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राम राजा मंदिर के समक्ष ही हरदौल का बैठका है। यह एक उद्यान है, जहाँ कभी आमोद प्रमोद के लिए राजपरिवार की चहल पहल रहती थी। इस उद्यान में जल के लिए प्रणालिकाएं एवं कुंड बने हुए हैं, जिनमें कभी जल प्रवाहित होता होगा और बहिश्त की याद दिलाता होगा। उद्यान के मध्य में हरदौल का बैठका है, जिसमें हरदौल की अश्वारोही प्रतिमा स्थापित है, यहाँ उनके दर्शन करने के लिए भक्तों का मेला लगा हुआ था। इस उद्यान को फ़ूल बाग कहते हैं। इसके सामने "टुरी हटरी" लगी हुई है, जहाँ शृंगार की वस्तुएं मिलती हैं। हमने यहाँ के कुछ चित्र लिए।
राम राजा मंदिर के समक्ष ही हरदौल का बैठका है। यह एक उद्यान है, जहाँ कभी आमोद प्रमोद के लिए राजपरिवार की चहल पहल रहती थी। इस उद्यान में जल के लिए प्रणालिकाएं एवं कुंड बने हुए हैं, जिनमें कभी जल प्रवाहित होता होगा और बहिश्त की याद दिलाता होगा। उद्यान के मध्य में हरदौल का बैठका है, जिसमें हरदौल की अश्वारोही प्रतिमा स्थापित है, यहाँ उनके दर्शन करने के लिए भक्तों का मेला लगा हुआ था। इस उद्यान को फ़ूल बाग कहते हैं। इसके सामने "टुरी हटरी" लगी हुई है, जहाँ शृंगार की वस्तुएं मिलती हैं। हमने यहाँ के कुछ चित्र लिए।
पालकी महल और हटरी |
हरदौल का बैठका स्थित महल का निर्माण राजा वीरसिंह के कार्यकाल में किया गया था। यह आयताकार महक द्विमंजिला है। भूतल पर तीन मेहराब द्वार हैं और इसके दोनो तरफ़ कक्षों का निर्माण किया गया है। इसमें प्रस्तर स्तंभ लगे हुए हैं। पालकी महल को इसमें बाद में जोड़ा गया था। इसका विस्तार सत्रहवीं सदी के उत्तरार्ध में किया गया बताया जाता है। यह बहुत ही सुंदर इमारत है। इस महल के ऊपरी मंजिल से बाहर छज्जा निकला हुआ है। जिसका उपयोग राजा द्वारा प्रजा से सम्पर्क स्थापित करने लिए किया जाता होगा।
सावन भादो भवन |
हरदौल के बैठके से लगा हुआ पालकी महल है। इस महल की आकृति पालकी जैसे होने के कारण इसका नाम पालकी महल पड़ा। पालकी महल के समीप ही सावन भादो नामक दो मीनारे हैं। इन्हें वायु यंत्र माना जाता है। इसके नीचे के तहखाने में राजा परिवार गर्मी के दिनों में शीतलवायू का आनंद लेता था। कहते हैं यहाँ पहुंचने के लिए सुरंग है, राजमहल से सुरंग के माध्यम से यहाँ पहुंचा जाता था। किंवदन्ति है कि वर्षा ऋतु में सावन खत्म होने और भादों मास के शुभारंभ के समय ये दोनों स्तंभ आपस में जुड़ जाते थे। हालांकि यह संभव नहीं है।
चंदन कटोरा |
इन मीनारों के नीचे जाने के रास्ते बंद कर दिये गये हैं इसलिए प्रत्यक्ष नहीं देखा जा सकता। सावन भादो के तहखाने के ऊपर राजदरबार भी बना हुआ है। इसके समक्ष प्रस्तर निर्मित एवं अलंकृत प्याला रखा हुआ है। कहते हैं जब राजा युद्ध के लिए जाते थे तो इस प्याले में चंदन भरा जाता था। युद्ध के लिए जाने वालों का इस प्याले से चंदन अभिषेक कर युद्ध के लिए विदा किया जाता था। एकाश्म शिला से निर्मित होने के कारण इससे धातु की ध्वनि निकलती है।
