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हम नेशनल मेमोरियल चोर्तेन देखने पहुंचे। भूटान आने वाला हर यात्री इस स्थान पर पहुंच ही जाता है। ड्रुक ग्यालपो किंग जिग्मे दोरजी वांगचुक (1928-1972) अजदहा (डेग्रन) के देश भूटान के तीसरे ड्रुक थे। उन्हें आधुनिक भूटान का जनक माना जाता है। राजधानी थिम्पू के मध्य भारतीय सैनिक अस्पताल के समीप उनकी याद में एक स्मारक बना हुआ है, जिसे "नेशनल मेमोरियल चोर्तेन" कहा जाता है। इस स्मारक परिकल्पना तिब्बती बौद्ध परम्परा के अनुसार थिनले नोरबू ने की, परन्तु इसका निर्माण ड्रुक की माता फ़ुंतसो चोडेन वांगचुक ने 1974 में कराया था।
हम नेशनल मेमोरियल चोर्तेन देखने पहुंचे। भूटान आने वाला हर यात्री इस स्थान पर पहुंच ही जाता है। ड्रुक ग्यालपो किंग जिग्मे दोरजी वांगचुक (1928-1972) अजदहा (डेग्रन) के देश भूटान के तीसरे ड्रुक थे। उन्हें आधुनिक भूटान का जनक माना जाता है। राजधानी थिम्पू के मध्य भारतीय सैनिक अस्पताल के समीप उनकी याद में एक स्मारक बना हुआ है, जिसे "नेशनल मेमोरियल चोर्तेन" कहा जाता है। इस स्मारक परिकल्पना तिब्बती बौद्ध परम्परा के अनुसार थिनले नोरबू ने की, परन्तु इसका निर्माण ड्रुक की माता फ़ुंतसो चोडेन वांगचुक ने 1974 में कराया था।
नेशनल चोर्तेन थिम्पू |
यहां बने हुए स्तूप में अन्य स्तूपों की तरह राजा की कोई खास सामग्री (अस्थियाँ) नहीं रखी गई है। अन्य स्तूपों के विपरीत यहाँ सिर्फ़ ड्रुक की तश्वीर रखी हुई है। किंग जिग्में दोरजी वांगचुक के मन में ऐसा स्मारक बनाने की इच्छा थी जो बौद्ध धर्म का प्रतिनिधित्व करता हो और थिम्पू शहर की एक पहचान (लैंड मार्क) के नाम से जाना जाए। उनकी इच्छा की पूर्ती राजमाता ने की। यहाँ श्रद्धालू आते हैं और अपने धार्मिक कर्मकांड पूर्ण करते हैं।
शिखर छूने की चाह: राजेश सेहरावत |
इस स्थान पर 4 बड़े मणिचक्र भी स्थाप्ति है, चारों तफ़ खुला स्थान है जिसमें बगीचा बना हुआ है और फ़ूलों की क्यारियाँ सजाई गई है। शहर के वृद्ध यहाँ आकर सप्ताहांत का दिन बिताते हैं और नौजवान बौद्ध धर्म के अनुसार आराधना करते हैं। इस स्तूप का स्वर्ण कलश आकाश को छूता हुआ प्रतीत होता है। यहाँ एक घंटा भी लगाया गया है जिसे विशेष अवसरों पर बजाया जाता है। 2004 में इसका नवीनीकरण किया गया था था तथा यह भूटान के धार्मिक चिन्हों के रुप में जाना जाता है।
भूटान के वृद्ध |
रविवार का दिन होने के कारण यहां बहुत सारे वृद्ध दिखाई दे रहे थे। वे चोर्तेन की परिक्रमा करते हेउ जाप कर रहे थे। ऐसा लग रहा था कि भूटान वृद्धों का ही देश है। मैने वहां उपस्थित लोगों से वृद्धों के विषय में चर्चा करके भूटानी समाज में उनकी स्थिति के विषय में जानकारी ली। लोगों ने बताया कि भूटान में वृद्धों की हालत अन्य स्थानों बेहतर है। स्वास्थय सुविधाओं एवं प्रदूषण मुक्त प्राकृतिक वातावरण ने इनकी उम्र बढाई है।
भूटान के वृद्ध |
यहाँ के अधिकांश वृद्धों का समय आमतौर पर या तो माला जपते हुए बीतता है, या फिर मंदिर-देवालयों में परिक्रमा कर इष्ट-देवों को प्रसन्न करते हुए। उम्र के साथ ईश्वर के प्रति आस्था का बढ़ना एक सहज प्रक्रिया है। भूटान के अधिकतर नागरिक बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं, अतः लोगों की, विशेष तौर पर उम्र के ढलते पड़ाव पर पहुँच गये व्यक्तियों के जीवन में धर्म अत्यंत विशेष महत्त्व रखता है.
