आज का दिन हमने विप्रो भ्रमण के लिए नियत किया था। बाहरी आगंतुकों को शनिवार को इस परिसर में प्रवेश दिया जाता है। इसके लिए बाकायदा पहले से अनुमति लेने की आवश्यकता पड़ती है। उसके बाद वहां से परिचय पत्र जारी किया जाता है, उसे लेकर ही परिसर में प्रवेश दिया जाता है। जाहिर है विप्रो बड़ी कम्पनी है और इसने अपने कर्मचारियों के लिए परिसर में दोस्ताना वातावरण निर्मित कर रखा है, जिसमें बहुत बड़ी कैंटिन, बगीचा एवं ओपन थियेटर भी है।
विप्रो बैंगलोर में पाबला जी के साथ |
हम लगभग एक बजे विप्रो पहुंच गए। एक लम्बे सफ़र के बाद सुबह उठने में विलंब हो गया। यहां एक आकर्षक डोम बना हुआ है, जिसकी छत में कांच लगे हुए हैं, यह बहुत ही सुंदर दिखाई देता है। हमने दोपहर का नाश्ता यहां की कैंटीन में ही किया और परिसर का भ्रमण किया। विप्रो ने अपने परिसर में खूब हरियाली कर रखी है। बैगलोर जैसे शहर में शुद्ध वायु एवं वातावरण के लिए इसकी निहायत ही आवश्यकता दिखाई देती है। अन्य कम्पनियों और कारखानों को भी इससे सीख लेनी चाहिए कि कर्मचारियों की कार्यक्षमता बढाने के लिए अच्छे माहौल की आवश्यकता पड़ती है।
विप्रो का ग्लास डोम |
विप्रो भ्रमण के बाद हम होटल आ गए। विचार विमर्श कर फ़ैसला किया कि आज की रात 9 बजे हम यहां से प्रस्थान कर लें और रात भर गाड़ी चला कर हैदराबाद में विश्राम करें। ब्लॉगर मित्र विजय सप्पति जी का भी कई बार फ़ोन आ चुका था और वे रविवार को हैदराबाद में हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। दिन भर आराम करने के बाद हमने रात नौ बजे के आस पास होटल छोड़ दिया और वापसी के लिए गाड़ी चल पड़ी। वैसे रात का सफ़र करना तो नहीं चाहिए। परन्तु एक फ़ायदा यह रहता कि रात को ट्रैफ़िक कम रहता और सफ़र जल्दी कटता है। परन्तु नींद के झोंकों पर भी काबू करना पड़ता है।
रात का सफ़र, बैंगलोर से निकलते हुए |
चलते मुझे भोजन करने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई। पाबला जी खाने के मूड में नहीं थे क्योंकि खा लिए तो फ़िर गाड़ी चलाना मुश्किल हो जाएगा। बैंगलोर शहर के बाहर निकलते हुए हमने सोचा कि हाईवे पर कोई ढाबा मिलेगा तो खाना खा लिया जाएगा। परन्तु चलते हुए समस्या यह रहती है कि थोड़ा और चल लिया जाए, फ़िर देखा जाएगा। यही हमारे साथ हो रहा था। रात एक बजे ढाबा दिखाई दिया, हमने गाड़ी लगाई, जैसे ही भीतर प्रवेश किया तो माहौल समझ नहीं आया। हर जगह लोग दारु की बोतल लिए बैठे थे और कुछ अजीब से संदिग्ध चेहरे भी दिख रहे थे। मैं भीतर जाकर लौट आया, लम्बे सफ़र में सुरक्षा भी जरुरी होती है। पाबला जी को मना किया और गाड़ी फ़िर स्टार्ट कर ली।
रास्ते में एक मंदिर में पर्व |
आगे चलकर एक स्थान पर सरदार जी का ढाबा दिखाई दिया। हमने गाड़ी वहीं रोक ली। लेमन राईस का आर्डर दे दिया, तब तक पाबला जी ने आराम कर लिया। लेमन राईस में मुंगफ़ली इतनी अधिक डाल दी कि मेरा मन उखड़ गया। पर खाना भी जरुरी था। अधूरे मन से भोजन किया और फ़िर हम आगे की यात्रा पर चल पड़े। देश में विकास हो रहा है और हाईवे बन रहे हैं। अच्छी स्पीड वाली सड़कों का निर्माण हो रहा है। हैदराबाद बैंगलोर हाईवे भी फ़ोर लाईन का बना है। परन्तु बीच का डिवाईडर पार करके कौन, कब आपकी गाड़ी के सामने आ जाए, इसका पता ब्रह्मा को भी नहीं चलता।
जान जाए चाहे लूले लंगड़े हों, पर सफ़र ऐसे ही करेंगे |
हमने डिवाईडर पार निकलने वालों के कई एक्सीडेंट सुबह सुबह देखे, मन खराब हो गया। थोड़ी सी जल्दी मचाने के कारण लोग जान से हाथ धो बैठते हैं और सड़क दुर्घटना में सबसे अधिक जवान मौते होती हैं। पीछे माँ बाप औलादें बिलखती रह जाती है। बैरिकेट लगाकर बनाए गए हाईवे पर भी लोग घुस जाते हैं। इस यात्रा में मेरा पूरा ध्यान सड़क पर ही रहा। जहाँ भी रोड़ क्रासिंग दिखाई देती, पाबला जो हाथ का इशारा कर स्पीड कम करवाता, वरना इनसे गाड़ी एक सौ बीस से कम चलती ही नहीं है। सारी यात्रा में मेरा यही काम रहा। कभी-कभी तो मुझे भी इमरजेंसी ब्रेक लगाने पड़ते थे। :)
