शनिवार, 14 अगस्त 2010

नौजवानों की शहादत और भ्रष्टाचार

अंग्रेजों से सत्ता लिए हमको 63 वर्ष पूर्ण हो गए, हम आजादी की 64 वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। जिन उद्देश्यों को लेकर आजादी की लड़ाई हमारे पूर्वजों ने लड़ी थी, अपना खून बहाया था, माताओं ने अपने जवान बेटों का बलिदान दिया था, स्त्रियों ने अपने सुहाग एवं बच्चों ने अपने सरपरस्तों को खोया था, क्या वह उद्देश्य पूरे हो रहे हैं?

गरीबों ने अपने राज में जिस सुख की रोटी के सपने देखे थे क्या वह उन्हे मिल रही है? समाज में समानता के सपने देखे गए थे, क्या वे पूरे हो रहे हैं?
 क्या हमारे राजनेता गरीबों को सुविधा उपलब्ध करवा रहे हैं? क्या हमारे बच्चों को समान शिक्षा मिल पा रही है?
क्या सभी को रोजगार के साधन उपलब्ध हो पा रहे हैं? क्या हम शांति से सुख के साथ जीवन बसर कर पा रहे हैं? क्या भूख से मौतें होना बंद हो गयी है?

आज जब इन सवालों के जवाब ढूंढते हैं तो हमें एक ही जवाब मिलता है "नहीं"।

तो हम और हमारा लोकतंत्र, हमारे नेता इन 63 वर्षों में क्या कर रहे थे? यह एक यक्ष प्रश्न सा हमारे सामने खड़ा हो जाता है। जिसका जवाब देने को कोई भी तैयार नहीं है।

 देश में अमीरों के साथ गरीबों की संख्या भी बढती जा रही है। गरीब और गरीब होता जा रहा है धनी और भी धनी होता जा रहा है। देश में जो भी नीतियाँ या योजनाएं गरीबों को लाभ पहुंचाने की दृष्टि से बनाई जाती हैं, उन्हे अमीर लोग या उनके दलाल हाईजैक कर लेते हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री स्व: राजीव गांधी ने इसे सार्वजनिक रुप से स्वीकार किया था कि योजनाओं के बजट का सिर्फ़ 15% ही आम लोगों तक पहुंचता है। बाकी का 85% सिस्टम की भेंट चढ जाता है। यह सिस्टम नहीं हुआ सुरसा का मुंह हो गया। जो कि दिनों दिन बढते ही जा रहा है। 

63 वर्षों में एक भी दिन ऐसा नहीं आया, जिस दिन सरकार ने कहा हो कि मंहगाई कम हो गई है। मध्यम वर्ग में भी अब दो वर्ग बन गए हैं, निम्न मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग। सबसे ज्यादा निम्न मध्यम वर्ग पिस रहा है। जो कि न घर का रहा न घाट का।

सरकार की किसी योजना में उसका उल्लेख नहीं है। गरीबी रेखा में इसलिए नहीं है कि उसने कुछ कमा धमा कर टीवी, फ़्रिज, मोबाईल, एवं पक्का घर बना लिया है। अमीर इसलिए नहीं है कि उसके पास अकूत धन नहीं है।

निम्न मध्यम वर्ग की कमाई बिजली का बिल, पानी का बिल, राशन का बिल, फ़ोन का बिल, मोटर साईकिल का पैट्रोल, बच्चों की बीमारी और शिक्षा में ही चली जाती है। उसके पास बाद में जहर खाने के भी पैसे नहीं बचते। अगर किश्तों में सामान मिलने की योजना नहीं होती तो वह कुछ भी सामान नहीं खरीद पाता।

एक तरफ़ लोग भूख से मर रहे हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ़ नेता-अधिकारी एवं मठाधीशों का गठजोड़ चांदी काट रहा है। मंहगी से मंहगी गाड़ियों में सवार होकर कानून को धता बता रहा है।

गरीबों के वोट से बनने वाले सांसद और विधायक गुलछर्रे उड़ा रहे हैं, एक बार जीतने के बाद उनके क्षेत्र में क्या हो रहा है कभी दुबारा झांकने भी नहीं जाते। बस उन्हे तो अपने कमीशन से मतलब है।

जब विधायकों और सांसदो को सुविधा देने का बिल सदन में लाया जाता है तो पक्ष विपक्ष सभी उसे एक मत से पारित कर देते हैं, और जब किसान, बेरोजगारों को सुविधा देने का बिल लाया जाता है तो उस पर ये एक  मत नहीं होते। गरीबों की ही भूख के साथ खिलवाड़ क्यों होता है?

एक सर्वे के अनुसार भारत में 25 हजार लोग ऐसे हैं जो कि 2 करोड़ रुपयों की लक्जरी गाड़ियों में चलते हैं। 306 सांसद करोड़पति हैं। अब इस स्थिति में गरीबों का कल्याण कहां से होगा?

