कुछ दिनों पहले दुपहरी में डाकिया आया एक अरसे के बाद डाक लेकर। नहीं तो डाक आनी ही बंद हो गयी ईमेल, मोबाईल, फ़ोन के चलन के बाद।
बस किताबें या सरकारी चिट्ठियाँ ही आती हैं। उस दिन आया एक पार्सल खोला तो उसमें थी समीर भाई की कृति-"बिखरे मोती" ।
मैने उन्हे एक बार कहा था कि"मु्झे बिखरे मोती पढना हैं तो उन्हे उसे याद रख कर भेज दी। उनकी सहृदयता पर धन्यवाद देता हूँ , तथा एक कविता "बिखरे मोती" से आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ।
बस किताबें या सरकारी चिट्ठियाँ ही आती हैं। उस दिन आया एक पार्सल खोला तो उसमें थी समीर भाई की कृति-"बिखरे मोती" ।
मैने उन्हे एक बार कहा था कि"मु्झे बिखरे मोती पढना हैं तो उन्हे उसे याद रख कर भेज दी। उनकी सहृदयता पर धन्यवाद देता हूँ , तथा एक कविता "बिखरे मोती" से आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ।
आज मुझे कुछ कहना है
मौन दमित मुखरित होने से,अब मुस्किल यह सहना है।
कल तक मै बस सुनता आया था,आज मुझे कुछ कहना है।
पीर पराई सहता था मैं
कभी ना दिल की कहता था मैं
जिन राहों पर कोई ना चलता
उन राहों पर रहता था मैं
मुझको भी उन्मुक्त मुसाफ़िर,बनकर चलते रहना है।
कल तक मै बस सुनता आया था,आज मुझे कुछ कहना है।
सबने ही मुझको भरमाया
तरह तरह से मुझे डराया
क्या क्या खेल रचे जाते हैं
सोच सोच कर मैं घबराया
मर मर के जिंदा रहने से,बेहतर जी कर मरना है।
कल तक मै बस सुनता आया था,आज मुझे कुछ कहना है।
दया धर्म का नाम नहीं,
जीवन में आराम नहीं है।
नफ़रत वाली इस महफ़िल में
प्यार पिलाता जाम नहीं है।
मुझको अब पावन नदिया सी,धारों सा बहना है।
कल तक मै बस सुनता आया था,आज मुझे कुछ कहना है।
13/05/2010
"मर मर के जिंदा रहने से,बेहतर जी कर मरना है।"
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर!
waah lalit ji lajawaab rachna...
जवाब देंहटाएंati sunder rachnaa
जवाब देंहटाएंवाह! ऐसी कवितों से जीने की उर्जा मिलती है.
जवाब देंहटाएं..आभार.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
जवाब देंहटाएंमुझको अब पावन नदिया सी,धारों सा बहना है।
जवाब देंहटाएंकल तक मै बस सुनता आया था,आज मुझे कुछ कहना है।
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक...
जवाब देंहटाएंनफ़रत वाली इस महफ़िल में
जवाब देंहटाएंप्यार पिलाता जाम नहीं है।
बहुत सुन्दर
आपका आभार पढवाने के लिये
कुछ नहीं आपने काफी कुछ बयाँ कर दिया भैया
जवाब देंहटाएंBIKHRE MOTI bahut hi pasand aai lalit ji..........
जवाब देंहटाएंललित जी आज आपने इस मुर्दा लोकतंत्र को जिन्दा करने की तम्मना आपमें भी है ,इस बात को इस कविता के जरिये साबित कर दिया / आप अपने क्षेत्र में लोगों के सर पर कफ़न बांधकर ,एक बार उनको लोकतंत्र को जिन्दा करने के निर्णायक लड़ाई के लिए तैयार कीजिये /
जवाब देंहटाएंमर मर के जिंदा रहने से,बेहतर जी कर मरना है।
जवाब देंहटाएंकल तक मै बस सुनता आया था,आज मुझे कुछ कहना है।
ललित भईया आपकी ये लाईन तो दिल को छु गयीं , लाजवाब ।
बहुत आभार, ललित भाई!! आपका स्नेह है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंएक-एक पंक्ति बार-बार पढने लायक है
जवाब देंहटाएंउम्दा कविता पढवाने के लिये आभार
प्रणाम स्वीकार करें
@ Mithilesh dubey
जवाब देंहटाएंभैया यह रचना मेरी नहीं है,समीर लाल जी की है।
उनके काव्य संग्रह"बिखरे मोती"से साभार प्रस्तुत की गई है।
बेहतरीन पंक्तियां लिखने और हम तक पहुंचाने के लिए समीर जी और ललित जी का धन्यवाद.. आभार।
जवाब देंहटाएंइस कविता को पढ़ने के बाद अपनी भी इच्छा हो गई कि बिखरे मोती अपन भी सहेज लें।
मुझको अब पावन नदिया सी,धारों सा बहना है।
जवाब देंहटाएंकल तक मै बस सुनता आया था,आज मुझे कुछ कहना है।..दिल को छु गयीं , लाजवाब .....समीर जी और ललित जी का धन्यवाद.. आभार।
दया धर्म का नाम नहीं,
जवाब देंहटाएंजीवन में आराम नहीं है।
नफ़रत वाली इस महफ़िल में
प्यार पिलाता जाम नहीं है।
मुझको अब पावन नदिया सी,धारों सा बहना है।
कल तक मै बस सुनता आया था,आज मुझे कुछ कहना है।
ललित जी ,
समीर जी की ये बेहतरीन रचना पढवाने के लिए आभार....बहुत खूबसूरत और संदेशात्मक कविता का चयन किया है...
