आरम्भ से पढ़ें
दो अप्रेल की सुबह का कार्यक्रम टूर आपरेटर ने रात को ही बता दिया। सुबह का नाश्ता स्विमिंग पुल के किनारे हुआ। सभी ने अपना सामान पैक करके बस में चढा दिया। हमें क्रोकोडायल पार्क एवं कारबंदी मठ फ़ुंतशोलिन (फ़ुंशलिंग) में देखना था। होटल से साढे आठ बजे निकले, बस में डीजल डलवाते हुए साढे नौ बजे क्रोकोडायल पार्क पहुंचे। यहां देखने के लिए पचास रुपए की टिकिट लगाई हुई है। वैसे कुछ खास नहीं है, इतने मगरमच्छ तो हमारे यहां नदियों में घूमते रहते हैं। कोटमी सोनार के तालाब में ही दो तीन सौ होंगे। यहां घड़ियाल एवं मगरमच्छ दोनों का संरक्षण किया जा रहा है। सभी लोग क्रोकोडायल पार्क से जल्दी ही निकल आए।
दो अप्रेल की सुबह का कार्यक्रम टूर आपरेटर ने रात को ही बता दिया। सुबह का नाश्ता स्विमिंग पुल के किनारे हुआ। सभी ने अपना सामान पैक करके बस में चढा दिया। हमें क्रोकोडायल पार्क एवं कारबंदी मठ फ़ुंतशोलिन (फ़ुंशलिंग) में देखना था। होटल से साढे आठ बजे निकले, बस में डीजल डलवाते हुए साढे नौ बजे क्रोकोडायल पार्क पहुंचे। यहां देखने के लिए पचास रुपए की टिकिट लगाई हुई है। वैसे कुछ खास नहीं है, इतने मगरमच्छ तो हमारे यहां नदियों में घूमते रहते हैं। कोटमी सोनार के तालाब में ही दो तीन सौ होंगे। यहां घड़ियाल एवं मगरमच्छ दोनों का संरक्षण किया जा रहा है। सभी लोग क्रोकोडायल पार्क से जल्दी ही निकल आए।
हम हिन्दुस्तानी दल का फ़ुंतशोलिन से थिम्पू की ओर प्रस्तान |
क्रोकोडायल पार्क से हम थिम्पू की ओर चल पड़े। फ़ुंतशोलिन (Phuentsholing) से ही चढाई प्रारंभ हो जाती है। अब हमको लगातार ऊपर पहाड़ों पर ही चलना होगा। एक भी स्थान ऐसा नहीं है, जहां मैदान हो। यह भारत के पश्चिम बंगाल के जयगाँव का सीमावर्ती कस्बा है। यह सड़क मार्ग से भूटान का प्रवेश द्वार है, यहीं रायल भूटान का इमिग्रेशन दफ़्तर है, जहाँ से भारतीयों के लिए परमिट एवं विदेशियों के लिए वीजा दिए जाते हैं। यहाँ कारबंदी मोनेस्ट्री है। नगर में ही थोड़ी दूर पर ऊंचाई पर स्थित इस मठ से भारतीय सीमा के जयगांव और तुरसा नदी का हवाई दृश्य देखा जा सकता है।
क्रोकोडायल पार्क के बाहर चर्चा |
इस मठ में उष्णकटिबंधीय पौधे लगे हुए हैं, जिनके सुंदर फ़ूलों से बगीचा भरा रहता है। इसका निर्माण राजमाता आशी फ़ुंसो चोदेन ने 1967 में कराया था। यहां वे सर्दियों के मौसम में निवास करती थी। उनका एक घर भी पहाड़ी पर बना हुआ है। यह मठ 400 मीटर की ऊंचाई पर निर्मित है। यहां से पहाड़ियों एवं नदी की सुंदर दृश्यावली दिखाई देती है। यहाँ 5 तिब्बती शैली के स्तूप बनाए गए हैं। इस मठ में शाक्य मुनि बुद्ध, गवांग नामग्याला एवं गुरु रिनपोछे की प्रतिमा स्थापित है।
कारबंदी मठ फ़ुंतशोलीन |
जनश्रुति हैं कि एक बार किसी नि:संतान भारतीय जोड़े ने आकर इस मठ के दर्शन किए और उन्होंने संतान प्राप्ति की कामना से पूजा की। उसके पश्चात उन्हे संतान की प्राप्ति हुई। इसके बाद से यहाँ संतान प्राप्ति की आस लिए नि:संतान जोड़े लगातार आते हैं और संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। इस मठ में संतान प्राप्ति के उद्देश्य से नियमित आने वालों की संख्या बहुत अधिक है। भारत का सीमावर्ती नगर होने के कारण इस मंदिर तक पहुंचने के लिए किसी परमिट की आवश्यकता नहीं है, लोग इस मठ तक बेरोक टोक आ सकते हैं।
