यात्रा वृतान्त आरम्भ से पढ़ें
अविनाश जी ने पवन चंदन जी और त्रिपाठी जी को साथ लिया और ब्लागर मिलन स्थल की ओर चल पड़े। नांगलोई रेल्वे स्टेशन के पास राजीव जी पहुंच चुके थे हमें रास्ता बताने के लिए, जाट धर्मशाला पहुंचे तो वहां जय कुमार झा जी, संजु भाभी जी, माणिक (राजीव जी के चिरंजीव), रतन सिंग शेखावत जी मिले।
रतन सिंग जी को पहचान नहीं पाया क्योंकि मैने उनकी पगड़ी वाली फोटो ही देखी थी। जब पता चला कि रतन सिंग जी हैं तो बड़ा अच्छा लगा क्योंकि उनसे दो दिन पहले ही मेरी फ़ोन पर बात-चीत हुई थी। जाट धर्मशाला हो और वहां देशी हरियाणी ठाठ हुक्के और खाट के साथ न हो, ये तो हो ही नहीं सकता था।
हुक्का देख कर एक दो सुट्टे मारने का मारने का मन तो हुआ था लेकिन धुम्रपान नहीं करने के कारण हिम्मत नहीं पड़ी, पहले एक बार आजमाईश की थी तो कळी का पानी ही खींच लिया था। इसलिए हुक्के से दूरी बनाए रखी। हां महफ़ूज मियां ने हमेशा की तरह ना पहुंचने पर बहाना बना दिया :)
अविनाश जी ने पवन चंदन जी और त्रिपाठी जी को साथ लिया और ब्लागर मिलन स्थल की ओर चल पड़े। नांगलोई रेल्वे स्टेशन के पास राजीव जी पहुंच चुके थे हमें रास्ता बताने के लिए, जाट धर्मशाला पहुंचे तो वहां जय कुमार झा जी, संजु भाभी जी, माणिक (राजीव जी के चिरंजीव), रतन सिंग शेखावत जी मिले।
रतन सिंग जी को पहचान नहीं पाया क्योंकि मैने उनकी पगड़ी वाली फोटो ही देखी थी। जब पता चला कि रतन सिंग जी हैं तो बड़ा अच्छा लगा क्योंकि उनसे दो दिन पहले ही मेरी फ़ोन पर बात-चीत हुई थी। जाट धर्मशाला हो और वहां देशी हरियाणी ठाठ हुक्के और खाट के साथ न हो, ये तो हो ही नहीं सकता था।
अंतर सोहिल उर्फ़ अमित गुप्ता, रतन सिंह शेखावात एवं ललित शर्मा |
थोड़ी ही देर में सभी ब्लागर पहुंच चु्के थे, संगीता जी के साथ उनके भाई साब भी थे, उनके दोनो भाईयों से भी मुलाकात हुई, अवि्नाश जी के घर से निकलते वक्त संगीता जी से फ़ोन पर बात हुई थी तो मैने उनसे ऐसे ही पूछ लिया था कि आज की भविष्यवाणी क्या है? संगीता जी ने कहा कि सब ठीक रहेगा और उनकी भविष्यवाणी सही रही, सब कु्छ ठीक ही रहा।
वर्मा जी ने लैपटॉप से ब्लागर बैठकी के प्रारंभ होने की सूचना एक पोस्ट से जारी कर दी। प्रारंभ में सभी ने अपना परिचय दिया, परिचय के उपरांत पवन चंदन जी ने संचालन का मोर्चा संभाल लिया तथा अविनाश जी ने बैठकी का एजेंडा प्रस्तुत किया। हमारी नजरें अजय झा जी को ढूंढ रही थी, तभी वे भी पहुंच गए।
