शनिवार, 5 जून 2010

दिल्ली यात्रा-8 अंतिम में मिले हंसी ठिठोली के बादशाह

यात्रा वृतान्त आरम्भ से पढ़ें 
दिल्ली यात्रा से वापस हम पहुंच रहे थे नागपुर, ट्रेन पूरी 5 घंटे लेट हो चुकी थी। नागपुर पहुंचे तो दो बज चुके थे। जो कि रायपुर पहुंचने का समय है। तभी मुझे याद आया कि सूर्यकांत गुप्ता जी भिलाई से प्रतिदिन राजनांदगांव आते हैं। उन्हे फ़ोन करके देखा जाए,अगर उनके पास समय हो तो राजनांदगांव से साथ ही दुर्ग तक चलें। बहुत दिन हो गए थे उनसे मुलाकात हुए।

होशंगाबाद रेल्वे स्टेशन
उन्हे फ़ोन लगाया तो जवाब मिला कि डोंगरगढ आने पर फ़ोन लगाएं। वे स्टेशन पहुच जाएगें। डोंगरगढ पहुंचने के बाद फ़ोन लगाकर सू्चना दी गई। गुप्ता जी राजनांदगांव में पहुंच चुके थे। अपने साथ गरमा गरम कचौरी, रसमलाई और पानी लेकर। साथ में एक गरमी कम करने के लिए ठंडे की बोतल भी। हमने दही कचौरी खाई और हमारी हमारी हंसी ठिठोली चलती रही।

मित्र गुप्ता जी कि एक खास बात यह है कि जीवन में बचपन से ही झंझावातों को झेलने के कारण हमेशा मुस्कु्राते ही रहते हैं। हंसी ठिठोली उनका व्यक्तित्व का एक अंग है। जिसने बचपन में माता पिता के जाने का दुख दे्खा हो वह हंसी और उत्साह उल्लास की कीमत समझता है।

ललित शर्मा और सूर्यकांत गुप्ता
बस उनकी यही विशेषता मुझे उनके करीब ले आती है। वे जीवन के हर क्षण को खुशी के साथ जीना चाहते हैं, वे हर खुशी अपने परिवार और मित्रों की झोली में डाल देना चाहते हैं जिसकी उन्हे जरुरत है।

यह रिश्ता दिल से दिल का रिश्ता है। मैं इनसे पूर्व परि्चित तो  नहीं था लेकिन इन एक वर्ष की मुलाकात में अपरिचित भी नहीं  हुं। मेरे से उम्र में बड़े है तथा उनके स्नेह का सागर मेरे लिए तो छलकता ही रहता है।

गुप्ता जी की एक खासियत उनके ब्लाग से भी झलकती है वे शब्दों के अर्थ अपने हिसाब से करते हैं, उनके अंग्रजी के शार्टकट भी धांसु होते हैं, इतने चुटीले होते हैं कि आपका हंसते हंसते पेट फ़ूल जाएगा।

दिल्ली यात्रा के बाद फ़ुरसत में
सफ़र में हम इन्ही शार्टकट पर नवीन शोध करते रहे, नवीन शार्टकट पर हंसी के ठहाके लगाते रहे। कुछ देर बाद दुर्ग स्टेशन आ चुका था, गुप्ता जी और हमारा साथ यहीं तक का था। गुप्ता जी ने अपनी दुकान संभाली और शटर डाउन किया, जय जोहार कर चल पड़े।

उनके जाने के बाद हमारे अनुज का फ़ोन आया कि वे भी दुर्ग में हैं किसी आवश्यक कार्य से आए हुए हैं। उन्होने कहा कि यदि आपकी गाड़ी नहीं गयी है तो दुर्ग ही उतर जाईए फ़िर घर साथ ही चलेंगे। मै आपको लेने के लिए स्टेशन आ रहा हूँ।  हमें गाड़ी से उतरना पड़ा।

