शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

रामबती जाग उठी

“रोगहा, भड़वा अब मार के देख, तोर मुर्दा नई रेंगा देंव त मोर नाम रामबती नइए”- रामबती गरज रही थी। ढेलु डंडा लेकर खड़ा था उसके सामने,बीबी भी साथ में थी। नल पर भोर में मजमा लगा था,पानी भरने वालों का।

सभी मुंह फ़ार के तमाशा देख रहे थे किसी की हिम्मत नही थी कि वे ढेलु के हाथ से डंडा लेकर रामबती को छोड़ाएं।

“तोर खून कर देहूं आज”-ढेलु गरज रहा था। आस-पास के घर वालों ने अपने किवाड़ बंद कर लिए थे और किवाड़ के दरज से देख रहे थे।

ढेलू ने जैसे ही रामबती को मारने के लिए लाठी घुमाई, रामबती ने पलटा खा कर वार बचाया और झुक कर ढेलु की मर्दानगी को ही पकड़ लिया और जोर से उमेंठ दिया।

ढेलू के छक्के-पंजे बंद हो गए, वह मारे दर्द के बिलबिला उठा। रामबती जैसे उमेंठती, वह वैसे ही वेदना से चिल्लाकर दोहरा हो जाता। दो लाठी खाने के बाद रामबती के हाथ ढेलू की चाबी लग गयी ।

ढेलू की पत्नी दोनों के बीच में घुस कर छुड़ाने का प्रयास कर रही थी। लेकिन रामबती छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी। ढेलू निढाल हो चुका था, जैसे उसकी जान निकल रही हो।

उसकी मर्दानगी अब रामबती के हाथ थी। बेबस होकर उससे छोड़ने की गुहार कर रहा था।इस घटना की सूचना किसी ने रामबती के पति को दे दी।

वह डर के मारे घर से नहीं निकला। रामबती को ही ढेलू को सुधारना पड़ा। जब ढेलू की बीबी उसके पैरों में गिर गयी तब रामबती ने ढेलु को छोड़ा।

इस घटना की चर्चा सारे गाँव में फ़ैल चुकी थी। ढेलू का पुरुषार्थ धरा रह गया था। वह घर में घुसा हुआ था, किसी को मुंह दिखाने के लिए बाहर नहीं निकल रहा था।

उधर रामबती अपनी आप बीती लोगों को सुना रही थी। झगड़े का कारण था,नल से पानी भरना। जब भी फ़ूलबती अपनी गुण्डी(पीतल की मटकी) लेकर पानी भरने नल पर जाती तो ढेलू की बीबी पहले से पानी भरते रहती।

उसके पानी भरते तक वह किसी को नल को हाथ भी न लगाने देती थी। एक घंटे तक सभी महिलाएं अपनी-अपनी गुण्डी लेकर नल पर खड़ी रहती थी। लेकिन वह पट्ठी किसी को नल के पास फ़टकने तब तो।

ढेलू गाँव का कोटवार था, इसलिए उसकी दबंगई के सामने कोई कुछ नहीं कहता था। रुतबे का गलत फ़ायदा ये हमेशा उठाते थे।

रामबती को भी काम में जाना था, इसलिए उसने नल के नीचे आज अपनी गुण्डी लगा ली थी। जो ढेलू की बीबी को नागवार गुजरी और उसने अपने पति को आवाज दी, वह लाठी लेकर आया और रामबती पर बिना बात किए ही चलाने लगा। दो लाठी खाने के बाद तो रामबती उसका हाल बेहाल कर दिया।

रामबती पहले ऐसी नहीं थी, वह अपने काम में मगन रहने वाली औरत थी, लेकिन मरता क्या न करता इसलिए उसने परेशान होकर आज बहुत साहस का काम किया था। उसका क्रोध उमड़ ही पड़ा। कब तक सहती वह अत्याचारों को। जन्म से ही तो सहते आई है।

बचपन में माता-पिता की मृत्यु के बाद मामा ने उसका पालन-पोषण किया था, मामी उसे बहुत दु:ख देती थी। घर का सारा काम कराती और खाने भी नहीं देती थी। एक दिन उसने मामा से शिकायत कर दी तो मामा ने मामी को खूब मारा था। मामी ने उसे दुगना सताना प्रारंभ कर दिया। इस डर से अब वह मामा से भी शिकायत नहीं कर पाती थी।

15 बरस की हुई तो मामी ने उसकी शादी दबाव डाल कर एक अधेड़ से करवा दी और उसके एवज में कुछ पैसे अंटी में दबा लिए। उसका पति दारु पीकर आता और उसे मारता-पीटता। कोई काम नहीं करता था। इसलिए उसे 5 घरों में बर्तन-झाड़ू करने जाना पड़ता था।

जब वह कमा कर लाती तो उसका पति अब छीन कर दारु पी जाता। बस किसी तह मार सहकर भी अपनी जीवन की गाड़ी चला रही थी। उसके कोई आल-औलाद तो हुई नहीं थी।

