यात्रा 2 से 7 जुलाई 2015
शास्त्रों ने उत्तिष्ठ जागृत, चरैवेति चरैवेति कहके एवं फ़िल्मों ने चलती का नाम गाड़ी, चलना ही जिन्दगी है, सुहाना सफ़र, ये मौसम हंसीन गाकर मनुष्य के मन को सदैव चलने के लिए ही प्रेरित किया है। यहाँ तक दार्शनिकों ने इस दुनिया को भी एक सराय कह दिया और यहाँ मनुष्य का कुछ पल का "अल्प विश्राम" (ठहराव) बताया, न कि पूर्ण विश्राम। पूर्ण विश्राम की अवस्था में देह से देही विदा हो जाता है और अन्य किसी साधन अपनी यात्रा पूर्ण करने लग जाता है। जीवित रहने का अहसास तभी होता है जब चलते रहता हूँ, इसलिए मुझे चलना ही पसंद है। चलते-चलते कहाँ आ गया हूँ मैं, ऐसा कभी नहीं हुआ। हमेशा बाट पर ही पहूँचा ठाठ से और वहाँ की दुनिया को "रज्ज' के देखा, समझा तथा आगे बढ़ गया।
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बिकास और मैं यात्रा पर |
अब साप्ताहिक दौरा झारखंड और बंगाल के कुछ इलाकों का प्रारंभ हो गया है। परसों रांची पहुंचेगे, फ़िर आगे का सफ़र जारी रहेगा। बाबू साहब ( Ramakant Singh) ने एक बात कही थी, जो हमेशा याद आती है "बाबा की झोली में का-का चीज, लंवग, ईलायची और धतूरा के बीज।" इतना सामान ही एक घुमक्कड़ की घुमक्कड़ी के लिए काफ़ी होता है। जितना कम सामान रहेगा, सफ़र उतना ही आसान रहेगा। हमारा यह सफ़र कई हिस्सों में होना था। रायपुर से हावड़ा मेल से चलकर अल सुबह झारसुगडा पहुंच यात्रा को अल्प विराम मिला। पड़ाव तक पहुंचाने वाली ट्रेन को पुरी से आना है, उसके आने में दो घंटे का विलंब है। बैठ गए ट्राली पे आसन लगा के।
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झारसुगड़ा रेल्वे स्टेशन पर कुली बाबा |
मौसम मानसुकाना बना हुआ था। सामने बादलों के बीच सूरज भैया धीरे-धीरे कपार पर चढने की तैयारी कर रहे हैं और प्लेट फार्म पर अर्जुन के गोत्रज ग्राहकों की तलाश में लगे हैं। एक ढिबरी चाय अंदर डालने पर ठेले पर लदे कुली बाबा बोले "इ टेसन मा सब छका लोग नकली है। एगो असली नही है, आर पी एफ, जी आर पी सब सेट कर लेते है। सब मरद लोग है, जब ये संतान पैदा नही कर सकते तो इनका संख्या कैसे बढ जाता है? सोचने का बात है कि नहीं? बिलकुले सोचने का बात है। हम बक्सर से उनाईस सौ चौहत्तर में आए थे मजदूरी करने। तब से आज तक कुच्छो नही बदला है। एक ठो बंगाली का चाय दूकान होता था ऊ भी बंद हो गया।
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होटल ली लैक रांची की बालकनी से |
हमारे यहां पंवरिया लोग होते थे, राजा महाराजा के यहां गाने का पेशाकरते थे। जिसके यहां बचाऽ हो या शादी हो तो नाच गा कर पेट पालते थे। अब ऊ लोग पढ लिख के नौकरी धंधा पकर लिए और छकाऽ लोग ई सब करने लग गया। हमारे यहां गोंसाई लोग होते थे, उनका काम भीख मांगना और चेला बनाना था। चाहे केतना ही खेत बाड़ी हो, लेकिन भीख मांग के गुजारा करते थे। ऊ लोग भी नौकरी धंधा मे लग गया। कुछ लोग ही ई सब काम करता है। बकिया सब छोर दिए। फिर कुली बाबा ने जेब से निकाल कर एक गोली खाई। पूछने पर बोले " हाथ गोर का नस-नस जाम हो जाता है, इसलिए भोरे मा एक गोली खा लेते हैं आधे घंटे मे सब नस खुल जाएगा। काम पे लग जाएगें। दिल्ली तक इलाछ करा लिए, कौनो फायदा नही हुआ। ई रोग तो जान के साथ ही जाएगा। पहले खूब योगराज, महायोगराज गुगुल खाए, फेर फायदा कुच्छो नही हुआ।
