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ओरछा भ्रमण करते हुए हम लक्ष्मीनारायण मंदिर की ओर जा रहे थे तभी रास्ते में केशव भवन दिखाई दिया, तुरंत ही दिमाग ने रसिक कवि केशव दास की फ़ाईल खोल दी। ये वही केशव दास है जिन्हें कुंए पनिहारिनों ने बाबा कह दिया था उन्होंने एक दोहा रचा -केशव केसनि असि करी, बैरिहु जस न कराहिं। चंद्रवदन मृगलोचनी बाबा कहि कहि जाहिं।। केशव दास मुख्यत: शृंगार एवं वीर रस के कवि थे। उनका केशवदास का जन्म 1546 ईस्वी में ओरछा में हुआ था। वे सनाढय ब्राह्मण थे। उनके पिता का नाम पं काशीनाथ था। ओरछा के राजदरबार में उनके परिवार का बड़ा मान था।
ओरछा भ्रमण करते हुए हम लक्ष्मीनारायण मंदिर की ओर जा रहे थे तभी रास्ते में केशव भवन दिखाई दिया, तुरंत ही दिमाग ने रसिक कवि केशव दास की फ़ाईल खोल दी। ये वही केशव दास है जिन्हें कुंए पनिहारिनों ने बाबा कह दिया था उन्होंने एक दोहा रचा -केशव केसनि असि करी, बैरिहु जस न कराहिं। चंद्रवदन मृगलोचनी बाबा कहि कहि जाहिं।। केशव दास मुख्यत: शृंगार एवं वीर रस के कवि थे। उनका केशवदास का जन्म 1546 ईस्वी में ओरछा में हुआ था। वे सनाढय ब्राह्मण थे। उनके पिता का नाम पं काशीनाथ था। ओरछा के राजदरबार में उनके परिवार का बड़ा मान था।
कवि केशव दास का घर |
केशवदास स्वयं ओरछा नरेश महाराज रामसिंह के भाई इंद्रजीत सिंह के दरबारी कवि, मंत्री और गुरु थे। इंद्रजीत सिंह की ओर से इन्हें इक्कीस गांव मिले हुए थे। केशवदास संस्कृत के उद्भट विद्वान थे। उनके कुल में भी संस्कृत का ही प्रचार था। नौकर-चाकर भी संस्कृत बोलते थे। संवत 1608 के लगभग जहांगीर ने ओरछा का राज्य वीर सिंह देव को दे दिया। केशव कुछ समय तक वीर सिंह के दरबार में रहे, फिर गंगातट पर चले गए और वहीं रहने लगे। 1618 ईस्वी में उनका देहावसान हुआ।
लक्ष्मीनारायण मंदिर |
जब हम लक्ष्मीनारायण मंदिर पहुंचे तो यहाँ सिर्फ़ एक चौकीदार के अलावा कोई नहीं था। इस मंदिर का शिल्प अद्भुत है, सामने से त्रिकोणात्मक दिखाई देता है, पर है चौकोर। यह ओरछा की एक भव्य इमारत है, इसका निर्माण ओरछा के बुंदेल राजा बीरसिंह कराया था। यह महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्मारक है, इसका निर्माणं 1622 ई. में हुआ था। इस मंदिर का वास्तु शिल्प इस तरह का है कि यह उड़ान भरते हुए गरुड़ सा दिखाई देता है, मुख्य द्वार गरुड़ मुख है, यह मंदिर ओरछा गांव के पश्चिम में एक पहाड़ी पर बना है।
चित्रित गलियारा |
इस मंदिर में दोनो हिन्दू एवं इस्लामिक वास्तु कला का प्रयोग हुआ है, मेहराबदार छतें एवं गर्भ गृह का गुंबद गोल है। इस मंदिर में सत्रहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के भित्ती चित्र बने हुए हैं। भित्ती एवं छतों पर बने चित्रों के चटकीले प्राकृतिक रंग इतने जीवंत लगते हैं जसे वह हाल ही में बने हों। भित्ति चित्रों में राजमहल, अंग्रेजों के साथ झांसी की लड़ाई, रामायण के प्रसंग, कृष्ण लीला, आखेट इत्यादि को प्रमुख स्थान दिया गया है। इस तरह यह मंदिर तत्कालीन वास्तु शिल्प एवं चित्र कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
अंग्रेज सैनिकों का चित्रण |
मंदिर के गर्भगृह का शिखर पर शत कमल दल निर्मित है। जैसे कमल की पंखुड़ियाँ अभी ही खिली हों। इस मीनार रुपी गर्भगृह की भित्तियों पर गवाक्ष एवं झरोखे बने हुए हैं। भवन की प्रथम मंजिल पर यह चार मंजिलों का है। जो मंदिर को भव्यता प्रदान करता है। गर्भगृह में प्राचीन प्रतिमा नहीं है, उसके स्थान पर छोटी सी अन्य कोई प्रतिमा रखी हुई है। इस मंदिर में पूजा नहीं होती। गर्भ गृह के मुख्य द्वार के समीप लकड़ी का एक झूला रखा हुआ है। बीरसिंह के उत्तराधिकारी पृथ्वी सिंह ने सन् 1793 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
शतकमल दल शिखर |
लक्ष्मीनारायण मंदिर एक टीले पर बना हुआ है, इसका शिल्प देखकर ही लगता है इसकी भव्यता का पता चलता है। छद्म गवाक्षों एवं गवाक्षों में की गई फ़ुलकारी अद्भुत है। यह इमारत भी इस्लामिक एवं हिन्दु वास्तुकला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर के सारे गलियारों की भित्तियों एवं छतों पर की गई पौराणिक आख्यानों की चित्रकारी निर्माण करता की सनातन धर्म में गहन आस्था प्रदर्शित करती है। इन चित्रों में अंग्रेजों की सेना के साथ युद्ध को प्रदर्शित किया गया है। इससे प्रतीत होता है कि अंग्रेजों के भारत आगमन के पश्चात मंदिर में चित्रकारी की गई है।
गर्भ गृह |
लक्ष्मीनारायण मंदिर का अवलोकन करने के पश्चात हम रेस्ट हाऊस लौट आए। थोड़ी दे विश्राम करने के बाद मुकेश पाण्डेय जी ने कहा कि आपको एक बढिया स्थान की सैर करवा के लाता हूँ, जो आपको बहुत पसंद आएगी। सैर के नाम पर तो हम हमेशा तैयार रहते हैं। अब वाहनारुढ होकर हम झांसी खजुराहो मार्ग पर चल दिए। मुकेश पान्डेय जी मेरा घुमक्कड़ी का स्वाद जानते हैं, इसलिए विश्वास था कि वे किसी अच्छे ही स्थान पर लेकर जाएंगे। जारी है आगे पढें…
-केशव केसनि असि करी, बैरिहु जस न कराहिं। चंद्रवदन मृगलोचनी बाबा कहि कहि जाहिं।। शृंगार एवं वीर रस के विद्वान कवि केशवदास ओरछा के रहने वाले थे, आपके लेख से मालूम हुआ . नई जानकारी मिली।
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