एक दिन गांव में ट्रांसफ़र होकर एक साहब आए। उनकी पत्नी बीमार थी। जिसकी सेवा करने के लिए उन्हे एक बाई की जरुरत थी। उन्होने रामबती को काम पर रख लिया।

गांव के लोगों ने ढेलू वाली घटना साहब को बताई, उससे सावधान रहने को कहा। लेकिन साहब कुछ अलग ही तरह के इंसान थे, उन्होने किसी की बात की तरफ़ ध्यान देने की बजाए रामबती को काम पर रख ही लिया।

रामबती ने उनकी पत्नी की लगन से सेवा करनी प्रारंभ कर दी। उनकी पत्नी को लकवा हो गया था। वह खाट से हिल भी नहीं सकती थी। रामबती उसकी लगन से सेवा करती।

एक दिन उसे पता चला कि दारु पी-पी कर उसके पति को टीबी हो गयी है और इलाज नहीं कराने के कारण वह अंतिम चरण में पहुंच गयी है। कुछ दिनों में उसका पति अंतिम सांसे गिनने लगा। जैसा भी था उसका पति था।

उसने पति का अपनी औकात से ज्यादा इलाज कराया लेकिन एक दिन वह चल बसा। उसके घर में कफ़न-दफ़न करने के लिए भी रुपए पैसे नहीं थे।

साहब ने उसकी सहायता की और उसके पति का अंतिम संस्कार कराया। बिरादरी को भोजन भी कराया। अब रामबती अकेली हो चुकी थी पहाड़ सी जिन्दगी उसके सामने थी। बचपन से ही ठोकरें खा रही थी। लगता है उसकी किस्मत में यही लिखा था।

वह साहब के यहां नित्य काम पर जाती। उनकी पत्नी की सेवा करती, साहब के भी दो छोटे-छोटे बच्चे थे। एक दिन साहब की पत्नी ने दुनिया से विदा ले ली। साहब भी अब अकेले हो गए थे।

रामबती को उनके घर का अब सारा काम करना पड़ता था। एक दिन साहब ने रामबती को अपने साथ रहने का प्रस्ताव दिया। वे उसके साथ दूसरा विवाह करना चाहते थे। रामबती ने बहुत सोच विचार कर हां कर दी।

दोनो ने एक दुसरे का हाथ थाम लिया। रामबती अपने दुखों से निजात पा चुकी थी, बचपन के दुख और तकलीफ़ों के विसर्जन का समय आ चुका था वह एक नयी जिन्दगी सुख की शुरु कर चुकी थी। वह जाग उठी थी, अब पहले वाली रामबती नहीं साहबिन हो चुकी थी।

26 टिप्‍पणियां:

  1. अंत भला तो सब भला. चलो, रामबती के दिन बहुरे और इमानदार सेवा का फल मिला.

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  2. ऐसा भी होता है ? पर कहानी रोचक है । रामबती सा साहस सब औरतें दिखायें ।

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  3. बढ़िया कहानी हवे भईया. फेर ओ साहब के बिरादरी वाले मन हा साहब के जी ला नई लीहीन का?

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  4. अच्‍छी कहानी .. अंत भला तो सब भला !!

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  5. रोचक कहानी लगी .... बढ़िया प्रस्तुति.....ललितजी

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  6. छत्तीसगढ़ के गाँवों-कस्बों के जन-जीवन को दर्शाती हुई और जागृति का सन्देश देती हुई एक सार्थक कहानी!

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  7. कहानी के अंत में पाठक के मन में यह सवाल उठता है
    कि इसके बाद क्या हुआ ? बस , यही इस कहानी की
    कामयाबी है . बहुत -बहुत बधाई.

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  8. बहुत बढ़िया कहानी है |आप की कहानिया हमेशा ही अच्छी लगती है |

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  9. साहस मनुष्य का सबसे बड़ा साथी है .......
    http://oshotheone.blogspot.com/

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  10. रामबत्ती को अच्छा जीवन देने के लिए आपका आभार
    स्थानीयता के चटख रंगों के साथ बेहतर कहानी

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  11. "परिस्थिति जीना सिखा देती है

    अंधे को भी 'विवेक' का डगर दिखा देती है"

    वर्तमान में भी निठल्ले ऊपर से दारुबाज

    पति वाली, झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली जो घर

    घर झाडू पोंछा करती हैं, ऐसी महिलाओं की

    कमी नहीं है. बहुत ही सुन्दर कहानी..

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  12. सब रंगमंच की पुतलियां हैं, जिनमें 'कुछ' की डोर अभी भी ऊपरवाले के हाथ में है।

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  13. कहानी बहुत अच्छी लगी.... कोरियर मिला आपको?

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  14. सुंदर और सार्थक कहानी, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  15. इसे कहते है जागरुक नारी, गुलाबी चड्डी वालियो मै इतनी अक्ल कहा,यह तो अपने घर को क्या बसायेगी, बसा वसाया घर भी उजाड देती है, बहुत सुंदर लगी आप की यह कहानी ,राम बती को सलाम

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  16. behtarin rachna,badalte samay ke sath badlte sambandho ,aur insan ke insan se jude rahne ko darshati hui...

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