मासूमों के साथ लगातार हो रहे अनाचार लगातार सोचने के लिए मजबूर करते हैं. बलात्कारी दरिंदों का शिकार हो रही मासूम लड़कियों को क्या न्याय मिल पाता है?
एक बलात्कार की शिकार लड़की के साथ दूसरा बलात्कार जैसा ही कृत्य थाने की पूछताछ होती है. जिसमे उससे ऐसे ऐसे सवालों का जवाब देना पड़ता है. जिस सवाल को पूछने वाला स्वयं अपनी लड़की या माँ बहन से नहीं पूछ सकता.
अपनी सामाजिक इज्जत को बचाने के चक्कर में बहुत सारी घटनाएँ तो थाने की चौखट तक पहुँचती ही नहीं हैं. अगर पहुँचती हैं तो भी पूछताछ के तौर तरीकों के कारण न्यायालय के दरवाजे तक पहुँचते-पहुँचते दम तोड़ देती हैं.
क्या कभी इन मासूमों को न्याय मिल पायेगा?
सरकार ने बलात्कारियों को सजा देने के लिए कड़े कानून बनाये हैं, लेकिन इन कानूनों का भय क्या इस समाज में भेड़ की खाल में छिपे दरिंदों को हुआ है?
लगातार बलात्कार की घटनाएँ बढती जा रही हैं. इससे हम क्या समझे? कहाँ पर चुक हो रही है?
शाईनी जैसे लोग अब जमानत पर हैं. मीडिया उसे ऐसे पेश कर रहा है जैसे उसने कुरुक्षेत्र की लडाई जीती हो?
पता नहीं उसे सजा मिल पायेगी या नहीं, गवाह खरीदे जायेंगे, बड़े बड़े वकील खड़े किये जायेंगे, जिरह करके उस मासूम लड़की की इज्जत एक बार फिर उतारी जायेगी. क्या उसे न्याय मिल पायेगा?
हमारे कानून में चूक कहाँ पर है? ये सोचने का विषय है? क्या ऐसे भेड़ियों को हमें समाज में फिर वही स्थान देना चाहिए. क्या वही प्रतिष्ठा देनी चाहिए. जरा गंभीरता से सोचें?
एक बलात्कार की शिकार लड़की के साथ दूसरा बलात्कार जैसा ही कृत्य थाने की पूछताछ होती है. जिसमे उससे ऐसे ऐसे सवालों का जवाब देना पड़ता है. जिस सवाल को पूछने वाला स्वयं अपनी लड़की या माँ बहन से नहीं पूछ सकता.
अपनी सामाजिक इज्जत को बचाने के चक्कर में बहुत सारी घटनाएँ तो थाने की चौखट तक पहुँचती ही नहीं हैं. अगर पहुँचती हैं तो भी पूछताछ के तौर तरीकों के कारण न्यायालय के दरवाजे तक पहुँचते-पहुँचते दम तोड़ देती हैं.
क्या कभी इन मासूमों को न्याय मिल पायेगा?
सरकार ने बलात्कारियों को सजा देने के लिए कड़े कानून बनाये हैं, लेकिन इन कानूनों का भय क्या इस समाज में भेड़ की खाल में छिपे दरिंदों को हुआ है?
लगातार बलात्कार की घटनाएँ बढती जा रही हैं. इससे हम क्या समझे? कहाँ पर चुक हो रही है?
शाईनी जैसे लोग अब जमानत पर हैं. मीडिया उसे ऐसे पेश कर रहा है जैसे उसने कुरुक्षेत्र की लडाई जीती हो?
पता नहीं उसे सजा मिल पायेगी या नहीं, गवाह खरीदे जायेंगे, बड़े बड़े वकील खड़े किये जायेंगे, जिरह करके उस मासूम लड़की की इज्जत एक बार फिर उतारी जायेगी. क्या उसे न्याय मिल पायेगा?
हमारे कानून में चूक कहाँ पर है? ये सोचने का विषय है? क्या ऐसे भेड़ियों को हमें समाज में फिर वही स्थान देना चाहिए. क्या वही प्रतिष्ठा देनी चाहिए. जरा गंभीरता से सोचें?
आज मैंने अख़बार में यह घटना एक बार फिर पढ़ी. अम्बिकापुर ३६ गढ़ के बलसेढी गावं की 16 वर्षीय बालिका १४ अक्तूबर को जंगल में मवेशी चराने के लिए गई थी जिसके साथ ४० वर्षीय देवी प्रसाद नामक व्यक्ति ने अकेले पाकर बलात्कार किया.
जिसकी रिपोर्ट थाने में उसके परिजनों ने की थी. आरोपी की पता साजी में पुलिस द्वारा देर हो रही थी और आरोपी भाग गया था.
लड़की के परिजनों का क्रोध उफान पर था. उन्होंने आरोपी का स्वयं पता लगा लिया और उसे ढूंढ़ कर मार डाला. जब लड़की के परिजनों को हत्या के आरोप में पकडा गया तो उन्हें हत्या करने का तनिक भी मलाल नही है.
