छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में स्थित छुरा ब्लोक के केडीआमा ग्राम (अब रमनपुर) में 150 वर्षों के बाद दीये जले और ग्रामीणों द्वारा दीवाली मनाई गई.
दीयों के प्रकाश से केडीआमा ग्राम एक बार फिर से रौशन हुआ. परम्परागत रूप से ग्रामीणों ने गौरी-गौरा पूजन कर रतजगा किया, राउत नाचा कर के मवेशियों को खिचडी भी खिलाई एवं विभिन्न परम्परागत सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर अपना उल्लास प्रकट किया.
इस अवसर पर मेरे मित्र नीलकंठ ठाकुर ग्रामीणों के बीच इस पर्व को मना कर इस एतिहासिक घटना क्रम के साक्षी बने.मैं उन्हें बधाई देता हूँ क्योंकि ये अवसर डेढ़ शताब्दी के बाद आया.
इस गावं में 150 साल पहले चहल -पहल थी. लोग प्रेम एवं शांति के साथ मिल जुल कर रहते थे. फिर अचानक यह गावं उजड़ गया.
बुजुर्गों के अनुसार यह गावं प्राकृतिक आपदा एवं दैवीय प्रकोप के कारण उजड़ गया, पूर्व में इस गांव के निवासियों की संख्या 65 थी.
घरों में अपने आप आग लगने एवं महामारी या अन्य आपदा के कारण लोग मरने लगे इस कारण यहाँ के निवासियों ने इस गावं को छोड़ने का निर्णय लिया. गावं तो छोड़ दिया लेकिन इस गावं में उनकी खेती बनी रही
जिसे वो आस पास के "गाय डबरी, जुनवानी, पंक्तियाँ" आदि गावों में निवास कर करते रहे. यहाँ के निवासियों में "भुंजिया, कमार, गोंड" आदिवासी एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग निवास करते थे. उनका राजस्व रिकार्ड अभी तक मौजूद है.
अंधविश्वास के कारण उजडे इस गावं को बसाने की घोषणा मुख्यमंत्री रमन सिंग ने स्वयं 16 मई 2006 को ग्राम स्वराज अभियान में उपस्थित हो कर की.
इस वीरान उजडे गावं को बसाने का शिलान्यास कर लाखों के कार्य के घोषणा भी की. इसके बाद यहाँ विकास का काम हो रहा है.
मुख्य मंत्री ने इस गावं में स्वयं आकर बसने की इच्छा जताई एवं यहाँ बन रहे आवासों में एक आवास उन्होंने अपने नाम से बनाने का आदेश भी अधिकारियों को दिया और उन्होंने इस गांव का नाम रमनपुर रखा.
एक प्रयास से सदियों से उजड़ा गावं एक बार फिर बस गया. अब यहाँ पुन: उल्लास एवं उमंग छा गया. लोग अपने पुरखों के गावं के पुन: बस जाने के से खुश हैं.
ये अवश्य किसी फिल्म की कहानी सा लगता है. लेकिन ये गांव आज हकीकत में अपना रूप फिर पा रहा है. एक उजड़ा गांव फिर बस गया.इससे बड़ी बात क्या होगी?
जहाँ आज डेढ़ सौ बरसों बाद एक बार फिर से दीये जल रहे है.
दीयों के प्रकाश से केडीआमा ग्राम एक बार फिर से रौशन हुआ. परम्परागत रूप से ग्रामीणों ने गौरी-गौरा पूजन कर रतजगा किया, राउत नाचा कर के मवेशियों को खिचडी भी खिलाई एवं विभिन्न परम्परागत सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर अपना उल्लास प्रकट किया.
इस अवसर पर मेरे मित्र नीलकंठ ठाकुर ग्रामीणों के बीच इस पर्व को मना कर इस एतिहासिक घटना क्रम के साक्षी बने.मैं उन्हें बधाई देता हूँ क्योंकि ये अवसर डेढ़ शताब्दी के बाद आया.
इस गावं में 150 साल पहले चहल -पहल थी. लोग प्रेम एवं शांति के साथ मिल जुल कर रहते थे. फिर अचानक यह गावं उजड़ गया.
बुजुर्गों के अनुसार यह गावं प्राकृतिक आपदा एवं दैवीय प्रकोप के कारण उजड़ गया, पूर्व में इस गांव के निवासियों की संख्या 65 थी.
घरों में अपने आप आग लगने एवं महामारी या अन्य आपदा के कारण लोग मरने लगे इस कारण यहाँ के निवासियों ने इस गावं को छोड़ने का निर्णय लिया. गावं तो छोड़ दिया लेकिन इस गावं में उनकी खेती बनी रही
जिसे वो आस पास के "गाय डबरी, जुनवानी, पंक्तियाँ" आदि गावों में निवास कर करते रहे. यहाँ के निवासियों में "भुंजिया, कमार, गोंड" आदिवासी एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग निवास करते थे. उनका राजस्व रिकार्ड अभी तक मौजूद है.
