अल सुबह चिरौंजी लाल पांडे के घर से कुछ धमा चौकड़ी की आवाजें आ रही थी। वे चिल्ला रहे थे......."आज से नही नहाउंगा,..... सालों ने रोज रोज परेशान कर रखा है,.... अरे जब मेरा नहाने का मुड ही नही है .........तो फ़िर जबरिया नहलाने का क्या मतलब है?"
पंडियाईन कह रही थी-......."स्नान करो चाहे मत करो........... लेकिन नल से पानी भर के लाना पड़ेगा, ....... मै जान गयी हूँ तुम्हारी चाल को।"
"हम नही लाएगें पानी नल से जिसको नहाना हो वो ले आए....... वो तुम्हारे भाई साले आए हुए हैं........ उनको लगाओ पानी लाने के लिए,........ 20 दिनों से पड़े हुए हैं मुस्टन्डे...... काम के ना काज के बारा मन अनाज के............ हम पानी लाएं तो साहबजादे स्नान करें,"
"जब से आएं हैं हमारे भैया....... तब से आपको बहुतै तकलीफ़ हो गई है,....... अरे! 6-7 पीपा पानी ही तो ज्यादा लगता हैं बस,.......... इतना नहीं कर सकते अपने सालों के लिए,...... देखो ना कितने दुबले हो गए हैं बेचारे।"
"हां क्यों नहीं होगें दुबले?....... जब आए थे दो-दो मन मैल चढा हुआ था,......... सारा यहीं उतार कर जाएंगे। ..........वजन तो हल्का होगा न।"
"देखो अब बहुत हो गया!...... अब आगे कुछ कहा मेरे भाईयों को तो....... मेरी बर्दास्त के बाहर हो जाएगा।.... मैं मायके चली जाउंगी.......... एक तो इतनी गर्मी है,.......... उपर से कुलर भी चालु नही हैं........ उसके भी तार चुहे काट गए हैं........ कितने दिनों से करमों को रो रही हूँ कि उसे सुधरवा दो......... लेकिन यहां मेरी सुनता कौन है?"
"उसे सुधरवा दुंगा तो पानी तो मुझे ही भरना पड़ेगा और ठंडी हवा का मजा लेंगे सालिगराम जी......मैं भी यही चाहता हूँ,...... चली जाओ तुम मायके, कम से कम दो महीने गर्मी के सुख से तो बीतेंगे........ ये गर्मी तो मेरी जान ही निकाल लेती है........ पानी की जो किल्लत होती है कि यहां रहने को ही मन नही करता....... आफ़िस जाने से पहले पानी भरो,..... आफ़िस से आकर पानी भरो....... बस हमारा तो दम निकल जाता है,....... पानी भराई में, .........अब इसका हल हमने यही निकाला है कि हमने स्नान बंद कर दि्या, ........अब जिसको स्नान करना हो अपना पानी स्वयं भरे"
इतने में अखबार वाला अखबार फ़ेंक कर जाता है चिरोंजी लाल तु्रते लपकते हैं धोनी जैसे,...... और पढना शुरु करते हैं........ ज्यों ज्यों पढते जाते हैं त्यों त्यों उनके चेहरे पर मुस्कान तैरती जाती हैं ........ अब पंडियाईन तो चिढ़ी बैठी हैं उन्हे यह मुस्कान नागवार गुजरती है,
"कौन सी लाटरी खुल गयी जो दांत निपोर रहे हो?"
हमारे लिए तो लाटरी ही खुल गई,......... गांव का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिद्ध....... तुम्हारी तो उल्टी खोपड़ी में कुछ घुसता ही नही हैं,........... इधर हमने स्नान करने से मना किया,.......... उधर इतनी जल्दी अमेरिका वालों ने स्नान करने के फ़ायदे और नुकसान पर शोध भी कर लिया,............. सबसे तेज चैनल है। उन्होने हमारे स्नान न करने को सही कदम ठहराते हुए कहा है कि ...............रोज स्नान करने से प्रदूषण फ़ैल रहा हैं।
क्यों सुबह सुबह बकवास किए जा रहे हो ऐसा कभी हो्ता है क्या?........ कि स्नान करने से प्रदूषण फ़ैलता है, अरे स्नान करने से तन और मन का मैल साफ़ होता है....... ताजगी आती है, काम में मन लगता है,.... इसमें ऐसा क्या लिखा है?....... जिससे प्रदूषण फ़ैलता है?
