यात्रा वृतांत आरंभ से पढें
बिलासपुर से रतनपुर के रास्ते में बैल बाजार भरता है, आस पास के किसान बैल खरीदने के लिए यहाँ आते हैं। बैल भारतीय कृषि का मुख्य अंग है। बैलों के बिना तो खेती की कल्पना ही नहीं की जा सकती, भले ही अब आधुनिक उपरकरण आ गए है, फ़िर भी बैलों की आवश्यकता बनी हुई है।
जुन का माह किसानों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस माह में किसान अपने खेतों को चौकस करते हैं, मेड़ सुधारते हैं। खेतों में बिखरे हुए कांटों को चुनकर जलाते हैं ताकि फ़सल लगाने के मौके पर पैरों में न चुभें क्योंकि रोपा लगाना, निंदाई करना एवं काटने का कार्य नंगे पैरों से ही किया जाता है।
इसके बाद खेतों में गोबर का खाद डाला जाता है और जैसे ही पहली बारिश होती है खे्तों की जुताई का काम शुरु हो जाता है। इसके बाद जिसे बोनी करनी है वह खेत को जोत कर छोड़कर देता है तथा जिसे रोपा लगाना है वह पौध बनाने के लिए धान बो देता है जिसे स्थानीय भाषा में थरहा डालना भी कहते हैं।
हमने भी कई सालों तक स्वयं ही खेती की। लेकिन नौकरों के भरोसे खेती में वह फ़ायदा नहीं होता,जो होना चाहिए, इसलिए रेग (किराए) पर दे दिया। जिससे एक निश्चित आमदनी होने की गारंटी होती है।
बिलासपुर से रतनपुर के रास्ते में बैल बाजार भरता है, आस पास के किसान बैल खरीदने के लिए यहाँ आते हैं। बैल भारतीय कृषि का मुख्य अंग है। बैलों के बिना तो खेती की कल्पना ही नहीं की जा सकती, भले ही अब आधुनिक उपरकरण आ गए है, फ़िर भी बैलों की आवश्यकता बनी हुई है।
बैल बाजार |
इसके बाद खेतों में गोबर का खाद डाला जाता है और जैसे ही पहली बारिश होती है खे्तों की जुताई का काम शुरु हो जाता है। इसके बाद जिसे बोनी करनी है वह खेत को जोत कर छोड़कर देता है तथा जिसे रोपा लगाना है वह पौध बनाने के लिए धान बो देता है जिसे स्थानीय भाषा में थरहा डालना भी कहते हैं।
हमने भी कई सालों तक स्वयं ही खेती की। लेकिन नौकरों के भरोसे खेती में वह फ़ायदा नहीं होता,जो होना चाहिए, इसलिए रेग (किराए) पर दे दिया। जिससे एक निश्चित आमदनी होने की गारंटी होती है।
मुल्य की जानकरी लेते ललित-अरविंद |
इलाके में कई जगह इन पशुओं की खरीद फ़रोख्त करने के लिए पशु मेला लगता है। हमारे इलाके लोग पहले बैल खरीदने के लिए आमगांव (महाराष्ट्र) जाते थे। वहां खे्ती योग्य उम्दा बैल मिल जाते थे। आमगांव के बैला बाजार के बारे में हम बचपन से ही सुनते आए थे। जो कि हमारे यहां से लगभग 175 किलोमीटर दूर तो होगा। अब वहां से बैल खरीद कर किसान पैदल ही कई दिनों की यात्रा करके घर पहुंचता था।
अब सोच कर लगता है कि कितना दुष्कर होता था यह यात्रा करना। अब तो बैलों की जगह ट्रेक्टर ने ले ली है। लेकिन पशुधन के बिना अभी भी खेती करना संभव नहीं है। इसलिए बैल बाजार अभी भी लग रहे हैं।
ललित शर्मा अरविंद झा और बैल दलाल |
बैल बाजार में सब तरह के बैल थे बड़े ,मंझले, छोटे। एक बैल कोचिया (दलाल) से हमने बैलों की जोड़ी की कीमत के विषय में चर्चा की । उसने एक मंझली बैल जोड़ी का मुल्य 28,000 रुपए बताया। इस बैल के 8 दांत थे, मतलब बैल अच्छा था। चार-पांच साल किसानी में साथ दे सकता। बैलों और गायों का मुल्य दांत (दाढ) देखकर ही लगाया जाता हैं, 4 दांत की गाय एवं 8 दांत का बैल उत्तम ही माना जाता है।
हमने तो अपने जीवन काल में बैल कभी खरीदा ही नहीं क्योंकि खेती अब ट्रैक्टर से होनी प्रारंभ हो गई। बचपन में एक बार बैल खरीदते हुए पिताजी को देखा था उस समय एक बैल की कीमत 300 रुपए थी। अब उस कीमत के सामने 28,000 का बैल बहुत मंहगा लगा। लेकिन पशुधन की कमी देखते हुए समयानुसार बैल का मुल्य तो सही था।
हमारे साथ अरविंद झा जी एवं अजय सक्सेना जी भी बैल बाजार का आनंद ले रहे थे। बैल बाजार में भैंसा बाजार था। भैंसे दूर से ही काले-काले शोभायमान थे। अब यमराज की सवारी का कौन मोल कर कौन बला मोल ले?
