मंगलवार, 16 मार्च 2010

फ़ोकट का चंदन घिस भाई नंदन

भैया हम ठहरे गंवईहा, निपट मुरख. लेकिन संगत हमेशा ज्ञानियों-विज्ञानियों और ध्यानियों का ही किये. कहते हैं ना "सत्संगति किम ना करोति पुंसाम" इनकी संगत करने से हमें बिना पढ़े ही ज्ञान मिल जाता है. .... 


कौन पुस्तकों में मगज खपाए. अपना उल्लू सीधा करने के लायक समझ ही लेते हैं. बस किसी ज्ञानी के पास जाकर पाँव लागी किये और मुंह फार के चेथी खुजाते हुए बैठ गए. फिर धीरे कोई एक प्रश्न ढील दिये. अब ज्ञानी महाराज हमको मुरख जान कर प्रश्न का उत्तर धारा प्रवाह दे देते हैं. अगर उसका उत्तर नहीं मिलता तो हमें चाय पिला कर कह देते हैं कि कल आना यार आज मूड नहीं कर रहा है.....


हम उसनके सामने एक प्रश्नवाचक जिन्न खड़ा करके  रात भर चैन की नींद सोते हैं और उधर ज्ञानी जी रात भर जाग के ग्रंथों के पन्नो में अपना मूड खपाते रहते हैं. क्योकि कल उनको एक मुरख के सवाल का जवाब देना है. अगर नहीं दे पाए तो उनकी विद्वता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जायेगा. इज्ज़त का सवाल है.... 


अगर नहीं दे पाए तो हम तो गंवईहा मुरख ठहरे, पुरे गांव में घूम - घूम के कह आयेंगे सुबह-सुबह लोटा धर के कि ज्ञानी जी को तो कुछ नहीं आता फालतू विद्वान् बनने का ढोंग करते रहते हैं. अब ज्ञानी जी अपनी इज्जत बचाने के लिए रात भर जाग कर हमारे प्रश्न  का उत्तर ढूंढते हैं, हम सुबह सुबह उनके घर जा धमकते हैं और गरमा-ग़रम चाय और पकोड़े के साथ मनवांछित ज्ञान भी पा जाते हैं. ज्ञानी जी की भी इज्जत बच जाती है और हमें भी बिना पढ़े ,बैठे बिठाये गुप्त ज्ञान मिल जाता है. 


भैईया हम तो निपट गंवईहा ठहरे. एक दिन पान की गुमटी के सामने खड़े थे पान लगवाने के लिए. अम्मा ने भेजा था और कहा था सीधा जाना और आना बीच में कहीं रुक मत जाना. हम जब पहुंचे तो कई लोग वहां खड़े थे. 


चंदू बोला- पंडित जी आप तो बहुत ज्ञानी हैं. हमारे भानजों की शादी है और विवाह करने के लिए कोई महाराज नहीं मिल रहे हैं. अक्षय तृतीया है. सभी पंडित-महाराज बुक हो गये हैं. अगर आप ये शादी करवा देते तो हमारा बोझ हल्का हो जाता. ........



हम भी खाली थे. क्योंकि कोई तो हमारे पास आता ही नहीं था. इसलिए कि हम चौथी फेल, बस सुन सुन के याद कर लेते थे और जब कभी मौका मिलता दुसरे गंवारों के बीच अपने ज्ञान का छौंक लगा कर विद्वान् बन जाते थे. हमने भी सोचा कुछ कमाने का मौका मिल रहा है. काहे हाथ से जाने दें. बस हाँ कर दी. 


अगला भी बहुत कांईया जजमान था. ये हम जानते थे. हमने वहीं पर सौदा पॉँच सौ एक रूपये में तय कर लिया. अब अम्मा का पान पंहुचा कर हम पहुँच गये ज्ञानी जी के पास और प्रश्न कर दिया की "विवाह में कितने मंत्र पढ़े जाते हैं और भांवर कैसे कराई जाती है? उन्होंने मुझे दो घंटे समझाया. हम विधि ज्ञान तो ले लिए लेकिन बात अब मंत्र पाठ पर अटक गई. अरे जब पढ़ना आये  तब तो मंत्र पढेंगे. 


तभी हमें शोले फिलम का जय और बीरू का सीन याद आ गया. बीरू कहता है हम एक-एक, दस-दस पे भारी पड़ेंगे और फिर जय से कहता है, "कंही ज्यादा तो नहीं बोल दिया. तब जय कहता है "अरे जब कह ही दिया है तो देख भी लेंगे". जब हमने भांवर का ठेका ले ही लिया तो देखा जायेगा. निपटा के ही आयेंगे. 


अब अक्षय तृतीया को चल दिये विवाह संपन्न कराने. सब तैयारी करके दूल्हा दुल्हन को बैठा कर जैसे ही हमने  मंत्र पढना शुरू किया तभी एक बोला .............
"महाराज क्या पढ़ा रहे हो?" 
हमने कहा "मंत्र पढ़ रहे हैं और क्या?" 
 तो वो बोला " ये मंत्र नहीं है. ये तो आप हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं. इससे क्या शादी  होती है? 