ये कह रहे हैं जब हम रोज नहाते हैं......... तो साबुन सोडा शैम्पु का प्रयोग करते हैं ........इससे वह जाकर जल में मिल जाता है, और जल प्रदूषित होने से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है।
अरे यह तो बड़े नु्कसान की बात बताई इन लोगन ने,
आगे कहते हैं कि जब जलस्रोतों के पानी की जांच की गयी उसमें गर्भनिरोधक गोलियाँ, अवसाद नाशक दवाएं, और कई दवाओं के अवशेष मिले हैं,........ इनमें से तो कुछ पेयजल में जाकर मिल गए हैं। इसके अलावा त्वचा की देखभाल करने वाले क्रीम, लोशन, शैम्पु आदि के भी रासायनिक तत्व मिले हैं........... अब तुम ही बताओ नहाने से कितना नुकसान हो रहा है पर्यावरण का?
नहाने से नुकसान कैसे होगा?
अरे तुम्हारी तो समझ में आता ही नही है? एक बात बताओ तो उस पर सवाल पर सवाल दागे चली जाती हो। अमेरिका की एक डॉक्टर है इलीन रुहाय, उसने कहा है कि इन सामग्रियों का इस्तेमाल करने वाले के पसीने से रासायनिक तत्वों का रिसाव होता है.......... जो नहाते समय पानी में मिल जाता है समझे,......... अब हमारी नहाने से छुट्टी.........हम ठहरे पर्यावरण प्रेमी....... नही चाहते कि पर्यावरण को नुकसान हो।
तुम्हारे को तो अच्छा बहाना मिल गया कि नल से पानी भर के ना लाना पड़े,...... बाबा जी की बात क्यों नही मानते.......... देशी साबुन आर्युवैदिक स्नान किजिए इससे पर्यावरण का नुकसान नही होगा?
इतनी बातें सुनकर हम भी बाहर निकल आते हैं " अरे भाई सुबह सुबह झगड़ा बंद करों और इस समस्या का एक ही हल हैं "काग स्नान" करो।"
पंडियाईन कह रही थी-......."स्नान करो चाहे मत करो........... लेकिन नल से पानी भर के लाना पड़ेगा, ....... मै जान गयी हूँ तुम्हारी चाल को।"
"हम नही लाएगें पानी नल से जिसको नहाना हो वो ले आए....... वो तुम्हारे भाई साले आए हुए हैं........ उनको लगाओ पानी लाने के लिए,........ 20 दिनों से पड़े हुए हैं मुस्टन्डे...... काम के ना काज के बारा मन अनाज के............ हम पानी लाएं तो साहबजादे स्नान करें,"
"जब से आएं हैं हमारे भैया....... तब से आपको बहुतै तकलीफ़ हो गई है,....... अरे! 6-7 पीपा पानी ही तो ज्यादा लगता हैं बस,.......... इतना नहीं कर सकते अपने सालों के लिए,...... देखो ना कितने दुबले हो गए हैं बेचारे।"
"हां क्यों नहीं होगें दुबले?....... जब आए थे दो-दो मन मैल चढा हुआ था,......... सारा यहीं उतार कर जाएंगे। ..........वजन तो हल्का होगा न।"
"देखो अब बहुत हो गया!...... अब आगे कुछ कहा मेरे भाईयों को तो....... मेरी बर्दास्त के बाहर हो जाएगा।.... मैं मायके चली जाउंगी.......... एक तो इतनी गर्मी है,.......... उपर से कुलर भी चालु नही हैं........ उसके भी तार चुहे काट गए हैं........ कितने दिनों से करमों को रो रही हूँ कि उसे सुधरवा दो......... लेकिन यहां मेरी सुनता कौन है?"
