मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

छत्तीगढ़ के लजीज के व्यंजन

खाने का शौक़ीन तो प्रत्येक व्यक्ति होता है. व्यंजन तो सभी को भाते हैं. चले वो किसी भी प्रदेश या देश का रहने वाला हो. एक कहावत भी है कि " किसी के दिल में प्रवेश करने का रास्ता पेट से होकर जाता है. 

अगर आप किसी अजनबी को भी अच्छे व्यंजनों से युक्त भोजन करवा देते हैं. तो वो आपका हो जाता है. 

आज कल बड़ी बड़ी बिजनेश डील भी होटलों में लंच के समय निपटा दी जाती हैं अगर लंच के समय कुछ विवाद रह गया तो वो डीनर टेबल पर स्काच के साथ निपट जाता है.

हमारे छत्तीसगढ़ में भी त्योहारों और उत्सवों के अवसर पर विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाये जाते है. 

गांव में जितने घर होते हैं, उतने प्रकार के व्यंजन होते है. छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की अलग पहचान है. 

धान का देश होने के कारण ज्यादातर व्यंजन चावल से ही बनाये जाते हैं. कार्य की सफलता के लिए माथे पर रोली के साथ चावल ही शोभायमान होता है. 

अगर किसी के यहाँ मंगल कार्य है तो उसकी सुचना भी पीले चावल के साथ दी जाती है. मंगल और पवित्रता का द्योतक यही चावल जीवन आधार है. 

फिर इससे बनाये गए व्यंजनों का स्वाद निराला क्यों नहीं होगा? 

यहाँ बहुत ही खुशबूदार चावल होते हैं जिनकी पहचान पुरे विश्व में है. इनकी खुशबु के बारे में बात करते हुए लोग कहते हैं" इंहा भात रान्धबे तो जम्मो मोहल्ला मा महमहा जाही". 

गाया भी जाता है. "बांस के पोंगरी मा भर देहिस चांउर हो, कहर महर महकथे भोजनी के राउर हो" 
ऐसा कहर महर महकने वाला चावल छत्तीसगढ़ में ही होता है. इससे बने पकवानों की खुशबु खाने वालों को आल्हादित करती है.  

चावल की यह सुगंध तो अब रासायनिक उर्वरकों ने उड़ा दी है. लेकिन पकवानों की खुशबु में कोई अंतर नहीं पड़ा है. 

समय समय पर बनने वाले मीठे और नमकीन पकवानों में लाडू, पपची, पीडिया, अईरसा, बबरा, गुलगुला, खाजा, कुसली, रोंठ, खुरमा, कतरा पकुआ, दहरौरी, दूध फरा, बबरा, घारी, चीला, चौसेला, भकोस, फरा, बफौरी, ईढर, ठेठरी खुरमी, बटकर, डुबकी, अपना अलग-अलग स्वाद और रस बिखेरते हैं.

कुछ विशिष्ट अवसरों पर विशेष तरह के व्यंजन जरुर बनते हैं. शादी में छींट के लड्डू अवश्य बनते हैं. इसमें पैसे आदि भरकर बेटी के ससुराल विशेष तौर पर भेजे जाते हैं. 

कुसली पपची सधौरी खिलाने के लिए बनता है. जब लड़की का गर्भ सातवें माह में होता है तो उसे कुसली पपची खिलाई जाती है. 

हरेली में जिसे जेठ तिहार भी कहते हैं बबरा चीला बनता है. तो राखी तीजा में ठेठरी खुरमी, पोला में मीठा खुरमा के आटे की गोली तलकर बैल की पूजा होती है. होली में अईरसा कुसली बनती है.

नया चावल आता है तब चौन्सेला, चीला, फरा, का आनंद लिया जाता है. अभी कल ही हमने चीला का भरपूर आनद लिया. 

टमाटर धनिया मिर्ची की चटनी के साथ. नया गुड आता है तो कतरा पकुआ, दहरौरी अच्छी लगती है. 

सावन में दूध का फरा बनता है. तो भादो में ईढर जिसे हम अरबी कहते हैं उसे छत्तीसगढ़ में कोचई कहा जाता है इसमें जब नए पत्ते निकलते हैं तब उसका ईढर बनाकर खाने में मजा आता है. 

बरा (बड़ा) तो सुख दुःख का साथी है. शादी में भी बरा तो मृत्यु भोज में बरा. पितृ पक्ष में तो पन्द्र दिन प्रत्येक घर में बरा बनाया जाता है, 

कौवों को खिलाया जाता है और खुद भी खाया जाता है. इस तरह हमारे छत्तीसगढ़ में  सभी त्योहारों और ऋतुओं के हिसाब से व्यजन बनाकर खाया जाता है और खिलाया जाता है. 

आपका धान के देश छत्तीसगढ़ में स्वागत है.

9 टिप्‍पणियां:

  1. lalit ji subah subah munh me pani aa gaya itane badhiya vyanjan dekh kar to kisi ka man machal jaye bahut sundar prstuti jaankari ke liye aabhar..

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  2. मुँह में पानी ला दिये महराज तैं हर तो!

    ना तीजा ना पोरा तभो ले ठेठरी खुर्मी!!!

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  3. यम ...यम ......यम्म्म्म..... यम...... यम्मी.......

    slurp...........slurp.....................slurp.................

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  4. बने बतायेस महराज. हमार छत्तीसगढ़ी-गुलगुला,ठेठरी खुरमी के सुवाद के मजा हमर ब्लागर भाई बहिनी घलव ले डारिस. जडकाला मे चना के होरा औउ मुर्रा धडकत आपके पोस्ट ला पढेन सुघ्घर लागिस .

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  5. वाह, इतने सारे व्यंजन --जानकर अच्छा लगा।
    शुभकामनायें.

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  6. वाह ललित जी गुलगुले की बात कह अपने बचपना याद दिला दिया .... वैसे आजकल के बच्चे पूछते है की गुलगुला क्या होते है ..... उन्हें यह पोस्ट अभी पढ़वाता हूँ और गुलगुले बनवाने की व्यवस्था करवा रहा हूँ ... लिखते समय मुंह में पानी आ गया वाह वाह आज तो अपने गुलगुलामय कर दिया ....

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  7. इन्‍हें बनाए देव की विधि त बताएल दिहिस महराज

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  8. waah! aap ne to khoob vyanjan bataye..kuchh naam to ek dam naye sune.

    Naye saal ki agrim shubhkamnayen.

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