नजारों को कैद करने की जद्दोजहद |
कारबंदी मठ की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद जयगांव एवं नदी का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। यहां पहुंच कर सभी लोगों के कैमरे खुल गए और तड़ातड़ चलने लगे। पर्यटकों का काम ही यही है, जो स्थान सुंदर दिखे उसे कैमरे में कैद कर लो। पहले तो किसी एकाध के पास कैमरा होता था, अब तो हर हाथ में है। जितनी चाहे उतनी फ़ोटो खींच लो। मठ का मुख्य द्वार इस समय बंद था। फ़िर भी हम सबको यहां एक घंटा लग ही गया। यहां से अब हमें सिर्फ़ दोपहर के भोजन के लिए ही रुकना था। रास्ते में राजेश अग्रवाल जी ने गाने सुनाए, हम हिन्दुस्तानी गाने में तो मजा ही आ गया। द्वारिका प्रसाद जी भी कम रंगीले नहीं है, उन्होंने भी कुछ गाने सुनाए, इस तरह सफ़र चलता रहा।
कारबंदी मठ से भारत के जय गाँव नगर का दृश्य |
भूटान में गंदगी फ़ैलाने पर सख्ती से पाबंदी है। आप कहीं भी खाकर कुछ भी फ़ेंक नहीं सकते। बस में भी कूड़ादानी की व्यवस्था की हुई थी। जयगांव से भारत और भूटान के बीच में तुरसा नदी सीमा रेखा बनी हुई, यह भूटान से निकल कर भारत की ओर बढती है यहीं से दोनो राष्ट्र अपनी सीमाओं में विभाजित हो जाते हैं। भूटान की सीमा पर बसा हुआ कस्बा फ़ुंसलिंग है। यहीं से थिम्पू की ओर आगे बढ़ने पर पहाड़ियां प्रारंभ हो जाती हैं, जिनका अंत नजर नहीं आता।
गेदू में सड़क पर तफ़री करते बादल |
फ़ुंसलिंग से भारत को थिम्पू जोड़ता हुआ सड़क मार्ग 170 किमी का है। दूरी तो मात्र 170 किमी दिखाई देती है, परन्तु सड़क मार्ग की यात्रा कितनी कठिन होती है, यहीं आकर पता चलता है। यह दूरी लगभग 6 से 7 घंटे में पूरी की जाती है, वो भी अगर कुशल चालक हो तब। अन्यथा नया व्यक्ति तो कहीं न कहीं घाटी में गाड़ी गिरा बैठेगा। फ़ुंसलिंग से आगे बढने पर एक घंटे की ड्राईव के बाद गेदू नामक बस्ती आती है।
बादलों के बीच गर्मागर्म चाय का एक कप सुमंत बसु के साथ |
यहाँ पर बादल सड़क पर टहलते मिल जाते हैं और बादलों की धुंध में दृश्यता 5 से 10 फ़ुट ही रह जाती है। इस स्थान पर घाटी 3 हजार मीटर गहरी है। बिना किसी हार्न की चिल्ल पों के ड्रायवर इस स्थान को पार कर लेता है। यह रास्ता इतना खतरनाक है कि अगर धोखे से सड़क की पटरी से एक कदम भी बाहर रख दिया तो स्वर्गवासी होने में देर नहीं लगेगी और बॉडी भी नहीं मिलेगी। यहां हमने गाड़ी रोक कर चाय पी। भूटान सरकार ने स्थानीय निवासियों के लिए सड़क पर गुमटी बना कर दे रखी हैं, वे इसमें अपनी उपज बेचने आते हैं। यहाँ याक के दूध के चीज एवं दूध का अत्यधिक प्रयोग होता है।
स्ट्रीट शॉप गेदू |
इस 170 किमी की यात्रा काफ़ी रोमांचक है, छुखा, बुनाखा, चपचा, सकेनांग, खासखा, सेमतोखा, होते हुए थिम्पू पहुंचते तक इतने हेयरपिन आए कि उनकी गिनती ही नही है। पारो के लिए जाने वाले मार्ग से पूर्व एक स्थान पर खड़ी घाटी है, जहाँ दोनो तरफ़ पहाड़ हजारों मीटर की ऊंचाई पर 90 अंश के कोण में खड़े हैं। अगर आप सड़क मार्ग का अवलोकन कर रहे हैं तो यहाँ पर अवश्य ही राम-राम भज ही लेगें। रोमांच तब खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है जब बिना हार्न बजाए गाड़ियाँ एक दूसरे को पार करती हैं। थोड़ी सी भी चूक हुई तो समझो फ़्रेम में जड़ गए।