"उसे सुधरवा दुंगा तो पानी तो मुझे ही भरना पड़ेगा और ठंडी हवा का मजा लेंगे सालिगराम जी......मैं भी यही चाहता हूँ,...... चली जाओ तुम मायके, कम से कम दो महीने गर्मी के सुख से तो बीतेंगे........ ये गर्मी तो मेरी जान ही निकाल लेती है........ पानी की जो किल्लत होती है कि यहां रहने को ही मन नही करता....... आफ़िस जाने से पहले पानी भरो,..... आफ़िस से आकर पानी भरो....... बस हमारा तो दम निकल जाता है,....... पानी भराई में, .........अब इसका हल हमने यही निकाला है कि हमने स्नान बंद कर दि्या, ........अब जिसको स्नान करना हो अपना पानी स्वयं भरे"
इतने में अखबार वाला अखबार फ़ेंक कर जाता है चिरोंजी लाल तु्रते लपकते हैं धोनी जैसे,...... और पढना शुरु करते हैं........ ज्यों ज्यों पढते जाते हैं त्यों त्यों उनके चेहरे पर मुस्कान तैरती जाती हैं ........ अब पंडियाईन तो चिढ़ी बैठी हैं उन्हे यह मुस्कान नागवार गुजरती है,
"कौन सी लाटरी खुल गयी जो दांत निपोर रहे हो?"
हमारे लिए तो लाटरी ही खुल गई,......... गांव का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिद्ध....... तुम्हारी तो उल्टी खोपड़ी में कुछ घुसता ही नही हैं,........... इधर हमने स्नान करने से मना किया,.......... उधर इतनी जल्दी अमेरिका वालों ने स्नान करने के फ़ायदे और नुकसान पर शोध भी कर लिया,............. सबसे तेज चैनल है। उन्होने हमारे स्नान न करने को सही कदम ठहराते हुए कहा है कि ...............रोज स्नान करने से प्रदूषण फ़ैल रहा हैं।
क्यों सुबह सुबह बकवास किए जा रहे हो ऐसा कभी हो्ता है क्या?........ कि स्नान करने से प्रदूषण फ़ैलता है, अरे स्नान करने से तन और मन का मैल साफ़ होता है....... ताजगी आती है, काम में मन लगता है,.... इसमें ऐसा क्या लिखा है?....... जिससे प्रदूषण फ़ैलता है?
ये कह रहे हैं जब हम रोज नहाते हैं......... तो साबुन सोडा शैम्पु का प्रयोग करते हैं ........इससे वह जाकर जल में मिल जाता है, और जल प्रदूषित होने से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है।
अरे यह तो बड़े नु्कसान की बात बताई इन लोगन ने,
आगे कहते हैं कि जब जलस्रोतों के पानी की जांच की गयी उसमें गर्भनिरोधक गोलियाँ, अवसाद नाशक दवाएं, और कई दवाओं के अवशेष मिले हैं,........ इनमें से तो कुछ पेयजल में जाकर मिल गए हैं। इसके अलावा त्वचा की देखभाल करने वाले क्रीम, लोशन, शैम्पु आदि के भी रासायनिक तत्व मिले हैं........... अब तुम ही बताओ नहाने से कितना नुकसान हो रहा है पर्यावरण का?
नहाने से नुकसान कैसे होगा?
अरे तुम्हारी तो समझ में आता ही नही है? एक बात बताओ तो उस पर सवाल पर सवाल दागे चली जाती हो। अमेरिका की एक डॉक्टर है इलीन रुहाय, उसने कहा है कि इन सामग्रियों का इस्तेमाल करने वाले के पसीने से रासायनिक तत्वों का रिसाव होता है.......... जो नहाते समय पानी में मिल जाता है समझे,......... अब हमारी नहाने से छुट्टी.........हम ठहरे पर्यावरण प्रेमी....... नही चाहते कि पर्यावरण को नुकसान हो।
तुम्हारे को तो अच्छा बहाना मिल गया कि नल से पानी भर के ना लाना पड़े,...... बाबा जी की बात क्यों नही मानते.......... देशी साबुन आर्युवैदिक स्नान किजिए इससे पर्यावरण का नुकसान नही होगा?
