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रिसोर्ट से विदा लेकर जब निकले तो आज भी सिर्फ़ भाई साहब को ही पता था कि कहाँ जाना है। हम तो सिर्फ़ रास्ते के दर्शक मुसाफ़िर थे। रास्ते में द्वाराहाट नामक कस्बा आया। यहां हमने नाश्ता करने के लिए गाड़ी रोकी और नाश्ता करते हुए एक फ़ोटो फ़ेसबुक पर अपडेट की तो अल्मोड़ा से गीतेश त्रिपाठी जी ने कमेंट में बताया कि यहाँ प्राचीन मंदिर समूह है, आप सही जगह पहुंच गए। मंदिरों को देखना चाहिए। हमने होटल वाले से पूछा तो उसने अपना एक बंदा साथ कर दिया। वो हमें मंदिरो तक लेकर जाने के लिए तैयार हो गया। दही जलेबी का नाश्ता आनंददायक था। मैने भी दो जलेबियाँ खाई।
रिसोर्ट से विदा लेकर जब निकले तो आज भी सिर्फ़ भाई साहब को ही पता था कि कहाँ जाना है। हम तो सिर्फ़ रास्ते के दर्शक मुसाफ़िर थे। रास्ते में द्वाराहाट नामक कस्बा आया। यहां हमने नाश्ता करने के लिए गाड़ी रोकी और नाश्ता करते हुए एक फ़ोटो फ़ेसबुक पर अपडेट की तो अल्मोड़ा से गीतेश त्रिपाठी जी ने कमेंट में बताया कि यहाँ प्राचीन मंदिर समूह है, आप सही जगह पहुंच गए। मंदिरों को देखना चाहिए। हमने होटल वाले से पूछा तो उसने अपना एक बंदा साथ कर दिया। वो हमें मंदिरो तक लेकर जाने के लिए तैयार हो गया। दही जलेबी का नाश्ता आनंददायक था। मैने भी दो जलेबियाँ खाई।
द्वाराहाट में नाश्ता |
होटल के भीतर से होकर पिछवाड़े की गली में पहुंचे, एकदम शार्ट कट रास्ता था। फ़िर थोड़ी सी चढाई चढ़ते हुए मंदिर समूह तक पहुचे। यहाँ कई मंदिर समूह हैं, पर समयाभाव के कारण हमने दो ही देखे। हम जहाँ पहुचे यह कचहरी मंदिर समूह था। सेंड स्टोन से निर्मित यहाँ सात मंदिर हैं। इनके समक्ष एक कुंआ भी है। सभी मंदिरों के गर्भगृह पृथक है, परन्तु चार मंदिरों का मंडप संयुक्त है।
कत्युरी काल में निर्मित कचहरी मंदिर समूह द्वाराहाट |
इसके बाद एक मंदिर मंडप विहीन है। इनसे लगा हुआ एक बड़ा मंदिर मंडप युक्त है तथा एक मंदिर इनकी पंक्ति से अलग बना हुआ है। मंदिरों की भित्तियां साधारण हैं, इन पर प्रतिमा अलंकरण दिखाई नहीं देता। यहां कई आमलक भूमि में पड़े हुए दिखाई देते हैं। जिससे प्रतीत होता है कि अन्य मंदिर भी रहे होंगे।
कत्युरी काल में निर्मित कचहरी मंदिर समूह द्वाराहाट |
समय कम था, इसलिए अगले मंदिर समूह में पहुंचे, इसे रत्नदेव मंदिर समूह कहा जाता है। यह मंदिर भी स्थापत्य के आधार पर कचहरी मंदिर समूह के काल ही दिखाई दे रहे थे। यहाँ संयुक्त मंडप एवं पृथक गर्भगृह के तीन मंदिर एक पंक्ति में है। चौथा शिखर विहीन इनसे पृथक है तथा एक मंदिर शिखर युक्त है, परन्तु इसका मंडप विहीन है। यह मदिर पंचायतन शैली में निर्मित हैं। इन मंदिरों की भित्ति पर भी कोई अलंकरण नहीं है।
कत्युरी काल में निर्मित रत्नदेव मंदिर समूह द्वाराहाट |
देख कर प्रतीत होता है कि यहाँ इसी तरह के मंदिरों के निर्माण का चलन था। इन मंदिरों का निर्माण कत्युरी राजाओं ने करवाया था। कत्युरी शासन का काल छठवीं शताब्दी से ग्याहरवीं शताब्दी तक माना गया है। माना जाता है कि ये अयोध्या के शालिवाहन शासकों के वंशज थे इसलिए सूर्यवंशी कहलाते थे। यहाँ अन्य मंदिर समूह भी हैं, परन्तु समयाभाव के कारण वहां तक नहीं पहुंच पाए।
दूनागिरि माता मंदिर |
द्वाराहाट से एक मार्ग दूनागिरि होते हुए कुकुचीना पहुंचता है। दूनागिरि से पहले हमारी गाड़ी पंचर हो गई। सड़क के किनारे लगाकर टायर बदला गया। इसके बाद आगे बढे। एक बजे के आस पास हम कुकुचीना पहुंच गए थे। वैसे तो यह छोटी बस्ती है, परन्तु पाण्डूखोली के कारण प्रसिद्ध हो गई है। यहाँ ठहरने के लिए जोशी का पेईंग गेस्ट हाऊस है। हमने यहाँ पहुच कर खाना खाया और पाण्डू खोली की ओर बढ गए। पाण्डू खोली का रास्ता कच्चा एवं सकरा है। यह ग्राम रतखाल ग्राम पंचायत के अधीन है। घाटी में लगभग चार किमी उतरने के बाद पाण्डू खोली की चढाई शुरु होती है।
