शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

हम हिन्दुस्तानी चले भूटान

हमारा विशाल भारत देश विश्व के किसी अन्य देश की तुलना में इक्कीस ही बैठता है, यहाँ बारहों महीने सभी मौसम मिल जाएगें, कहीं बारिश तो कहीं सूखा तो कहीं हरियाली से आच्छादित भू प्रदेश। सड़कों पर तफ़री करते बादल यहाँ भी मिलते हैं। शायद ही कोई पर्यटन का शौकीन ऐसा होगा जिसमें पूरा भारत घूम लिया होगा। फ़िर भी लोगों की इच्छा एक बार विदेश यात्रा करने की होती है। अगर वे भारत के एक-एक प्रांत की घुमक्कड़ी विदेश समझ कर ही कर लें तो उन्हें बहुत कुछ जानकारी एवं आनंद मिल जाएगा। परन्तु वे तो सिर्फ़ विदेश घूमना चाहते हैं।
भूटान की वादियां
हमारे कई मित्र विदेश घूमना चाहते थे। पर समस्या पासपोर्ट एवं वीजा की आती है। पहले पासपोर्ट बनवाना पड़ता है फ़िर संबंधित देश से वीजा (अनुमति) लेनी पड़ती है। परन्तु कुछ ऐसे देश हैं, जहाँ भारतीयों के लिए पासपोर्ट की आवश्यकता नहीं होती। जिनमें से भूटान एवं नेपाल हैं। नेपाल में राजनैतिक उथल पुथल के साथ सांस्कृतिक प्रदूषण भी बहुत अधिक हो चुका है। वहां कब हड़ताल हो जाए और कब मार्ग बंद हो जाए, जिसमें पर्यटक फ़ंस जाएँ, पता नहीं चलता। इसलिए घुमक्कड़ी के लिए भूटान को ही प्रथम वरीयता देना चाहता हूँ। वैसे तो गत वर्ष हमने भूटान की सैर की थी, परन्तु समयावधि कम थी, सिर्फ़ सड़कें नापना ही हुआ।
भूटान की वादियां
इस वर्ष मित्रों से चर्चा करके अप्रेल के प्रथम सप्ताह में भूटान घुमक्कड़ी का कार्यक्रम बनाया गया और इसे "हम हिन्दुस्तानी सम्मेलन" का नाम दिया गया। इसकी तैयारी हमने अक्टुबर माह से ही प्रारंभ कर दी थी। टूर आपरेटर से चर्चा होने के पश्चात  एडवांस परमिट का फ़ार्म भी भरवाना प्रारंभ कर दिया था। एडवांस परमिट लेने से काफ़ी सुविधा हो जाती है और समय खराब नहीं होता। ज्यों ज्यों यात्रा का समय समीप आ रहा था त्यों त्यों अफ़रातफ़री मचती जा रही थी। कोई फ़ार्म भरने के बाद भी समस्या बता कर हाथ झाड़ रहे थे। कोई नए लोग जुड़ते जा रहे थे। हमसे समय चयन में थोड़ी गलती हो गई थी। मार्च का अंतिम सप्ताह एवं अप्रेल का प्रथम सप्ताह भारत में लेखा वर्ष का अंतिम समय होने के कारण काफ़ी व्यस्त रहता है। इसलिए बहुत सारे मित्र इस कार्यक्रम में नहीं जा पाए।
भूटान की वादियां
मुंबई से रायपुर होते हुए "कर्म भूमि एक्सप्रेस" गोहाटी जाती है। जो हमें सीधे हासीमारा पहुंचाती देती है। जिससे कलकत्ता रुक कर अगली यात्रा के लिए दिन भर का समय खर्च करने की बचत हो जाती है। इसलिए हम सब ने जहां तक हो सका कर्मभूमि एक्सप्रेस की टिकिट ही बनवाई थी। हमारी भूटान यात्रा छ: दिन की थी। इससे अधिक दिन का परमिट भूटान सरकार पर्यटकों को नहीं देती तथा वह पर्यटकों के लिए सीमित परमिट ही साल भर में देती है। ऐसा नहीं है कि कोई भी जब भी आ जाए, उसे परमिट दे दिया जाए। भूटान के राजा अपने देश में किसी तरह का प्रदूषण फ़ैलने नहीं देना चाहते। चाहे वह सांस्कृतिक हो या पर्यवर्णीय प्रदूषण हो। भूटान यात्रा से पहले मैं और पाबला जी दक्षिण की यात्रा कर आए थे। इस बीच तैयारी करने के लिए थोड़ा ही समय बचा था।
भूटान की वादियां
हम कुल 21 लोग हो रहे थे, जिसके लिए सारी व्यवस्था कर ली गई थी। कलकत्ता से हमारी कैटरिंग सर्विस भी जा रही थी। जो हमें भूटान में खाना बनाकर खिलाएगी। कर्मभूमि एक्सप्रेस 31 मार्च को रायपुर से सुबह 6 बजे थी। छोटा भाई मुझे सुबह जल्दी स्टेशन पहुंचा आया था। यहाँ से नवीन तिवारी जी, पथिक तारक जी सपत्नी, ललित वर्मा जी, टीकाराम वर्मा जी एवं मैं ट्रेन में सवार हुए। अकलतरा से अजय खंडेलिया जी को बिलासपुर आकर ट्रेन में चढना था, सुबह मैने कई बार फ़ोन लगाया लेकिन उन्होने नहीं उठाया। 
