चित्रकूट विद्वानों की नगरी रही है और है भी, तुलसी दास, अब्दुल रहीम खानखाना (रहीम कवि) जैसे विद्वान् कवियों ने यहाँ अपने साहित्य की रचना की है,
यह धार्मिक नगरी है यहाँ नित धार्मिक आयोजन होते रहते हैं.दूर -दूर से श्रद्धालु यहाँ आध्यात्मिक क्षुधा को शांत करने आते है,
आज यह चर्चा में है कि यहाँ अन्तरराज्यीय गदहों का भी मेला लगा हुआ है. यह मेला नरक चौदस से प्रारंभ होकर पॉँच दिन तक चलता है.
यहाँ पर ये आयोजन वर्षों से होता आ रहा है. इस मेले में ३६ गढ़, बिहार,झारखण्ड, मध्य-प्रदेश,उत्तर प्रदेश, और नेपाल तक के व्यापारी गदहों को बेचने एवं खरीदने आते हैं.
यहाँ मेले में आने वाले गधों का पहले पंजीयन किया जाता है.इसकी खरीदी-बिक्री पर यहाँ की नगर पंचायत को भी काफी आय होती है.
बताते हैं पिछले साल एक गधा "हीरा" सवा लाख में बिका था.
वाह क्या बात है.अब तो गदहों के दाम लग गए लाखों में. विद्वानों की नगरी में गदहों को स्थान मिलता है.
मास्टर जी अब तो गधा बोलना छोड़ दो.
यह धार्मिक नगरी है यहाँ नित धार्मिक आयोजन होते रहते हैं.दूर -दूर से श्रद्धालु यहाँ आध्यात्मिक क्षुधा को शांत करने आते है,
आज यह चर्चा में है कि यहाँ अन्तरराज्यीय गदहों का भी मेला लगा हुआ है. यह मेला नरक चौदस से प्रारंभ होकर पॉँच दिन तक चलता है.
यहाँ पर ये आयोजन वर्षों से होता आ रहा है. इस मेले में ३६ गढ़, बिहार,झारखण्ड, मध्य-प्रदेश,उत्तर प्रदेश, और नेपाल तक के व्यापारी गदहों को बेचने एवं खरीदने आते हैं.
यहाँ मेले में आने वाले गधों का पहले पंजीयन किया जाता है.इसकी खरीदी-बिक्री पर यहाँ की नगर पंचायत को भी काफी आय होती है.
बताते हैं पिछले साल एक गधा "हीरा" सवा लाख में बिका था.
वाह क्या बात है.अब तो गदहों के दाम लग गए लाखों में. विद्वानों की नगरी में गदहों को स्थान मिलता है.
मास्टर जी अब तो गधा बोलना छोड़ दो.
ांअदमी की कीमत ही कौडियों के भाव हो गयी है । शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक! आभार।
जवाब देंहटाएं