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नवीन साहू |
अब कुली बाबा तो अपने काम मे लग गये, उनकी नसें खुल गयी हैं। पर अच्छे दिन आने के बाद भी भारतीय रेल की नसें नही खुली है। बड़का डाकदर कौनो दवा नहीं ढूंढ पाए हैं। हमार गाड़ी एक घंटा पचास मिनट लेट चल रही है, इसके कारण एलांऊंस करने वाली बाई बहुत दुखी है और बार बार दुख व्यक्त कर रही है। हमारी ट्रेन आ गई, सहयात्री बिकास बाबू के साथ हम ट्रेन में सवार हो गए। हमें यह ट्रेन हटिया तक पहुंचाएगी। हटिया पहुंचने के बाद रांची के ली लैक होटल तक पहुंचने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़े। सौ रुपए में ऑटो किए, उसने हमें होटल तक पहुंचाया। नाम से तो सोचे थे कि कोई झील के किनारे होगा होटल, जिसके कारण ली लैक नाम धराया है। परन्तु होटल पहुंचने पर पता चला कि किसी छोटे से तालाब के किनारे बना है, जिसके चारों तरफ़ कचरे का ढेर और प्रदूषित पानी की बदबू। हमको कौन सा जनम भर ठहरना था। पहुंचने पर बैकुंठपुर वाले चंद्रकांत पारगीर से मुलाकात हो गई। सेमीनार का कार्यक्रम अगले दिन था। संझा नहाए, खाए और सुत गए।
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चंद्रकांत पारगीर, मृत्युंजय पाठक, ललित शर्मा एवं राजेश अग्रवाल |
हमको सुबह हे रे नवीनवा ने आकर जगाया और टी मेकर से चाय भी बना कर पिलाई। पूछा कि रांची मे रात कैसे कटी? रात तो कट गयी जैसे तैसे। होटल बढिया है, रूम में एसी से लेकर फ्रीज तक की बेवस्था है। लेकिन पंखा नही है। हम ठहरे भारतीय मानसिकता के मनई। बिना पंखा के नींद ही नही आती। पंखा से भले ही हवा न आए लेकिन उसकी आवाज ही लोरी का काम करती है। बिना पंखा लोरी के ऊलट-पुलट कर नींद आई। स्नानाबाद से लौटकर नास्ता पानी हो गया। अब संझा को लीटी चोखा का प्रोग्राम जमाते है। बिकास बाबू कुछ कामरेडी मुड मे दिखाई दे रहे है। उन्होने आज 3 जीबी नाश्ता किया और 2 जीबी दूध पीया और दूध का दही कर निकल लिए। यही है डीजिटल इंडिया।
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सुनीता नारायणन, ललित शर्मा, चंद्रभूषण, राजेश अग्रवाल, बिकास शर्मा |
अब तैयार होकर सेमीनार स्थल पर पहुंच गए, झारखंड के खनिज एवं कोयले के साथ प्रदूषण एवं नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए धुंआधार कार्यक्रम हुआ। बिलासपुर से राजेश राजेश अग्रवाल, रायपुर से डी श्याम कुमार और दिल्ली से सुनीता नारायणन पहुंची थी। झारखंड के खनिज सचिव ने भी इस कार्यक्रम में शिरकत की। कई तरह के प्रश्नोत्तर हुए, चिंताए जताई गई। चिंतओं के समाधान भी ढूंढने की कोशिश की गई। इस दौरान दृष्टिपात पत्रिका वाले अरुण कुमार झा जी भी पहुंचे, जान पहचान तो ब्लॉगिंग के जमाने से है, पर साक्षात भेंट आज ही हुई। दिन भर की थका देने वाली मीटिंग के बाद सारा नजला चिकन-फ़िश पर गिरा और कार्यक्रम का समापन हो गया।
यात्रा जारी है… आगे पढें।
मजा आ गया। हाथ गोर की नसों को खोलने कौन सी गोली खा रहा था वो बक्सर वाला।
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