बहुत सुन्दर तरीके से कहा जी आपने सब!और बहुत कहा!
जवाब देंहटाएंकुंवर जी,
बहुत लाजवाब ....आभार
जवाब देंहटाएंVIKAS PANDEY
www.vicharokadarpan.blogspot.com
समीर जी ने बहुत सुन्दर रचनाये समेटी है अपने इस बिखरे मोतियों की किताब में ! कुछ खास-ख़ास मैं उनके ब्लॉग पर पहले भी पढ़ चुका था !फिर भी आपने पुन: समीर जी कि इस किताब के प्रति लोगो का आकर्षण बढ़ाया है !
जवाब देंहटाएंबधाई हो भईया.
जवाब देंहटाएंबिखरे मोती को सकेल कर प्रस्तुत करने के लिए.
बिखरे मोती संग्रह से प्रस्तुत की गई कविता बड़े सही मौके पर आई है। मौका-ए-वारदात के वक्त एक गवाह के तौर पर कविता को प्रस्तुत करने लिए आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंदंभ-संभ-बंभ लिखने वालों को तो अच्छा नहीं लगा होगा। आपकी जय हो। अरे हां एक और नया प्रवक्ता आ गया है। उस प्रवक्ता पर तो मैंने लिख दिया है। गौर करने लायक बात है कि कुछ लोग जो अब तक चुपचाप बैठे हुए थे वे जैसे ही कानपुर तरफ से हलचल हुई है सक्रिय हो गए हैं। मजे की बात है कि उनकी ओर से भी अपील (राजनीति) जारी की जा रही है। जरा इस अपील जारी करने से यह तो पूछ लो भाई.. दो दिनों तक कहां थे। अब अचानक उनको हिन्दी का श्रेष्ठ लेखन याद आ रहा है।
तभी तो समीर लाल ‘समीर’ लाल हैं।
जवाब देंहटाएंमर मर के जिंदा रहने से,बेहतर जी कर मरना है।
जवाब देंहटाएंकल तक मै बस सुनता आया था,आज मुझे कुछ कहना है।
वाह उर्जा देती पंक्तियाँ ..शुक्रिया ललित जी.
बहुत सुन्दर गीत लिखा है ललित जी ।
जवाब देंहटाएंबिखरे मोती के लिए बधाई।
...बहुत बहुत बधाई "समीर भाई" .... प्रसंशनीय प्रस्तुति "ललित भाई" ...... बधाईंया !!!!
जवाब देंहटाएंबधाई हो ललित जी ! बिखरे मोती की प्रति मिलने पर :)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कविता है....
जवाब देंहटाएंसमीर जी ने मुझे भी बिखरे मोती भेंट की थी। जब भी मन बोझिल होता है उसे खोलकर एकाध रचना पढ़ लेता हूँ। मन प्रसन्न हो जाता है। आपके सौजन्य से इस गीत को दुबारा पढ़ा। आपको धन्यवाद। कवि समीर के क्या कहने...!!!
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह उम्दा रचना..
जवाब देंहटाएंबधाई...
वाह! वाह! क्या बात है? ऐसी रचना पर टिपियाने मे हुई देरी का दुख मुझे सहना है। आपकी लेखनी तो इस ब्लोग जगत का गहना है। बधाई।
जवाब देंहटाएंसमीर जी की रचनाओं के बारे में क्या कहा जाए... उनके संग्रह का नाम ही अपनी चुगली कर जाता है... सब 'बिखरे मोती' सहेजे गए हैं उस पुस्तक में..
जवाब देंहटाएंसुनिए...समीर लाल, द साउंड ऑफ साइलेंस...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
बिखरे मोती का दर्शन पा कर धन्य हो गया ।आभार
जवाब देंहटाएंपहले ब्लॉग-जगत में पोस्ट पढ़ी, फिर टिप्पणी-जगत चला गया। वहाँ जाकर खिन्न मन से लौटा था कि लोगों को इतनी जल्दी है अगर तो इतनी ज़रूरत क्या है टिप्पणियाने की?
जवाब देंहटाएंफिर ख़्याल आया कि ये निजी मामला है, और मन ख़ुश हो गया।
समीर जी की रचना पुस्तक से लाने का आभार। ब्लॉगियों के लिए ख़ासकर प्रेरणादायक है।
उम्दा रचना..बधाई.
जवाब देंहटाएं