बहुत बढिया ललित भाई जबरदस्त... इस पोस्ट को देखकर मुझे शाहरूख की फिल्म फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी की याद आ गई. इस फिल्म में भी जिसे फांसी की सजा दी जा रही होती है उसके कपड़ों में तमाम तरह के विज्ञापन चिपका दिए जाते हैं. बधाई...
अब विज्ञापन से हम उत्पाद को नहीं खरीदते बल्कि हमसब अब विज्ञापन के उत्पाद बना दिए गयें हैं ,इसमें मिडिया पर पूरी तरह लोभी लालची,अनैतिक और भ्रष्ट लोगों का कब्ज़ा हो जाना सबसे प्रमुख कारन है अब मिडिया द्वारा अनैतिकता को बेचा जा रहा है और इसमें देश के 95% मिडिया को चलाने वाले लोग शामिल हैं और सरकारी भ्रष्टाचार और सम्बेदन्हीनता भी इसी मिडिया के वजह से है ..हमसब को इस दिशा में गंभीरता से सोचते हुए ऐसे मिडिया को खत्म करने की ओर सोचना चाहिए ...
बाजारवाद ने कहीं का नहीं छोड़ा है।
जवाब देंहटाएंकम्पनियों के विज्ञापन ने उत्पात मचा रखा है।
जवाब देंहटाएंजहां देखो वहीं विज्ञापन ही विज्ञापन
आपने तीखा प्रहार किया है
जवाब देंहटाएंविज्ञापन के कुछ भी करेंगे
जवाब देंहटाएंशर्म आनी चाहिए इन्हे,पर आती नहीं।
प्रायोजित कार्यक्रम अच्छा रहा।
जवाब देंहटाएंएक चित्र ही पूरी कथा कह देता है।
देश की हालत क्या हो गयी भगवान
जवाब देंहटाएंकितना बदल गया इंसान-कितना बदल गया इंसान
विच प्रोग्राम?
जवाब देंहटाएंहा हा हा
और कहीं जगह बची है क्या?
जवाब देंहटाएंविज्ञापन के लिए-अच्छा है प्रायोजित कार्यक्रम
@वन्दे मातरम् जी
जवाब देंहटाएंकृपया इस तरह टिप्पणियाँ न करें
मेरे ब्लाग पर आगमन के लिए शुक्रिया।
यह कटाक्ष है,हमने अपना ज़मीर भी अब विज्ञापनों में होम दिया है।
जवाब देंहटाएंमुझे जापानी पुरानी कहनी याद आई ...
जवाब देंहटाएंhttp://en.wikipedia.org/wiki/H%C5%8Dichi_the_Earless
जय हो...
जवाब देंहटाएं"हमें बच्चों से बेहद प्यार है,
जवाब देंहटाएंआखिर यही तो भावी बाजार है. "
क्या बात है, जय हो बाजारवाद की.........
विज्ञापन का युग है भई! सब कुछ हो सकता है! :)
जवाब देंहटाएंबाजार की खिल्ली उड़ाती बच्चे की हंसी.
जवाब देंहटाएंkamal ka post
जवाब देंहटाएंयह बाजारवाद कहाँ ले जायेगा .....
जवाब देंहटाएंपर बच्चे को उत्पाद माने या विज्ञापनों को .. :):):)
बाजारवाद ने कहीं का नहीं छोड़ा है।
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा
जवाब देंहटाएंबिना बोले बहुत कुछ कहती हुई एक बढिया पोस्ट
प्रणाम
Hi bhagvaan ab ye din bhi dekhena padega in chote chote bachcho ko .........
जवाब देंहटाएंआजकल हालात कुछ ऐसे ही है.
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग
खूबसूरत, लेकिन पराई युवती को निहारने से बचें
http://iamsheheryar.blogspot.com/2010/08/blog-post_16.html
शायद,बाज़ारवाद गर्भ तक पहुंच गया है। अन्यथा,ऐसी हालत में बच्चा मुस्कुरा कैसे सकता है?
जवाब देंहटाएंहद हो गई :)
जवाब देंहटाएंविज्ञापन से आय का एक और श्रोत बताने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद , ललित जी
जवाब देंहटाएंबस यही कसर बची थी।
जवाब देंहटाएंho sakta hai bhavishya men ye program bhi sponsered by ho jaaye :)
जवाब देंहटाएंदिस कमेंन्ट्स प्रेजेन्टेड बाई ......|
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया ललित भाई
जवाब देंहटाएंजबरदस्त...
इस पोस्ट को देखकर मुझे शाहरूख की फिल्म फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी की याद आ गई.
इस फिल्म में भी जिसे फांसी की सजा दी जा रही होती है उसके कपड़ों में तमाम तरह के विज्ञापन चिपका दिए जाते हैं.
बधाई...
बहुत खूब .. सच है ये एक दिन हालात यही होगा
जवाब देंहटाएंबाजार जो न करवा दे
:)
जवाब देंहटाएंजय हो विज्ञापन बनाने वाली फर्म की !!
जवाब देंहटाएंबहुत सही!!
जवाब देंहटाएंअब विज्ञापन से हम उत्पाद को नहीं खरीदते बल्कि हमसब अब विज्ञापन के उत्पाद बना दिए गयें हैं ,इसमें मिडिया पर पूरी तरह लोभी लालची,अनैतिक और भ्रष्ट लोगों का कब्ज़ा हो जाना सबसे प्रमुख कारन है अब मिडिया द्वारा अनैतिकता को बेचा जा रहा है और इसमें देश के 95% मिडिया को चलाने वाले लोग शामिल हैं और सरकारी भ्रष्टाचार और सम्बेदन्हीनता भी इसी मिडिया के वजह से है ..हमसब को इस दिशा में गंभीरता से सोचते हुए ऐसे मिडिया को खत्म करने की ओर सोचना चाहिए ...
जवाब देंहटाएंएक बार फ़िर जय हो
जवाब देंहटाएंबस यही कसर बची थी..!
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंक्रूरता की मिसाल !! इसे बाज़ार कहते हैं और हम सभी कहीं न कहीं इनके चंगुल में हैं.
जवाब देंहटाएंआपने वही कहा है या कहने की कोशिश की है.जो सच है सूरज सा चमकता हुआ!
हमज़बान यानी समय के सच का साझीदार
पर ज़रूर पढ़ें:
काशी दिखाई दे कभी काबा दिखाई दे
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_16.html
यह इस दुनिया मे आने के बाद का चित्र है तो इसके बाद क्या होगा ?
जवाब देंहटाएंजय जय.
जवाब देंहटाएंरामराम.
Wonderful Article..It has very rich content. Thanks for sharing..
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