शुक्रवार, 12 मार्च 2010

गांव बसा नहीं डकैत पहले पहुंचे........महिला आरक्षण

भी अभी ही महिला आरक्षण विधेयक पास हुआ है राज्य सभा से और इसे कानून बनने में कुछ समय और लगेगा ....... लेकिन इसमें मिले महिला आरक्षण अधिकारों पर सेंध लगाने की क्या कहें........ सीधे सीधे डाका डालने ने मनसूबे बान्धे जाने लगे हैं......  

एक कहावत है ना गांव बसा ही नहीं डकैत पहले पहुँच गए........ बस कुछ इस तरह ही होने वाला है....... साठ सालों से संघर्ष करने के बाद एक ख़ुशी मिली थी कि हमारी भी माँ-बहनों-बेटी बहुओं को छोटी से लेकर दिल्ली तक की पंचायतों में अपनी बात कहने का मौका मिलेगा... वो भी दृढ़ता से अपनी बात रख सकेंगी....

अब समाचार मिल रहा है की पुरुष सांसद लिंग परिवर्तन कराने की सोच रहे हैं. संभावनाएं टटोल रहे हैं.. अधिकांश सांसद मान कर चल रहे हैं कि देर सबेर यह कानून बन जायेगा....... 

संकेत मिल रहे हैं कि २०१४ के लोकसभा चुनावों में यह आरक्षण अवश्य ही लागु हो जायेगा. इसके लागु होते ही डेढ़ सौ सांसदों का का कैरियर खतरे में दिख रहा है. कुछ तो देश प्रदेश कहीं भी  समायोजित हो  जायेंगे बाकी कहाँ जायेंगे? 

ये बात मजाक की अवश्य लग सकती है..... लेकिन कुछ चर्चाएँ उड़ कर आ रही हैं कि लिंग परिवर्तन जैसे प्रयोग करने में बुराई क्या है? अब इस कला में माहिर डाक्टरों की चाँदी कटने वाली है. अपनी राजनीति बचाने के लिए कुछ भी किया जा सकता है. कह रहे हैं कि बुजुर्गों को दिक्कत आयेगी पर युवाओं के लिए रास्ता खुला है......

दूसरा खतरा है कि अब किन्नर भी इसका फायदा लेने की भरपूर कोशिश में हैं. अब किन्नरों में स्वयं को महिला लिखने वालों की संख्या तेजी से बढ़ सकती है. किन्नर दोनों लिंगों का उपयोग करते हैं कोई पुरुष लिखता है तो कोई महिला. लेकिन सब महिला ही लिखने की पुरजोर तैयारी में हैं. 

हाल में ही चुनाव आयोग ने इन्हें महिला या पुरुष लिखने के बजाय किन्नर लिखने की छुट दे दी है. इससे पहले इन्हें पुरुष या महिला लिखने की ही छुट रहती थी. अभी चुनाव के नामांकन पत्र में पुरुष या महिला दो ही कालम होते हैं. इससे उनके पास विकल्प है कि वे स्वयं को किस श्रेणी में रखते हैं. अब महिला लिखने पर लाभ दिखाई दे रहा है तो पुरुष लिखा कर कौन उससे वंचित होना चाहेगा.

एक समाचार पत्र नवभारत ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया हैं कि कांग्रेस के सांसद और ३६ गढ़ प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष चरण दास महंत को किन्नरों ने रायपुर में हुए अंतर्राष्ट्रीय किन्नर सम्मलेन में अपना संरक्षक बनाया था और वे अभी तक इनके संघ के संरक्षक हैं. 

कई किन्नरों ने आरक्षण से खुश होकर उनसे संपर्क किया तथा आने वाले चुनावों में टिकिट की व्यवस्था करने की मांग की है.अब किन्नर भी महिला आरक्षण का लाभ उठाने के लिए कमर कस चुके हैं........... इससे लगता है कि महिलाओं को आरक्षण का लाभ मिलने का रास्ता इतना आसान नहीं है. अभी और भी कई बाधाओं को पार करना पड़ेगा.

18 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया लेख , वैसे फर्क भी क्या पड़ता है , ५४२ किन्नर तो पहले से ही संसद पहुंचे हुए है ! :)

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  2. ललित जी हमें तो राजनीति में कुछ रुचि ही नहीं रही कभी तो इस विषय में टिप्पणी क्या दें?

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  3. गोदियाल जी का कहना दुरूस्त है कि भारतीय राजनीती में तो पहले ही कोई असली मर्द नहीं दिखाई पडता....कुछ और आ भी जाएंगें तो क्या फर्क पडने वाला है। जहाँ नाश वहाँ सवा सत्यानाश :-)

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  4. तभी कहुं हमे अदना से देश भी आंखे दिखा रहे है, धमका रहे है, हमारे देश मै तोड फ़ोड कर रहे है, ओर हमारे नेता क्या कर रहे है, आज पता चला कि ५४२ किन्नर है यह सब,

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  5. आगे आगे देखिये होता है क्या ? आभार !!

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  6. कानून तो बनते इसी तर्ज पर हैं कि तू डाल दाल हम पात पात. कई तोड निकल आयेंगे.

    रामराम.

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  7. बेहतरीन लिखा आपने ...मजेदार रचना !!
    ______________

    "पाखी की दुनिया" में देखिये "आपका बचा खाना किसी बच्चे की जिंदगी है".

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  8. .गोदियाल जी कि टिपण्णी से पूर्णत: सहमत. बढ़िया लिखा है आपने .

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  9. बात तो आपकी वाकई दमदार है |

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  10. ekdam sahi.. bundelkhandi me kahen to ''Tala khudo naiyan magra aan khakhare...''
    Jai Hind... Jai Bundelkhand...

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  11. बढ़िया व्यंग्य...आपने तो और अधिक लिखने के लिए मसाला दे दिया

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  12. "पुरुष सांसद लिंग परिवर्तन कराने की सोच रहे हैं...."
    हे भगवान..महिलाओं को आजतक ये ख़्याल क्यों नहीं आया ! आरक्षण का टंटा ही नहीं उठता.

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