शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

गरीब बेसहारा औरते हीं टोनही क्यों करारा दी जाती हैं?

गांव और शहरों में एक अन्धविश्वास बहुत गहरे पैठा हुआ है कि बुरी नज़र, जादू मंत्र आदि होता है, एक किरदार जो हमारे देश में पाया जाता है, 

उसे क्षेत्रवार- टोनही, टूणी, डाकण, जादू टोना करने वाली औरत के नाम से जाना जाता है. इस अज्ञात भय से लोग डरे रहते हैं कि हमारा और हमारे बच्चे का अनिष्ट हो जायेगा, इसको टोनही खा जायेगी. हमारे काम-धंधे-नौकरी में कुछ व्यवधान आ जायेगा. 

इस रोग से ग्रसित अनपढ़ ही नहीं पढ़े लिखे लोग भी होते हैं. खासकर हमारे छत्तीसगढ़ में  इस तरह के मामले सामने आते ही रहते है. काफी लोग इस मानसिकता से प्रभावित हैं. 

इस कारण सरकार को "टोनही प्रताड़ना निरोधक अधिनियम २००३" बनाना पडा. इस अधिनियम में सत्य पाए जाने पर कठोर सजा का भी प्रावधान किया गया है. लेकिन फिर भी यह कृत्य रुक नहीं रहा है. 

अभी परसों ही रायपुर राजधानी में ही एक घटना हो गयी. घरों में काम करके अपना भरण पोषण करने वाली एक महिला के साथ एक परिवार ने मारपीट की और टोनही कहके प्रताडित किया. क्योंकि आरोपी के घर में एक १५ साल की लड़की कि मृत्यु पेट दर्द से हो गयी थी, 

जिसका आरोप बिस्वासा बाई पर लगाया गया कि उसने जादू टोना करके इस लड़की को खाया है, और इसके घर में घुस कर आठ-दस लोगों ने मारपीट की. इस महिला ने इसकी रिपोर्ट थाने में दर्ज कराई, और आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया, 

उनके खिलाफ टोनही निरोधक कानून के अन्तरगत  अपराध  दर्ज किया. 

इस तरह की घटनाएँ मै बचपन से देख रहा हूँ कि गांव का बैगा(जादू मंतर भूत उतारण, कष्ट निवारण करने वाला व्यक्ति-ऐसी मान्यता है) किसी को भी टोनही करार देकर उसे नंगा करके, केश मूड के गांव निकाले का आदेश देते आये हैं और पूरा गांव बैगा के आदेश पर इस दुष्कृत्य को परिणाम की परवाह किये बिना ही करने को तैयार हो जाता है, सारे मिलकर इस अपराध को अंजाम दे डालते हैं. 

कैसी विडम्बना है कि ये जान बुझकर इस अपराध को सामूहिक रूप से अंजाम दे डालते हैं.

इससे कई प्रश्न खडे हो जाते हैं. जिस औरत को ये बैगा आदि मिल कर टोनही करार देते हैं, वो हमेशा ही निर्धन, मजदूरी करने वाली, विधवा या परित्यक्ता, बेसहारा ही होती हैं, 

जिनका कोई नहीं होता, वो ही इसका शिकार बनती हैं. आज तक मैंने कभी देखा या सुना नही कि किसी पैसे वाले,रसूख वाले व्यक्ति के परिवार की किसी औरत तो टोनही करार देकर उसके साथ उपरोक्त व्यवहार करके गांव निकला दिया हो?

 गरीब बेसहारा औरतें ही इसका शिकार क्यों होती हैं?

जो अनुभव मुझे हुए हैं, उन्हें आपके साथ बांटा जायेगा. यह एक सामाजिक विकृति है जिससे आज भी नारी जूझ रही है. यह एक ज्वलंत समस्या है जिसका निदान आवश्यक है।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्‍कुल आसान सी बात है .. परिस्थितियों की मार से ही बचपन से संघर्ष करते करते जिन बिचारियों के चेहरे पर रौनक या शरीर में ताकत नहीं रह जाती .. जिन लाचारों की मदद करने को समाज का कोई व्‍यक्ति आगे नहीं आ सकता .. उन्‍हें ही तो निशाना बनाकर बैगा अशिक्षित जनता पर अपना विश्‍वास बनाए रख सकता है !!

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  2. अशिक्षित और मूर्ख लोग इसकी जड़ है ! मगर अफ़सोस कि जिन इलाको में ये घटनाएं होती है वझा कोई तो पढ़े लिखे होंगे, वे आगे क्यों नहीं आते ?

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  3. यही तो विडम्बना है कि सताया निर्बल को ही जाता है। वो कहते हैं ना "गरीब की लुगाई सबकी भौजाई"!