भूटानी शाक सब्जी |
हमारे यहाँ तो ऐसे खतरनाक अंधे मोड़ों पर हार्न प्लीज, ब्लो हार्न का बोर्ड लगा रहता है। भूटान के वाहन चालकों को बिना हार्न बजाए वाहन चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है। इस 170 किमी के रास्ते में याद नहीं आता कभी हमारे वाहन चालक ने हार्न बजाया होगा। भूटान में हर तीन महीनें ड्रायवरों को ट्रेनिंग के लिए बुला लिया जाता है। उन्हें तीन दिन मार्गों एवं वाहन चालन की शिक्षा दी जाती है, जो सभी लायसेंसधारियों के लिए अनिवार्य है। अनौपचारिक भेंट में सांसद नीमा ने बताया कि हमारे यहाँ हार्न नहीं बजाने पर जोर दिया जाता है, जिससे ध्वनि प्रदूषण नहीं के बराबर होता है। सारा सफ़र शांति से तय हो जाता है। नियंत्रित गति एवं अपनी लेन में चलने के कारण यहाँ दुर्घटनाएं नगण्य हैं।
यहां हमने दोपहर का भोजन किया |
भूटान में ट्रैफ़िक पुलिस नहीं है, आवश्यकता पड़ने पर सामान्य पुलिस ही इस कार्य को अंजाम देती है। किसी भी शहर के चौक चौराहों पर ट्रैफ़िक सिंगल नहीं है। जेब्रा क्रासिंग पर लोग अपने वाहन स्वयमेव धीरे कर लेते हैं और पैदल चलने वालों को रास्ता देते हैं। यहाँ अगर सड़क प्र कोई पशु भी आ जाता है तो उसके लिए वाहन रोक लिया जाता है और उसे सड़क पार करने दिया जाता है। इससे पता चलता कि यहाँ पशुओं के प्रति कितना सम्मान है और मानवीयता तो अपने चरम पर है। अगर कहीं दुर्घटना घट जाती है और कोई घायल भी हो जाता है तो वह बड़ा समाचार हो जाता है, क्योंकि ऐसा कभी कभी घटता है। हवाई जहाज एवं सड़क मार्ग दोनो से ही भूटान की यात्रा रोमांचक है।
थिम्पू नगर में प्रवेश |
दोपहर दो बजे हम एक मनोरम स्थान पर भोजन करने के लिए रुके। यहां से घाटी के मध्य से गिरता हुआ झरना सुंदर दृश्य उत्पन्न कर रहा था। इस स्थान को पर्यटकों के भोजन इत्यादि के लिए तय किया हुआ है। यहां पर कूड़ेदान रखा हुआ है, आपको खाने के बाद कचरा कूड़ेदान में ही डालना होगा। इसकी देख-रेख वाहन चालक करते है और जो कचरा इधर उधर फ़ेंकते हैं उन्हें समझाते भी हैं। भोजन करने के बाद हम यहां से चलकर शाम छ: बजे थिम्पू पहुंच गए। यहां हमें वांगचुंग रिसोर्ट में ठहरना था। यह रिसोर्ट शहर से दूर ताबा में हैं, पर है बहुत सुंदर। इसकी संचालिका थिन ले लामा सुसभ्य स्त्री है। रिसोर्ट में पहुंच कर सबको पसंद के हिसाब से कमरे बांट दिए गए। जारी है आगे पढें…
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंइस सीरीज का इन्तजार था ताकि आपके लेखों और फोटोज के जरिये हम भी भूटान देख सकें
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंइस सीरीज का इन्तजार था ताकि आपके लेखों और फोटोज के जरिये हम भी भूटान देख सकें
बड़ा अद्भुत देश है । हमारे यहाँ एक टीचर है भूटान का । वो बताता है भूटान के बारे में ।
जवाब देंहटाएंबड़ा अद्भुत देश है । हमारे यहाँ एक टीचर है भूटान का । वो बताता है भूटान के बारे में ।
जवाब देंहटाएंथिम्पू प्रसिद्द जगह है ... आप लोगों के साथ यात्रा करना बड़ा मजा आया ....
जवाब देंहटाएंपढकर बहुत अच्छा लगा ऐसा लगा कि हर श्रंखला थोड़ी बड़ी होनी चाहिए इतने जल्दी समाप्त हो जाती है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंट्रैफिक नियमों के बारे मे अच्छी जानकारी दी।