वांटेड राजकुमार सोनी - पोस्टर
पुन: गुप्ता जी को फ़ोन लगाया तो उन्होने बताया कि गेट के पास हैं हम भी स्टेशन के बाहर आ गए थे। अनुज का ईंतजार करने के लिए। गुप्ता जी के पास भी एक खुशदीप भाई जैसी गाड़ी है जिसे वे स्टेशन पर छोड़ कर जाते हैं।

मेरे कैमरे की बैटरी डाउन हो चुकी थी नहीं तो उसका भी स्टिंग आपरेशन हो जाता। कु्छ देर पश्चात हमारे अनुज भी आ चुके थे। गुप्ता जी से उनकी पहली भेंट हुई जय जोहार हुआ। फ़ि्र सबने मिलकर इटली डोसा खाया, गुप्ता जी से विदा ली और चल पड़े रायपुर शहर की ओर्।

यहां आकर देखा तो राजकुमार सोनी के पोस्टर लगे हुए थे:) इस तरह हमारी दि्ल्ली यात्रा का समापन हुआ। जो कि हमारे दिल पर गहरी छाप छोड़ गयी। एक नयी उर्जा, नयी जानकारियां, नए अनुभवों के साथ हम फ़िर तैयार है जीवन की जीजिविषा से लड़ने के लिए। फ़िर तैयार है मित्रों के साथ जीने के लिए प्रेम से सद्भाव से स्नेह से हमेशा की तरह्। जारी है ..... आगे पढ़ें 

28 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया रहा पूरा यात्रा वृतांत और गुप्ता जी के ब्लॉग से तो परिचित है ही..उनसे आपके माध्यम से परिचय पाना बहुत अच्छा लगा. जय जोहार.

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया रहा पूरा यात्रा वृतांत

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही बढ़िया रहा आपका यात्रा वृतांत...!!
    आपका धन्यवाद..

    जवाब देंहटाएं
  4. यहां आकर देखा तो राजकुमार सोनी के पोस्टर लगे हुए थे:)
    बेहतरीन यात्रा वृत्तांत
    राजकुमार जी वांटेड के पोस्टर में आश्चर्य नहीं हुआ, पर यह पोस्टर कौन से मामले वाला है.
    बाखबर कर दिया न राजकुमार जी को?

    जवाब देंहटाएं
  5. आपका व्यक्तित्व बहुआयामी है!
    यात्रावृत्तान्त बहुत सुखद लगा!

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह ललित भाई एक ही सांस में पढ़ डाले, मजा आ गया आपके यात्रा वृत्तांत में, और वाकई अगर ऐसे दोस्त मिल जायें तो जिंदगी में खुश्बू महकने लगती है।

    जवाब देंहटाएं
  7. @M VERMA जी

    हा हा हा

    इनके वांटेड पोस्टर तो निकलते ही रहते हैं
    अब किस किस मामले की पैरवी की जाए,
    और कौन सा मामला बताया जाए, कई
    मामले तो इन्हे खुद ही पता नहीं है,
    वकील ही बताता है कि किस दिन पेशी है।

    जवाब देंहटाएं
  8. सर्वप्रथम ललित भाई को प्रातः कालीन वन्दन सुप्रभात। आजकल शायद रबी और खरीफ़ दोनो के फसल का सीजन नही है फिर भी हम चढा दिये गये चने के झाड़ पर। धन्यवाद ललित भाई। इहा ब्लोग जगत मा घुसेरने वाला तीन झन मुख्य रूप से आय सन्जीव, ललित अउ भाई शरद कोकास। एहू हा नसा कस ताय, बुझाबे नइ करै हमर प्यास्। ललित भाई विद्युत प्रवाह अवरुद्ध रहने के कारण हम जल्दी टिप्पणी नही कर पाये।

    जवाब देंहटाएं
  9. हमर दूनो झन के फोटो भी रिफ़ाइन्ड हे एकदम झकास। कइसे नई रइही आखिर शिल्पकार के कमाल जौन हे एमा।

    जवाब देंहटाएं
  10. साबित किया कि बहुत यारबाज हैं आप!

