गाँधी जी ने महाप्रयाण के एक दिन पूर्व दिनांक २९ जनवरी १९४८ को एक वक्तव्य लिखा था, जो उनका आखरी वसीयत नामा माना जाता है, अक्षरश: यहाँ दिया जा रहा पढ़े और चिंतन करे.
देश का बंटवारा होते हुए भी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा मुहैया किए गए साधनों के जरिए हिंदुस्तान को आज़ादी मिल जाने के कारण मौजूदा स्वरूप वाली कांग्रेस का काम अब ख़तम हुआ.
यानी प्रचार के वहां और धारा सभा की प्रवृत्ति चलाने वाले तंत्र के नाते उसकी उपयोगिता अब समाप्त हो गयी है.
शहरों और कस्बों से भिन्न उसके सात लाख गांवों की दृष्टि से हिंदुस्तान की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आज़ादी हासिल करना अभी बाकी है.
लोकशाही के मकसद की तरफ हिंदुस्तान की प्रगति के दरमियान सैनिक सत्ता पर नागरिक सत्ता को प्रधानता देने की लडाई अनिवार्य है.
कांग्रेस को हमें राजनितिक पार्टियों और सांप्रदायिक संस्थाओं के साथ की गन्दी होड़ से बचाना चाहिए।
ऐसे ही दुसरे कारणों से अखिल भारत कांग्रेस कमेटी नीचे दिए हुए नियमो के मुताबिक अपनी मौजूदा संस्था को तोड़ने और लोक-सेवक-संघ के रूप में प्रकट होने का निश्चय करे.
जरुरत के मुताबिक इन नियमो में फेरफार करने का अधिकार इस संघ को रहेगा, गांव वाले या गांव वालों के जैसी मनोवृत्ति वाले पॉँच वयस्क पुरुषों या स्त्रियों की बनी हुई हर एक पंचायत एक इकाई बनेगी।
पास-पास की एसी हर दो पंचायतों की उन्ही में से चुने हुए एक नेता की रहनुमाई में एक काम करने वाला दल बनेगा, जब ऐसी १०० पंचायते बन जाये तब पहले दर्जे के पचास नेता अपने दुसरे दर्जे का एक नेता चुने इस तरह पहले दर्जे का नेता दुसरे दर्जे के नेता के मातहत काम करे.
२०० पंचायतों का के ऐसे जोड़ कायम करना तब तक जारी रखा जाये जब तक वो पूरे हिंदुस्तान को ना ढक ले और बाद में कायम की गयी पंचायतों का हर एक समूह पहले की तरह दुसरे दर्जे का नेता चुनता जाये।
दुसरे दर्जे के नेता सारे हिंदुस्तान के लिए सम्मलित रीति से काम करें और अपने-अपने प्रदेशों में अलग-अलग काम करें.
जब जरुरत महसूस हो,तब दुसरे दर्जे के नेता अपने में से एक मुखिया चुने, और वह मुखिया चुनने वाले चाहें तब तक सब समूहों को व्यवस्थित करके उनकी रहनुमाई करे.
२९-१-४८
मो.क.गाँधी,
(मेरे सपनों का भारत से साभार)
यानी प्रचार के वहां और धारा सभा की प्रवृत्ति चलाने वाले तंत्र के नाते उसकी उपयोगिता अब समाप्त हो गयी है.
शहरों और कस्बों से भिन्न उसके सात लाख गांवों की दृष्टि से हिंदुस्तान की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आज़ादी हासिल करना अभी बाकी है.
लोकशाही के मकसद की तरफ हिंदुस्तान की प्रगति के दरमियान सैनिक सत्ता पर नागरिक सत्ता को प्रधानता देने की लडाई अनिवार्य है.
कांग्रेस को हमें राजनितिक पार्टियों और सांप्रदायिक संस्थाओं के साथ की गन्दी होड़ से बचाना चाहिए।
ऐसे ही दुसरे कारणों से अखिल भारत कांग्रेस कमेटी नीचे दिए हुए नियमो के मुताबिक अपनी मौजूदा संस्था को तोड़ने और लोक-सेवक-संघ के रूप में प्रकट होने का निश्चय करे.
जरुरत के मुताबिक इन नियमो में फेरफार करने का अधिकार इस संघ को रहेगा, गांव वाले या गांव वालों के जैसी मनोवृत्ति वाले पॉँच वयस्क पुरुषों या स्त्रियों की बनी हुई हर एक पंचायत एक इकाई बनेगी।
पास-पास की एसी हर दो पंचायतों की उन्ही में से चुने हुए एक नेता की रहनुमाई में एक काम करने वाला दल बनेगा, जब ऐसी १०० पंचायते बन जाये तब पहले दर्जे के पचास नेता अपने दुसरे दर्जे का एक नेता चुने इस तरह पहले दर्जे का नेता दुसरे दर्जे के नेता के मातहत काम करे.
२०० पंचायतों का के ऐसे जोड़ कायम करना तब तक जारी रखा जाये जब तक वो पूरे हिंदुस्तान को ना ढक ले और बाद में कायम की गयी पंचायतों का हर एक समूह पहले की तरह दुसरे दर्जे का नेता चुनता जाये।
दुसरे दर्जे के नेता सारे हिंदुस्तान के लिए सम्मलित रीति से काम करें और अपने-अपने प्रदेशों में अलग-अलग काम करें.
जब जरुरत महसूस हो,तब दुसरे दर्जे के नेता अपने में से एक मुखिया चुने, और वह मुखिया चुनने वाले चाहें तब तक सब समूहों को व्यवस्थित करके उनकी रहनुमाई करे.
२९-१-४८
मो.क.गाँधी,
(मेरे सपनों का भारत से साभार)
बहुत बढ़िया पोस्ट प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबापू जयंती की शुभकामना .
लिखा तो सही गांधी जी ने लेकिन ऐसा हो कहा रहाँ हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत बडिया लिखा है गाँधी जी को विन्म्र श्रद्धाँजली आभार्
जवाब देंहटाएंगाँधी जी के वचनों की धज्जियाँ तो उन्ही की कांग्रेस उडा रही है |
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