हमारे यहां भैसों को बैलों जैसे नाथ(लगाम) नहीं पहनाई जाती। नाथ पहनाने से बैलों को नियंत्रण में किया जाता है। एक प्रकार से कहूँ तो बैलों का स्टेयरिंग नाथ होती है।
बैलगाडी चलाने का भी अपना ही आनंद है। हमने बचपन में बैलगाड़ी चलाई हैं। बैलगाड़ी चलाने के लिए गाड़ीवान के पास एक उपकरण होता है जिसे स्थानीय भाषा में तुतारी (तीन फ़ुट की एक लाठी जिसके अग्र भाग में लोहे की कील लगी रहती है) कहते हैं। इस तुतारी से ही बैलों के पृष्ठ भाग में कोंच कर उन्हे नियंत्रित किया जाता है। लेकिन भैसों को लगाम नहीं डाली जाती इसलिए इन्हे मनमर्जी से चलने की आदत होती है।
कुशल गाड़ीवान ही इनपर नियंत्रण करता है। भैंसागाड़ी चलाने के लिए गाड़ीवान को इनके आगे-आगे चल कर रास्ता दिखाना पड़ता है। जिससे वे गाड़ीवान के पीछे-पीछे मस्ती से चलते रहते हैं या इन्हे बैलगाड़ी के काफ़िले में पीछे रखना पड़ता जिससे वे उसका अनुशरण कर मंजिल तक पहुंच जाते हैं
हमारे यहां भैसों को बैलों जैसे नाथ(लगाम) नहीं पहनाई जाती। नाथ पहनाने से बैलों को नियंत्रण में किया जाता है। एक प्रकार से कहूँ तो बैलों का स्टेयरिंग नाथ होती है।
बैलगाडी चलाने का भी अपना ही आनंद है। हमने बचपन में बैलगाड़ी चलाई हैं। बैलगाड़ी चलाने के लिए गाड़ीवान के पास एक उपकरण होता है जिसे स्थानीय भाषा में तुतारी (तीन फ़ुट की एक लाठी जिसके अग्र भाग में लोहे की कील लगी रहती है) कहते हैं। इस तुतारी से ही बैलों के पृष्ठ भाग में कोंच कर उन्हे नियंत्रित किया जाता है। लेकिन भैसों को लगाम नहीं डाली जाती इसलिए इन्हे मनमर्जी से चलने की आदत होती है।
विहंगम दृष्टि बैल बाजार पर |
हमने एक नजर भैंसा बाजार की तरफ़ भी डाली। सारे भैंसे एक बरगद के बड़े पेड़ की छांव में इकट्ठे हो गए थे। जानवर भी धूप से बचना चाह रहे थे लेकिन बैला बाजार के मैदान में पेड़ बहुत कम थे।
इन पशुओं के मालिक अपने साथ धूप से बचने के लिए छतरी लेकर आए थे। कि्सी ने ईंटो का चुल्हा बनाकर अपनी हंडी चढा रखी थी तो कोई अपना पंछा (अंगोछा) बिछाकर उसमें ही भात खा रहे थे,आम की चटनी के साथ ।
थाली या खाने के बरतन के अभाव में पंछा भी भोजन करने के लिए बढिया काम आता है। हम बैला बाजार देख रहे थे और हमारे साथी गाड़ी में बैठे-बैठे बोर हो रहे थे।
हमें आवाज लगा रहे थे कि -"चलो भाई जल्दी, देर हो जाएगी।" एक बार बैल बाजार पर भरपूर दृष्टि डालने के बाद हम गाड़ी में बैठ गए और चल पड़े आगे की यात्रा पर........जारी ............
इन पशुओं के मालिक अपने साथ धूप से बचने के लिए छतरी लेकर आए थे। कि्सी ने ईंटो का चुल्हा बनाकर अपनी हंडी चढा रखी थी तो कोई अपना पंछा (अंगोछा) बिछाकर उसमें ही भात खा रहे थे,आम की चटनी के साथ ।
थाली या खाने के बरतन के अभाव में पंछा भी भोजन करने के लिए बढिया काम आता है। हम बैला बाजार देख रहे थे और हमारे साथी गाड़ी में बैठे-बैठे बोर हो रहे थे।
हमें आवाज लगा रहे थे कि -"चलो भाई जल्दी, देर हो जाएगी।" एक बार बैल बाजार पर भरपूर दृष्टि डालने के बाद हम गाड़ी में बैठ गए और चल पड़े आगे की यात्रा पर........जारी ............