पाण्डू खोली के रास्ते में लीला राम आगारी |
जब हम गाड़ी खड़ी करके आगे बढ रहे थे तो किसी ने आवाज दी कि इधर से जाईए, शार्ट कट है। हम ऊपर चढे तो एक झोंपड़ी दिखाई दी। यहाँ कुछ लोग बैठे भी दिखाई दिए। यहां पहुंचने पर पता चला कि पाण्डू खोली के लिए तो काफ़ी चढना पड़ेगा तो मैने मना कर दिया। बाऊजी और भाई साहब दोनो आगे बढ गए। मैं झोपड़ी मालिक के पास ही रहा। आस पास के नजारों की फ़ोटो खींचते रहा। यहाँ फ़ूल, चिड़िया, पलुम और आड़ू के पेड थे। किसी तरह समय व्यतीत करने की कोशिश जारी थी। जब हम यहाँ पहुंचे तो तीन बज रहे थे।
पाण्डू खोली द्वार पर सुभाष शर्मा जी |
झोंपड़ी वाले ने चाय पिलाई, इस बंदे का नाम लीलाराम अगारी था। यहाँ पत्नी एवं बच्चों के साथ निवास करता है तथा पाण्डू खोली जाने वालों के मार्ग दर्शन के साथ उन्हें भोजन आदि की सुबिधाएं भी मुहैया कराता है। इसके एवज में लोग जो दे दे, वह ले लेता है। कोई माँग नहीं करता। इसके साथ काफ़ी चर्चाएँ हुई, इस इलाके के भूगोल से लेकर इतिहास एवं संस्कृति तक।
कुकुछीना का मार्ग |
इनका पैतृक गाँव द्वारा हाट के पास है, जहाँ इसका कुटुम कबीला रहता है। सांझ हो रही थी और बरसात भी शुरु हो गई। मेरी निगाहें पहाड़ी रास्ते की तरफ़ थी कि कब ये लोग लौटें। बरसात में भीगने के बाद ठंड लगने का भी खतरा था। आखिर साढे छ: बजे तक हमारे साथी लौट आए। आते ही कहा कि अच्छा हो गया, आप नहीं गए।
कुकुछीना में जोशी का गेस्ट हाऊस |
सबने चाय पी और गेस्ट हाऊस की ओर लौट गए। जोशी ने गेस्ट हाऊस में कई कमरे बना रखे हैं। जिनमें पलंग गद्दों के साथ रजाई का भी प्रबंध है। यहां बिना रजाई के तो सोना मुश्किल है। रात को उसने खाना रुम में ही खिला दिया। बिजली नहीं थी, दो दिन पहले आए तूफ़ान में लाईन में समस्या हो गई। एकदम लो वोल्टेज में बल्ब जल रहा था। मेरे पास टार्च भी थी। आवश्यकता पड़ने पर उसका उपयोग भी किया जा सकता था।
कुकुछीना से आगे प्रस्थान सुभाष शर्मा जी, संजय अनेजा एवं जोशी जी |
शायद आज पूर्णिमा थी, इसलिए चाँद अपनी पूरी रौनक पर था। मुझे बुलाकर भाई साहब ने चाँद की फ़ोटो खींचने कहा। चाँद की कुछ फ़ोटो लेकर हम सो गए। अगली सुबह नाश्ते के वक्त जोशी जी को पेमेंट पूछी तो कहने लगे, जो देना है दे दो। हमने तो आपकी सेवा के लिए इंतजाम कर रखा है। भाई साहब ने कुछ हिसाब करके उन्हें दो हजार रुपए दिला दिए। अब हम यहां से आगे चल पड़े। जारी है आगे पढें
कुकुछीना के जोशी जी चतुर आदमी हैं। जानते हैं कि बिन मांगे ही अधिक मिल सकता है, तो अपने मुंह से क्यों मांगें?
जवाब देंहटाएंयहां तक आने वालों को ऊपर पर्वत शिखर पर पाण्डुखोली में एकाध रात अवश्य रुकना चाहिए। जीवन का अविस्मरणीय अनुभव रहेगा। आश्रम में रहने, खाने-सोने की पर्याप्त व्यवस्था है।
कितने peise लगते hain
हटाएंपाताल भुवनेश्वर गुफा में लोग पहले मशालें जला कर नीचे अंदर जाते थे।
जवाब देंहटाएंमशालों के धुँए से काली हुई गुफा से बाहर निकलने पर हाथ-पैर और कपड़े काले मिलते थे। 1990 के बाद सेना के सौजन्य से गुफा में एक जनरेटर द्वारा प्रकाश की व्यवस्था हुई। पहली बार मैं भी गुफा में जाकर पूरा काला हो गया था।
अब यहां रात को रुकने के लिए कुमाऊं विकास निगम की अतिथिशाला के अतिरिक्त और भी स्थान बन गये हैं। पहले दो बार मुझे गंगोली हाट के होटल में रुकना पड़ा था।
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जवाब देंहटाएंKitne पेसे lagte है रुकने के
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