फ़ूल बाग में लाला हरदौल की प्रतिमा |
फ़ूल बाग से हम चतुर्भुज मंदिर पहुंचे। इसका निर्माण महल जैसे ही हुआ है। यह ओरछा की बड़ी इमारत है। इसका निर्माण ऊंचे अधिष्ठान पर किया गया है। इसके गर्भ गृह का मुंह राजमहल के समक्ष है। कहते हैं कि इसे राजा इस तरह से बनवाया था कि राजमहल के शयन कक्ष से जब वे सो कर उठें तो गर्भ गृह में भगवान के दर्शन हो जाएं। परन्तु उनकी यह योजना अधूरी रह गई क्योंकि भगवान राम राजा यहां तक पहुंचे ही नहीं, उनकी योजना धरी की धरी रह गई। वर्तमान में इसके गर्भ गृह में रामदरबार स्थापित है।
चतुर्भुज मंदिर से राजमहल का शयन कक्ष |
इस भवन की छतों में ज्यामितिय आकृतियों का निर्माण किया गया है। मुख्य मंडप विशाल है, इसमें हजारों भक्त समा सकते हैं। इसकी छत के गुंबद के नीचे पद्मांकन है। छत मेहराबों पर बही हुई है। ओरछा के स्थापत्य में मेहराबों का उपयोग प्रमुखता के साथ किया गया है।
चतुर्भुज मंदिर की भव्य इमारत |
ऊंचे अधिष्ठान पर निर्मित होने के कारण यहाँ से राम राजा मंदिर, सावन भादो, राज महल आदि सभी कुछ दिखाई देता है। चतुर्भूज मंदिर की कुछ फ़ोटो लेकर हम रेस्ट हाऊस लौट आए। आज मुझे टीकमगढ़ जाना था, जहाँ मित्र मरावी साहब इंतजार कर रहे थे।
चतुर्भुज मंदिर का गर्भ गृह |
ओरछा से शाम की बस से मैं टीकमगढ के लिए चल पड़ा। झांसी से ओरछा होकर टीकमगढ के लिए बसें चलती हैं। ओरछा से टीकमगढ लगभग अस्सी किमी की दूरी पर है और बस का किराया भी अस्सी रुपए है। पहले तो कंडेक्टर ने मुझसे अस्सी रुपए ही लिए, फ़िर पता नहीं क्या सोचकर उसने दस रुपए लौटा दिए। अंधेरा होते तक मैं टीकमगढ पहुंच गया।
टीकमगढ़ का सर्किट हाऊस |
यहां मेरे लिए सर्किट हाऊस में मरावी साहब ने रुम बुक करवा रखा था। अस्पताल चौक पर बस रुकी, यहां से थोड़ी सी ही दूरी पर सर्किट हाऊस है। अपने रुम पहुंच कर बैग रखा और हाथ मुंह धोया तब तक मरावी साहब भी पहुंच गए थे। रात का भोजन उनके साथ किया। अगले दिन रविवार को मड़खेरा का सूर्य मंदिर देखने का कार्यक्रम था। जारी है आगे पढें…
बहुत सुन्दर जीवंत चित्र और रोचक जानकारी। किंवदंती ही सही, लेकिन इतिहास को महसूस करने का एक अलग ही आनंद है. भाग्यशाली हैं आप। शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंअरे वाह सावन भादो भवन भी है कहीं ये तो पता नहीं था ..
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा सावन में सावन भादो भवन देखना और सुन्दर प्रस्तुति पढ़ना ...आभार!
Very beautifully present by your side ,Orchha tells abt bundela & his art and culture ,friendship with mughal ....
जवाब देंहटाएंशानदार जानकारी
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