अंधविश्वास के कारण उजडे इस गावं को बसाने की घोषणा मुख्यमंत्री रमन सिंग ने स्वयं 16 मई 2006 को ग्राम स्वराज अभियान में उपस्थित हो कर की.
इस वीरान उजडे गावं को बसाने का शिलान्यास कर लाखों के कार्य के घोषणा भी की. इसके बाद यहाँ विकास का काम हो रहा है.
मुख्य मंत्री ने इस गावं में स्वयं आकर बसने की इच्छा जताई एवं यहाँ बन रहे आवासों में एक आवास उन्होंने अपने नाम से बनाने का आदेश भी अधिकारियों को दिया और उन्होंने इस गांव का नाम रमनपुर रखा.
एक प्रयास से सदियों से उजड़ा गावं एक बार फिर बस गया. अब यहाँ पुन: उल्लास एवं उमंग छा गया. लोग अपने पुरखों के गावं के पुन: बस जाने के से खुश हैं.
ये अवश्य किसी फिल्म की कहानी सा लगता है. लेकिन ये गांव आज हकीकत में अपना रूप फिर पा रहा है. एक उजड़ा गांव फिर बस गया.इससे बड़ी बात क्या होगी?
जहाँ आज डेढ़ सौ बरसों बाद एक बार फिर से दीये जल रहे है.
इतने दिनों बाद अपने गांव लौटकर दीपावली मनाने का आनंद कुछ और ही होगा .. छुरा ब्लोक के केडीआमा ग्राम के लोगों को बधाई !!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी खबर है। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंधन्यवाद निर्मला जी-स्नेह बनाये रखें,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता पुरी जी-आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंवाह ललित जी, मैं चार साल तक छुरा में रह चुका हूँ, फील्ड आफीसर होने के नाते प्रायः सभी गावों को जानता हूँ कई बार गायडबरी और जुनवानी भी गया हूँ किन्तु केडीआमा का नाम भी मुझे पता नहीं था।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी दी आपने!
केडीआमा गाँव वालों को भी बधाई!
अवधिया जी हमारे 36 गढ मे बहुत सारे "वीरान" गांव है,राजस्व रिकार्ड मे उनका "भरना(लगान)" सब जमा होता है लेकिन धरातल पर वे उजड़ गये हैं, आज तक मैने किसी उजड़े गांव के दुबारा बसने का समाचार नही सुना था,लेकिन"केड़ीआमा"फ़िर से बस चु्का है,ये उस गांव के निवासियों के लिए सौभाग्य की बात है,अभिनन्दन उन ग्रामवासियों का भी है जिन्होने रुढियों को तोड़ने का अनुकरणीय कार्य किया अन्यथा उजड़े गाँव मे फ़िर से बसने का साहस कोई नही करता।
जवाब देंहटाएंवे अंधविस्वास एंव भ्रातिंयों मे फ़से रहते हैं। जोहार ले
जानकार अच्छा लगा, मुख्यमंत्री रमण सिंह भी बधाई के पात्र है इसके लिए !
जवाब देंहटाएंसुघर गोठ बताए हच गा संगवारी
जवाब देंहटाएंगोदियाल जी राम-राम
जवाब देंहटाएंबने-बने गा संगवारी जोहार ले
जवाब देंहटाएंसचमुच बहुत बड़ी बात है. बस्तर में तो हमने ऐसे कई उजडे गाँव देखे थे परन्तु छत्तीसगढ़ में नहीं सुना था. आभार.
जवाब देंहटाएंरोचक खबर है . बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंसुब्रमणियम जी पहले तो बता दुं छत्तिसगढ और बस्तर एक ही है, बस्तर 36 गढ़ का एक जिला और कमिश्नरी है। दुसरी बात उजडे गाँव तो पुरे भारत में मिल जायेंगे लेकिन उजड़ने के सदियों बाद पुन: बसा हुआ गाँव शायद ही मिलेगा-धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण खबर ! रमन जी की प्रयास प्रशंसनीय है ।
जवाब देंहटाएंआश्चर्यजनक समाचार। चलिए, दीपावली मनाने की शुरूआत तो हुई। क्योंकि अंत भला तो सब भला।
जवाब देंहटाएं( Treasurer-S. T. )
यह तो आश्चर्यजनक घटना है। जानकारी के लिए आभार।
जवाब देंहटाएं( Treasurer-S. T. )
बड़ा ही अनोखा और सुखद पल रहा होगा वो...बढ़िया चर्चा...अच्छा लगा इस सुंदर अनोखी बात सुनकर..
जवाब देंहटाएंललित बाबू डाक्टर रमन आदमी बढिया है और इसलिये अच्छे काम कर रहे हैं।ज्यादा तारीफ़ कर दूंगा तो कोई दौड़ कर आ जायेगा चिल्लाते हुये चमचा है चमचा है।
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