एक मेडिकल कौंसिल का अध्यक्ष केतन देसाई पकड़ा जाता है,उसके पास ढाई हजार करोड़ नगद एवं डेढ क्विंटल सोना बरामद होता है।

एक प्रशासनिक अधिकारी बाबुलाल के पास 400 करोड़ की सम्पत्ति बरामद होती है, एक उपयंत्री के यहां छापा मारा जाता है तो 2 करोड़ रुपए की सम्पत्ति बरामद होती है।

एक मधुकोड़ा पकड़ा जाता है तो 4000 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आता है। मुम्बई के एक बैंक में कोड़ा ने लगभग 600 करोड़ से उपर नगदी जमा की थी। यहां आप किसी बैंक में 50 हजार रुपया जमा करने जाते हैं तो आपको बताना पड़ता है कि कहां से लेकर आए हैं?

दिनों दिन बेरोजगारों की संख्या बढते जा रही है। औद्योगिकरण ने परम्परागत उद्योगोँ का सत्यानाश कर दिया। बड़ी मशीनों के चलते परम्परागत रुप से काम करने वाले लोग बेरोजगार होकर गरीबी से जुझ रहे हैं।

उन्हे एक जून की रोटी के लाले पड़े हुए हैं, यहां टीवी पर पिज्जा और बर्गर के विज्ञापान दिखाए जाते हैं, मिस पालमपुर डेयरी मिल्क का चाकलेट खा रही है और गरीब के बच्चे एक रोटी के लिए तरस रहे हैं।भ्रष्टाचार देश को खोखला कर रहा है।

अब इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में कितना काला धन होगा, नेता अधिकारियों एवं मठाधीशों की तिजोरी में। जिस दिन यह काला धन इनके तिजोरियों से निकल कर राष्ट्र के विकास में काम आएगा। समानता का राज होगा।

सभी के बच्चे समान शिक्षा पाएंगें। सभी को समान अधिकार होगा, जिस दिन वोट नहीं खरीदे जाएंगे। उसी दिन सही मायने में सच्ची आजादी इस देश को मिलेगी और देश की आजादी के लिए जीवनदान देने वालों की आत्मा को शांति मिलेगी।

30 टिप्‍पणियां:

  1. हालात बहुत अफसोसजनक और दुखी करने वाले हो चले है...निष्कर्ष में जो बातें आपने कहीं, उनसे शत प्रतिशत सहमत.

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  2. ... बेहद शर्मनाक स्थिति हो गई है .... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!

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  3. नेताओं ,अफसरों को ही क्यों कोसे अब तो भारत का आम जन ही भ्रष्ट हो चूका है | ऐसे में क्या उम्मीद करे ?

    देश के हालत वाकई चिंताजनक है

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  4. @Ratan Singh Shekhawat

    भाई जी, रांड तो रंडापो काट लेवे पण........!

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  5. भ्रष्टाचार के साये में आजादी के मायने बदल गये हैं
    बेहद अफसोसनाक स्थिति है.

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  6. भ्रष्टाचार को जनता ही तो बढ़ावा दे रही है, और ये कुछ सरकारी लोग जनता को लूटे जा रहे हैं, अगर सभी लोग सत्य बोलने लगें और अपने गलत कार्य को सही साबित न करने का सोच लें तो भ्रष्टाचार बिल्कुल खतम हो सकता है।

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  7. वाकई में हालात चिंताजनक हैं

    एक विचारोत्तेजक अभिव्यक्ति

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  8. lalit ji
    @ बात तो थांकी सोलाह आना साँची है |
    अब तो जनमानस भी कोई काम बिना भ्रष्टाचार के करवाने की सोचता भी नहीं ,बस पैसे भले ही खर्च हो जाये काम जल्दी होना चाहिए |

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  9. विस्फोटक माहौल बन गया है ...चिंता जायज़ ही है ...
    सार्थक विचारोत्तेजक पोस्ट ...!

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  10. आपके विचारों से सहमत हूँ..... रिश्वत देने वाला और लेने वाला दोनों ही दोषी हैं ... इस मसले पर लोगों को खुद अपने गरेबान में झाँक कर देखना चाहिए की भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए हम क्या खुद दोषी हैं ...

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  11. देश की इस सोचनीय स्थिति का कारण है स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से लेकर आज तक देश का संचालन का सिर्फ स्वार्थी तत्वों के हाथों में होना।

    अंग्रेजों के बनाए गए नियम कानूनों को, जो कि ऐसा लचीला था कि जैसे चाहो वैसे मोड़ लो, ज्यों का त्यों अपना लिया गया। किसलिए?

