम्बन्धों से जोड़ कर देखेंगे.
रोगी मरते दम तक इस बात को नहीं खोलता. परिणाम स्वरूप ये रोग अपनी पत्नी और बच्चों को भी देकर चला जाता है.
आज अस्पतालों में इंजेक्शन लगवाने के नाम से डर लगने लगा है, डिस्पोजल इंजेक्शन होने के बाद भी, इनका उपयोग करने से एड्स होने की जानकारी सामने आई है.
अब आदमी बचे तो कैसे बचे? अस्पताल तो जाना ही होगा. इंजेक्शन लगवाना ही होगा. लगाओ तो मरो ना लगाओ तो मरो.
ऐसे में एड्स की बीमारी के लिए एक आशा की किरण बनकर आये हैं, डॉ. वी. के. अग्रवाल और डॉ. एच. सी. अग्रवाल। इन्होने अपने अनुभव और अनुसंधानों से इस रोग पर आशातीत सफलता पाई है.
पेशे से चमड़ी रोग विशेषज्ञ हैं. इन्होने उन रोगियों को अपनी रस-रसायन चिकित्सा से ठीक किया है. जो अपने जीने की आशा छोड़ चुके थे.
जिनका सभी लेब्रोटरी टेस्ट पाजिटिव पाया था. एक व्यक्ति का एच.आई वी. पाजिटिव ३० जून के टेस्ट में था. निरंतर ६ माह की चिकित्सा के बाद ३ जनवरी २००९ को पुन: रोगी का सी.डी.4 एलाईसा टेस्ट करया गया जिसमे रिपोर्ट सभी तरह से नार्मल है.
इससे ये समझ में आता है कि वह रोगी पूर्णत: रोग मुक्त हो चूका है. यह रिपोर्ट इनके चिकित्सालय में देखी जा सकती है.
ऐसे कई रोगी हैं जो अपने जीवन के प्रति आशा छोड़ चुके हैं उनके लिए एक आशा कि किरण जागी है. इस रोग का इलाज आयुर्वेद में ही है और आयुर्वैदिक इलाज से ही यह संभव हो पाया है.
डॉ.अग्रवाल को बहुत बहुत बधाई, इनका पता है. सम्राट टाकिज के सामने, ब्राईट फर्नीचर के पीछे, स्टेशन रोड दुर्ग, जिला दुर्ग. छत्तीसगढ़.
च्छी जानकारी है धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंबहुत सुखद समाचार है। दुर्ग में एड्स के रोगियों की लाइन लग जाएगी।
जवाब देंहटाएंबहुत काम की जानकारी दी आपने! आयुर्वेद ही इस बीमारी का सही तोड़ है।
जवाब देंहटाएंआश्चर्यजनक। अगर ऐसा है, तो डा0 साहब बधाई के पात्र हैं।
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सांसद/विधायक की बात की तनख्वाह लेते हैं?
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा ?
हा...,हा...हा.....,.ललित जी चलिए जान बची तो लाखों पाए .....!!
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