अविनाश जी ने ब्लागर संगठन की बात कही, जिस पर लोगों के विचार आप अन्य पोस्टों में भी देख चुके हैं, पढ चुके हैं। अमित जी (अंतर सोहिल) हरिद्वार की यात्रा पर थे लेकिन समय पर पहुंच गए, नीरज जाट जी भी सीधा मेट्रो ही लेकर पहुंच गए। नीरज एक सहृदय युवक है, इन्होने पिछली एक घटना का खुलासा किया।
ललित शर्मा एवं ज्योतिष संगीता पुरी जी |
अविनाश जी ने ब्लागर संगठन की बात कही, जिस पर लोगों के विचार आप अन्य पोस्टों में भी देख चुके हैं, पढ चुके हैं। अमित जी (अंतर सोहिल) हरिद्वार की यात्रा पर थे लेकिन समय पर पहुंच गए, नीरज जाट जी भी सीधा मेट्रो ही लेकर पहुंच गए। नीरज एक सहृदय युवक है, इन्होने पिछली एक घटना का खुलासा किया।
बालक नीरज जाट |
खुशदीप जी, इरफ़ान भाई, भी आ चुके थे। इनके आने की देर थी कि नास्ता भी आ गया, नास्ता भरपुर था, राजीव तनेजा जी ने भरपूर इंतजाम किया था। उनका मंद मंद मु्स्कुराते हुए मनुहार के साथ कलेवा कराना मन को भा गया, भाभी संजु तनेजा और बालक माणिक ने कोई कसर नहीं रखी।
जयराम विप्लव, खुशदीप सहगल, इरफ़ान कार्टुनिस्ट, अविनाश वाचस्पति |
प्रख्यात कार्टूनिस्ट इरफान, संगीता पुरी, अविनाश वाचस्पति, डॉ. वेद व्यथित, बागी चाचा, सुलभ सतरंगी, प्रतिभा कुशवाहा, संजू तनेजा, आशुतोष मेहता, खुशदीप सहगल, नीरज जाट, शाहनवाज, मयंक सक्सेना, जय कुमार झा, चंडीदत्त शुक्ल, अजय कुमार झा, योगेश गुलाटी, डॉ. प्रवीण चोपड़ा, लाल टी शर्ट में उमाशंकर मिश्र, राजीव तनेजा, राजीव रंजन, पवन चंदन, प्रवीण पथिक, रतनसिंह शेखावत, अजय यादव,विनोद कुमार पान्डे, इत्यादि से प्रत्यक्ष मुलाकात हुई (जिनका नाम भूल गया हुँ कृपया क्षमा करें) हमारे 36 गढ से भाई राजीव रंजन जी के भी दर्शन हुए। यह मुलाकात ब्लागर मीट में ही संभव हुयी।
रतन सिंह शेखावत, राजीव तनेजा, विनोद पाण्डे, शैलेष भारतवासी |
अविनाश जी एवं उपस्थित अन्य चिट्ठाकारों विचारों से मै सहमत हूँ। विरोध दुनिया में हर चीज का होता है। सर्वमान्य कोई नहीं होता। अगर सर्वमान्य हो जाए तो विरोध ही क्यों हो, कुछ लोग विरोध इस लिए करते है कि उन्हे सिर्फ़ विरोध करना है
इसलिए विरोध तो चलते रहेंगे यदि अधिकांश ब्लागर चाहते हैं तो संगठन बन कर ही रहेगा ऐसा मेरा मानना है। इस विषय पर अन्य ब्लागर बंधुओं ने पहले ही बहुत कुछ लिख दिया है।
अंतर सोहिल, नीरज जाट, ललित शर्मा, संगीता पुरी, संजू तनेजा |
पंकज शर्मा जी गुड़गांव से आ चु्के थे। मैने दिल्ली में ही रुकने की बात कही और होटल जाने की सोची। जय कुमार झा जी, राजीव तनेजा जी, खुशदीप भाई, अविनाश जी इत्यादि ने अपने निवास पर ही रुकने का आग्रह किया। मै धर्म संकट में फ़ंस गया कि किधर जाया जाए?