    स्वयं की शिक्षा नीति न बना कर मैकॉले के बनाए गए विदेशी शिक्षा नीति को जारी रहने दिया गया। किसलिए?

    सिर्फ इसलिए कि इससे उन स्वार्थी तत्वों का स्वार्थ पूरा होता रहे।

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  12. ललित जी प्रणाम, स्तिथि तो बहुत शर्मनाक है सभी जानते हैं, मेरे विचार से इसके लिए हमें ब्लॉगजगत के माध्यम से एक मुहीम चलानी चाहिए, या कुछ ना कुछ तो हमें करना चाहिए क्योंकि कहीं ना कहीं हम भी इसके ज़िम्मेदार हैं!

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  13. आज के हालात देखकर बहुत क्षोभ होता है, पर हम भी तो कुछ कर सकते हैं अपने देश की बेहतरी के लिए। और हमें खुशी है कि हम अपनी कोशिश भर तो कर ही रहे हैं।
    --------
    सपने भी कुछ कहते हैं।
    साहित्यिक चोरी का निर्लज्ज कारनामा....

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  14. स्थिति शर्मनाक अवश्य हैं परन्तु ऐसा नहीं की सुधारी न जा सके!!! सिर्फ भ्रष्टाचारी नेता ही नहीं बल्कि जनता भी इसके लिए दोषी हैं!! साफ सुथरे लोग तो कभी संसद पहुच ही नहीं सकते क्यूंकि चुनाव में उन्हें मत ही नही मिलते!! कारण सब जानते हैं

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  15. सार्थक पोस्ट ...पर कोई रास्ता नज़र आता है क्या ? यहाँ सब एक थैली के चट्टे बट्टे हैं ....अफ़सोस है सरकारी व्यवस्था पर ...

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  16. नीचे से ऊपर तक हर कोई तो भ्रष्ट है ..क्या कीजियेगा..जो नहीं भी होता मजबूरन बनना पड़ता है ..
    प्रभ्व्शाली अभिव्यक्ति.

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  17. भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार है देश मै ओर सभी नेता बेशर्म है, यह राहुल गांधी कभी भारत की खोज मै निकलते है, कभी गरीब की झोपडी मै रात बीताते है, इन्हे भारत के हालात देख कर रोना आता है, लेकिन कब? जब इन्हे भीख मै वोट चाहिये, सिर्फ़ उन दिनो आज कल कहां है?? सब बेशर्म बन गये है, अब बदलाव आये तो केसे? कोन लायेगा बदलाव? भगवान खुद आये गे? या कोई जादू से हो जायेगा? या फ़िर हम सब इन नेताओ के पांव पकडे ओर भीख मांगे? या फ़िर एक इंकलाब लाये.....

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  18. वो दिन कभी तो आएगा |१५ अगस्त की पूर्व संध्या पर आपको बधाई |

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  19. लोकतंत्र को बेशर्मों ने बना दिया लूट तंत्र ... शर्मनाक है इन बेशर्मों को इंसानियत से ज्यादा अपनी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की कुर्सी प्यारी है ...

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  20. आज के सन्दर्भ में एक सशक्त रचना |बधाई
    आशा

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    धनयवाद ...
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  22. स्वतंत्रता दिवस पर शुभकामनाएं.. सादर आभार सहित..

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  23. हालात अफ़्सोसनाक है, बहुत चिंतनीय आलेख, स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.

    रामराम.

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  24. "सबसे ज्यादा निम्न मध्यम वर्ग पिस रहा है। जो कि न घर का रहा न घाट का। सरकार की किसी योजना में उसका उल्लेख नहीं है। गरीबी रेखा में इसलिए नहीं है कि उसने कुछ कमा धमा कर टीवी, फ़्रिज, मोबाईल, एवं पक्का घर बना लिया है। अमीर इसलिए नहीं है कि उसके पास अकूत धन नहीं है। निम्न मध्यम वर्ग की कमाई बिजली का बिल, पानी का बिल, राशन का बिल, फ़ोन का बिल,मोटर साईकिल का पैट्रोल, बच्चों की बीमारी और शिक्षा में ही चली जाती है। उसके पास बाद में जहर खाने के भी पैसे नहीं बचते।"
    आज के सन्दर्भ में एक सशक्त रचना,प्रभावशाली अभिव्यक्ति के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ |

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  25. स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आपको बहुत बहुत बधाई .कृपया हम उन कारणों को न उभरने दें जो परतंत्रता के लिए ज़िम्मेदार है . जय-हिंद

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  26. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!!


    http://iisanuii.blogspot.com/2010/08/blog-post_15.html

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  27. जब एक ही उल्लू काफी हो बर्बादे गुलिस्तां करने को
    और हर शाख पे उल्लू बैठा हो तो अंजामे गुलिस्तां क्या होगा !

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