उन्होंने कहा कि दुष्कर्म की यही सजा होनी चाहिए. हमें उसे मारने का कोई अफ़सोस नहीं है. हमने उसे सजा दे दी.
ये जंगल का कानून है. जिसने जो अपराध किया है उसे वही सजा मिलनी चाहिए. अन्य अपराधों के विषय में तो नहीं कहता पर मैं भी सोचता हूँ की बलात्कार का आरोप साबित करने के लिए पीड़ित का बयान एवं मेडिकल जाँच ही काफी होनी चाहिए और बलात्कारी को आम चौराहे पर मौत की सजा होनी चाहिए.
इसके लिए ये जंगल का कानून ही ठीक है. जिससे लोग ऐसे कृत्य करने से पहले कठोर सजा के विषय में एक बार सोचेंगे. इस कानून में बदलाव की निहायत ही आवश्यकता है.
जिसकी रिपोर्ट थाने में उसके परिजनों ने की थी. आरोपी की पता साजी में पुलिस द्वारा देर हो रही थी और आरोपी भाग गया था.
लड़की के परिजनों का क्रोध उफान पर था. उन्होंने आरोपी का स्वयं पता लगा लिया और उसे ढूंढ़ कर मार डाला. जब लड़की के परिजनों को हत्या के आरोप में पकडा गया तो उन्हें हत्या करने का तनिक भी मलाल नही है.
उन्होंने कहा कि दुष्कर्म की यही सजा होनी चाहिए. हमें उसे मारने का कोई अफ़सोस नहीं है. हमने उसे सजा दे दी.
ये जंगल का कानून है. जिसने जो अपराध किया है उसे वही सजा मिलनी चाहिए. अन्य अपराधों के विषय में तो नहीं कहता पर मैं भी सोचता हूँ की बलात्कार का आरोप साबित करने के लिए पीड़ित का बयान एवं मेडिकल जाँच ही काफी होनी चाहिए और बलात्कारी को आम चौराहे पर मौत की सजा होनी चाहिए.
इसके लिए ये जंगल का कानून ही ठीक है. जिससे लोग ऐसे कृत्य करने से पहले कठोर सजा के विषय में एक बार सोचेंगे. इस कानून में बदलाव की निहायत ही आवश्यकता है.
फिर तो सारे नेता मारे जायेंगे ?????
जवाब देंहटाएंपी.सी.गोदियाल साब,अपराधी चाहे कोई भी हो-सजा होनी चाहिए
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha aapne..........agar aisa ho jaye to aisa ghinona jurm karne se pahle koi bhi sau baar sochega aur aisa kadam uthane se darega.......kash aisa ho paye to na jaane kitni masoom zindagiyan bali hone se bach jayein.
जवाब देंहटाएंbade hi krantikari vichar dete ho bhai. alag-alag blogo ke madhyam se apni pratibha ka visfot karate rahoge to bahut se log idhar-udhar ho jayenge. badhai. lage rahe. aur samaj ko behatar soch ka pata dete rahe. balatkari ko faansi nahi kal kothari milani chahiye. use apne paapo ka ahasas hona chahiye. use glani ho, dukh ho.sharm aaye apne aap par.pashchataap kare vah.lekin kya aisa hoga..? faansi ke baad bhi kya balatkar kum honge..? sabse bada sawal yahi ai..chintan jari rahe.log to ab sochna bhi nahi chahte hai.
जवाब देंहटाएंगिरीश भैया-जाके पैर ना फ़टे बिवाई,ते का जाने पीर पराई,
जवाब देंहटाएंआपका प्रस्ताव भी विचारणीय है,ऐसा भी हो सकता है। लेकिन इस घृणित अपराध की रोक थाम आवश्यक है। हमे इसके विषय मे कदम आगे बढाना ही पड़ेगा। आपके आशीष के हम सदा आकांक्षी रहेगे।
वंदना जी, ये घृणित कार्य एक महामारी का रुप लेता जा रहा है
जवाब देंहटाएंम्रेरे हिसाब से तो इसकी रोकथाम के लिए जंगल का कानुन ही
उपयुक्त है।
आपका कहना जायज है भाई साब- इस अपराध के लिए जंगल का कानुन ही ठीक है,
जवाब देंहटाएंइस अपराध के लिए शायद अरब कंट्री में एक कानून है कि बलात्कारी का वह ख़ास अंग काट के फेंक दिया जाता है ,हमें लगता है कि यही सजा ज्यादा सटीक रहेगी ,जियो मगर घुट-घुट के ,ताकि और लोग देख कर सबक लें
जवाब देंहटाएंभाई ललित जी ,हमारे देश में नारियां इसी दहशत में हमेशा दिन गुजारती हैं ,हर तरफ दरिन्दे ही दरिन्दे हैं उनके लिए
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