मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

जादूगर का जादू का कमाल धमाल

हम बचपन से जादू देखते आये हैं, कभी टिकिट लेकर कभी बिना टिकिट सड़क के किनारे, कभी सांप नेवले का खेल, ये सब हमारी वास्तविक जिंदगी में भी होता है.

यहाँ भी सांप नेवले का खेल देखना-दिखाना पड़ता है. इससे पहले मैंने एक पोस्ट इस जादू के खेल पर लिखी थी. साथियों ने और भी इच्छा है कि एक दो जादू की ट्रिक और हो जाये. चलिए अब एक नया जादू देखते है. 

हमारे गांव में एक जादूगर आया. मंदिर के पास उसने डेरा जमाया और अपना तम्बू लगाया, रोज दो खेल जादू के दिखने लगा, 

एक दिन हमारे स्कुल में आकर कहा कि स्कुल के बच्चों के लिए स्पेशल शो है दो रूपये की टिकिट चार आना हो गई है. 

सिर्फ स्कुल के बच्चों के लिए, हम भी घर से चार आना लेकर जादू देखने गए. जादूगर एक कोरे कागज पर बिना स्याही के रंग बिरंगे अक्षर प्रगट कर देता था. कभी किसी का नाम लिखता था, कभी वर्णमाला के अक्षर दिखाता था.

उस समय हम सोचते थे कि यदि ये जादू हमें सीखा दे तो परीक्षा के समय बड़ा काम आयेगा, नक़ल के पुर्जे ऐसे ही कागज पर तैयार करके ले जायेंगे. गुरूजी को दिखेगा भी नहीं अपना भी काम हो जायेगा. अब इसका तोड़ हमने पाया है. चलिए देखते हैं ये जादू कैसे किया जाता था.

एक सादा कागज लो और उस पर निम्बू के रस से कुछ भी लिखो, 

फिर उसे थोड़ी सी आंच दिखाओ अक्षर अपने आप प्रगट होने लगते हैं. अगर हम लहसुन के रस से कागज पर लिखते हैं और उसे आंच दिखाते है तो लिखे हुए को छोड़ कर पूरा कागज लाल दिखाई देगा. 

गाय के दूध से कागज पर लिख कर आंच दिखाते हैं तो लिखा हुआ अक्षर पीला रंग का दिखाई देगा. 

यदि गेंदा के रस लिखते हैं तो भी रंग पिला ही दिखाई देगा.

आंवले के रस से लिख कर कागज गरम करने से हरे रंग के अक्षर दिखाई देंगे. 

नारंगी के रस से हाथ की हथेली पर अक्षर लिख कर उस पर थोड़ी राख डाल दें तो अक्षर काले दिखाई देंगे. आप आजमा कर भी देख सकते हैं. ये था आज का जादू.

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