आत्मकथा के लेखक द्वारिका प्रसाद अग्रवाल जी
बिलासपुर से द्वारिका प्रसाद जी सपत्नी एवं नातिन, राजेश अग्रवाल जी ट्रेन में चढे, पर अजय खंडेलिया जी नहीं आए। रायगढ से प्रकाश यादव जी को छुट्टी नहीं मिली एवं अंतिम समय गिरीश बिल्लौरे जी एवं बैकुंठपुर से चंद्रकांत पारगीर जी ने आवश्यकर कारण बताते हुए मना कर दिया। इस तरह हमारे चार यात्री यहीं कम हो गए। हमारी टोली के राजेश सेहरावत जी पहले पहुंच चुके थे। द्वारिका प्रसाद जी के साले, सलहज,  अंकित मिश्रा एवं हेमंत पाणिग्रही को हासीमारा में तथा बिकास शर्मा को न्यू जलपाई गुड़ी में मिलना था।
हासीमारा स्टेशन 
हम एक अप्रेल को सुबह साढे नौ बजे न्यु जलपाईगुड़ी पहुंचे, यहां बिकास शर्मा मिल गए। आगे चलकर दस बजे करीब राजेश सेहरावत भी पहुंच गए। हमारी ट्रेन विलंब से चल रही थी। हम लगभग पौने दो बजे हासीमारा स्टेशन पर पहुंचे। अंकित और हेमंत यहां नही पहुंच पाए थे। यहां से जयगांव होते हुए भूटान की सीमा आधे घंटे की दूरी पर है। चार गाड़ियों में सवार होकर हम पन्द्रह लोग फ़ुंसलिंग की ओर चल पड़े। हमें जाने की जल्दी इसलिए थी कि द्वारिका प्रसाद जी नातिन एवं उनके साले, सलहज का वीजा ऑन एरायवल बनवाना था। यह ऑफ़िस चार बजे बंद हो जाता है। फ़ुंसलिंग पहुंच कर सीमा पर स्थित ऑफ़िस में द्वारिका प्रसाद जी एवं उनके परिवार को छोड़ कर हम होटल मिडटाऊन पहुंच गए।
सीमा पर भूटान गेट
यह फ़ुंसलिंग का एकमात्र स्विमिंग पुल वाला तीन मंजिला होटल है। यहां हमारा स्वागत होटल की परिचारिकाओं ने फ़ूल एवं रोली से किया। होटल वालों ने सभी को उनके कमरे बांट दिए गए। ऊपर की मंजिल में पांच लोगों के रहने के लिए सुईट जैसा था वह द्वारिका प्रसाद जी को दे दिया गया। सभी लोग स्नानादि दैनिक क्रिया में लग गए और मैं अपने रुम में आ गया। उसके बाद सिलीगुड़ी से अंकित का फ़ोन आया कि कहां पहुंचना है, उसे पता बताया गया। उन लोग भी शाम सात बजे तक होटल पहुंच गए। तब तक द्वारिका प्रसाद जी भी परमिट की व्यवस्था कर लौट आए। होटल पहुंच कर मैने देखा कि चश्मा ही गायब है, हासीमारा से आते समय कहीं गिर गया। मेरी समस्या को देखते हुए द्वारिका प्रसाद जी ने अपना चश्मा दिया, उसके बाद मैने सारा भूटान उनके चश्मे से ही देखा।
फ़ुंतशोलिन का होटल (फ़ाईल फ़ोटो)
उन्होने मुझसे ऊपर के कमरे की शिकायत की। उनकी श्रीमती जी की बायपास सर्जरी हुई है, इसलिए सीढियाँ चढने में तकलीफ़ का होना बताया। अब सभी लोग अपने कमरे में शिफ़्ट हो चुके थे, इसलिए नई व्यवस्था करना संभव नहीं था। यहां सिर भोजन करके एक रात गुजारना था। इसलिए आगे से नीचे का कमरा देने की बात कही। टीकाराम वर्मा भी शिकायत करने लगे कि उनसे ऊपर के कमरे लिए सीढियाँ चढने में तकलीफ़ होती है। आगे चलकर इनकी समस्याओं का समाधान हो सकता था। आज तो किसी हालत में संभव नहीं था।
होटल से तारसा नदी
हम कुल सत्रह लोग थे, टूर आपरेटर ने सामिष एवं निरामिष खाने वालों के बारे में पूछा तो मैने कह दिया कि दोनो तरह का भोजन आधा-आधा तैयार करवा लो। जो-जो निरामिष में चम्मच डालेगा, वह नोट कर लेना और अगले दिन से उतने लोगों के लिए निरामिष एवं सामिष भोजन बना लेना। वैसे भी मुझे लग रहा था कि सिर्फ़ दो-चार लोग ही निरामिष खाने वाले थे। नीचे डायनिंग हॉल में खाना बनकर तैयार था। सभी डायनिंग हॉल में आ गए। भोजन प्रारंभ हुआ, निरामिष खाने वालों की संख्या हमारी सोच से दुगने से भी अधिक निकली। आंकड़ा दस से अधिक पार कर गया। अब कैटरिंग वाले को भी आंकड़ा मिल गया था। जारी है आगे पढें…

