आज "ललित डॉट कॉम" की 50 वीं पोस्ट लिख रहा हूँ, इस ब्लॉग पर मैंने पहली पोस्ट 15 सितम्बर को लिखी थी "
हमें प्रत्येक साँस को ही हिंदी दिवस समझाना चाहिए" इस पोस्ट से ललित डॉट कॉम का सफ़र तय हुआ. इस ब्लॉग पे मैं विभिन्न घटनाक्रमों पर अपने विचार लिखता हूँ. किसी समाचार को पढ़ कर, देख कर, सुन कर, (मेरे व्यक्तिगत अनुभव) यदि कोई विचार मन में आता है उसे अपने सभी मित्रों के साथ बाँटता हूँ,
मैंने अपने देश में सिर्फ लद्दाख को छोड़ कर सभी जगहों को बड़ी करीब से देखा है. एक वर्ष में लगभग एक-सवा लाख किलो मीटर का सफ़र अपने शिल्पकार साथियों से मिलने के लिए तय कर ही लेता हूँ. इस दौरान मैंने बहुत कुछ सीखा है.
कभी अपने यात्रा वृतांत भी मैं इस ब्लॉग पर लिखूंगा. मैंने पल-पल अपनी डायरी में संजो रखे है. इस कम अवधी में मैंने ब्लोगर मित्रों एवं पाठकों का अथाह स्नेह पाया, मुझे एक नया अनुभव भी हुआ जिनसे मैं ब्लॉग पर मिलता था उनसे पहली बार सामना हुआ तो ऐसा नही लगा कि किसी नए आदमी से मिल रहा हूँ, कोई पुराना मिलने वाला है ऐसा अहसास हुआ. और बडी आत्मीयता से मिले.
वैसे तो मैं ब्लॉग जगत पर जनवरी माह से हूँ, लेकिन सक्रिय अगस्त से ही हुआ, क्योंकि बरसात लगने से मुझे कुछ समय इस पर देने के लिए.
इन महीनों में मैंने ब्लॉग जगत बहुत सी चीजे सीखी एवं अनुभव प्राप्त किया, मैं कभी-कभी कुछ लिखने और पढने आया था ब्लॉग जगत पर, लेकिन ऐसा हो गया की मैं धीरे-धीरे एक अंग ही बन गया,
एक नाम कई दिनों से सुनता रहा हूँ "आभासी दुनिया" बहुत ही उपयुक्त नाम है, क्योंकि आज ऐसा हो गया की मैं भी इस आभासी दुनिया का एक हिस्सा बन गया हूँ, आज मेरा इंटरनेट सुबह सात बजे शुरू होता है और रात १२-१ बजे बंद होता है,
मैं अपने आप में सरल-सहज एवं विवादों से दूर रहने वाला व्यक्ति हूँ, कभी -कभी एक दो चर्चाएँ ऐसी आई जिनमे मुझे भी कूद पड़ने की इच्छा हुई. फिर मैंने अपने हाथ पीछे खींच लिए, क्योंकि हमने जो अध्ययन किया है,जो संस्कार गुरुजनों से मिले उन्होंने मुझे रोका.
क्योंकि अगर हम कदम -कदम पर ताल ठोंक कर खड़े हो जायेंगे तो अपनी मंजिल की ओर देर से पहुंचेंगे, समय कम है, काम ज्यादा है इसलिए उत्तिष्ठ -चैरेवेती-चैरेवेती. आप लोगों ने इतना स्नेह मुझे दिया कि मैं अभिभूत हूँ
एक परिवार के सदस्य के रूप में ही मै मानता हूँ. आशा है कि आपका स्नेह, प्यार और मार्गदर्शन मुझे मिलता रहेगा, यही मेरे जीवन की अक्षय पूंजी बनेगा यही मेरा बैंक बैलेंस है जो मेरे साथ जायेगा. ये कुछ पंक्तियाँ मुझे अच्छी लगती हैं, वह आपके साथ बाँट रहा हूँ., आप सभी को मेरा वंदन -अभिनन्दन - नमस्ते
हमें प्रत्येक साँस को ही हिंदी दिवस समझाना चाहिए" इस पोस्ट से ललित डॉट कॉम का सफ़र तय हुआ. इस ब्लॉग पे मैं विभिन्न घटनाक्रमों पर अपने विचार लिखता हूँ. किसी समाचार को पढ़ कर, देख कर, सुन कर, (मेरे व्यक्तिगत अनुभव) यदि कोई विचार मन में आता है उसे अपने सभी मित्रों के साथ बाँटता हूँ,
मैंने अपने देश में सिर्फ लद्दाख को छोड़ कर सभी जगहों को बड़ी करीब से देखा है. एक वर्ष में लगभग एक-सवा लाख किलो मीटर का सफ़र अपने शिल्पकार साथियों से मिलने के लिए तय कर ही लेता हूँ. इस दौरान मैंने बहुत कुछ सीखा है.