    बचपन में मैंने ऐसे समृद्ध औरतों को भी देखा है जिन पर टोनही होने का आरोप लगाया जाता था किन्तु उन्हें सताना तो दूर, उनके या उनके परिजनों के सामने लोग उन्हें टोनही कहने साहस भी नहीं कर सकते थे।

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  4. गोदि्याल साब कल पढे लिखों की भुमिका पर ही चर्चा होगी-इसी विषय पर,अभी ये जारी रहेगा, सभी पहलुओं को प्रकाशित होना चाहिए। आभार

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  5. lalit ji mafi chahungi......lekin mene jo samaz me dekha hai usme yah paya hai ki keval garib aur besahara mahilaye hi nahi balki sabhya aur sampann gharo ki mahilaye bhi "tonhi pratadna" ki shikar hoti hai.firk yahi hai ki garib aur besahara mahilao ka dard sabke samne aa jata hai aur tathakathit sabhy samaz ke piche chupi mahilao ka dard samne nahi aa pata...............apko yah jankar bahut dukh hoga ki jo mahilaye "tonhi pratadna " ki shikar hoti hai unki sabse badi dushman ek aurat hi hoti hai jiski kripa se char diwari ke andar sabhya aur sampann kahe jane wale gharo me ek aurat ka sarwasw dam todta nazar aata hai.....

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  6. आपने बहुत संवेदनशील मुद्दा उठाया है। इसके लिये मैं भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के ४३६४ आजीवन सदस्यों की ओर से आपका आभार मानते हुए एवं साधुवाद ज्ञापित करता हँू।

    जहाँ तक मेरा ज्ञान है, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, झरखण्ड, बिहार आदि अनेक राज्यों में इस प्रकार का दुष्कृत्य एक औझा, स्याणे या जिसे आप बैगा कहते हैं, की इकतरफा, गैर-कानूनी, असंवैधानिक और अमानवीय घोषणा पर सामूहिक रूप से अंजाम दिया जाता है। हो सकता है कि छत्तीसगढ में ऐसा दुष्कृत्य अधिक होता होगा, तब ही तो सरकार द्वारा कानून बनाकर इस पर रोक लगाने का प्रयास किया गया है।

    जहाँ तक मैं समझता हँू, हमारे हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ जो विधवा, परित्यक्ता और उम्रदराज अविवाहित स्त्री को अपमान करने वाले सम्बोधन देते आये हैं, उन्हीं के चलते ऐसा हजारों सालों से ऐसा होता आया है। इन्हीं धर्मग्रन्थों से निकलने वाली स्त्री विरोधी ध्वनि ने कालान्तर में भारतीय समाज में परम्परा या प्रथा या कुप्रथा का रूप ले लिया है। जो लोगों के अवचेतन मन में स्थापित हो जाने के कारण आसानी से निकल नहीं पा रही है। जिसे समाप्त करना बेहत जरूरी है।

    इस प्रकार के अमानवीय कुकृत्यों को रोकने के लिये एक ओर जहाँ समाज को शिक्षित करना होगा, वहीं स्थानीय स्तर पर समाजिक संगठनों को भी काम करना होगा, तब ही निरीह एवं निर्दोष विधवा, परित्यक्ता एवं निर्धन महिलाओं के जीवन को बचाना सम्भव है।

    जहाँ तक उच्च स्तरीय एवं धनवान परिवार से सम्बन्ध रखने वाली महिलाओं के साथ इस प्रकार का कुकृत्य नहीं होने का सवाल है तो सदा से यही रीति रही है कि बडे लोगों की ओर कोई आँख उठाकर देखने से पूर्व भी दस बार सोचता है। श्री अवधिया जी ने ठीक ही लिखा है कि गरीब की लुगाई सबकी भौजाई।

    कारण जो भी हों, लेकिन यह अमानवीय दुष्कृत्य किसी भी कीमत पर रुकना ही चाहिये। सभ्य मानव समाज माथे पर ऐसी घटनाएँ कलंक हैं। एक बार पुनः श्री ललित जो इस आलेख के लिये ढेर सारी शुभकामनाएँ।
    आपका
    -डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश
    सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) (जो दिल्ली से देश के सत्रह राज्यों में संचालित है।
    इस संगठन ने आज तक किसी गैर-सदस्य, सरकार या अन्य किसी से एक पैसा भी अनुदान ग्रहण नहीं किया है। इसमें वर्तमान में ४३६४ आजीवन रजिस्टर्ड कार्यकर्ता सेवारत हैं।)। फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८) मो. ०९८२८५-०२६६६
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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