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पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा से हम बस अड्डे की ओर पहुंचे, यहाँ हमारी कार रात्रि विश्राम पर थी। समीप ही एक होटल में गर्मागरम दाल भात सब्जी बन रही थी। सुबह नाश्ता नहीं किए थे तो सोचे कि सीधे ही भोजन करके चलें, पहाड़ों में कोई भरोसा नहीं, कहाँ खाना मिले, कहाँ नहीं मिले। मैने उसे खाने का आर्डर दे दिया। अचानक सामने निगाह गई तो कार का अगला चक्का बैठ गया था, मने कि पिंचर हो गया। लो कर लो खेती, भर लो दंड। भाई साहब और बाऊ जी चक्का बदलने लगे। साढे ग्यारह बज रहे थे, आगे कहाँ जाना था यह तय नहीं था। पर मैने सोचा कि आज की रात अल्मोड़ा में गुजरेगी। चक्का बदलते तक खाना भी बन गया। दाल भात सब्जी खाकर तृप्त होकर हम आगे बढ लिए।
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टायर बदलते हुए भाई साहब और बाऊ जी |
यहाँ से चलकर एक स्थान पर पिंचर लगवाया। ऐसे रास्तों पर स्टेपनी की अत्यंत आवश्यकता होती है। पता नहीं कब रोड़ी का फ़टका लग जाए और टायर टें बोल जाए। पहाड़ों में कई किमी तक पंचर बनाने वाले नहीं मिलते। इसलिए अपने वाहन से सफ़र करने वालों को पूरी तैयारी के साथ चलना चाहिए। पहाड़ी घुमावदार रास्तों में भोजन करने के बाद समस्या हो जाती है। एक जगह आदमी टिक कर नहीं बैठ सकता। इसके कारण मुझे मतली आने लगी। बहुत देर तक जज्ब किया परन्तु एक स्थान पर कार रुकवानी ही पड़ गई। ऐसा जीवन में पहली बार हुआ। हजारों किमी लम्बे सफ़र किए, परन्तु कोई समस्या नहीं आई थी। यह समस्या अभी ही झेलनी पड़ी।
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उत्तराखंड का पहाड़ का बड़ा शहर अल्मोड़ा |
हमने अल्मोड़ा में गीतेश त्रिपाठी जी को फ़ोन लगा दिया था कि एक रात अल्मोड़ा रुकेगें। जब अल्मोड़ा के पास पहुंचे तो भाई साहब ने बताया कि हम सीधे ही घर जा रहे हैं, अल्मोड़ा नहीं रुकेगें। बाऊ जी को घर से फ़ोन आया था, कोई समस्या है, इसलिए सीधे ही चलते हैं। ज्यों ज्यों पहाड़ से नीचे उतर रहे थे, त्यों त्यों गर्मी का सामना करना पड़ रहा था। मन उखड़ा जा रहा था, कह रहा था कि बस एक दो महीने यहीं ठहर जाओ। परन्तु यह संभव नहीं था। अल्मोड़ा बायपास पर पहुंच कर दो चार फ़ोटो लिए और आगे बढ गए। अल्मोड़ा से साढे चार बजे चल कर हम पौने पाँच बजे कैंची धाम पहुंच गए।
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नीब करौरी बाबा कैंची धाम का द्वार |
कैंची धाम नीब करोरी बाबा ने बसाया था, यह जुकरबर्ग के आने के बाद कुछ और प्रसिद्ध हो गया। यहाँ हमने गाड़ी रोकी। भूख सी लगने लगी थी। गर्मागरम पकौड़े खाए। पानी लिया और आगे बढ गए। यहाँ से एक रास्ता नैनीताल को जाता है और दूसरा हल्द्वानी को। रास्ते में खूब जोर की बारिश शुरु हो गई, रास्ता ही नहीं दिख रहा था और पहाड़ी पानी निकलने के लिए सड़क को आधा खोद दिया गया था जिसमें पानी भरने के कारण गड्ढे दिखाई नहीं दे रहे थे। जैसे तैसे हम हल्द्वानी पहुंचे। हल्द्वानी पहाड़ को सामान की आपूर्ति करता है। यह इस इलाके का मुख्य शहर है। हल्द्वानी पहुंचते तक रात हो चुकी थी।
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कैंची धाम में एक सेल्फ़ी |
हल्द्वानी से रामपुर मुरादाबाद पहुंचते तक बहुत रात हो चुकी थी। मेसेजंर एक मित्र का मेसेज दिखा कि आप मुरादाबाद से पहुंचे तो सूचना दें, मिलना चाहते हैं। हम मुरादाबाद से आधी रात को निकल रहे थे अब किसे सूचना दें। उन्हें जानकारी दे दी, फ़िर कभी मिलेगें। यहीं कहीं पर एक ढाबे में भोजन किया और सपाटे के साथ चलते हुए हम रात लगभग एक बजे गाजियाबाद पहुंचे। हमारी यात्रा का समापन हो चुका था। सुबह उठ कर प्लान बना कि लौटते हुए ओरछा और टीकमगढ़ भी देखते चलते हैं। टीकमगढ़ के अपर जिलाधीश को फ़ोन लगाकर अपने प्रोग्राम की जानकारी दी। भाई साहब को टिकिट के लिए कहा तो अगले दिन की पातालकोट एक्सप्रेस में सीट खाली मिल गई।
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ये दिल्ली है, झोपड़पट्टी में वातानुकूलन का आनंद |
पाताल कोट एक्सप्रेस सराय रोहिल्ला से छिंडवाड़ा तक चलती है। गर्मी के मौसम इस ट्रेन में सीट खाली मिलना बड़ी बात थी। अगली सुबह भाई साहब मुझे शाहदरा मैट्रो स्टेशन तक छोड़ गए। ट्रेन का समय एक बजे था। मैट्रो से चलकर शाहदारा स्टेशन पहुंचा। ट्रेन प्लेटफ़ार्म पर लग चुकी थी। ब्लॉगर मित्र मुकेश पाण्डेय जी को भी ओरछा फ़ोन कर दिए थे। हमें झांसी उतरना था। एक साथी मिल गए ट्रेन में समय कट गया। इति .....
सानदार जबरजस्त जिन्दाबाद
जवाब देंहटाएंबहुत खूब। उम्मीद है शीघ्र ही पहाड़ों का रुख करेंगे।
जवाब देंहटाएंअल्मोड़ा से गुजरे पता होता तो दर्शन कर लेते आप का जिस पहाड़ की फोटो खींच कर दिखाये हैं उसी तरफ के रास्ते में ही रहते हैं जिससे आप गुजरे थे :)
जवाब देंहटाएंबढिया यात्रा रही।
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