दंडवत करते हुए युवती |
अन्य समुदायों की तरह भूटानी समाज भी वृद्ध व्यक्तियों के अनुभव और सूझ-बूझ को आदर भाव से देखता है, घर के मुखिया मन-मुटाव दूर करवाने वाले सलाहकार के रूप में पारिवारिक-सामाजिक इकाई का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। यही कारण है कि वहां बुज़ुर्ग समाज इज्ज़तदार जीवन व्यतीत करता है. परन्तु, वर्तमान में आधुनिकरण, शहरीकरण और पाश्चात्य संस्कृति की आंधी ने भूटानी पारिवारिक इकाई को भी अपनी चपेट में ले लिया है, और वृद्धावस्था बदलते पारिवारिक ढांचे, पलायन और बदलती जीवनशैली के बीच खुद को असहाय खड़ा पा रही है।
पुत्र वल्लभा |
चूँकि स्थानीय लोग अधिक संख्या में शहरों की ओर कूच कर रहे हैं, इसलिए घर के बुज़ुर्ग प्रायः ही गाँव में पीछे छूट जाते हैं. अपने भरण-पोषण की संपूर्ण ज़िम्मेदारी वृद्धावस्था में भी उनके कन्धों पर ही आ पड़ती है। नगर-शहरों में एकल परिवार की संस्कृति सुरसा की भांति संयुक्त परिवारों को निगल रही है। ये बदलती परिस्थितियाँ परिवार में बुजुर्गों की अहमियत तो कमतर करती जाती है, जिसके कारण पारिवारिक इकाईमें उनका स्थान महज़ एक विकल्प बनता जाता है. यही कारण है कि उनकी बेबसी के साथ ही जीवनयापन के लिए उनकी आश्रयता दिन-पर-दिन बढती जा रही है।
परिक्रमा करते हुए भक्त जन |
मित्र थिनले से इस विषय पर चर्चा हुई उनके अनुसार, हालाँकि भूटानी लोग ‘कुल राष्ट्रीय प्रसन्नता’ (ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस) के इकाई स्तर पर स्वयं का मूल्यांकन करते हैं और समता,न्याय इत्यादि का दम भरते हैं, परन्तु समाज का एक छोटा सा तबका ऐसा भी है जो प्रगति की इस दौड़ में बिना सहायता के भाग नहीं ले सकता। यद्यपि गांवों में अभी भी बड़े-बुजुर्गों की ज़रूरतों का मिलजुलकर ध्यान रखा जाता है, पर कानूनी तौर पर कुछ ऐसी नीतियाँ लागू करना अत्यावश्यक है जो समाज के इस वर्ग को स्वाभिमान का जीवन जीने की सुविधाएं उपलब्ध करवा सकें”।
्होरी भजो मन्ना |
फ़िर भी भूटान के वृद्ध बेहतर अवस्था में हैं। आधुनिकीकरण की आंधी के बावजूद उन्हें भीख मांगने के लिए सड़क पर नहीं छोड़ा जाता। भूटान के विभिन्न शहरों एवं गांवों में भ्रमण के पश्चात मुझे एक भी वृद्ध भीख मांगते नहीं मिला। इससे जाहिर होता है कि समाज एवं उनका परिवार वृद्धों की आवश्यकता की पूर्ति करता है, उनका ख्याल रखता है और वृद्ध नाम जपते हुए, मणि चक्र फ़िराते हुए अपना बुढापा काट रहे हैं। नेशनल चोर्तेन से हम लोगों ने चिड़ियाघर पहुंच कर भूटान के राष्ट्रीय पशु टॉकिन को देखा। इसके विषय में अन्य जानकारी एवं किंवदंतियां मेरी इस पोस्ट में लिखी है। जारी है … आगे पढें…
ग़ज़ब! किसी नये स्थान को देखने का असली लाभ तो तभी है, जब हम वहां की सड़कों, प्राचीन स्मारकों, दुकानों तक ही सीमित न रह जायें बल्कि गहराई से वहां की संस्कृति व जन-जीवन को देखें, समझें! इस आलेख में मुझे यही सब कुछ मिला और ये सब आपने हम तक पहुंचाया, इसके लिये आपका उपकार अनुभव करता हूं !
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