मित्रों "चर्चा पान की दूकान पर" हमारा नया ब्लॉगहै. इसके नामकरण के सम्बन्ध में साथियों से बहुत चर्चाएँ हुई,
कईयों ने अलग-अलग नाम सुझाए, आखिर चर्चा पान की दूकान पर नाम पर सहमती बन ही गई, क्योंकि हमारे देश में पान की दुकाने एक आम आदमी से सीधा-सीधा संपर्क, सम्बन्ध एवं सरोकार रखती है,
गांव के गली कुचों से लेकर शहर के नुक्कड़ तक, बीच चौराहों से लेकर शहरों में कोने-कोने तक मिल जाती हैं.
अगर हमें अनजान शहर में भी किसी का पता पूछना हो तो यहाँ पर आसानी से मिल जाता है.पान की दुकान पर खड़े-खड़े ही मित्रों में अनजान व्यक्तियों में अनायास ही विभिन्न मुद्दों पर चर्चाएँ छिड़ जाती है.चाहे वो अंतर्राष्ट्रीय, रास्ट्रीय एवं स्थानीय हो,
कभी-कभी गंभीर चर्चाओं के साथ-साथ हास्य भी यहाँ पर निकल आता है, मुद्दे भी वो होते हैं जो एक आम आदमी से सीधे-सीधे जुड़ जाते हैं,
एक मित्र ने कहा कि क्या ये नाम आधी आबादी (महिलाओं) का प्रतिनिधित्व करेगा?
आज कई जगहों पर मैंने देखा है कि महिलाएं ही पान की दुकाने चलाती हैं. अब इस युग में ये बातें मायने नहीं रखती.
इस ब्लॉग में हमारे लेखक साथी भी लिख सकते हैं. हम एक स्वच्छ- विवाद रहित,आम आदमी के सरोकारों से जुड़े हुए विचार इस पर रखेंगे.
अभी इस ब्लॉग पर हमारे साथी लेखक अनिल पुसदकर, प्रसिद्द व्यंगकार गिरीश पंकज, साहित्यकार शरद कोकास , संजीव तिवारी, राजकुमार ग्वालानी, एवं अन्य रचनाकारों का गंभीर लेखन पढने मिलेगा.
ये हमारा एक सामूहिक प्रयास है, जो आपको पसंद आएगा. इसी आशा के साथ हिंदी ब्लॉग जगत को समर्पित है,"चर्चा पान की दुकान पर".
कईयों ने अलग-अलग नाम सुझाए, आखिर चर्चा पान की दूकान पर नाम पर सहमती बन ही गई, क्योंकि हमारे देश में पान की दुकाने एक आम आदमी से सीधा-सीधा संपर्क, सम्बन्ध एवं सरोकार रखती है,
गांव के गली कुचों से लेकर शहर के नुक्कड़ तक, बीच चौराहों से लेकर शहरों में कोने-कोने तक मिल जाती हैं.
अगर हमें अनजान शहर में भी किसी का पता पूछना हो तो यहाँ पर आसानी से मिल जाता है.पान की दुकान पर खड़े-खड़े ही मित्रों में अनजान व्यक्तियों में अनायास ही विभिन्न मुद्दों पर चर्चाएँ छिड़ जाती है.चाहे वो अंतर्राष्ट्रीय, रास्ट्रीय एवं स्थानीय हो,
कभी-कभी गंभीर चर्चाओं के साथ-साथ हास्य भी यहाँ पर निकल आता है, मुद्दे भी वो होते हैं जो एक आम आदमी से सीधे-सीधे जुड़ जाते हैं,
एक मित्र ने कहा कि क्या ये नाम आधी आबादी (महिलाओं) का प्रतिनिधित्व करेगा?
आज कई जगहों पर मैंने देखा है कि महिलाएं ही पान की दुकाने चलाती हैं. अब इस युग में ये बातें मायने नहीं रखती.
इस ब्लॉग में हमारे लेखक साथी भी लिख सकते हैं. हम एक स्वच्छ- विवाद रहित,आम आदमी के सरोकारों से जुड़े हुए विचार इस पर रखेंगे.
अभी इस ब्लॉग पर हमारे साथी लेखक अनिल पुसदकर, प्रसिद्द व्यंगकार गिरीश पंकज, साहित्यकार शरद कोकास , संजीव तिवारी, राजकुमार ग्वालानी, एवं अन्य रचनाकारों का गंभीर लेखन पढने मिलेगा.
ये हमारा एक सामूहिक प्रयास है, जो आपको पसंद आएगा. इसी आशा के साथ हिंदी ब्लॉग जगत को समर्पित है,"चर्चा पान की दुकान पर".
ललित भाई, आपको नए ब्लॉग के लिेए बधाई...
जवाब देंहटाएंआपका ऐलान सुनकर सिलसिला वाला वो सीन याद आ गया जिसमें अमिताभ बच्चन और शशि कपूर गाते रहते हैं...नीचे पान की दुकान...ऊपर गोरी का मकान...चर्चा ज़ोर-ज़ोर से...
वैसे ललित भाई आपका अंदाज आपकी मूंछों की तरह ही कड़क है...
जय हिंद...
अरे-ठीक हाई-ठीक हाई शर्मा जी, हम भी तनिक पान खावन को खातिर आ जाया करेंगे कभी-कभार !
जवाब देंहटाएंनए ब्लाग के लिए बधाई और शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंबढिया प्रयास....
जवाब देंहटाएंबधाई!!
main aapka tehdil se dhnayvaad krta hu ki aapne meri housla afjai ki, umeed hai bhavisey mae bhi aapka marg darshan milta rahega, ek baar phie.. bahut bahut shukria
जवाब देंहटाएंललित जी पान की दुकान पर जो चर्चा होती है....उका रंग बडा ही पक्का होता है जी शुभकामनाएं जी बहुत बहुत
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