हमने कहा-" भैया पॉँच सौ रूपये में क्या बेद पढने वाला महाराज मिलेगा? अगर तेरे घर में बहु को ठहरना है तो हनुमान चालीसा से ही ठहर जाएगी, नहीं तो गुरु वशिष्ठ के भी मन्त्र पाठ के बाद भी नहीं ठहरेगी.............



जजमान ने सोचा की महाराज नाराज हो कर मत चले जाएँ नहीं तो विवाह कौन करावेगा, जजमान ने बोलने वाले को धमका कर चुप कराया और हमें कहा महाराज आप नाराज ना हों, आपके मुंह से निकला  हुआ हर वाक्य ब्रह्ममंत्र है बस आप पढ़ते रहिये, फिर क्या था! हमने हनुमान चालीसा पढ़ के शादी करवा दी, माल अन्दर किया और खुद बाहर आ गए. जजमान के मुख पर भी बेटी ब्याहने की लाली थी और हमारे मुंह में भी चमन बहार की गिलौरी थी।

तो का बताएं भैया! हम तो निपट गंवईहा ठहरे. 

22 टिप्‍पणियां:

  1. तो का बताएं भैया! हम तो निपट गंवईहा ठहरे...
    मजाल किसकी जो यह कह दे ..हा..हा..हा...

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  2. बहुत सटीक व्‍यंग्‍य। कभी-कभी ऐसा भी होता है और गाँवों में तो अक्‍सर हो ही जाता है।

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  3. सही कह रहे हो भइया! जैसा दाम वैसा काम!

    आजकल तो रक्षाबन्धन भाई बहन का त्यौहार हो गया है पर किसी समय यह पुरोहितों और यजमानों त्यौहार हुआ करता था। पण्डित जी "दीनबन्धु बलीराजा ..." श्लोक कहते हुए यजमान को रक्षबन्धन के धागे बाँधा करते थे। हमारे एक पण्डित जी को श्लोक याद नहीं रह पाता था तो वे उसे इस प्रकार से कहते थेः

    दीनबन्धु बलीराजा समवेता ययुतस्वः ....

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  4. बिल्कुल सटीक व्यंग, मजा आया.

    रामराम.

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  5. अगर तेरे घर में बहु को ठहरना है तो हनुमान चालीसा से ही ठहर जाएगी, नहीं तो गुरु वशिष्ठ के भी मन्त्र पाठ के बाद भी नहीं ठहरेगी...
    पंडित जी बहुत सुंदर... फ़िर तो आप का धंधा खुब जम गया होगा,यह तो बताया ही नही हनुमान जी की कृप्या से बहू टिकी या नही??

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  6. आपने तो हनुमान चालिसा पढवाकर विवाह करवाया .. हमारे यहां तो एक पंडितजी(बालक)ने भीड भाड में हिरण्‍यक नामक चूहे की संस्‍कृत में लिखी कथा से सत्‍यनारायण भगवान की पूजा पूजा करवायी थी !!

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  7. वैसे धंधा भी चोखा है ललित जी पंडिताई गिरी का आजकल ! ढूढे नहीं मिलते कमबख्त मौके पर ! :)

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  8. शुक्र है कि आज के समय में किसी को हनुमान चालीसा याद थी (आपके अलावा):-)

    प्रणाम

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  9. बढ़िया व्यंग्य !
    हमारे स्कूल में एक पंडित जी अध्यापक थे उन्होंने भी बचपन में ही विवाह आदि के कार्यक्रम सम्पन्न करवाने शुरू कर दिए थे एक बार वे किसी विवाह में मन्त्रों की पोथी की जगह गलती से गरुड़ पुराण ले गए फिर फंसने पर ऐसे ही मंत्रोचार करने लगे |तभी बारात में आये एक पंडित जी को देखने बाद तो हमारे गुरु जी बीच फेरों में लघु शंका का बहाना बना उठकर घर भाग आये | विवाह की बाकी रस्मे बारात में आये पंडित जी ने पूरी करवाई |

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  10. एक बार हमारे साथ भी ऐसा ही हो चुका है. हा हा हा

    बढिया व्‍यंग्‍य.

    नये वर्ष की मंगलकामनांए.

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  11. bahut hi mast.
    ye vyangya hi tha na bhaisaheb, ya kahi asal ghatna ko to prastut nahi kar diye aap ;)

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  12. मजेदार हैं, अगर इस व्यंग का नाटक खेला जाये तो दर्शक हंस हंस कर लोटपोट हो जायेंगे

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  13. सही धंधा है ..पुरोहिताई..!!हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा आये ...अच्छा व्यंग्य

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  14. ह ह ह ह .. बहुत बढिया लिखा है ..
    अगर तेरे घर में बहु को ठहरना है तो हनुमान चालीसा से ही ठहर जाएगी, नहीं तो गुरु वशिष्ठ के भी मन्त्र पाठ के बाद भी नहीं ठहरेगी.............

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  15. :) मन्त्रों का अर्थ तो कोई जानता नहीं कुछ भी पढवा कर विवाह संपन्न करा दिया जाता है .. बढ़िया व्यंग ..

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  16. जय हो पंडित जी की…………हा हा हा

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