सोमवार, 11 जुलाई 2016

हम्पी के रनिवास का कमल महल एवं सुरक्षा प्रबंध : दक्षिण यात्र 16

किसी भी राज्य का सबसे सुरक्षित एवं संरक्षित स्थल रनिवास या जनानखाना हुआ करता था। ऐसा ही विजयनगर साम्राज्य में भी था। लगभग पचीस फ़ुट ऊंची पत्थर की दीवारों से घिरा हुआ जनानखाना यहां भी है। इसे किसी गढ़ के सदृश सुरक्षित बनाया गया है। 
जनानखाना हम्पी का प्रवेश द्वार
जनानखाना की सुरक्षा एवं आठों पहर निगरानी की के लिए वाच टावर बनाया हुआ है। जिस पर चढ कर दूर तक देखा जा सकता है। जनानखाना परिसर काफ़ी बड़ा है, इसमें रानी महल एवं कमल महल प्रसिद्ध है। इसके के समीप ही कोषागार स्थित है तथा कमल महल के पीछे हाथी खाना भी है। जहाँ राजकीय हाथी रखे जाते थे।

जनानखाना हम्पी में कमल महल का द्वितलीय भवन
जनानखाना में प्रवेश के लिए छोटा सा द्वार है। यहां प्रवेश शुल्क लिया जाता है। रानी महल का सिर्फ़ अधिष्ठान ही दिखाई देता है। बाकी भवन तो नष्ट हो चुका है। जनानखाना में महिलाओं के उत्सव मनाए जाते थे तथा यह राजपरिवार की महिलाओं के ग्रीष्मकालीन निवास के रुप में भी प्रयुक्त होता था।
कमल महल एवं सुरक्षा स्तंभ
यहां आमोद प्रमोद के साधन भी उपलब्ध कराए जाते थे। जिससे जनानखाना की महिलाओं का मनोरंजन होता रहे। जनानखाने में दर्शनीय सिर्फ़ कमल महल ही है। यही भवन बचा हुआ है, वरना सभी नष्ट हो गए। भारतीय एवं इस्लामिक शैली के मिश्रण निर्मित किया गया है।
प्रस्तर परकोटे से घिरा हुआ कमल महल
कमल महल को वास्तुकार ने ग्रीष्मकालीन भवन के रुप में निर्मित किया है। इसकी भित्तियों में सिरेमिक की नालियां बनाकर स्थापित की गई हैं, जिसमें सायफ़न पद्धति से जल प्रवाह बनता था और भवन ग्रीष्मकाल में शीतल रहता था। यह दुमंजिला भवन है। इसकी छत का निर्माण मेहराबों पर हुआ है। 
रानी महल के अवशेष एवं वाच टावर
भवन के निर्माण में ईंटों एवं चूने सुर्खी का प्रयोग किया गया है। द्वारों पर पुष्प वल्लरियों का सुंदर अलंकरण किया गया है। इन द्वारों के इस हिसाब से बनाया गया कि निरंतर वायु का प्रवाह बना रहे। जिससे भवन गर्म न हो। इस भवन की छत कमल की पंखुड़ियों जैसे निर्मित की गई हैं, इसलिए इसे कमल महल कहा जाता है।
कमल महल का वातानुकूलन प्रबंध
इस भवन में एक विशिष्टता मुझे यह दिखाई दी कि इन्डो इस्लामिक शैली में निर्मित होने के बाद भी इसके द्वार शीर्ष पर कीर्तिमुख का अंकन किया गया है। कीर्तिमुख के निर्माण का विधान सिर्फ़ शिवालयों में ही दिखाई देता था। कीर्तिमुख शिवगण है तथा शिव से वरदान प्राप्त  होने के पश्चात ही इसे मंदिरों की भित्ति में स्थान मिला। हो सकता है कि इस भवन का उपयोग रनिवास में धार्मिक कर्मकाण्डों एवं उत्सवों के लिए किया जाता रहा होगा, क्योंकि निवास भवनों में कीर्तिमुख अलंकरण का विधान नहीं है। जहाँ देव स्थापित हो वहीं कीर्तिमुख रहते हैं।
कमल महल के द्वार शीर्ष पर कीर्तिमुख अलंकरण
हम्पी सम्पन्न राज्य था, यहां की सड़कों पर बेशकीमती पत्थरों की दुकाने लगा करती थी। देश विदेश से व्यापारी अपनी श्रेष्ठतम वस्तुएं यहां विक्रय के लिए प्रदर्शित करते थे। जिस तरह मुगलों के समय में रनिवास में मीना बाजार लगाया जाता था उसी तरह यहां के रनिवास में मीना बाजार लगाया जाता रहा होगा। जिससे जनानखाने के लिए स्त्रियां अपनी पसंद का सामान खरीद सकें।

कमल महल का वातानुकूलन प्रबंध
हम्पी में धन और वैभव की कोई कमी नहीं थी। विट्ठल मंदिर एवं महानवमी दिब्बा की भित्तियों पर विदेशी व्यापारियों को प्रदर्शित किया है। इससे तय है कि यहां विदेशी व्यापारियों की पहुच हम्पी तक थी। बेशकीमती सामान एवं राज परिसर की स्त्रियों की सुरक्षा के लिए जनानखाने को सुरक्षित निर्मित किया गया है। जारी है… आगे पढें।

3 टिप्‍पणियां:

  1. पर्यावरण ऊर्जा टाइम्स में ललित जी का "रामायण कालीन हम्पीका जल प्रबंधन" पढ़ कर हम्पी के बारे में और जानने की इच्छा हुई।धन्यवाद का पात्र गूगल हुआ जिसके माध्यम से ललितडॉटकॉम से परिचित हुआ और अपने को गौरवान्वित महसूस किया कि ऐसे वयक्तित्व से परिचित हुआ जिसके ज्ञान की सीमाएं अनंत है और अपनी ऐतिहासिक थाती को प्रमाणो के साथ आज के समय की आवश्यकता के साथ सामंजस्य बनाने की प्रेरणा देती हुई अनुभव किया।सच में यदि हम प्रकृति के साथ तादात्मय बना कर चलें तो हमारी दिन प्रति दिन की सारी समस्याये अपने आप आधी हो जायेगी।

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    1. धन्यवाद राकेश त्रिपाठी जी, पर अभी तक हमारे पास "पर्यावरण ऊर्जा टाईम्स" नहीं पहुँचा है। :)

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    2. धन्यवाद राकेश त्रिपाठी जी, पर अभी तक हमारे पास "पर्यावरण ऊर्जा टाईम्स" नहीं पहुँचा है। :)

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