प्राचीन काल से छत्तीसगढ के वन हाथियों की आदर्श शरण स्थली रहे हैं। विशेषकर सरगुजा अंचल हाथियों के लिए प्रसिद्ध रहा है। मान्यता है कि इंद्र के एरावत जैसे सुंदर गजों के स्वर यहां के वनों में गूंजने के कारण इस अंचल का नाम सरगजा (surgaja) लोक प्रसिद्ध हुआ। यहां के हाथियों का दर्शन लाभ मुझे भी हुए। अबकि बार की सरगुजा बाईक यात्रा के दौरान प्रतापपुर के घाटपेंडारी में 32 हाथियों के दल की उपस्थिति मिली।
उड़ीसा एव॔ झारखंड से हाथियों के आने-जाने का कारीडोर बना हुआ है । इन तीनो राज्यों मे हाथी स्वच्छन्द विचरण करते हैं। बार नवापारा के जंगल में उड़ीसा से आए हुए एक गजदल ने कुछ वर्षों से स्थाई निवास बना लिया है। जंगल कटने के कारण इनका रहवास क्षेत्र निरंतर छोटा होते जा रहा है। नित्य ही हाथियों और मनुष्यों की आपसी मुड़भेड़ के समाचार मिलते रहते हैं। जिनमें कभी हाथियों के हमले से मनुष्य मारे जाते है तो कभी मनुष्यों के हमले से हाथी। दोनो में आपसी मुड़भेड़ सतत जारी है।
खबर है कि जशपुर क्षेत्र के ठाकुरटोली ग्राम में एक हाथी खेत की सुरक्षा के लिए खींचे गये विद्यूत तारों की चपेट में आकर मारा गया। आज आदमी जीत गया, एक खेत की फसल बचाने में कामयाब रहा और एक हाथी की पुन: बलि हो गयी। विडम्बना है कि दोनों को ही वनवास करना है पर दोनो को ही एक दूसरे की उपस्थिति फूटी आंख भी नहीं सुहा रही। जिसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। ग्रामीण मानते हैं कि हाथी उनके क्षेत्र का अतिक्रमण कर रहे हैं और जंगल हाथियों की बपौती है। निर्वहन करने कहां जाएगें?
झारखंड राज्य के प्रमुख सचिव सतपथी का कहना था कि वे छत्तीसगढ की सीमा पर हाथियों के आवा गमन के लिए उनके रास्ते मे प्राकृतिक जैसे दिखाई देने वाले सेतू का निर्माण कर रहे हैं जिससे हाथियों को रहवास एवं विचरण के लिए बड़ा क्षेत्र मिल जाएगा तथा आदमी और हाथियों की मुड़भेड़ कम हो जाएगी। छत्तीसगढ सरकार ने भी भी असम से हाथी विशेषज्ञ पार्वती बरूवा को बुलाया था। करोड़ों खर्च हुए पर वह भी कुछ विशेष नहीं कर पाई।
इस आपसी मुड़भेड़ में प्रतिवर्ष कईयों के प्राण हरण होते हैं। ऐसी स्थिति में वनांचल निवासियों को हाथियों को स्वीकार करना होगा तथा सह अस्तित्व मानकर निर्वहन करना होगा। तुम उनके रास्ते मे न आओ वे तुम्हारे रास्ते हे नहीं है। जब तक दोनो एक दूसरे की उपस्थिति स्वीकार नहीं करेगें तब तक दोनो का ही जीना कठिन है। अब हाथी मेरे साथी बनाकर ही जीने से समस्या का हल निकल सकता है।
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उड़ीसा एव॔ झारखंड से हाथियों के आने-जाने का कारीडोर बना हुआ है । इन तीनो राज्यों मे हाथी स्वच्छन्द विचरण करते हैं। बार नवापारा के जंगल में उड़ीसा से आए हुए एक गजदल ने कुछ वर्षों से स्थाई निवास बना लिया है। जंगल कटने के कारण इनका रहवास क्षेत्र निरंतर छोटा होते जा रहा है। नित्य ही हाथियों और मनुष्यों की आपसी मुड़भेड़ के समाचार मिलते रहते हैं। जिनमें कभी हाथियों के हमले से मनुष्य मारे जाते है तो कभी मनुष्यों के हमले से हाथी। दोनो में आपसी मुड़भेड़ सतत जारी है।
खबर है कि जशपुर क्षेत्र के ठाकुरटोली ग्राम में एक हाथी खेत की सुरक्षा के लिए खींचे गये विद्यूत तारों की चपेट में आकर मारा गया। आज आदमी जीत गया, एक खेत की फसल बचाने में कामयाब रहा और एक हाथी की पुन: बलि हो गयी। विडम्बना है कि दोनों को ही वनवास करना है पर दोनो को ही एक दूसरे की उपस्थिति फूटी आंख भी नहीं सुहा रही। जिसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। ग्रामीण मानते हैं कि हाथी उनके क्षेत्र का अतिक्रमण कर रहे हैं और जंगल हाथियों की बपौती है। निर्वहन करने कहां जाएगें?
झारखंड राज्य के प्रमुख सचिव सतपथी का कहना था कि वे छत्तीसगढ की सीमा पर हाथियों के आवा गमन के लिए उनके रास्ते मे प्राकृतिक जैसे दिखाई देने वाले सेतू का निर्माण कर रहे हैं जिससे हाथियों को रहवास एवं विचरण के लिए बड़ा क्षेत्र मिल जाएगा तथा आदमी और हाथियों की मुड़भेड़ कम हो जाएगी। छत्तीसगढ सरकार ने भी भी असम से हाथी विशेषज्ञ पार्वती बरूवा को बुलाया था। करोड़ों खर्च हुए पर वह भी कुछ विशेष नहीं कर पाई।
इस आपसी मुड़भेड़ में प्रतिवर्ष कईयों के प्राण हरण होते हैं। ऐसी स्थिति में वनांचल निवासियों को हाथियों को स्वीकार करना होगा तथा सह अस्तित्व मानकर निर्वहन करना होगा। तुम उनके रास्ते मे न आओ वे तुम्हारे रास्ते हे नहीं है। जब तक दोनो एक दूसरे की उपस्थिति स्वीकार नहीं करेगें तब तक दोनो का ही जीना कठिन है। अब हाथी मेरे साथी बनाकर ही जीने से समस्या का हल निकल सकता है।
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वर्तमान हालातों कारण और निदान पर बिलकुल सधा हुआ सटीक आलेख
जवाब देंहटाएंएकदम सही बात भाई....
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