7 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉगिंग की दुनिया के शहंशाह को मेरा प्रणाम

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  2. शर्मा जी सुंदर व रोचक वृतांत पढकर जाने का मन होने लगा अगले अंक का बेसब्री से इंतजार है आपके साथ शाकाहारी भी थे पढकर अगले बार चलने की बनती है ।

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    1. बिल्कुल, जनवरी में स्वागत है आपका। अभी से तैयारी शुरु कर दे।

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  3. शर्मा जी सुंदर व रोचक वृतांत पढकर जाने का मन होने लगा अगले अंक का बेसब्री से इंतजार है आपके साथ शाकाहारी भी थे पढकर अगले बार चलने की बनती है ।

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  4. चलिए इसी बहाने हम भी भूटान हो लिए ...
    बहुत अच्छी प्रस्तुति ..

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  5. @शायद ही कोई पर्यटन का शौकीन ऐसा होगा जिसमें पूरा भारत घूम लिया होगा...सत्य वचन। हमारी मानसिकता ही ऐसी है ! कोई नेपाल भी घूम आता है तो उसको पूरे दक्षिण को खंगाल बैठे हुए पर भी भारी समझा जाता है :-(

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  6. भूटान की यादें फिर से ताजा हो गई धन्यवाद ललित शर्मा जी

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