फ़िर फ़ैसला किया कि आज रात्रि वि्श्राम खुशदीप भाई के घर ही किया जाए। पंकज जी ने अपनी कार से मुझे खुशदीप भाई और इरफ़ान भाई को कीर्ति नगर मेट्रो स्टेशन पर छोड़ा और हम चल पड़े नोयडा की ओर्।
नोयडा मै कई वर्ष पहले भी गया था लेकिन अब तो वह पूरा ही बदल चुका है, मॉल, पब्लिक, रेलम पेल, भीड़ ही दि्खाई देती हैं, ट्रेन से उतर कर खुशदीप भाई की सवारी पर घर पहुंचे।
भाभी जी ने बढिया खाना खिलाया, दोनो बेटे-बेटियों से मिले, यह पारिवारिक मिलन यादगार रहा हैं। खुशदीप भाई ने इस कहानी के विषय में लिख ही दिया है अपनी पोस्ट"शेर सिंह के मैने पसीने छुड़ाए" पर, आगे की कहानी है कि राजीव भाई ने फ़ोन करके सुबह अपने घर बु्ला लिया।
हमने सुबह का गरमा-गरमा नास्ता करके भाभी जी को धन्यवाद दिया और बच्चों को स्नेह देकर विदा ली। खुशदीप भाई ने अपने अपने स्कुटर से मुझे मैट्रो स्टेशन छोड़ा तथा आजाद पुर की टिकट कटा कर दी। बस इनके स्नेह प्यार से अभिभूत हो गया हुँ। यह स्नेह ब्लागिंग में ही मिल सकता है,
यह एक परिवार है जिसका अहसास मुझे हुआ, मैं खुशदीप भाई के परिवार में एक सदस्य बन कर जुड़ गया मुझे पता ही नही चला कि मैं नए लोगों से मिल रहा हूँ। यही ब्लागिंग की खुबियां है जो हमें जोड़ती है। जारी है.........
खुशदीप सहगल एवं पाल गोमरा का स्कूटर |
हमने सुबह का गरमा-गरमा नास्ता करके भाभी जी को धन्यवाद दिया और बच्चों को स्नेह देकर विदा ली। खुशदीप भाई ने अपने अपने स्कुटर से मुझे मैट्रो स्टेशन छोड़ा तथा आजाद पुर की टिकट कटा कर दी। बस इनके स्नेह प्यार से अभिभूत हो गया हुँ। यह स्नेह ब्लागिंग में ही मिल सकता है,
यह एक परिवार है जिसका अहसास मुझे हुआ, मैं खुशदीप भाई के परिवार में एक सदस्य बन कर जुड़ गया मुझे पता ही नही चला कि मैं नए लोगों से मिल रहा हूँ। यही ब्लागिंग की खुबियां है जो हमें जोड़ती है। जारी है.........
(खुशदीप भाई के चेतक का यह स्टिंग आपरेशन है, यह दुर्लभ चित्र मैने मुस्किल से लिया है)
वाह ललित भाई जिन्दादिली को जिन्दा करती पोस्ट के लिए आपका धन्यवाद | जब इतने जिन्दा दिल एकजुट हैं तो मुर्दों और थाली में छेद करने वालों के चिल्लाने से क्या होगा ,आगे जो होगा बहुत ही अच्छा होगा |
जवाब देंहटाएंहमें भी बढ़िया अनुभूति हुई आपसे मिलकर | फोन पर अक्सर आपसे बातचीत होती रहती है पर साक्षात् मिलने का मौका तो ब्लोगर मिलन कार्यक्रम से ही संभव हो पाया |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन विवरण
जवाब देंहटाएंस्टिग़ के तो क्या कहने, खुशदीप जी तो चिहुंक ही गए होंगे :-)
निश्चित तौर पर ब्लॉगिंग के आभासी चरित्रों से यूँ रूबरू होना एक आनंददायक अनुभूति दे जाता है।
हम भी कोशिश करेंगे इन मित्रों से मिलने की
...बम बम ... बम बम ... बम बम ...!!!
जवाब देंहटाएंऐसा लग रहा है कि जैसे सब कुछ हमारे सामने अभी व्यतीत हो रहा हो...जीवंत रिपोर्ट...
जवाब देंहटाएंअगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा
खुशदीप भाई के चेतक का नम्बर नोट हो गया है...वैसे ये संपर्क, संबंध और अपनत्व हिन्दी ब्लॉगिंग में ही संभव है.
जवाब देंहटाएंमजा आ गया ललित जी आपकी रिपोर्ट पढ़ कर! पढ़ते हुए ऐसा लग रहा था मानो हम भी वहीं पर ही रहे हों।
जवाब देंहटाएंजबरदस्त.. लेकिन ये बिछवा स्टिंग था या शहद की मक्खी स्टिंग ये नहीं समझ आया... :)
जवाब देंहटाएं@ दीपक 'मशाल'
जवाब देंहटाएंयह चश्मा स्टिंग था :)
Jai ho.......Seedhe patli gali se...khair..