    जवाब देंहटाएं
  11. बढ़िया...रोचक एवं विस्तृत विवरण

    जवाब देंहटाएं
  12. सुखद अहसास रही यह यात्रा , यह जानकर अच्छा लगा ।
    गुप्ता जी जैसे मित्र पाकर कोई भी धन्य हो सकता है ।

    जवाब देंहटाएं
  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  14. ...सुखद व सार्थक यात्रा ... बहुत बहुत बधाई ... कुछु खाई-वाई लाय हस ...!!!

    जवाब देंहटाएं
  15. यात्रा वृत्तान्त जोरदार चल रहा है!

    जवाब देंहटाएं
  16. हा.. हा.. हा..
    भाई तुमने पोस्टर किसी बाथरूम की दीवार पर तो नहीं देखा है न
    क्या है अपनी दिल्ली इच्छा यही है कि जहां भी रहे भले ही पोस्टर में रहे वहां थोड़ी सफाई जरूर रहनी चाहिए।
    कमाल के आदमी हो यार... अच्छा लगा।

    जवाब देंहटाएं
  17. vaah...kamaal kar diya. lekin rajkumar ka पोस्टर kahaan mil gaya...? ha...ha...manoranjak yatra rahi..sahity mey ''yatra-vritant'' ek vidha hai. is vidha ka sundar nazara dikha.

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत कुछ समेट लिया आपने इस दिल्ली यात्रा वृत्तांत में ललित जी , ये राजकुमार जी के पोस्टर लगाने की जरुरत थी ? क्योंकि जब अपराधी चिरपरिचित हो जाता है तो पोस्टरों की जरुरत नहीं पड़ती है शायद :)

    जवाब देंहटाएं
  19. रोचक यात्रा रही जी आपकी
    लेकिन लगता है कि यह थोडा और चलती रहनी चाहिये थी
    सूर्यकांत गुप्ता जी के बारे में जानकर अच्छा लगा

    प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  20. आईये जानें .... मैं कौन हूं!

    आचार्य जी

    जवाब देंहटाएं
  21. aapne to post se hi hamari yatra bhi kara di .......................................

    जवाब देंहटाएं
  22. बहुत सुंदर रही आप की यह यात्रा... पोस्टर तो दिखा दिये कोई इनाम सनाम भी लिखा था क्या?

    जवाब देंहटाएं
  23. लो आपके साथ हम भी यायावर हो गए …
    रोचक !
    लाजवाब !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

    जवाब देंहटाएं
  24. बहुत बढिया, चलिए आपके बहाने हमने भी दिल्ली यात्रा कर ली।

    जवाब देंहटाएं
  25. सूर्यकांत गुप्ता जी से परिचय का शुक्रिया....यदा कदा उनका ब्लाग पढने का अवसर मिल ही जाता है..

    जवाब देंहटाएं
  26. बढ़िया रहा आपका यह यात्रा वृतांत ....

    जवाब देंहटाएं
  27. मैं शाकाहारी हूँ। मीट चाहे ब्लॉगर का हो या किसी और का, अवॉइड करता हूँ।
    इसीलिए अब तक कोई पोस्ट नहीं पढ़ी थी इस सीरीज़ में से। दूसरे मुझे दिल्ली से अरुचि है। अब है तो है - कोई एक कारण नहीं जो बता सकूँ। सो भूले से यह पोस्ट पढ़ गया - और पढ़ा तो जाना कि क्या मिस कर रहा था अब तक।
    अब बाक़ी भी पढ़ूँगा। अच्छा तो लिखते ही हैं आप, यह वृत्तांत भी रोचक है। बधाई।

    जवाब देंहटाएं