कभी अपने यात्रा वृतांत भी मैं इस ब्लॉग पर लिखूंगा. मैंने पल-पल अपनी डायरी में संजो रखे है. इस कम अवधी में मैंने ब्लोगर मित्रों एवं पाठकों का अथाह स्नेह पाया, मुझे एक नया अनुभव भी हुआ जिनसे मैं ब्लॉग पर मिलता था उनसे पहली बार सामना हुआ तो ऐसा नही लगा कि किसी नए आदमी से मिल रहा हूँ, कोई पुराना मिलने वाला है ऐसा अहसास हुआ. और बडी आत्मीयता से मिले.
वैसे तो मैं ब्लॉग जगत पर जनवरी माह से हूँ, लेकिन सक्रिय अगस्त से ही हुआ, क्योंकि बरसात लगने से मुझे कुछ समय इस पर देने के लिए.
इन महीनों में मैंने ब्लॉग जगत बहुत सी चीजे सीखी एवं अनुभव प्राप्त किया, मैं कभी-कभी कुछ लिखने और पढने आया था ब्लॉग जगत पर, लेकिन ऐसा हो गया की मैं धीरे-धीरे एक अंग ही बन गया,
एक नाम कई दिनों से सुनता रहा हूँ "आभासी दुनिया" बहुत ही उपयुक्त नाम है, क्योंकि आज ऐसा हो गया की मैं भी इस आभासी दुनिया का एक हिस्सा बन गया हूँ, आज मेरा इंटरनेट सुबह सात बजे शुरू होता है और रात १२-१ बजे बंद होता है,
मैं अपने आप में सरल-सहज एवं विवादों से दूर रहने वाला व्यक्ति हूँ, कभी -कभी एक दो चर्चाएँ ऐसी आई जिनमे मुझे भी कूद पड़ने की इच्छा हुई. फिर मैंने अपने हाथ पीछे खींच लिए, क्योंकि हमने जो अध्ययन किया है,जो संस्कार गुरुजनों से मिले उन्होंने मुझे रोका.
क्योंकि अगर हम कदम -कदम पर ताल ठोंक कर खड़े हो जायेंगे तो अपनी मंजिल की ओर देर से पहुंचेंगे, समय कम है, काम ज्यादा है इसलिए उत्तिष्ठ -चैरेवेती-चैरेवेती. आप लोगों ने इतना स्नेह मुझे दिया कि मैं अभिभूत हूँ
एक परिवार के सदस्य के रूप में ही मै मानता हूँ. आशा है कि आपका स्नेह, प्यार और मार्गदर्शन मुझे मिलता रहेगा, यही मेरे जीवन की अक्षय पूंजी बनेगा यही मेरा बैंक बैलेंस है जो मेरे साथ जायेगा. ये कुछ पंक्तियाँ मुझे अच्छी लगती हैं, वह आपके साथ बाँट रहा हूँ., आप सभी को मेरा वंदन -अभिनन्दन - नमस्ते
मुरख को समझाये के, गियान गांठ को जाये
कोयलों होय ना उजरो, तू नौ मन साबुन लगाये
ये भी देखो,वो भी देखो,
देखत देखत इतना देखो,
मिट जाये धोखा
रह जाये एको
"क्योंकि हमने जो अध्ययन किया है,जो संस्कार गुरुजनों से मिले उन्होंने मुझे रोका. क्योंकि अगर हम कदम -कदम पर ताल ठोंक कर खड़े हो जायेंगे तो अपनी मंजिल की ओर देर से पहुंचेंगे, समय कम है, काम ज्यादा है इसलिए उत्तिष्ठ -चैरेवेती-चैरेवेती."
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ललित जी!
गोल्डन जुबली पोस्ट के लिये बधाई!!
बहुत बहुत बधाई !!
जवाब देंहटाएंललित भाई...
जवाब देंहटाएंआप हाफ सेंचुरी लगाकर द्रविड़ तो बन गए...अब इंतज़ार रहेगा आपके सचिन तेंदुलकर बनने का...
जय हिंद...
पचासवीं पोस्ट की बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई पचास्वी पोस्ट के लिए .......... आपका आत्मचिंतन सुखद लगा .......
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंअरे ललित जी अभी तो ढेरों सर्वश्रेष्ठ पोस्ट बाकी हैं .....हमारी शुभकामनायें...
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