चिकनी फ़र्राटेदार सड़क |
अब हमारा टारगेट हैदराबाद था, सुबह से कई बार विजय जी का फ़ोन आ चुका था, वो समझ रहे थे कि हम सुबह नाश्ते के टैम पर पहुंच जाएगें, परन्तु हम तो झपकियां लेते हुए आ रहे थे। इसलिए इतनी जल्दी पहुंचना संभव नहीं था। हम पौने एक बजे के लगभग हैदराबाद शहर में प्रवेश कर गए। विजय जी बताए पते को ढूंढते रहे, उनसे संपर्क करते हुए। उन्होंने एक ही स्थान के तीन तीन पते बता दिए, हमारा जीपीएस और कहीं ले गया। फ़िर मुड़ कर वापस आए। एक घंटे तक सिकंदराबाद कैन्ट एरिए में ही घूमते रहे, आखिर घूमते घूमते थक गए पर उनका घर का पता नहीं मिला।
हैदराबार 82 किमी और नागपुर 562 किमी |
मैने उनसे फ़ोन पर कहा कि हम हमारी जगह बता देते हैं, आप यहां आ जाओ। वे अपना पता ही बताते रहे, लेकिन घर से निकलने को तैयार नहीं हुए। मैने उनसे जी पी एस पता मांगा, वो भी नहीं दिया, जिस तरह विवेक रस्तोगी जी ने अपना जीपीएस पता दे दिया, जीपीएस में वो पता फ़ीड करते ही हम उनके घर के ठीक सामने पहुंच गए थे, किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं पड़ी, इधर हम उनका घर ढूंढते हुए नागपुर रोड़ पर पहुंच गए। जहां से माईल स्टोन नागपुर की दूरी 500 किमी के आस पास दिखा रहा था। हम विजय जी का घर ढूंढते हुए एकदम पक चुके थे। माईल स्टोन देखकर सरदार का दिमाग सनक गया और गाड़ी नागपुर रोड़ पर बढ़ा दी।
हैदराबाद के पार नागपुर की ओर |
विजय जी का फ़िर फ़ोन आया, पूछे कहां पर हो, मैने कहा कि हम नागपुर निकल लिए और हैदराबाद से काफ़ी आगे आ चुके हैं। बोले कि मैं सुबह से इंतजार कर रहा हूँ, सारा बनाया हुआ खाना खराब हो जाएगा। मैने कहा कि अब लौटना संभव नहीं है और पाबला जी नाराज है, फ़ोन पर भी बात नहीं करेंगे। इसलिए इस मुलाकात को पेंडिग ही रखा जाए तो ठीक है। उन्होंने निराश होकर फ़ोन बंद कर दिया। नए शहर में घर तक बुलाने के लिए दो तरीके हैं, पहला तो उसे जीपीएस का अंक्षाश देशांश दे दो, जिससे वह बिना असुविधा के पते पर पहुंच जाएगा या फ़िर शहर का ऐसा कोई लैंड मार्क बता तो जहाँ तक कोइ आसानी से पहुंच जाए और उसे लेने आ जाओ। ये दोनो काम विजय जी ने नहीं किए और घर से ही निर्देश देते रहे। हमारा भी समय खराब हुआ और उनका भी खाना।
अस्ताचल को जाता विरंचीनारायण |
हैदराबाद में आराम करने का प्लान बना कर चले थे, वह फ़ेल हो गया। अब गाड़ी फ़िर हाईवे पर थी। रास्ते में एक उड़ीपी रेस्टोंरेंट में भोजन किया और आगे बढ गए। अभी भी हमको लगभग आठ सौ किमी का सफ़र करके घर पहुंचना था। रात भर गाड़ी चला कर थक चुके थे। शाम को ई टीवी की स्टेट हेड प्रियंका कौशल ने राजिम पर कार्यक्रम के प्रसारण की सूचना दी, तो कुछ मित्रों ने वीडियो बनाकर मुझे वाट्सएप पर भेज दिया। गाड़ी चलाते हुए लगातार 27 घंटे हो चुके थे, थककर बुरा हाल था, जैसे तैसे करके रात बारह बजे तक नागपुर पहुंचे और वहां रात रिश्तेदार संध्या सत्येन्द्र शर्मा जी के रात गुजारी।
एक सेल्फ़ी हो जाए, बाय बाय दक्षिण यात्रा |
यहां फ़ुल आराम कर एवं दोपहर का भोजन कर एक बजे के बाद नागपुर से निकले। शाम को भिलाई पहुंचते तक पाबला जी गाड़ी चलाने की हालत में नहीं थे। जैसे तैसे करके घर पहुंचे। मेरे पास सामान कुछ ज्यादा हो गया था। उसे लेकर बस में जाने का मेरा मन नहीं था। पाबला जी बोले कि घर पर ही रात आराम कर लो, सुबह चार बजे अभनपुर छोड़ आऊंगा। घर के समीप पहुंच कर रात रुकना मुझे जम नहीं रहा था तब हम नाम वर्मा जी को फ़ोन किया, उन्होने समस्या का हल निकाल दिया और गाड़ी लेकर पहुंच गए। इस तरह मैं रात ग्यारह बजे घर पहुंचा और हमारी दक्षिण की साप्ताहिक यात्रा निर्विघन सम्पन्न हुई। इति दक्षिण यात्रा …
अंत भला सो सब भला... यात्रा निर्विघ्न संपन्न होने की बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंयात्रा काफी रोमांचक रही।मेरी तरफ से भी बधाई और अगली यात्रा के लिए शुभकामना।
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