इतनी बातें सुनकर हम भी बाहर निकल आते हैं " अरे भाई सुबह सुबह झगड़ा बंद करों और इस समस्या का एक ही हल हैं "काग स्नान" करो।"
कितने दिन में स्नान करना चाहिए, जरा लगे हाथों यह भी बताते जाइए। बढिया व्यंग्य है।
जवाब देंहटाएंजो पड़ोस के बचहन भइया ये शोध बहुत पहली ही कर लिए थे होली होली नहाते थे ...उनको ढूंढ कर "पर्यावरण प्रहरी" का पुरूस्कार दिलवा दिया जाए
जवाब देंहटाएंबढिया रचना
भई हम तो बहुत पहले से पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान देते आ रहे हैं...बताओ कोई ईनाम विनाम दिलवा रहे हो क्या :-)
जवाब देंहटाएंपर्यावरण संरक्षण में हमारा तो बचपन से अतुलनीय योगदान रहा हैं
जवाब देंहटाएंन जाने कितनी दफा "सोटा-धुलाई" भी हो गयी is चक्कर में
"ड्राईक्लीन" के पुरजोर समर्थक हैं.....इससे पानी की बचत होती हैं, तेल-साबुन की अलग
समय की बचत भी होगी :-)
चलिए इसी बहाने अब टोइलेट पेपर की खपत हमारे देश में भी बढ़ जायेगी !नहाने के बदले बदन पर भी उसे ही रगड़ देंगे ! :)
जवाब देंहटाएंललित जी, आपने हमारे ज्ञान चक्षु खोल दिया, हम भी अब से नहीं नहायेंगे।
जवाब देंहटाएंचिरौजी लाल पांडे क्यों नहीं नहायेंगे . टायलेट में कागज की खपत बढाने के लिए अमादा लगते हैं .. नहीं नहाते है इसीलिए उन्हें जल बचाने के लिए सम्मानित कर दिया जाए .... बढ़िया रोचक ....
जवाब देंहटाएंवही तो ..होली की होली नहाना चहिये बस... .
जवाब देंहटाएंबस थोडा इंतजार और बाकी है जी
जवाब देंहटाएंताऊ प्रोडक्शन का सूखा जल लांच होने ही वाला है (हमने सुना है)
फिर सूखे जल से स्नान किया करेंगें
प्रणाम
अपनी आदत तो होली टू होली वाला है
जवाब देंहटाएंचिंता मै क्यो करूँ
हा हा हा ! बढ़िया व्यंग मारा है।
जवाब देंहटाएंअब तो हमें भी सोचना पड़ेगा --राष्ट्रहित में । :)
...साल में दो-चार बार नहा लेते थे अब लगता है पूरे साल में एक बार स्नान करना ही उचित होगा ....धमाकेदार व्यंग्य,बधाई!!!!!
जवाब देंहटाएंहा हा हा.....बहुत ही बढ़िया व्यंग
जवाब देंहटाएंकाग स्नान- यही उपाय बच रहेगा एक दिन सच में. :)
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग्य!
बहुत दूर की सोंचते हैं आप .. बहुत बढिया व्यंग्य !!
जवाब देंहटाएंइस "काग स्नान" पर भी विस्तृत प्रकाश डाला जाय
जवाब देंहटाएं@रतन सिंग जी
जवाब देंहटाएंजीं दिन कागो जाग ग्यो,
बी दिन काग स्नान को महात्तम भी बतावांगा,
राम-राम सा
hahaha......nahana band
जवाब देंहटाएंHA HA HA HA ...........................
जवाब देंहटाएं:) :) .:)
जवाब देंहटाएंbahut accha vyang......
shandar comment hai
जवाब देंहटाएंHA HA HA HA .
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