बचपन में हमने भी पशु मेला तो देखा था जिसमे ज्यादातर भैंस और बैल ही होते थे । लेकिन २८००० का एक बैल , यह तो काफी महंगा लगता है ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रही ये बैल भैंसा यात्रा ।
aaj aapke dwara humne bhi pashu-bazar ghoom liya, aapko dhnyvad
जवाब देंहटाएंhttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
मै अभिच सुरता करत रेहेव। कल बने बारिस होइस। त ये छत्तीसगढी गीत के सुरता आगे: आगे असाढ गिर गे पानी। भीग गे ओरिया भीग गे छान्ही। अर ररा अर धर के तता धर ले नागर धर तुतारी। तोर उपर के किस्सा मा तुतारी पढेव त लिखिच डारौ केहेव। बने सुरता देवा देस। मै मुन्गेली म रहव त पडावपारा म बैला भैसा के बजार लगत रहिसे।
जवाब देंहटाएंरोचक विवरण
जवाब देंहटाएंलगता है नागौरी बैल आप भूल गए !
जवाब देंहटाएंहमारे यहाँ भी पशुओं के छोटे बड़े मेले लगते रहते थे अब पता नहीं लगते है या नहीं ! हाँ नागौर पुष्कर आदि जगहों पर अब भी बहुत बड़े पशु मेले आयोजित होते है |
उत्तर प्रदेश से नागौरी बैल खरीदने आने वाले व्यपारियों को अक्सर बचपन में रोज देखा करते थे |
@डॉ टी एस दराल
जवाब देंहटाएंभाई साब, एक बैल नहीं, बैल की जोड़ी का रेट हो रहा है,
बैल हरियाणा के बैल जैसे नहीं है,उनसे तो आधी कद काठी के हैं।
देशी बैलों और हरियाणा के बैलों के बीच फ़रक होता है।
उनका रेट तो 50,000रुपया एक जोड़ी का हो सकता है।
अच्छा घुमवा दिये बैल बाजार हरी टी शर्ट और काला चश्मा लगा कर हीरो बनकर...:) २८००० रुपया जोड़ी तो अच्छा भाव कहलाया.
जवाब देंहटाएंबढि़या यात्रा संस्मरण लिखते हैं भाई साहब आप. यात्रा प्रवाह में पाठक भी डूबते उतराते आपके साथ चलता है.
जवाब देंहटाएंआपके भारत भ्रमण यात्रा की कड़ी का भी इंतजार रहेगा.
bahut badhiya,chuki us pashu baajaar me main bhi thaa to kah sakta hun ki pashu mulya kaa sahi vivaran pesh kiya hai aapane. pashu ke khridadaar jald hi aapse sampark karenge.
जवाब देंहटाएंyaatraa ko aapne yaadagaar banaa diyaa. dhanyavaad.
रोचक पोस्ट आभार्
जवाब देंहटाएंआईये जानें ..... मैं कौन हूं !
जवाब देंहटाएंआचार्य जी
धन्य हो माटी पुत्र ललित भाई...आपने साबित कर दिया सबले बढिया छत्तीसगढिया....बेहद रोचक और जानकारी से लबालब पोस्ट लिखी आपने...आपकी वजह से ही बैल बाजार जैसे खास जगह पर मेरी भी उपस्थिति हो पाई वरना एसी कार से न उतर कर मैं इस खास अनुभव से वंचित रह जाता...धन्यवाद आपको
जवाब देंहटाएंरोचक विवरण ..हमें भी देख लिया बैल बाजार ..शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंवैसे मेरी एक सलाह मानो भाई
जवाब देंहटाएंमानना नहीं मानना आपके ऊपर है।
आप यात्रा संस्मरण जमकर लिखा करो। इसमें आपका कोई सानी नहीं है।
कितनी चीजें स्मृतियों में जमा रहती है वह देखने लायक है। मान गए आपको।
हमारे यहां तो ट्रैक्टरों के चलते अब बैलों का चलन ही ख़त्म सा हो गया है. उल्टे अब लोग उन्हें खुला ही छोड़े दे रहे हैं जिसके कारण वे खेती तो नुक्सान पहुंचाने लगे हैं...
जवाब देंहटाएंबैलों के बाजार में ब्लागर
जवाब देंहटाएंखरीदने ही गये थे न ....
बहुत अच्छा लगा पढकर
ब्लॉगर बाज़ार ?
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंYou have wonderful skills in all areas..Thanks
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति! Mobile Price In India
जवाब देंहटाएं