जवाब देंहटाएंवृतांत पढ़कर , मीट में न होने की कमी पूरी हो गई ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लगा इतने ब्लोगर्स को एक साथ देखकर ।
ये मेले यूँ ही सजते रहें ।
इति श्री ब्लोगरस्य मिलनस्य कथायाम द्वितियो अध्याय समाप्तम भवतु। बहुत सुन्दर विवरण। (क्रिपया इस टिप्पणी की व्याकरणीय त्रुटियों को सुधारने का कष्ट करेंगे) वैसे फोन्ट मे भी प्रोब्लम है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया विवरण ...
जवाब देंहटाएंयात्रा शानदार चल रही है... जारी रहे।
जवाब देंहटाएंस्टिंग तो बड़ा जबरदस्त रहा...:)
जवाब देंहटाएंbadhiya vivran..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लगा यह मिलन ओर यह विवरण,भगवान ने चाहा तो अगली बार सब फ़िर से मिलेगे.धन्यवाद
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी के चेतक का स्टिंग आपरेशन तो परिचर्चा में सोने पर सुहागा हो गया.
जवाब देंहटाएंयह स्टिन्ग आपरेशन आपके ही बस का था. बहुत सुन्दर और प्यारा पोस्ट. पापा जी ने स्टिन्ग नही देखा कृपया दिखाईये.
जवाब देंहटाएंब्लागर संगठन तो बनना ही है
@ M VERMA जी
जवाब देंहटाएंजिनके स्वयं के पापा का पता नहीं वे पापा बने घुम रहे हैं,अगर इतना ही मुंह चलाने का एवं पापा बनने का शौक है तो ये लोग क्यों बुर्का पहन कर घुमते हैं, जरा बुर्के से बाहर आएं तो इनको बताएं और इनके सारे संस्कार करें जिससे ये भटकती आत्मा जैसे ना फ़िरेंगें, इनका तो गरुड़ पुराण ही बंचवा देंगे।
bahut abdhiya vivran ye khubiyan hindi bloging men hi hain .
जवाब देंहटाएंbahut sundar !
जवाब देंहटाएं@ M VERMA जी
जवाब देंहटाएंजिनके स्वयं के पापा का पता नहीं वे पापा बने घुम रहे हैं,अगर इतना ही मुंह चलाने का एवं पापा बनने का शौक है तो ये लोग क्यों बुर्का पहन कर घुमते हैं, जरा बुर्के से बाहर आएं तो इनको बताएं और इनके सारे संस्कार करें जिससे ये भटकती आत्मा जैसे ना फ़िरेंगें, इनका तो गरुड़ पुराण ही बंचवा देंगे।
३० मई २०१० ४:५२ PM
वाह ललित जी बहुत बढ़िया जवाब दिया बिना पापा के पापा के लिए .वैसे इनकी खोज खबर मैंने शुरू कर दी है ,मैंने साइबर क्राइम में कार्यरतअपने एक मित्र को इस पापा जी की खोज में लगा दिया,इसका लोकेसन इंदोर मध्य प्रदेश है बाकि के विस्तृत विवरण का इंतजार है फिर इस पापा को पता चलेगा की इस ज़माने में इतने लोगो के पापा बनने के क्या-क्या फायदे हैं |
पापा जी नहीं दिख रहे कहीं चले तो नहीं गये
जवाब देंहटाएंग़ज़ब की शानदार पोस्ट....
जवाब देंहटाएंहुक्का पियें या ना पियें, चिलम भरनी जाने या ना जाने।
जवाब देंहटाएंलेकिन ये जरूर कहेंगे कि भई, हम तो देहाती हैं, हुक्के बिन काम नहीं चलेगा। चिलम भरकर लाऊं क्या?
अपने को ’ठेठ’दिखाने के लिये ये शब्द बहुत बढिया है। सामने वाला भी सुनते ही ढेर हो जाता है कि बन्दा ’ऑलराउण्डर’ है।
बहुत शानदार पोस्ट लिखी आपने...सच में कितनी ख़ुशी हुई पढ़ कर बता नहीं सकते हैं...
जवाब देंहटाएंvaah, har post lazavaab hai bhai. sub parh li. dil chhoo lene vaalee baten pareh kar khushi hui. abhi bhi aatmeeyataa bachi hui hai. dilli me achchhe log barh rahe hai. yah sub bloging ke karan hi sambhav ho saka hai. yahaa vaise log nahi hai, yahi dukh hai.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन विवरण
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